गीता ज्ञानः इस काल में देह त्याग से जन्म-मरण के चक्र से होते हैं मुक्त

0

यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन:|
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ|| गीता 8/23||

अर्थ: हे भरत श्रेष्ठ! जिस काल में प्रयाण करने वाले योगीजन वापस नहीं लौटते और जिसमें वापिस लौट आते है, वो दोनों काल बताता हूं।

व्याख्या: सभी प्राणी अपने कर्मों के हिसाब से जन्म-मरण भोगते रहते हैं। कर्मों के आधार पर जीव को योनि, आयु और प्रारब्ध मिलता है। जन्म के समय जितने कर्म लेकर पैदा होते हैं, इस जन्म में उन कर्मों में और इजाफा कर लेते हैं, फिर उनको भोगने के लिए नया जन्म लेते हैं और उस नए जन्म में और कर्म बढ़ा लेते हैं।

इस प्रकार मरने के बाद जीव फिर से धरती पर जन्म लेने के लिए वापस लौट आता है। भगवान, अर्जुन से कह रहे हैं कि हे भरत श्रेष्ठ! अब मैं तुझे उस बताता हूं कि किस काल में योगी देह त्याग करे जिससे वो हमेशा के लिए जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाए और लौटकर वापस नहीं आए।

साथ ही भगवान आगे उस काल के बारे में भी बता रहे हैं, जिसमें देह त्याग करने के बाद जीव, जन्म लेकर फिर से वापस मृत्युलोक में आ जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *