Anna Chandy Autobiography | अन्ना चांडी का जीवन परिचय : देश की पहली महिला हाईकोर्ट जज

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यह वह समय था जब महिलाओं का कार्यक्षेत्र घर तक ही सीमित था। शिक्षा तक उनकी पहुंच न के बराबर थी। घर से बाहर जाकर काम करना पुरुष-प्रधान समाज के नियमों का उल्लघंन करना था। उस वक्त में कुछ ऐसी महिलाएं थीं जिन्होंने पितृसत्ता के आगे झुकने से इनकार किया। महिलाओं के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ़ न केवल आवाज़ बुलंद की बल्कि उन कार्यक्षेत्र को चुना जिन पेशों में महिलाओं की उपस्थिति शून्य थी। न्यायपालिका क्षेत्र में महिलाओं के लिए शुरुआत की इबारत लिखने वालों में से एक नाम है अन्ना चांडी। न्यायमूर्ति अन्ना चांडी देश की पहली हाईकोर्ट जज थीं। साथ ही उनके बारे में यह भी दावा किया जाता है कि वह दुनिया की दूसरी महिला न्यायधीश थीं। संयुक्त राज्य अमेरिका की फ्लोरेंस एलन 1922 में न्यायधीश के पद पर नियुक्त होने वाली विश्व की पहली महिला थीं।

अन्ना चांडी का जन्म त्रावणकोर राज्य (वर्तमान केरल) में 4 मई 1905 में हुआ था। मलयाली सीरियन ईसाई परिवार में पली-बढ़ीं अन्ना चांडी केरल राज्य में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं। साल 1926 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, त्रिवेंद्रम से डिस्टिंक्शन के साथ पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया था। वह कानून में डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला बनीं। लॉ कॉलेज में दाखिला लेना उनके लिए आसान नहीं था। लॉ की पढ़ाई करने के कारण लोग उनका मज़ाक उड़ाया करते थे। लेकिन अपने मज़बूत इरादों की वजह से उन्होंने अपने रास्ते में आनेवाली सारी बाधाओं को पार किया। समाज और पुरुष सहयोगियों के तिरस्कारपूर्ण रवैये के बावजूद भी वह आगे बढ़ती रहीं।

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न्यायपालिका क्षेत्र में महिलाओं के लिए शुरुआत की इबारत लिखने वालों में से एक नाम है अन्ना चांडी। न्यायमूर्ति अन्ना चांडी देश की पहली हाईकोर्ट जज थीं।

बैरिस्टर बन की शुरुआत

साल 1929 में अन्ना ने अपने करियर की शुरुआत बैरिस्टर बनकर, अदालत में प्रैक्टिस करनी शुरू की थी। अन्ना चांडी आपराधिक मामलों में कानून पर अपनी पकड़ के लिए जानी जाती थी। लगभग 10 साल की प्रैक्टिस के बाद साल 1937 में केरल के दीवान सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने चांडी को मुंसिफ के तौर पर नियुक्त किया गया। समय और अनुभव के साथ उनकी उपलब्धियां भी बढ़ती रहीं। साल 1948 में अन्ना चांडी को जिला जज के तौर पर प्रमोशन हो गया। 9 फरवरी 1959 से 5 अप्रैल 1967 तक वह न्यायधीश के पद पर कार्यरत रहीं। अपने कार्यकाल के समय उन्होंने भारत के कानून क्षेत्र में न केवल महिलाओं के लिए करियर के रूप में विकल्प बनाया बल्कि उनके अधिकारों के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की। सेवानिवृत्त होने के बाद वह 5 अप्रैल 1967 को भारतीय विधि आयोग में नियुक्त की गईं।

महिला अधिकारों के लिए की आवाज बुलंद

अन्ना चांडी ने महिलाओं के उत्थान के लिए हमेशा काम किया। साल 1930 में उन्होंने मलयाली में ‘श्रीमती’ नाम की एक पत्रिका निकाली, जिसका संपादन वह खुद किया करती थीं। यह पत्रिका महिलाओं के अधिकारों की उन्नति के लिए एक मंच के रूप में काम करती थीं। अन्ना चांडी ने समाज में हो रही अनेक कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई। उन सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाया, जो रोज़मर्रा के जीवन में महिला के जीवन को प्रभावित किया करते थे। विधवा पुनर्विवाह और महिला की स्वतंत्रता के लिए काम किया। खेतों में काम करने वाली महिलाओं के लिए समान वेतन की मांग पर ज़ोर दिया। महिलाओं को आगे ले जाने वाले मुद्दों को सबके सामने रखा, उनके इन प्रयासों के लिए उन्हें देश की ‘पहली पीढ़ी की नारीवादी’ के रूप में माना जाता है।

राजनीति में कदम

अन्ना चांडी सामाजिक स्तर पर और राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति के लिए बहुत मुखर थी। 1931 में त्रावणकोर में श्री मूलम पॉप्यूलर विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा। राजनीति में भी उन्हें बहुत विरोध का सामना करना पड़ा। उनके विरोधियों और समाचार प्रकाशनों ने चांडी का राज्य के दीवान के साथ व्यक्तिगत संबंध रखने का आरोप लगाते हुए उन्हें बदनाम करने का अभियान शुरू किया। इस तरह की अफवाहों को फैलाया गया और अन्ना चांडी वह चुनाव हार गयी। चुनाव में हार के बाद भी वह चुप नहीं रहीं और अपनी पत्रिका में उन्होंने इस बारे में संपादकीय लिखकर विरोध जताया। अब तक अन्ना चांडी एक सार्वजनिक हस्ती बन चुकी थीं। साल 1932 में उन्होंने दोबारा चुनाव लड़ा और इस बार उन्हें जीत हासिल हुई। वह 1932-34 तक दो साल के कार्यकाल के लिए विधानसभा के लिए चुनी गईं।

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साल 1930 में उन्होंने मलयाली में ‘श्रीमती’ नाम की एक पत्रिका निकाली, जिसका संपादन वह खुद किया करती थीं। यह पत्रिका महिलाओं के अधिकारों की उन्नति के लिए एक मंच के रूप में काम करती थीं।

महिला अधिकारों की समर्थक

महिला आरक्षण के लिए आवाज़ उठाने वाली अन्ना चांडी भारत की पहली महिलाओं में से एक थीं। महिला अधिकारों के लिए वह अपनी बात खुलकर सबके सामने रखती थीं। राज्य में महिलाओं को सरकारी नौकरी देने के विरोध में हो रही बातों पर अन्ना चांडी ने अपना पक्ष सबके सामने रखा। महिलाओं को सरकारी नौकरी देने के पक्ष में एक-एक कर दलील उन्होंने सबके सामने रखी। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि महिलाओं के कमाने से परिवार को संकट के समय में सहारा मिलेगा। यही नहीं उन्होंने एक विधायक के महिलाओं को नौकरी देने के खिलाफ वाले बयान पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि इस बात से यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं द्वारा रोजगार हासिल करने के सभी प्रयासों पर रोक लगा देनी चाहिए। इसके आधार पर तो महिलाएं केवल मनुष्य को घरेलू सुख देने लिए बनाए गए प्राणियों का एक समूह हैं और उनका रसोई-मंदिर से बाहर निकलना पारिवारिक खुशियों को नुकसान पहुंचाएगा।

अन्ना चांडी के अनुसार महिलाओं को कानून की नजर में भी बराबरी की नज़र से देखा जाना चाहिए। उन्होंने शादी में पति और पत्नी को मिले असमान कानूनी अधिकारों के खिलाफ भी आवाज़ उठाई। इस तरह के मुद्दों पर बात रखने के कारण उनके विरोध करने वाले भी बहुत थे। अन्ना चांड़ी महिला की शारीरिक स्वायत्तता की भी प्रबल समर्थक थी। उनके अनुसार मलयाली मातृसत्तात्मक परिवारों में कई बहनों के पास संपत्ति के अधिकार, मतदान के अधिकार, रोजगार और सम्मान, वित्तीय स्वतंत्रता है। लेकिन बहुत के पास खुद के शरीर का अधिकार नहीं है। महिलाओं को खुद के शरीर पर अधिकार मिलना चाहिए। महिलाओं को गर्भनिरोध और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने के लिए चिकित्सीय सुविधा की मांग जैसी बातों को सबके सामने रखा। जीवनभर महिला उत्थान के लिए कार्यरत अन्ना चांडी भारतीय इतिहास में वह नाम है जो महिला सशक्तीकरण के लिए हमेशा काम करती रहीं। अन्ना चांडी समाज सुधारक और न्यायपालिका में महिलाओं की राह की नींव रखने वाला वह नाम है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। साल 1996 में 91 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी। ‘आत्मकथा’ के शीर्षक के नाम से उनकी आत्मकथा 1973 में प्रकाशित हुई थी।

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