अग्निपुराण अध्याय ५ || Agni Puran Cdhyay 5, अग्निपुराण पाँचवाँ अध्याय

0

अग्निपुराण अध्याय ५ में श्रीरामावतार वर्णन के प्रसङ्ग में रामायण- बालकाण्ड की संक्षिप्त कथा का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय ५ – श्रीरामावतारवर्णनम्

अग्निरुवाच

रामायणमहं वक्ष्ये नारदेनोदितं पुरा।

वाल्मीकये यथा तद्वत् पठितं भुक्तिमुक्तिदम् ।। १ ।।

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ ! अब मैं ठीक उसी प्रकार रामायण का वर्णन करूंगा, जैसे पूर्वकाल में नारदजी ने महर्षि वाल्मीकिजी को सुनाया था। इसका पाठ भोग और मोक्षदोनों को देनेवाला है ॥ १ ॥

नारद उवाच

विष्णुनाभ्यव्जजो ब्रह्मा मरीचिर्ब्रह्मणः सुतः।

मरीचेः कश्यपस्तस्मात् सूर्यो वैवस्वतो मनुः ।। २ ।।

ततस्तस्मात्तथेक्ष्वाकुस्तस्य वंशे ककुत्स्थकः।

ककुत्स्थस्य रघुस्तस्मादजो दशरथस्ततः ।। ३ ।।

रावणादेर्वधार्थाय चतुर्द्धाभूत स्वयं हरिः।

राज्ञो दशरथाद्रामः कौशल्यायां बभूव ह ।। ४ ।।

कैकेय्यां भरतः पुत्रः सुमित्रायाञ्च लक्ष्मणः।

शत्रुघ्नः ऋष्यश्रृङ्गेण तासु सन्दत्तपायसात् ।। ५ ।।

प्राशिताद्यज्ञसंसिद्धाद्राद्रामाद्याश्च समाः पितुः।

यज्ञविध्नविनाशाय विश्वामित्रार्थितो नृपः ।। ६ ।।

रामं सम्प्रेषयामास लक्ष्मणं मुनिना सह।

रामो गतोऽस्त्रशस्त्राणि शिक्षितस्ताडकान्तकृत ।। ७ ।।

मारीचं मानवास्त्रेण मोहितं दूरतोऽनयत्।

सुबाहुं यज्ञहन्तारं सबलञ्चावधीद् बली ।। ८ ।।

सिद्धाश्रमनिवासी च विश्वामित्रादिभिः सह।

गतः क्रतुं मैथिलस्य द्रष्टुञ्चापंसहानुजः ।। ९ ।।

देवर्षि नारद कहते हैं – वाल्मीकिजी ! भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्माजी के पुत्र हैं मरीचि। मरीचि से कश्यप, कश्यप से सूर्य और सूर्य से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। उसके बाद वैवस्वत मनु से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु वंश में ककुत्स्थ नामक राजा हुए। ककुत्स्थ के रघु, रघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए उन राजा दशरथ से रावण आदि राक्षसों का वध करने के लिये साक्षात् भगवान् विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए। उनकी बड़ी रानी कौसल्या के गर्भ से श्रीरामचन्द्रजी का प्रादुर्भाव हुआ। कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ। महर्षि ऋष्यशृङ्ग ने उन तीनों रानियों को यज्ञसिद्ध चरु दिये थे, जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ। श्रीराम आदि सभी भाई अपने पिता के ही समान पराक्रमी थे। एक समय मुनिवर विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में विघ्न डालनेवाले निशाचरों का नाश करने के लिये राजा दशरथ से प्रार्थना की (कि आप अपने पुत्र श्रीराम को मेरे साथ भेज दें)। तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेज दिया। श्रीरामचन्द्रजी ने वहाँ जाकर मुनि से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा पायी और ताड़का नामवाली निशाचरी का वध किया। फिर उन बलवान् वीर ने मारीच नामक राक्षस को मानवास्त्र से मोहित करके दूर फेंक दिया और यज्ञविघातक राक्षस सुबाहु को दल-बल सहित मार डाला। इसके बाद वे कुछ काल तक मुनि के सिद्धाश्रम में ही रहे। तत्पश्चात् विश्वामित्र आदि महर्षियों के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला- नरेश का धनुष यज्ञ देखने के लिये गये ॥ २-९ ॥

शतानन्दनिमित्तेन विश्वामित्रप्रभावतः।

रामाय कथितो राज्ञा समुनिः पूजितः क्रतौ ।। १० ।।

धनुरापूरयामास लीलया स बभञ्ज तत् ।

वीर्यशुल्कञ्च जनकः सीतां कन्यान्त्वयोनिजाम् ।। ११ ।।

ददौ रामाय रामोऽपि पित्रादौ हि समागते।

उपयेमे जानकीन्तामुर्मिलां लक्ष्मणस्तथा ।। १२ ।।

श्रुतकीर्त्तिं माण्डवीञ्च कुशध्वजसुते तथा।

जनकस्यानुजस्यैते शत्रुघ्नभरतावुभौ ।। १३ ।।

कन्ये द्वे उपयेमाते जनकेन सुपूजितः।

रामोऽगात्सवशिष्ठाद्यैर्जामदगन्यं विजित्य च ।।१४ ।।

अयोध्यां भरतोभ्यागात् सशत्रुघ्नो युधाजितः ।। १५ ।।

 [ अपनी माता अहल्या के उद्धार की वार्ता सुनकर संतुष्ट हुए] शतानन्दजी ने निमित्त कारण बनकर श्रीराम से विश्वामित्र मुनि के प्रभाव का* वर्णन किया। राजा जनक ने अपने यज्ञ में मुनियों सहित श्रीरामचन्द्रजी का पूजन किया। श्रीराम ने धनुष को चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला। तदनन्तर महाराज जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता को, जिसके विवाह के लिये पराक्रम ही शुल्क निश्चित किया गया था, श्रीरामचन्द्रजी को समर्पित किया। श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ आदि गुरुजनों के मिथिला में पधारने पर सबके सामने सीता का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। उस समय लक्ष्मण ने भी मिथिलेश – कन्या उर्मिला को अपनी पत्नी बनाया। राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्याएँ थींश्रुतकीर्ति और माण्डवी इनमें माण्डवी के साथ भरत ने और श्रुतकीर्ति के साथ शत्रुघ्न ने विवाह किया। तदनन्तर राजा जनक से भली भाँति पूजित हो श्रीरामचन्द्रजी ने वसिष्ठ आदि महर्षियों के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। मार्ग में जमदग्निनन्दन परशुराम को जीतकर वे अयोध्या पहुँचे। वहाँ जाने पर भरत और शत्रुघ्न अपने मामा राजा युधाजित्की राजधानी को चले गये ॥ १०-१५ ॥

* यहाँ मूल में, ‘प्रभावतपद प्रभावके अर्थ में है। यहाँ तसिप्रत्यय पञ्चम्यन्त का बोधक नहीं है। सार्वविभक्तिक तसिके नियमानुसार प्रथमान्त पद से यहाँ तसिप्रत्यय हुआ है, ऐसा मानना चाहिये ।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये रामायणे बालकाण्डवर्णनं नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में श्रीरामायण-कथा के अन्तर्गत बालकाण्ड में आये हुए विषय का वर्णनसम्बन्धी पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ५ ॥

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *