जानें क्या होता है जब अधूरी इच्छाओं के साथ मृत्यु होती है

0

धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् |
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ।। गीता 8/25।।
अर्थ: धुआं, रात्रि, कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन के छह महीने (देहाध्यास) में प्रयाण करने वाला योगी चंद्र ज्योति को प्राप्त कर वापस लौट आता है।

व्याख्या: जैसे साल के छह महीने उत्तरायण के होते हैं, वैसे ही दक्षिणायन के होते हैं। लेकिन यहां दक्षिणायन शब्द केवल प्रतीक मात्र है, असलियत में यहां दक्षिणायन का अर्थ देहाध्यास से है। देहाध्यास का मतलब है जब व्यक्ति में मोह-माया के कारण राग और द्वेष बना रहता है।

आसक्ति और अहंकार मरते समय भी बाकी रह जाता है फिर अनेक अधूरी इच्छाओं के साथ जब शरीर की मृत्यु होती है, उस समय व्यक्ति को सब कुछ धुएं जैसा दिखाई देने लगता है अर्थात कुछ भी यथार्थ नहीं दिखता। आंखों के आगे अमावस्या की काली रात के सामान अंधेरा छा जाता है।

इस अवस्था में जब व्यक्ति शरीर छोड़ता है, तब वह कुछ समय के लिए चंद्र ज्योति को प्राप्त कर, अपने कर्मों फलों के आधार पर फिर से इस धरती पर जन्म लेता है और जब तब मुक्त न हो जाए, तब तक जन्म-मरण का यह चक्र चलता रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *