6 कहानियां, जो हमेशा के लिए बदल देंगी आपकी लाइफ, बनाएंगी कामयाब (With Great Messages)

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युवा प्रेरणा स्रोत, जिज्ञासा, संकल्प शक्ति आदि से परिपूर्ण श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद जी के जीवन काल की कुछ महत्वपूर्ण कहानियां इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं।

कुछ कहानियां उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित है, तो कुछ जन श्रुति के आधार पर।यह लेख स्वामी विवेकानंद जी के ज्ञान, व्यक्तित्व और चरित्र तथा उनके कुशाग्र बुद्धिमता का परिचय कराने वाला है।

स्वामी विवेकानंद जी की कहानियां

युवा सदैव स्वामी जी को अपना प्रेरणा स्रोत मानते हैं। इस कहानी को व्यक्तिगत प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन मे अहम बदलाव ला सकते हैं।

स्वामी जी सदैव पावर हाउस के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी संकल्प शक्ति और जिज्ञासा तथा खोज की प्रवृत्ति आज भी मानव को प्रेरित करती है। उनका अटल विश्वास था जब तक अपने कार्य को प्राप्त न कर लो तब तक आराम करना व्यर्थ है।

1. स्वामी विवेकानंद की परीक्षा

विवेकानंद अपने गुरु से विशेष लगाव रखते थे। जब उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हुई उसके पश्चात उन्होंने अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाने उनकी शिक्षा उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेते हुए विदेश जाने का निश्चय किया। वह आशीर्वाद और विदाई लेने अपनी माता के पास पहुंचे। माँ को अपने गुरु के उद्देश्यों को बताया।

मां ने अपने पुत्र तत्काल आदेश नहीं दिया। वह दुविधा में थी कि वह अपने पुत्र को विदेश भेजे या नहीं?

वह चुपचाप अपने कार्यों में लग गई, जब वह सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी तब उन्होंने विवेकानंद से चाकू मांगा। विवेकानंद उस चाकू को लेकर आते हैं और मां को बड़े ही सावधानी से देते हैं। मां उसके इस व्यवहार से अति प्रसन्न होती है और मुस्कुराते हुए आशीर्वाद के साथ अपने गुरु के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए कहती है।

विवेकानंद जी को आश्चर्य होता है वह उनकी प्रसन्नता और इस कृत्य पर प्रश्न करते हैं आखिर उन्होंने पुत्र को विदेश भेजने के लिए कैसे निश्चय किया? तब उनकी मां ने बताया तुमने मुझे जिस प्रकार चाकू दिया चाकू की धार तुमने अपनी और पकड़ा और उसका हत्था मुझे सावधानी से थमाया, इससे यह निश्चित होता है कि तुम स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों की भलाई की सोचते हो। तुम किसी का अहित नहीं कर सकते हो, तुम अपने गुरु के कार्यों को कठिनाई सहकर भी आगे बढ़ा सकते हो।

मां की इस परीक्षा के आगे स्वामी विवेकानंद नतमस्तक हुए और मां शारदा से आशीर्वाद लेकर वह जन कल्याण के लिए गुरु के कार्यों के लिए मां से विदा लेकर घर से निकल गए।

2. शिक्षा से समाज सेवा
( Swami vivekananda stories in hindi on Education )

एक समय की बात है स्वामी विवेकानंद अपने आश्रम में वेदों का पाठ कर रहे थे, तभी उनके पास चार ब्राह्मण आए वह बड़े व्याकुल थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह किसी प्रश्न का हल ढूंढने के लिए परिश्रम कर रहे हैं।

चारों ब्राह्मण ने स्वामी जी को प्रणाम किया और कहा – स्वामी जी! हम बड़ी दुविधा में हैं , आपसे अपने समस्या का हल जानना चाहते हैं। हमारी जिज्ञासाओं को शांत करें

स्वामी जी ने आश्वासन दिया और जानना चाहा

कैसी जिज्ञासा ? कैसा प्रश्न है आपका ?
ब्राह्मण बोले महात्मा हम चारों ने वेद – वेदांतों की शिक्षा ग्रहण की है। हम सभी समाज में अलग-अलग दिशाओं में घूम कर समाज को अपने ज्ञान से सुखी, संपन्न और समृद्ध देखना चाहते हैं।

इसके लिए हमारा मार्गदर्शन करें !

स्वामी जी के मुख पर हल्की सी मुस्कान आई और उन्होंने ब्राह्मण देवताओं को कहा –

है ब्राह्मण! आप सभी यह सब लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए आपको मिलकर समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना होगा।

ब्राह्मण देवता शिक्षा से हमारा लक्ष्य कैसे प्राप्त हो सकता है ?
स्वामी जी जिस प्रकार बगीचे में पौधे को लगाकर बाग को सुंदर बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा के द्वारा समाज का उत्थान संभव है।

शिक्षा व्यक्ति में समझ पैदा करती है , उन्हें जीवन के लिए समृद्ध बनाती है। साधनों से संपन्न होने में शिक्षा मदद करती है, सभी अभाव को दूर करने का मार्ग शिक्षा दिखाती है। यह सभी प्राप्त होने पर व्यक्ति स्वयं समृद्ध हो जाता है।

ब्राह्मण देवता को अब स्वामी विवेकानंद जी का विचार बड़े ही अच्छे ढंग से समझ आ चुका था।

अब उन्होंने मिलकर प्रण लिया वह अपने शिक्षा का प्रचार – प्रसार समाज में करेंगे यही उनकी समाज सेवा होगी।

3. फ्रांसीसी विद्वान का घमंड चूर
( Swami vivekananda stories in hindi on arrogance )

यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका के शिकागो शहर में अपना ऐतिहासिक भाषण देने गए हुए थे। अपने भाषण को सफलतापूर्वक पूरे विश्व के पटल पर रख कर, अन्य देशों का भ्रमण करने निकले।

इसी क्रम में वह फ्रांसीसी प्रसिद्ध विद्वान के घर अतिथि हुए।

स्वामी विवेकानंद ने उस विद्वान का आतिथ्य स्वीकार किया और उनके घर पहुंचे।

स्वामी जी का स्वागत घर में सम्मानजनक हुआ। स्वामी जी के रुचि अनुसार भोजन की व्यवस्था थी। विदेश में इस प्रकार का भोजन मिलना सौभाग्य की बात थी।

भोजन के उपरांत वेद-वेदांत और धर्म की बड़ी-बड़ी रचनाओं पर शास्त्रार्थ आरंभ हुआ।

शास्त्रार्थ जिस कमरे में हो रहा था, वहां एक मेज पर लगभग डेढ़ हजार पृष्ठ की एक धार्मिक पुस्तक रखी हुई थी।

स्वामी जी ने उस पुस्तक को देखते हुए कहा – यह क्या है ?

मैं इसका अध्ययन करना चाहता हूं। फ्रांसीसी विद्वान आश्चर्यचकित हो गया।

उसने कहा स्वामी जी कहा यह दूसरे भाषा की पुस्तक है, आप तो भाषा को जानते भी नहीं है।

आप इतने पृष्ठों का अध्ययन कैसे कर सकेंगे?

मैं इसका अध्ययन स्वयं एक महीने से कर रहा हूं !

स्वामी जी – यह आप मुझ पर छोड़ दीजिए एक घंटे के भीतर में आपको अध्ययन करके लौटा दूंगा।

फ्रांसीसी विद्वान को अब क्रोध आने लगा, स्वामी जी इस प्रकार का मजाक मेरे साथ क्यों कर रहे हैं ?

किंतु स्वामी जी ने विश्वास दिलाया, इस पर फ्रांसीसी विद्वान ने मनमाने ढंग से वह पुःतक स्वामी जी को सौंप दिया।

स्वामी जी उस पुस्तक को अपने दोनों हाथों में रखकर एक घंटे के लिए योग साधना में बैठ गए।
जैसे ही एक घंटा बीता होगा , फ्रांसीसी विद्वान उस कमरे में आ गया।

स्वामी जी क्या आपने पुस्तक का अध्ययन कर लिया

हां अवश्य !

आप कैसा मजाक कर रहे हैं ?

मैं इस पुस्तक को एक महीने से अध्ययन कर रहा हूं।

अभी आधा भी अध्ययन नहीं कर पाया हूं, और आप कहते हैं आपने अध्ययन कर लिया।

हां अवश्य!

स्वामी जी आप मजाक कर रहे हैं!

नहीं तुम किसी भी पृष्ठ को खोल कर मुझसे जानकारी ले सकते हो!

उस विद्वान ने ऐसा ही किया।

पृष्ठ संख्या बत्तीस बोलने पर स्वामी जी ने उस पृष्ठ पर लिखा प्रत्येक शब्द अक्षरसः कह सुनाया।

फ्रांसीसी विद्वान के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी।

वह स्वामी जी के चरणों में गिर गया। उस विद्वान ने स्वामी जैसा व्यक्ति आज से पूर्व नहीं देखा था।

उसे यकीन हो गया था, यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।

4. सन्यासी जीवन
( Swami vivekananda stories in hindi with moral values )

स्वामी विवेकानंद ने अल्प आयु में सन्यास धारण कर लिया था। उन्होंने गृहस्ती छोड़कर नर सेवा से नारायण सेवा का संकल्प लिया था। समाज कल्याण और उनके उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे। वेद-वेदांत, धर्म आदि के महत्व को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए वह संघर्षरत थे।

एक समय की बात है स्वामी जी को अपने आश्रम लौटना था। वह तांगे से उतरकर वृक्ष की छांव में बैठ गए। वृक्ष के नीचे बैठे-बैठे काफी समय हो गया। कुछ समय बाद वहां से सभी लोग चले गए , फिर भी स्वामी जी वहां यथास्थिति बैठे रहे।

एक सज्जन स्वामी जी को काफी देर से देख रहा था। उसके मन में जिज्ञासा हुई, चलकर हाल पूछा जाए। स्वामी जी के पास पहुंच कर शिष्टाचार से प्रणाम कर, उनका हालचाल जाना। स्वामी जी ने बात बात में सज्जन व्यक्ति को बताया उनके पास आगे की यात्रा करने की राशि नहीं है, इसलिए वह यहां विश्राम करने को रुक गए।

सज्जन व्यक्ति के पूछने पर स्वामी जी ने बताया उन्होंने कल से कुछ खाया पिया भी नहीं है । वह व्यक्ति स्वामी जी को अपने घर ले गया, घर में उनका खूब आदर-सत्कार हुआ।

सज्जन व्यक्ति के पूछने पर कि उनके थैले में क्या है ?

स्वामी जी ने बताया एक गीता की पुस्तक और एक बाइबल है।

व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। दो धर्म की पुस्तकें उनके थैले में एक साथ कैसे ?

स्वामी जी ने बताया अपने धर्म में संप्रदाय-पंथ आदि का कोई दुराग्रह नहीं है। हमें किसी भी माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति हो , वह मार्ग कोई भी हो सकता है।

व्यक्ति ने प्रश्न किया सन्यास जीवन में किसकी आवश्यकता अधिक होती है। इस पर स्वामी जी ने कहा सन्यास जीवन में स्वयं की होती है, उसके अतिरिक्त किसी और की नहीं।

जो सदाचरण करता है, उससे बढ़कर कोई और सन्यासी नहीं हो सकता।

5. ईश्वर की पहचान विवेक से करें

यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद अपने परम पूज्य गुरु रामकृष्ण परमहंस के साथ घूम-घूम कर जनकल्याण की सीख दे रहे थे, मानवीय संवेदना की स्थापना कर रहे थे। वह अपना प्रवचन गांव-कस्बे और समाज में दे रहे थे। उसी दौरान परमहंस जी ने एक प्रवचन दिया जिसमें काफी भीड़ आई हुई थी।

गुरु परमहंस ने ईश्वर को सर्वत्र बताया, चाहे वह निर्जीव हो या सजीव ईश्वर सर्वत्र विराजमान रहते हैं।

