Ashtang hridayam in hindi pdf Download || अष्टांग हृदयम् हिंदी डाउनलोड
आयुर्वेदीय वाहमय का इतिहास ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवों से सम्बन्धित होने के कारण अत्यन्त प्राचीन, गौरवास्पद एवं विस्तृत है। भगवान् धन्वन्तरि ने इस आयुर्वेद को ‘तदिदं शाश्वतं पुण्यं स्वार्य यशस्यमायुष्य वृत्तिकरं चेति’ (सु.सू. १९) कहा है। लोकोपकार की दृष्टि से इस विस्तृत आयुर्वेद को बाद में आठ अंगों में विभक्त कर दिया गया। तब से इसे ‘अष्टांग आयुर्वेद’ कहा जाता है। इन अंगों का विभाजन उस समय के आयुर्वेदश महर्षियों ने किया। कालान्तर में कालचक्र के अव्याहत आपात से तथा अन्य अनेक कारणों से ये अंग सहित होने के साथ प्रायः लुप्त भी हो गये। शताब्दियों के पचात् ऋषिकल्प आयुर्वेदविद विद्वानों ने आयुर्वेद के उन खण्डित अंगों की पुनः रचना की। सण्डित अंशों की पूर्ति युक्त उन संहिता मन्थों को प्रतिसंस्कृत कहा जाने लगा, जैसे कि आचार्य दृहबल द्वारा प्रतिसंस्कृत चरकसंहिता। इसके अतिरिक्त प्राचीन सण्डित संहिताओं में भेड(ल)संहिता तथा काश्यपसंहिता के नाम भी उल्लेखनीय हैं। तदनन्तर संग्रह की प्रवृत्ति से रचित संहिताओं में अष्टांगसंग्रह तथा अष्टांगहृदय संहिताएं प्रमुख एवं सुप्रसिद्ध हैं। परवर्ती विद्वानों ने वर्गीकरण की दृष्टि से आयुर्वेदीय संहिताओं का विभाजन बृहत्रयी तथा गपुश्पी के रूप में किया। बृहत्त्रयी में-चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता तथा अष्टांगहृदय का समावेश किया गया है, क्योंकि ‘गुणा गुणशेष गुणा भवन्ति’। यह भी तथ्य है कि वारभाट की कृतियों में जितना प्रचार-प्रसार ‘अष्टांगहवर्य’ का है, उतना ‘अष्टांगसंग्रह’ का नहीं है। इसी को आधार मानकर वृहत्त्रयी रलमाला में ‘हृदय’ रूप रल को लेकर पारसियों ने गूंथा हो?
History of Ayurvedic Vessel is very ancient, glad and detailed and detailed due to the relations of Brahma, Indra etc.. God’s Dhanvanthi has said this Ayurveda has called ‘Suyasya Chatiya Pratiya’ (SUS 1 9). In terms of philanthropik, this detailed Ayurveda was later divided into eight organs. Since then it is called ‘Ashtang Ayurveda’. The division of these organs did the Ayurveda Maharishi at that time. In the calendar, there was often an attempts with emergency and other causes for many other reasons. Ayurvedism scholars of Ayurveda re-composed those strategies of Ayurveda of centuries. Those rebuilding colors, containing Synchronized fractions, began to be said to be called, such as accepted by Acharya View. Apart from this, the names of Bhad (La) Code and Kashapeshita are also remarkable in ancient scandal codes. In the codes composed by the trend of the first collection, Ashtangas and Ashtangi Codes are major and well-known. Attacked scholars did the split of Ayurvedic Codes in terms of classification and in the form of Gapushpi. In Polhyayay-Charakshita, Sushrutshita and Ashtangidya have been included, because ‘multiplied multiples multiplied rays’. It is also the fact that as much as the propaganda in the creations of Warbut, the ‘Ashtanghwarya’ is not as ‘Ashtangas’. Considering the basis of the basis of the ‘heart’ form in the rural rulamala, the parsees are duff?