गांव की इन महिलाओं ने उधार के पैसे से किया था शुरुआत और खड़ा कर दिए 300 करोड़ की ब्रांड कम्पनी: लिज्जत पापड़

0

रोटी, कपड़ा और मकान इन्सान के लिए अति आवश्यक वस्तएं हैं। रोटी यानि भोजन की बात करें तो इससे मनुष्य में शारीरिक और मानसिक क्षमता का विकास होता है। भोजन के कण-कण में उर्जा छिपी होती है जिसकी जरुरत सभी जीवों को होती है। हमारे देश में लोग खाने के बहुत शौकीन माने जाते हैं। किसी को कुछ पसंद आता तो किसी को कुछ। हमारे देश में शादी-विवाह में अनेकों प्रकार के भोजन बनते है और लोग उन्हें बहुत ही चाव से खाते भी हैं। खाने के शौकीन लोग अपने परिवार के साथ बैठ के आनंद से खाने का स्वाद लेते हैं। खाने में दाल, चावल, सब्जी, चटनी, अचार सब कुछ हो लेकिन बिन पापड़ सब फीका है। सबसे ज्यादा तो खिचड़ी के साथ दही, चटनी, अचार हो और पापड़ न हो तब बिल्कुल ही आनन्द नहीं आता है। पापड़ अपने आप में सब खाने का स्वाद रखता है इसके बिना तो सब फीका ही हैं।

इस बात को शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं कि लिज्जत पापड़ में इतना स्वाद कहा से आता है और इसके बिना खाना कैसे फीका है।

अक्सर इंसान अपना कुछ वक्त खाली बिताता है लेकिन वही कुछ लोग अपने इस खाली समय का भी सदुपयोग करतें हैं। यह कहानी कुछ महिलाओं की हैं जो मुंबई के गिरगाम (Girgaam) की रहनेवाली हैं। उनके पास घर का काम करने के बाद बहुत ज्यादा फुर्सत का पल रहता था। उन्होंने अपने खाली समय का उपयोग कैसे किया जाये, इसके बारें में विचार किया और उनके मन में पापड़ बनाने का विचार आया। उन महिलाओं में से एक जसवंती बेन पोपट (Jaswanti Ben Popat) भी थी। वह अपने 6 मित्रों (Friends) के साथ पापड़ बनाने के काम में जुट गयी। वहां पास में एक बाजार थी। उनहोंने पापड़ बनाने के लिए कुछ लोगों से कर्ज के रूप में 80 रुपये लिए और उन रुपयों से उन्होनें पापड़ को बनाने के लिए सामग्रियाँ खरीदी। फिर पापड़ बनाने लगी। पहले दिन उन्होंने 80 पापड़ बनाया और उस पापड़ को बेचने के लिए वह अपने पास के बाजार के दुकान गयी और पापड़ के 3-4 पैकेट बेचे। उनकी मेहनत रंग लायी और दुकानदार को उन महिलाओं के हाथ का बना पापड़ बहुत पसंद आया। उसने उन महिलाओं को और ज्यादा पापड़ बनाने का ऑर्डर दिया। पापड़ के बेचे जाने से महिलाओं को फायदा हुआ और वह कर्ज के रूप में ली गयी राशि को 15 दिन बाद लौटा दी। इस पापड़ बनाने काम की शुरुआत जसवंती बेन पोपट (Jaswanti Ben Popat) ने 15 मार्च 1959 को की थी।

पापड़ बनाने के साल 6196 रुपये लिज्जत पापड़ की बिक्री हुई जिससे उनका विश्वास बढ़ा और उन्होंने इस काम को करने के लिए और भी औरतों को जुड़ने के लिए आमंत्रित किया। धीरे-धीरे इसमें विस्तार हुआ। फिर इस कार्य को करने में और भी कई महिलाएं जुट गयी। इस काम से महिलाओं को बेहद खुशी होती थी और उन्हें काम करने के लिए बाहर भी नहीं जाना पड़ता था। काम आसान हो इसके लिए उन्होनें थोड़ा-थोड़ा काम बांट लिया था। पापड़ बनाने के लिए कुछ महिलाएं एकजुट होकर आटा गुथती थी और गुथे हुए आटा को सभी औरतों में बांट देती। औरतें गुथे हुए आटे को अपने घर ले जाकर पापड़ बनाती और अगले दिन बनाये हुए पापड़ लाकर जमा कर देती थी।

कहतें हैं न, “अगर मन में सच्ची लगन और निष्ठा के साथ कोई काम किया जाये तो सफलता जरुर मिलती है।” जसवंती बेन (Jaswanti Ben) और उनकी सहेलियों ने बड़ी ही निष्ठा के साथ इस काम को किया और इसके परिणामस्वरुप आज लिज्जत पापड़ ने हर घर में अपनी पहचान बना ली है। वर्तमान में हमारे देश में पापड़ को बनाने के लिए 40 हज़ार महिलाएं काम करती हैं और करीब 90 लाख पापड़ बनाती हैं। इसका हेड ऑफिस (Head Office) मुम्बई (Mumbai) में हैं। इस हेड ऑफिस को उन्हीं महिलाओं की एक समिति चलाती है जिन्होनें पापड़ बनाने के काम को आरंभ किया था। आज यहां इस काम को करने से हजारों औरतें अपने आप पर निर्भर हो गयी हैं जिससे वह अपने परिवार को आर्थिक तौर पर मदद भी करती हैं। इस संस्था में काम करने वाली औरतें प्रतिदिन 400 रुपये से लेकर 700 रुपये तक अर्जित करती हैं और इस पैसे को वह अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करती हैं।

लिज्जत पापड़ के 63 सेंटर्स हैं और 40 डिविजन है। इस काम में जितना मुनाफा होता है वह वहां काम करने वाली औरतों में बांट दिया जाता है। वर्तमान में लिज्जत पापड़ की बिक्री अत्यधिक बढ़ गयी हैं मानो जैसे सफलता आसामान को छू रही है। सफलता के बारें में जसवंती बेन पोपट ने बताया कि पापड़ के श्रेष्ठता से कभी भी खिलवाड़ नहीं होना चाहिए इसके लिए वह खुद पापड़ के आटे को टेस्ट करती हैं अगर आटे में थोड़ी भी गड़बड़ी दिखाई देती हैं तो वह उस आटे का उपयोग करने से मना कर देती हैं। पापड़ की विशेषता और स्वाद हमेशा बनाये रखना ही उनका उद्देश्य हैं। साथ ही उन्होनें बताया कि वह “नो क्रेडिट” और “नो लॉस” के नियम पर कार्य करती हैं जिससे उनकों हर्जाने का कोई जिक्र ही नहीं उठता।

जसवंती बेन पोपट (Jaswanti Ben Popat) यह भी कहती हैं कि अधिक से अधिक महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने और अपनी खुद की ताकत बनते देख उन्हें बहुत खुशी मिलती है और वह अपने जीवन को सफल मानती हैं। वह इसे अपनी कोशिशो का प्रतिफल कहती हैं।

स्वादिष्ट पापड़ बनाने और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में सहायता करने के लिए जसवंती बेन पोपट को नमन करता हैं और ऐसे ही औरतें अपने पैरों पर खड़ी रहें इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *