निर्बलता जिसके सामने थर थर कापती थी ऐसे थे कलयुगी भीम प्रोफ़ेसर राममूर्ति नायडू …… Rammurti Naidu

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बल बुद्धि विवेक के देवता हनुमान जी के चरणों में वंदन आज हम ऐसे महापुरुष की बात करते है जिन्होंने अपने बल का लोहा भारत ही नहीं अपितु पुरे विश्व में मनवाया था आज लोग इन्हे कलयुगी भीम के नाम से भी जानते है जी हा इनका नाम राममूर्ति नायडू (पहलवान) जी है इनका जन्म दक्षिण भारत के उत्तरी आन्ध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जिले के वीराघट्टम गाँव में वैंकन्ना नायडू के घर हुआ था अप्रैल १८८२ को जन्मे प्रोफेसर राममूर्ति पहलवान का वास्तविक नाम कोडी राममूर्ति नायडू है

राममूर्ति जी को बल ऐसे ही नहीं प्राप्त हुआ एक समय की बात है जब राममूर्ति जी अपने हम उम्र के बालको के साथ खेल रहे थे तभी कोई वाद विवाद हो गया और उन बालको ने मिलकर राममूर्ति जी की पिटाई कर दी जब राममूर्ति जी रोते रोते घर पर गए तो उनकी माता जी ने उन्हें समझाया की बेटा रोना तो कायरो का काम होता है आप एक योद्धा हो उठो और लड़ो धुल छठा दो उन्हें जो आपके ऊपर घात करे माँ की यह बात राममूर्ति के ह्रदय में लग गयी और इन्होने इस बात को अपने जीवन का मंत्र बना लिया लेकिन वो करे भी तो क्या करे उन बालको की संख्या अधिक थी राममूर्ति जी के चाचा पुलिस में थे उनके चाचा जी घर ही दंड अभ्यास करते थे उन्हें देखकर रामूर्ति जी ने दंड अभयस सीखा और निरन्तन करने लगे कुछ महीनो बाद पुनः उनकी भिड़ंत गांव के उन बालको से हुई तो राम मूर्ति जी ने न आव देखा न ताव सबको धुल चटा दी इनके पिता नई बहुत ही शांत स्वभाव के थे जब उन्हें पता चला की उनके लड़के ने मार पिट की ही तो वो बहुत दुखी हुए और उन्होंने राममूर्ति जी को खूब खरीखोटी सुनाई और पिटाई भी की

पिता जी से पीटने के बाद राममूर्ति जी बहुत दुखी हुए और वह भाग के जंगल में चले गए लेकिन उन्होंने अपना अभ्यास चालू रखा था जब वो जंगल से एक सप्ताह बाद वापस लौटे तो उन्हें देखकर सरे गांव वाले अचंभित रह गए क्योकि चीते को पराजित करके उसे अपने वश में कर लिया था उसे कंधे पर बैठा कर घूमाते थे जिससे गांव के बड़े से बड़े सुरमा भी राममूर्ति जी के आखो में आखे नहीं मिलाते थे लेकिन उनके पिता जी को राममूर्ति जी के भविष्य को लेकर बहुत चिंता होने लगी थी क्योकि इनकी माता जी का देहांत बचपन में ही हो गया था लेकिन इनके चाचा जी ने इनके प्रतिभा को बचपन से ही पहचान लिया था और उन्हें अपने साथ विजयनगर पुलिस कैंप में बुला लिया (जी हां वही विजय लगे जिसकी स्थापना हरिहर व् बुक्का जी ने विद्यारण संत के आश्रीवाद से की थी विजय नगर के सन्दर्भ में बाबर खुद अपनी पुस्तक बाबरनामा में लिखता है की जो वस्तु विजयनगर साम्राज्य में नहीं मिलेगी वो भारत के किसी भी कोने में नहीं मिल सकती है )

पुलिस कैंप में लोग शारीरिक मेहनत करते थे उन्हें देखकर राममूर्ति जी का मन वहाँ लग गया और वह पर एक साल रहकर उन्होंने कड़ी मेहनत के साथ शारीरिक प्रशिक्षण लिया और अपने माता जी के द्वारा दिए गये मंत्रो को हमेशा याद किया की योद्धा का काम होता है लड़ना और एक वर्ष के बाद जब वो वापस अपने गांव की और लौटे तो उनके मन में अब महाबली बनाने का स्वपन आ चूका था उन्होंने अपना लक्ष्य तय कर लिया था लेकिन जब वो गांव लौटे तो गांव के ुदण्ड लड़के उनका मजाक उड़ाने लगे उन्होंने सबको पकड़ पकड़ कर पीटना और उन्हें गुब्बारों की तरह हवा में उछालना शुरू कर दिया उनकी इस उदण्डपना को देखते हुए पिता जी ने उन्हें फिर से उनके चाचा जी के पास भेज दिया

