सूट पहन कर हाथी दादा – रामानुज त्रिपाठी

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सूट पहन कर हाथी दादा
चौराहे पर आए,
रिक्शा एक इशारा कर के
वे तुरंत रुकवाए।

चला रही थी हाँफ–हाँफ कर
रिक्शा एक गिलहरी
बोले हाथी दादा मैडम
ले चल मुझे कचहरी।

तब तरेर कर आँखें वह
हाथी दादा से बोली,
लाज नहीं आती है तुमको
करते हुए ठिठोली।

अपना रिक्शा करूँ कबाड़ा
तुमको यदि बैठा लूँ
जान बूच कर क्यों साहब
मैं व्यर्थ मुसीबत पालूँ?

माफ करो गुस्ताखी मिस्टर
कोई ट्रक रुकवाओ
तब तुम उस पर बड़े ठाठ से
बैठ कचहरी जाओ।

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