अंगद कौन था Who Was Angad, अंगद की पत्नी का नाम क्या था Angad ki patni ka naam

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अंगद की पत्नी का नाम क्या था Angad ki Patni ka Naam

हैलो दोस्तों आपका हमारे इस लेख अंगद की पत्नी का नाम क्या था (What was name of Angad’s wife) में, बहुत – बहुत स्वागत है।

दोस्तों आप सभी जानते हैं, कि अंगद एक रामायण का ऐसा पात्र था जो अपने स्वामी भक्त पराक्रम तथा कर्तव्य निष्ठा के लिए जाना जाता है।

अंगद रामायण काल का एक ऐसा पराक्रमी वानर था, जिसने रावण के दरबार में जाकर अपने स्वामी श्रीराम की तरफ से समस्त लंका के धुरंधरों तथा महारथियों को सिर्फ अपना पैर डिगाने ने की चुनौती दे दी

और स्वयं इंद्रजीत जैसे महारथी भी अंगद के पैर को टस से मस नहीं कर पाए, तो दोस्तों आइए जानते हैं, इस लेख में ऐसे महावीर अंगद की पत्नी का नाम क्या था के साथ अंगद का परिचय:-

अंगद कौन था who was Angad

रामायण में अंगद की एक बहुत ही खास भूमिका थी। अंगद, नल, नील,सुग्रीव आदि की तरह एक पराक्रमी और प्रसिद्ध योद्धा भी था।

जबकि दूसरी तरफ अंगद किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र था। अंगद की माता का नाम तारा था, जो हिंदू धर्म की पंच कन्याओं में से एक थी।

अंगद ने अपने युवा जीवन में कई ऐसे पराक्रमी कार्य किए जो वास्तव में उल्लेखनीय है। अपने पिता बाली की मृत्यु के पश्चात युवराज अंगद भगवान श्रीराम की सेना में शामिल हो गए

और युद्ध में उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए जब अंगद रावण के दरबार में शांति दूत के रूप में गए तो उन्होंने वहाँ पर शांति संदेश

देने के साथ ही साथ अपने राजा गुण का वखान तथा उनकी शक्ति का भी प्रदर्शन किया, जिससे शत्रुओं के हौसले कमजोर हो गए।

अंगद की पत्नी का नाम what was name of Angad”s wife

राम की सेना में कई ऐसे वीर बहादुर और पराक्रमी योद्धा थे, जिन्होंने अकेले ही हजारों शत्रुओं का संहार किया था। उन्हीं सैनिकों में से एक था बाली पुत्र युवराज “अंगद” बाली पुत्र युवराज अंगद

अपने पिता की भांति निडर तथा पराक्रमी था, जिसकी माता का नाम तारा था। अपनी माता के द्वारा मिली हुए ज्ञान से उसने स्वामी भक्ति, त्याग, बलिदान आदि की सीख ली थी।

किंतु पौराणिक धर्म ग्रंथों तथा रामायण में अंगद की पत्नी के नाम का उल्लेख नहीं है। की अंगद की पत्नी कौन थी? अंगद की पत्नी का नाम क्या था? और वह कहां की थी?

अंगद शांति दूत के रूप में Angad as peace envoy

बाली की मृत्यु के बाद महाराज सुग्रीव ने अपनी समस्त सेना को एकत्रित होने का आदेश दिया तथा भगवान श्रीराम के द्वारा सुग्रीव की सारी सेना को चार दिशाओं में माता सीता की खोज के लिए प्रस्थान कर दिया

इसमें से एक दल के नेता थे अंगद और अंगद को दक्षिण दिशा का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था। दक्षिण दिशा के अंत तक जाते-जाते अंगद तथा अंगद के बहादुर सिपाही

समुद्र तट पर पहुंचे जहाँ उन्हें एक गिद्ध के द्वारा माता सीता के बारे में जानकारी प्राप्त हुई कि, माता सीता का हाल लंकापति रावण ने किया है जो समुद्र के उस पार लंका नगरी में रहता है।

इसके पश्चात हनुमान जी द्वारा माता सीता से मिलना हुआ और लंका दहन हुआ फिर श्रीराम की सेना ने समुद्र पर पुल बनाकर लंका पर चढ़ाई कर दी

और अंगद को भगवान श्रीराम का शांतिदूत बनकर लंका के राजा रावण के दरबार में जाने तथा भगवान श्रीराम का शांति संदेश लंका के राजा रावण को सुनाने

के लिए भेजा और कहा अगर वह इस शांति संदेश को इनकार करते हैं या उलंघन करते हैं तो फिर वह युद्ध के लिए तैयार हो जाए। अंगद ने अपने इस कार्य को बखूबी बड़ी अच्छी तरीके से निभाया

और लंका के दरबार में पहुँच गए किंतु लंका के दरबार में उनका अपमान किया गया और उन्हें बैठने के लिए स्थान भी नहीं दिया गया।

किंतु अंगद ने अपनी सूझबूझ से काम लिया और लंका में ही अपनी पूंछ से रावण से भी बड़ा सिंहासन बना दिया और उस पर विराजमान होकर अपने भगवान

श्रीराम का संदेश रावण तथा समस्त सभा को सुना सुनाने लगे, किंतु रावण ने इस संदेश को ठुकरा दिया।तब अंगद ने भगवान श्रीराम की चुनौती लंका के राजा

रावण को सुनाई यदि समय रहते तुमने माता सीता को सम्मान सहित श्रीराम को नहीं लौटाया तो तुम्हारा और तुम्हारी सेना का राक्षसों सहित अंत निश्चित है और सभा को सम्बोधित किया

कि यदि इस सभा में से जो भी भगवान श्रीराम की शरण में जाना चाहता है वह चला जाए भगवान श्री राम भक्तवत्सल हैं। उसका उद्धार अवश्य करेंगे वरना अवश्य मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे।

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