अब उनके चाचा जी ने उन्हें मद्रास में कुस्ती के प्रशिक्षण के लिए भेज दिया और यहाँ उन्होंने अथक परिश्रम क्र दिखाया उनका लक्ष्य ा उनके करीब दिखने लगा लेकिन तभी ही कुछ आर्थिक समस्या आ गयी और उन्हें रोजगार की तलाश करनी पड़ी लेकिन उनकी शिक्षा अधिक नहीं थी तो उन्होंर सर्कस कंपनी का गठन किया एक उनके पास इतना शारीरिक बल था की वो अपने बल शारीरिक बल के करतब से ही ापर भीड़ जुटा लेते थे एक समय की बात है जब राम मूर्ति जी करतब दिखा रहे थे तभी लार्ड मिंटो सर्कस देखने आये उन्होंने एक करतब दिखाया और मिंटो की कार की पीछे से पकड़ लिया और ड्राइवर को बोले गाड़ी चालू करो लेकिन गाड़ी टस से मस नहीं हुई यह देखकर मिंटो भी हैरान हो गया उनके लिए तो लोहे की जंजीर तोडना तो मानो एक आम सी बात थी एक बार तो उन्होंने अपने सीने पर हाथी भी चढ़वा लिया था इस करतब के बाद से वो देश में ही नहीं अपितु विदशो में भी विख्यात हो गए अच्छे से अच्छे पहलवान उनकी प्रशंस ाकरने लगे उनके बाहुबल को देखते हुए उन्हें इंग्लैंड बुलाया गया स्वयं ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम व महारानी मैरी ने लन्दन स्थित बकिंघम पैलेस में आमन्त्रित कर सम्मानित किया और” इण्डियन हरकुलिस व इण्डियन सैण्डोज” जैसे उपनाम प्रदान किये। इतना ही नहीं, ब्रिटिश सम्राट ने सरकारी आदेश पारित कर प्रोफेसर राममूर्ति के लिये कलियुगी भीम की उपाधि का सार्वजनिक ऐलान किया और इंग्लैण्ड में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें यह उपाधि दी गयी। इसके पश्चात उन्हें कई देशों से बुलावा आया और वे ख़ुशी ख़ुशी वहा गए

लेकिन इंग्लैंड में उनके साथ एक घटना घटित हुई एक भारतीय का राजकीय सम्मान होता देखकर कुछ धूर्त रूपी अंग्रेजो को रहा नहीं गया उन्होंने राममूर्ति जी के भोजन में विष मिला दिया और राम मूर्ति जी के मस्तिष्क पर हलका हल्का प्रभाव पड़ने लगा उन्होंने इस चीज को भाप लिया और और दंड लगाना शुरू कर दिया और लगभग १५००० दंड लगा क्र अपने शरीर से सारी विष को बहार निकाल दिया इससे देखकर
षडयंत्रकारी अंग्रेजो की आखे फटी रह गयी इसके बाद वो स्पेन गए उन्हें बैल की लड़ाई के लिए आमंत्रित किया गया था वो वहाँ गए तो वो वहाँ पर भड़क गए क्योकि बैलो को भालो से कोचा जा रह था उन्होंने कहा अगर कोई मर्द का बच्चा है तो निहत्था मैदान में ुअत के दिखाए अगर कोई नहीं है तो मै स्वतः उतरता हु और वो मैदान में उतरे उन्होंने बैल को उठा कर पटक दिया इससे प्रभावित होकर एक विदेशी लेखक लिखता है
आज भारत के घर घर में राम मूर्ति का नाम फैला है वह कलयुगी भीम है हाथी को अपनी छाती पर चढ़ा लेते हैं। 25 घोड़ों की शक्ति की दो दो मोटर रोक लेते हैं छाती पर बड़ी सी चट्टान रखकर उस पर पत्थर को टुकड़े-टुकड़े करवा देते हैं आधे इंच मोटे लोहे की जंजीर कमल की डंडी के समान सहज में ही तोड़ देते हैं। 50 मनुष्यों से लदी हुई गाड़ी को शरीर पर से उतरवा देते हैं। यही नहीं 75 मील की तेजी से दौड़ती हुई हवा गाड़ी उनके शरीर पर से पार हो जाती है यह अलौकिक बल है देवी शक्ति है सुनकर आश्चर्य होता है देखकर दांतो तले उंगली दबाने पड़ती है किंतु यह सब बातें देखने में असाध्य प्रतीत होने पर भी असंभव नहीं है यदि प्रयत्न करें तो प्रत्येक मनुष्य राम मूर्ति के समान हो सकता है प्रयत्न भी हो और सच्ची लगन भी हो

राममूर्ति जी ( कलयुगी भीम )ने कभी भी मांस मछली का सेवन नहीं किया था वे शुद्ध शाकाहारी थे वे बचपन से ही ब्रम्हचारी थे यह उन मूर्खो पर तमाचा है जो कहते है की बिना मांस मछली के शरीर नहीं बनता बिना जिम जाये शरीर नहीं बनता राममूर्ति जी देशी व्यायाम करते थे वो 15 सौ से लेकर 3000 तक दंड और 5000 से लेकर 10000 तक बैठक लगाते थे यह उनका दैनिक व्यायाम था आज कल लोग पश्चिमीकरण के संपर्क में आकर मांस मछली का सेवन कर रह रहे है और कहते है की इसके बिना शरीर को बल व ऊर्जा नहीं मिलती तो उन्हें एक बार राममूर्ति जी के बारे में जरूर पढ़ना चाहिए ऐसे महापुरुष राममूर्ति जी को सत सत नमन चरण वंदन
ब्रम्हचर्य से राम , बल से हनुमान कलयुगी भीम प्रोफ़ेसर राममूर्ति नायडू

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