भगवान इस तरह संसार में स्थित हैं कभी गौर करके देखिए
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित:।। गीता 9/4।।
अर्थ: मुझे अव्यक्त से यह संपूर्ण जगत व्याप्त है, समस्त भूत मुझमें स्थित हैं, किन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूं ।। 4 ।।
व्याख्या: परमात्मा का कोई आकार नहीं है, वह तो सब जगह फैली हुई परम चेतना है, जिसका कोई चिह्न भी नहीं है, इसलिए वह अव्यक्त है। यह अव्यक्त परमात्मा इस सारे जगत में ऐसे ही फैला है, जैसे दूध में मक्खन रचा-बसा है।
यहां ऐसा कुछ भी नहीं जो परमात्मा के अतिरिक्त हो। परमात्मा के कारण ही यह संसार दिखाई देता है। प्रकृति में सब कुछ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच भूतों से बना है, सभी प्राणी इन्हीं पांच भूतों से बने हैं।
भगवान कह रहे हैं कि जगत के सारे भूत मुझमें ही स्थित है, ऐसा कोई भी भूत प्राणी नहीं, जो मुझमें स्थित न हो, लेकिन मैं उन सब भूतों में स्थित नहीं हूं।