चुहिया का स्वयंवर Chuya Ka Swamber Panchatantra Story

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गंगा नदी के किनारे तपस्वियों का एक आश्रम था। वहाँ याज्ञवलक्य नाम के मुनि रहते थे। मुनिवर एक दिन नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि उनकी अंजुली में, बाज के चोंच से छुटकर, एक चुहिया गिर पड़ी।

मुनि ने अपने प्रताप से उसे एक सुंदर कन्या में बदल दिया और अपने आश्रम ले आए। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, “इसे प्रेम से अपनी बच्ची की तरह पालो।”

मुनि पत्नी उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुई और बड़े प्यार से उसका लालन-पालन किया। ज बवह विवाह योग्य हो गई तब उन्होंने मुनि से योग्य वर ढूंढकर उसके हाथ पीले करने के लिए कहा।

मुनि ने तुरंत सूर्य देव को बुलाकर अपनी कन्या से पूछा, ‘पुत्री! त्रिलोक को प्रकाशित करने वाला सूर्य क्या तुम्हें पतिरूप में स्वीकार है?‘

पुत्री ने मना करते हुए कहा, “नहीं, इनके तेज के कारण मैं इनसे आंख नहीं मिला सकती।”

मुनि ने सूर्य देव से पूछा, “आप अपने से अच्छा कोई वर सुझाएं।” सूर्यदेव ने कहा, “मुझसे अच्छे मेघ हैं वह मेरे प्रकाश को भी ढक देते हैं।”

मुनि ने मेघ को बुलाकर पुत्री से पूछा कि क्या वह उसे पसंद हैं? कन्या ने उसे काला कहकर मना कर दिया। मुनि ने मेध से कहा, “कृपया, अपने से शक्तिशाली वर बताएं।” मेघ ने कहा कि पवन उनसे अधिक ताकतवर है। “यह तो बड़ा चंचल है” यह कहकर कन्या ने मना कर दिया।

मुनि ने पवन से उत्तम वर के लिए पूछा तो उन्होंने कहा पर्वत मुझसे अधिक अच्छा है। मुनि ने पर्वत को बुलाकर कन्या की राय जानी तो उसने कहा, “यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है।” मुनि ने पर्वत से अधिक योग्य कौन है जब पूछा तो उसने उत्तर दिया, “श्रीमान! मुझसे अच्छा चूहा है जो मुझे खोदकर बिल बना लेता है।”

मुनि ने मूषकराज को बुलाया। उसे देखकर कन्या बहुत प्रसन्न हुई और बोली, “पिताजी! मुझे मूषिका बनाकर मूषकराज को सौंप दीजिए।” मुनि ने पुनः उसे चुहिया बना दिया और चूहे के साथ विवाह कर दिया।

शिक्षा (Panchatantra Story’s Moral): जो जैसा है वैसा ही रहता है।

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