रिक्शाचालक का बेटा होने पर लोगों ने दिए तानें, लोगों के अपमान से प्ररेणा लेकर बने आईएएस !

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“रिक्शे वाले का बेटा हो, पढ-लिखकर क्या करोगे आखिर में तुम्हें रिक्शा हीं तो चलाना है” ! आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मजबूरन लोगों की अपमानजनक बातें सुननी पड़ती हैं ! लेकिन उनमें कुछ ऐसे लोग होते हैं जो सारी बातें सहकर उसे नजरअंदाज कर अपनी लगन और मेहनत से अपनी काबिलियत की पराकाष्ठा पेश करते हैं ! आज बात एक रिक्शे चालक के बेटे गोविन्द जायसवाल की जिन्होंने अपमान की गहरी चोट को सहा और आईएएस बनकर अपनी काबिलियत का डंका बजा दिया ! आईए जानते हैं सफलता का बेहतरीन उदाहरण पेश करने वाले गोविन्द जी के बारे में…

Govind Jayswal रिक्शा चालक नारायण जायसवाल जी के बेटे हैं ! चूकि पिता एक रिक्शा चालक थे इसलिए उनका जीवन बहुत हीं संघर्षमय रहा ! आर्थिक लाचारी और मजबूरी ने उनके जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया था ! गोविन्द के पास उन हालातों से जूझने के अलावा कोई अन्य उपाय भी नहीं था ! वे गरीब जरूर थे पर उनमें प्रतिभा कूट-कूट कर भरी थी ! अपने संघर्षों को आत्मसात करके लोगों के ताने सुन-सुनकर खुद के अंदर काबिलियत का ऐसा दीपक जलाया जिसकी रोशनी ने उनके आलोचकों का मुंह बंद कर दिया !

आर्थिक लाचारियों से जूझता बचपन और संघर्षमय पढाई

एक छोटे से किराये के कमरे में से बचपन की शुरूआत करने वाले गोविन्द को खूब संघर्षों का सामना करना पड़ा ! गोविन्द ने उसी छोटे से कमरे से पढाई शुरू की ! जिस जगह पर वे रहते थे वहाँ शोर-शरावा बहुत होता था ! पढाई के दौरान उन्हें इससे बहुत दिक्कतें आती थी ! बिजली की समस्या के कारण वे मोमबत्ती जलाकर पढाई करते ! पिता एक रिक्शा चालक थे सो किसी तरह पूरे परिवार का खर्च चला रहे थे ! उपर से गोविन्द की कक्षा बढ रही थी तो आगे की पढाई केे लिए पैसे की आवश्यकता भी बढने लगी थी ! इसलिए गोविन्द ने 8वीं कक्षा में पढते हुए कुछ बच्चों रो ट्यूशन पढाना शुरू कर दिया जिससे उनके पढाई का खर्च पूरा होने लगा ! उन्हें विग्यान विषय में बहुत अच्छी पकड़ थी ! इंटरमीडिएट करने के पश्चात लोग उन्हें इंजीनियरिंग करने की सलाह देने लगे ! पता करने के बाद कि उसका फॉर्म भरने में 500 रूपये लगेंगे उन्होंने इंजीनियरिंग का विचार त्याग दिया क्यूँकि 500 रूपये उनके लिए बहुत ज्यादा थे ! इसके बाद उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में नामांकन लिया !

लोग हमेशा करते रहते थे अपमानित

गोविन्द का जीवन सफलता प्राप्त करने से पहले बेहद हीं मुश्किलों भरा था ! वह अपने संघर्षरत समय को याद करते हुए कहते हैं कि लोग हमेशा उनको अपमानित किया करते थे ! लोग कहते कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बेटे के साथ खेलने की तुम्हें पता है ना कि तुम क्या हो ? पढ-लिखकर क्या करोगे , तुम्हारे पिता एक रिक्शा चालक हैं , तुम चाहे जितना पढ लो चलाना तो तुम्हें भी रिक्शा हीं है ! उस तरह के बेहद दर्दनाक ताने सुनकर गोविन्द अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते रहे !

लोगों के तानों और अपमानजनक बातों ने दिया प्रेरणा

लोगों द्वारा दिए गए तानों और अपमानों को सुनकर वह हमेशा इस सोंच में डूब जाते कि आखिर मैं ऐसा क्या कर लूँगा कि लोग मुझे और मेरे परिवार को सम्मान देंगे ! गोविन्द शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे ! वे जानते थे कि शिक्षा हीं एक ऐसा हथियार है जो सम्मान दिला सकता है ! गोविन्द तन्मयता से पढाई करने लगे ! उन्हें जब भी कोई नकारात्मक बाते कहता वह अपने परिवार के संघर्ष के बारे में सोंचने लगते !

आईएस की तैयारी और सफलता

गोविन्द पढकर एक आईएस ऑफिसर बनना चाहते थे इसलिए उन्होंने दिल्ली का रूख किया ! उनके पिता किसी तरह पढाई का खर्च पूरा कर रहे थे उसी बीच उनके पिता के पैर में घाव हो जाने से उनका रिक्शा चलाने का काम रूक गया ! अब ऐसे में गोविन्द के सामने और समस्या उत्पन्न हो गई ! परिवार और पढाई का खर्च चलाने हेतु उन्होंने पुश्तैनी जमीन भी बेच दी ! पढाई में आर्थिक बाधाएँ आने के कारण गोविन्द ने ट्यूशन पढाना शुरू किया साथ में तैयारी भी जारी रखा ! गोविन्द ने अपने अथक मेहनत वाली पढाई के बदौलत पहले हीं प्रयास में 2006 में आईएस की परीक्षा पास कर ली !

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