उनके प्रवचन से प्रभावित एक भावुक व्यक्ति ईश्वर को सर्वत्र देखने लगा। पत्थर, पौधे, जीव-जंतु सभी में उसे ईश्वर के दर्शन होने लगे। एक समय की बात है, जब वह पुनः गुरु परमहंस से मिलने के लिए जंगल के रास्ते आ रहा था तभी रास्ते में एक हाथी मिला। हाथी पर महावत सवार था वह दूर से आदमी को कहता रहा हट जाओ, वरना हाथी नुकसान पहुंचा सकता है। किंतु उस पर गुरु का इतना प्रभाव था वह हाथी में ईश्वर को देख रहा था।

वह हाथ जोड़कर हाथी के समक्ष खड़ा हो गया, हाथी ने उसे अपने सूंड में लपेटा और बड़े जोर से पटका। वह चोट इतनी दर्दनाक थी कि वह मूर्छित होकर वही लेट गया। आंख खुली तो सामने गुरु परमहंस अपने शिष्यों के साथ खड़े थे।

गुरु के पूछने पर उस व्यक्ति ने बताया उसे हाथी में ईश्वर दिख रहे थे इसलिए वह हाथ जोड़कर वहां खड़ा हो गया। उनसे भयभीत नहीं हुआ। इस पर गुरु चुप हुए तभी उनके शिष्य विवेकानंद नहीं बताया आपको हाथी में ईश्वर नजर आया किंतु महावत में ईश्वर नजर नहीं आया? जो आपकी रक्षा करने के लिए आपको बार-बार प्रेरित कर रहा था। वह सामने से हट जाओ कहता रहा, किंतु आपने ईश्वर के इशारे को नहीं समझा। ईश्वर की पहचान अपने विवेक से भी की जाती है।

स्वामी विवेकानंद की बात सुनकर वह व्यक्ति धन्य हुआ और अपने नादानी में किए हुए कार्य को समझ गया।

6 धैर्य की कमी

अपने शिष्यों के साथ स्वामी जी धार्मिक चर्चा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे। उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी, उनसे कथा सुनने और शास्त्रार्थ करने के लिए लोग समय निकालकर कई दिनों की यात्रा तय करके आते थे। ऐसी ही एक धर्म चर्चा के लिए स्वामी जी को दूर गांव जाना था, उनके साथ उनके शिष्यों की टोली भी हुआ करती थी जो छोटे-छोटे गांव में जाकर ईश्वर और मानव के आधारभूत सिद्धांतों को बताया करते थे।

एक दिन जब स्वामी जी ज्ञान चर्चा के लिए जा रहे थे तब उनके शिष्य भी उनके साथ थे रास्ते में उनके शिष्यों ने छोटे-छोटे गड्ढे देखें जो संभवत कुएं के आकार के थे। शिष्यों को वह गड्ढे अचंभित कर रहे थे, उनमें से एक शिष्य ने स्वामी जी से इन गड्ढों का रहस्य जानना चाहा। इसपर स्वामी जी ने बताया यह गड्ढे किसी जल्दबाजी में कार्य करने वाले व्यक्ति ने खोदे है, जिसमें धैर्य की कमी कूट-कूट कर थी। उस व्यक्ति में परिश्रम करने की क्षमता तो थी, किंतु धैर्य की कमी से वह अपने कार्य को सफल नहीं कर पाता। शिष्यों के अनुरोध पर स्वामी जी ने विस्तार से इसका रहस्य बताया।

जो व्यक्ति कुआं खोद रहा था उसमें धैर्य की अपार कमी थी। वह परिश्रम कर एक गड्ढे को ठीक से खोदता तो पानी उसी स्थान पर मिल जाता, किंतु उसमें धैर्य की कमी होने के कारण वह सैकड़ों गड्ढे खोदता रहा, फिर भी उसे पानी नहीं मिला शिष्यों ने गुरु के उपदेश को अपने दिलो-दिमाग में धारण किया और हर्षित मन से आगे की ज्ञान चर्चा के लिए चल पड़े।

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