गरीबी और तंगी के कारण रद्दी किताबों से की पढाई, आईपीएस बनकर पेश किया मिसाल : इंद्रजीत महथा

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यदि किसी भी काम को करने की इच्छा हो , उसका लक्ष्य निर्धारित कर मजबूत इरादे के साथ निरन्तर प्रयास किए जाएं तो सफलता मिलना तय हो जाता है ! सपनों को देखकर राह में आई बाधाओं को पारकर लक्ष्य को पाना उसकी महत्ता को कई गुना बढा देता है ! आज बात एक ऐसे शख्स इंद्रजीत महथा की जिन्होंने आर्थिक हालात से भीषण संघर्ष किया ! पैसे के अभाव में रद्दी की किताबें पढकर आईपीएस बनने के सपने को साकार किया ! आईए जानते हैं उनके और उनके प्रेरक संघर्ष के बारे में…

संघर्षों भरा बचपन

इंद्रजीत महथा झारखंड के एक छोटे से गाँव साबरा के रहने वाले हैं ! उनके पिता प्रेम कुमार सिंहा एक किसान हैं ! आर्थिक रूप से बेहद गरीब इंद्रजीत के पास रहने को मिट्टी का खपरैल मकान था ! वक्त के साथ उसमें भी दरारें आ गईं ! ऐसे में अब तो उन्हें रहने के लिए उनका आशियाना भी जर्जर हो चुका था ! उसकी मरम्मत जरूरी थी ! पैसे का अभाव था सो उनके पिता ने एक आदमी सहारे घर बनाया ! इंद्रजीत अपने पिता को ईंट देते थे और उनके पिता प्लास्टर करते थे ! बेहद विषम परिस्थितियों में उनका जीवन गुजरा लेकिन इतनी कठिनाईयाँ होने के बाद भी उन्होंने अपनी पढाई नहीं छोड़ी !

ऐसे आई अफसर बनने की प्रेरणा

अपनी पढाई के दौरान उनके किताब में एक पाठ जिला प्रशासन का था ! यह देेखकर उन्होंने अपने शिक्षक से पूछा कि सबसे बड़ा अफसर कौन होता है ! शिक्षक ने कहा डीएम ! शिक्षक ने एक डीएम के अधिकारों की भी चर्चा की ! बस फिर क्या था , इंद्रजीत के मन में डीएम बनने का सपना पलने लगा और उन्होंने संकल्प किया कि वह बड़ा बनकर डीएम बनेंगे ! उन्होंने अपने इस सपने को साकार करने के लिए खूब पढाई करने लगे !

रद्दी की किताब पढकर करी तैयारी

इंद्रजीत के पिता एक गरीब किसान थे इसलिए उनके आर्थिक हालात बेहद हीं खराब थे ! पढाई तो दूर खाना और रहना भी ठीक से नहीं हो पाता था ! इंद्रजीत ने सपना तो बड़ा पाल लिया था लेकिन उसकी पढाई इतनी आसान न थी ! तैयारी हेतु कई मँहगी और नई एडीशन की किताबें खरीदना उनके वश का कतई नहीं था ! पैसे के घोर अभाव में वे लोगों द्वारा बेचे गए पुरानी किताबें जो रद्दी के रूप में होते थे उन्हें खरीदकर अपनी तैयारी पूरी की !

पढाई के लिए पिता ने बेच दिया खेत

गरीब किसान पिता के पुत्र इंद्रजीत महथा को पग-पग पर आर्थिक बाधाओं ने घेरा ! जिन-जिन विषम हालातों से उन्हें दो-चार होना पड़ा उसमें कोई दूसरा होता तो कबका हार मान गया होता ! लेकिन अटल इरादे वाले इंद्रजीत ने सभी बाधाओं को बुलन्द हौसलों से पार करते हुए सफलता की इबारत लिखी ! उनकी पढाई के लिए पिता के पास पैसे नहीं थे और वह यह भी नहीं चाहते कि उनके बेटे की पढाई बााधित हो ऐसे में उन्होंने अपने बेहद प्यारे खेत जो एकमात्र उनके आजीविका का माध्यम था उसे भी बेच दिया ! जिन खेतों को अपनी अथक मेहनत और पसीनों से सींचा था उन्हें बेचना दुखद था लेकिन उससे भी कहीं महत्वपूर्ण उनके बेटे की पढाई थी !

जब पिता ने कहा “मैं अपनी किडनी भी बेच दूँगा”

पढाई में खूब मेहनत करने के बावजूद भी इंद्रजीत का पहली बार में सेलेक्शन नहीं हो पाया ! इंद्रजीत अपने पिता की मजबूरी और आर्थिक समस्याओं में घिरा परिवार को देखकर वह मायूस होने लगे ! उनकी मायूसी को उनके पिता ने पहचान लिया और इंद्रजीत से कहा कि अभी तो खेत हीं बेचा हूँ तुम चिंता ना करो तुम्हें जितनी पढ़ाई करनी है करो मैं उसके लिए अपनी किडनी तक बेच दूँगा ! पिता द्वारा ढाढस बँधाते हुए वह शब्द उनके इरादों को और मजबूती प्रदान किया और वे पूर्व से कहीं अधिक सशक्त हो गए और परिणामस्वरूप उन्होंने Indian Police Service की परीक्षा पास की !

इंद्रजीत दूसरों को सफलता का मंत्र देते हुए कहते हैं

इच्छा और इरादा दो शब्द हैं ! इंसान को किसी काम को करने की इच्छा रखने मात्र से कुछ नहीं होता जबकि उसके पास उस काम को करने का इरादा ना हो ! इरादा से हीं सफलता पाई जा सकती है ! इसके बाद सफलता के लिए संघर्ष का होना अतिआवश्यक है ! दुखों के आगे खुद को समर्पित ना कर उससे संघर्ष करना चाहिए क्यूँकि संघर्ष करके उसे हम बेहतर बना सकते हैं ! वे कहते हैं “उनका टूटा मकान , बीते हुए खेत , गरीबी जैसे संघर्ष अगर उनकी जिंदगी में ना आते तो शायद मैं सफलता के लिए दृढ संकल्पित हो इस मुकाम पर नहीं होता ! ” ! परिश्रम करें क्यूँकि इसका स्थान कोई नहीं ले सकता है ! दुनिया में हर एक परीक्षा संघर्ष , मेहनत और इरादे से पास की जाती है !

इंद्रजीत महथा ने जिस तरह कठिन आर्थिक चुनौतियों का सामना कर बिना डिगे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के पथ पर निरन्तर अग्रसर रहे वह बेहद हीं प्रशंसनीय है ! साथ हीं इंद्रजीत के पिता ने अपने बेटे की पढाई के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगा दिया वह प्रेम , त्याग और स्नेह की पराकाष्ठा है ! उनके पिता द्वारा किए गए त्याग को नमन करता है साथ हीं इंद्रजीत की भी प्रशंसा करते हुए उन्हें बहुत-बहुत बधाईयाँ देता है

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