किताब और कहानी के माध्यम से साहित्य में बच्चों की रूचि जगाने की एक कोशिश

0

कथा समय की फाउंडर रीना पंत हैं, जो पेशे से एक शिक्षिका हैं । स्नातक के समय इनकी साहित्य के प्रति रुचि बढ़ी और पीएचडी करने के बाद साहित्य के प्रति इनके प्यार ने कथा समय की शुरुआत की, जिसकी मदद से कथा समय ,बड़े व छोटे बच्चों को साहित्य से जोड़ा जा रहा है ।
कथा समय की शुरुआत चार लोगों से शुरूआत हुई थी। अब हर बैठक में लगभग 25-30 लोग होते हैं। हर क्षेत्र टीवी, थियेटर, साहित्य, इंजिनियर, कौरपोरेट के लोग भी अब भाग लेते हैं । व्हाट्सएप, फेसबुक, डिजिटल लाइफ से किताबों की दुनिया में ले जाना। रंगीन दुनिया के सपनों के साथ धरातल की सच्चाई से वाकिफ होना और इन सबसे पहले एक संवेदनशील मनुष्य बनाना , कथा समय का यही उद्देश्य है।

आजकल लोग पढ़ने के लिए समय नहीं निकालते, किताबें खरीदने में पैसा खर्च करने से बचते हैं। लोगों तक साहित्य की बात पहुंचाने में बड़ी दिक्कत आई। शुरुआत के दिनों में रीना पन्त ने अपनी पर्सनल किताबें देनी शुरू कीं। अच्छी कहानियों के लिंक साझा किए। कार्यक्रम में ऐसे लोगों को बुलाया जिनकी समाज में पहचान है।

आज जब किताबों से, साहित्य से आम जन और बच्चे दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में रीना जी इन सबों को एक साथ जोड़ने का एक बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रयास कर रही हैं। रीना जी शिक्षिका हैं और बहुत करीब से देख रही हैं कि पाठ्यपुस्तकों से अलग किताब पढ़ने में, बच्चों की अब उतनी रुचि नहीं रही। उन्होंने अपने स्कूल और बिल्डिंग के बच्चों और उनके पैरेंट्स से आग्रह किया कि वे लोग महीने में एक बार उनके घर आएं और वे लोग मिलकर एक शाम कहानियाँ/कविताएं पढ़ेंगे, एक दूसरे को सुनाएंगे।
कुछ बच्चों,उनके माता-पिता और कुछ दोस्तों के साथ उन्होंने हर महीने के दूसरे शुक्रवार को यह गोष्ठी शुरू कर दी। सबकी सम्मति से एक विषय का चयन करतीं और अगली गोष्ठी में उसी विषय पर कहानी/कविताएं पढ़ी जातीं।बच्चे उस विषय पर कहानी चुनने के लिए नेट पर सर्च करते और इसी बहाने कुछ चीज़ें और पढ़ लेते ।

धीरे धीरे लोग जुड़ते चले गए। गोष्ठी कमरे से निकल कर हॉल में शिफ्ट हो गई। कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग भी होती और उसे यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया जाता। हर महीने हर कोई नहीं शामिल हो पाता। पर साहित्यप्रेमियों की कोशिश रहती है कि इस गोष्ठी का हिस्सा जरूर बनें।

रीना भी बिल्डिंग में खेलते बच्चों से ,टहलती महिलाओं से कह आती हैं, ‘कार्यक्रम में जरूर आइयेगा’ पर वे लोग नहीं आते किंतु साहित्यिक रुचि रखने वाले जरूर शामिल होते हैं।

कथा समय से जुड़े सभी लोग मंजे हुए कलाकार हैं, कोई थियेटर से जुड़ा है कोई वॉइस ओवर करता है।साहित्य के प्रति अपने प्यार की वजह से इन गोष्ठियों में शामिल होते हैं।कोई प्रोफेसर, साहित्यकार, शिक्षक, कवियत्री,कवि,लेखक, समाजसेवी, नौकरी से जुड़े लोग हैं जो कथा समय में आकर अपनी अपनी रचनाएं व विचार प्रस्तुत करते हैं. बच्चों की टीम भी बड़ी बेसब्री से कथा समय का इंतजार करती है।

आज जहां हर तरफ सिर्फ वयस्कों की गोष्ठियों आयोजित की जाती हैं वहीं रीना पंत के नेतृत्व में कथा-समय बच्चों के लिए सुकून भरा एक माहौल तैयार कर रहा है विशेषकर जहां बच्चे हिंदी साहित्य के पठन-पाठन की छांव में एक प्रबुद्ध नागरिक बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं । उनकी और उनके स्टूडेंट्स की छोटी सी कोशिश होती है जिसमें हर भारतीय भाषा की कहानियां पढ़ी जाती हैं , यह आयोजन विशेषकर बच्चों के लिए होता था साथ ही उसमें कुछ बड़े भी शामिल होते थे।

वक्त बीतता गया ••••लोग जुड़ते गए , धीरे-धीरे बच्चों और बड़ों की भीड़ बढ़ने लगी , तब और अच्छा लगता जब स्पेशल चाइल्ड को भी इस बैठक में सामान्य बच्चों का दर्जा मिलता।इस तरह अब कथा समय की बैठक का आयोजन बेडरूम से निकल कर हॉल में होने लगा ….सोशल मीडिया से जुड़े ,कैमरा आया ,माइक लगाई गई, इस प्रकार दिन बीतता गया और बैठक में कई रंग जुड़ने लगे•••••
रीना जी के लिए ये शेर बड़ा सटीक होगा, अर्ज किया है–

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग आते गए और कारवां बनता गया ••••

ये कारवां यूंही बनता रहे और बच्चे , बड़े जुड़ते रहें और मंजिल की तरफ बढ़ते रहें••••• क्योंकि बच्चों को साहित्य से जोड़ने के इस मुहिम में हम सब बराबर के भागीदार हैं और हमेशा रहेंगे ।
इस तरह कही अनकही बातों के तानों-बानों में हम सब डूबते उतराते रहे•••••

लोगों का सहयोग बहुत कम मिला, जिससे कभी कभी परेशानियां भी हुई.
साहित्य क्यों जरूरी है। ये समझने को कोई तैयार नहीं है पेरेंट्स बच्चों को हिंदी या क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम में जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं इसलिए कन्विन्स करना बहुत मुश्किल होता है।
फिर भी जो हो सकता है कथा समय के माध्यम से लोगों के साथ मंच साझा कर रही हैं जिससे साहित्य के प्रति लोगों को जागरूक व उनकी अभिरुचि पैदा की जा सके.
कुल मिलाकर एक बेहतरीन प्रयास।

आखिर में रीना जी आपके लिए एक शेर अर्ज़ है—

हौसलों की उड़ान अभी बाकी है
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं
अभी तो नापी है हमने मुट्ठी भर जमीं
सारा आसमान अभी बाकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *