जीवन में आगे बढ़ना है तो संतुलन और सहजता जरूरी है

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सार्थकता और विलासिता से भरी की जिंदगी की चाह में आपने अचानक भागना आरंभ कर दिया। भागते-भागते थोड़ा ही आगे बढ़े, तो आपको लगने लगा कि यह तो बेकार रास्ता है। आप फिर लौटे और इस बार दूसरी तरफ भागने लगे। मगर भागते-भागते फिर आपकी हिम्मत टूटने लगी। आपने निर्णय किया कि फिर से तीसरे मार्ग से जाऊंगा, पर एक लंबी दौड़ के बाद तीसरे मार्ग ने भी अपनी कठिनाइयां बताईं, तो चौथे मार्ग का अनुसरण करने लगे। वहां की दुर्गमता ने बताया कि इससे तो पहले वाले रास्ते ही ठीक थे। लेकिन अस्थिरता की विचारधारा ने बहुत बड़ा समय निकाल दिया हमारे जीवन से और हम उसी जगह पर खड़े रह गए, जहां से हम कभी चले थे।

कुछ ऐसे ही हालात में आज हम सभी खड़े हैं। आज पूरे देश को देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे सारी अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जाएगी। हमारे दिमाग में एक ऐसा भाव आ रहा है, जैसे इस अब देश में कुछ नहीं रहने वाला है। जहां से चले थे, अब शायद वहीं पर वापस आकर खड़े हो गए हैं। भागते-भागते कहीं रुक कर सोचना, विचार करना ही भूल गए हैं। प्रकृति ने शायद फिर से याद दिलाने के लिए हमें रुक कर विचार करने का समय दिया है। आज संकट की घड़ी है। ऐसे में हम सबको जरूरत है आत्ममंथन करने की। प्रकृति का सबसे बड़ा सबक यह है कि आप जो बोते हैं वही काटते हैं।

हमारी विकास की जिद के बावजूद एक क्षण में सारी मानवजाति का संहार करने की क्षमता वाली यह प्रकृति आशा कर रही है कि हम सुधर जाएंगे। प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है, तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर महामारी, बाढ़, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है। आज यह बहुत जरूरी हो गया है कि हम हर उस गतिविधि पर रोक लगाएं, जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। तभी हम खुद को को एक सुरक्षित भविष्य दे पाएंगे।

आज जो परिस्थितियां हैं, उसमें हम सबके धैर्य की भी परीक्षा है। हमें सहजता और धैर्य से इन वितरीत परिस्थितियों का सामना करना होगा। ज्यादातर देखने में आता है कि हम उन्हीं परिस्थितियों में सहज रह पाते हैं जो हमारे मन मुताबिक होती हैं। जबकि हर स्थिति में सहजता जरूरी होती है, क्योंकि ऐसा होने पर ही हम विषम परिस्थितियों से लड़ सकते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं- धैर्य रखो। जो एक दिन बढ़ेगा, वह एक दिन अवश्य घटेगा। कोरोना काल में भविष्य संशय से भरा है और संशय कब पैदा होता है? जब मन विषादग्रस्त हो। यही विषाद सबसे पहले अर्जुन के मन में पकड़ा था श्रीकृष्ण ने। आप भी अपने संशयों को श्रीकृष्ण के साथ साझा करें। वह महाभारत का युद्ध था और आज युद्ध कोरोना संक्रमण के खिलाफ है और कभी किसी भी युद्ध में संशय के साथ नहीं उतर सकते।

कोई भी परिस्थिति हमेशा एक जैसी नहीं रहती। हरेक के जीवन में कभी अच्छा समय आता है, तो कभी बुरे दौर से उसे गुजरना पड़ता है। उतार-चढ़ाव, दुख-सुख और आशा-निराशा का नाम ही जिंदगी है। वेन डब्ल्यू डायर ने कहा भी है कि ‘हर चीज या तो बढ़ने का एक अवसर है या बढ़ने से रोकने वाली एक बाधा। चुनाव आपको करना है।’ संतुलन एवं सहजता जरूरी है।

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