Aarti Kya Hai Kab Aur Kaise Karen Aarti- जाने क्या है आरती करने का महत्व, कब और कैसे करें आरती

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स्कंद पुराण में भगवान की आरती के संबंध में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता ,पूजा की विधि भी नहीं जानता हो, लेकिन भगवान की हो रही आरती और उस पूूजन कार्य में श्रद्धा के साथ शामिल होकर आरती करें,तो भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं. आइए जानते हैं कि भगवान जी की आरती का क्या है अर्थ, महत्व ,भाव, कैसे हो थाली, आरती करने और लेने का तरीका और सही विधि.

क्‍या है आरती का अर्थ
शास्‍त्रों के अनुसार आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना. आरती को नीराजन भी कहा जाता है. नीराजन का अर्थ होता है विशेष रूप से प्रकाशित करना. यानी देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित करके हमारे व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें।

आरती का महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है वो कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है. जो व्यक्ति मेरे समक्ष हो रही आरती के दर्शन करता है, उसे परमपद की प्राप्ति होती है और अगर कोई व्यक्ति कपूर से आरती करता है तो उसे अनंत में प्रवेश मिलता है.

कैसी हो आरती की थाली
आरती के लिए तांबे, पीतल और चांदी की थाली का प्रयोग करें. स्टील की थाली या स्टील के दीपक का प्रयोग नहीं करना चाहिए. आरती करने के लिए पीतल या चांदी के दिए का इस्तेमाल करें .यदि ये नहीं है तो मिट्टी या फिर आटे के बने दिए का उपयोग किया जा सकता है. आरती की थाली में कर्पूर, रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, प्रसाद और धूप, दीप को व्यवस्थित रूप से रखें.

आरती उतारने का सही तरीका
अधिकतर लोगों को यह पता नहीं होता है कि आरती उतारते हुए दीपक घुमाने का सही तरीका क्या होता है. इसलिए भगवान की आरती करते वक्‍त दीपक को घुमाने के तरीके और संख्‍या पर विशेष ध्‍यान रखना चाहिए. भगवान की आरती सबसे पहले भगवान के चरणों से शुरू करनी चाहिए. सबसे पहले आरती उतारते समय चार बार दीपक को सीधी दिशा में घुमाएं. उसके बाद ईश्वर की नाभि के पास दो बार आरती उतारें, तत्पश्चात सात बार भगवान के मुख की आरती उतारें.

जानें आरती लेने के भाव को
अक्सर देखने को मिलता है कि भगवान की आरती होने के बाद भक्तगण दोनों हाथों से आरती लेते हैं.आखिर आरती लेते समय इस तरह का भाव क्यों आता है ? यह जानना बहुत जरूरी है. पहला भाव ये होता है कि जिस दीपक की लौ ने हमें अपने आराध्य के नख-शिख के इतने सुंदर दर्शन कराएं हैं, उसको हम सिर पर धारण करते हैं. दूसरा भाव ये होता है कि जिस दीपक की बाती ने भगवान के अरिष्ट हरे हैं, जलाए हैं, उसे हम अपने मस्तक पर धारण करते हैं.

आरती लेने का सही तरीका
आरती लेने का सही तरीका ये होता है कि आरती की लौ को हाथ से लेकर पहले सिर पर घुमाएं और उसके बाद उस आरती की लौ को अपने माथे की ओर धारण करें.

कितनी बार करनी चाहिए आरती
मंदिरों में भगवान की आरती 5 बार की जाती है। सबसे पहली आरती ब्रह्म मुहूर्त में भगवान को नींद से जगाने के लिए, दूसरी भगवान को स्‍नान कराने के बाद उनकी नजर उतारने के लिए , तीसरी दोपहर में जब भगवान विश्राम के लिए जाते हैं, चौथी जब शाम को जब भगवान विश्राम करने के बाद उठते हैं, आखिरी और पांचवी आरती रात में भगवान को सुलाते वक्‍त की जाती है.घर में इतनी बार आरती करना संभव नहीं होता है, इसलिए सुबह और रात में पूरी विधि से भगवान की आरती कर सकते हैं.

आरती में हैं पंच तत्‍व
इस संसार की रचना पंच महाभूतों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से हुई है, इसलिए आरती में ये पांच वस्तुएं भी शामिल रहती है. पृथ्वी की सुगंध कपूर, जल की मधुर धारा घी, अग्नि दीपक की लौ, वायु लौ का हिलना, आकाश घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि का प्रतिनिधित्‍व करते हैं. इस प्रकार संपूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है

आरती करने की विधि
एक थाली में स्वास्तिक का चिह्न बनाएं और पुष्प व अक्षत के आसन पर एक दीपक में घी की बाती और कपूर रखकर प्रज्वलित करें.भगवान के सामने आरती इस प्रकार से घुमाते हुए करना चाहिए कि ऊँ जैसी आकृति बने.आरती से पहले प्रार्थना करें कि हे गोविन्द, आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने रत्नमय दीये में कपूर और घी में डुबोई हुई बाती जलाई है, जो मेरे जीवन के सारे अंधकार दूर कर दे. फिर एक ही स्थान पर खड़े होकर भगवान की आरती करें.भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर करें.इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा भक्तजनों पर जल डालें. फिर ठाकुरजी को प्रणाम करें. मंदिरों में 5, 7, 11, 21 या 31 बातियों से आरती की जाती है जबकि घर में एक बाती की ही आरती करें.

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