सबने अपनी आँख फेर ली – सूर्यकुमार पांडेय

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कुछ की काली कुछ की भूरी
कुछ की होती नीली आँख
जिसके मन में दुख होता है
उसकी होती गीली आँख।

सबने अपनी आँख फेर ली
सबने उससे मीचीं आँख
गलत काम करने वालों की
रहती हरदम नीची आँख।

आँख गड़ाते चोर–उचक्के
चीज़ों को कर देते पार
पकड़े गये चुराते आँखें
आँख मिलाने से लाचार।

आँख मिचौनी खेल रहे हम
सबसे बचा बचा कर आँख
भैया जी मुझको धमकाते
अक्सर दिखा दिखा कर आँख

आँख तुम्हारी लाल हो गई
उठने में क्यों करते देर
आँख खोल कर काम करो सब
पापा कहते आँख तरेर।

मम्मीं आँख बिछाए रहतीं
जब तक हमें न लेतीं देख
घर भर की आँखों के तारे
हम लाखों में लगते एक।

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