धीरे-धीरे चलें तो लक्ष्य तक पहुंचना असंभव नहीं रहेगा

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छोटी-छोटी घटनाओं का समूह ही जीवन है। यहां सब धीरे-धीरे होता है। जैसे एक-एक सांस जीवन बनाती है, एक-एक पल जीवन यात्रा बनाता है, हृदय की एक-एक धड़कन जीवन देती है और एक-एक कदम दूर हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचा देता है। प्रकृति में भी बीज धीरे-धीरे अंकुरित होकर पौधा और फिर पेड़ बनता है। कबीरदास जी कहते हैं, ‘धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।’

लेकिन यदि हम अपने मन को देखें, तो एक मन ही ऐसा है जो धीरे-धीरे में विश्वास नहीं रखता और वह प्रकृति के बिलकुल विपरीत जाकर तेजी से दौड़ना शुरू कर देता है। वह चाहता है कि जल्दी-जल्दी उसकी सारी इच्छाओं की पूर्ति हो जाए! जल्दी से जल्डी उसे बड़ी से बड़ी खुशी मिल जाए! वहीं दूसरी ओर, कुछ बड़ा घटने के इंतजार में मन दुखी भी रहता है। जबकि जीवन में हर बड़ी खुशी के पीछे छोटी-छोटी खुशियां, छोटी-छोटी मेहनत, छोटे-छोटे कर्मों का समूह होता है। मन का विरोध यही है कि वह अचानक कुछ बड़ा चाहता है, मन की यही हलचल उसे अशांति देती है। भागते हुए मन के कारण हमारे निर्णय भी कमजोर होते चले जाते हैं। भागते हुए खयालों से जब हम भर जाते हैं तो उसको मन कहते हैं, और जब खयालों से खाली होकर ठहर जाते हैं, तो उसको विवेक कहते हैं।

भागता हुआ मन सोचने-समझने की शक्ति को खो देता है, जिससे विवेक दब जाता है और साथ ही निर्णय लेने की शक्ति हिल जाती है, कमजोर हो जाती है। ठहरा हुआ मन, भारी से भारी समस्याओं का समाधान करता है और विवेक को जगा देता है। लेकिन मन को ऐसा लगता है कि वह भागकर समस्याओं का समाधान जल्दी कर लेगा, उलझनों को भी जल्दी सुलझा लेगा! यही उसकी गलतफहमी है।

मन की यही भगदड़ मन में थकान, कमजोरी, तनाव और दुख भरती है। जैसे जब घोड़े दौड़ते हैं, तो उनके पीछे केवल धूल उड़ती है, और वह धूल आंखों में जाकर आगे का रास्ता दिखाना बंद कर देती है। ऐसे ही मन जब खयालों में दौड़ता है, तो तनाव, विरोध, दुख, नकारात्मकता की एक धूल पैदा करता है। जीवन में जो भी शुभ, सकारात्मक और अनुसंधान घटता है, वह मन की गहराइयों और मन के ठहरेपन के आधार पर घटता है।

बीज भी जब माटी के अंदर गहरे में जाकर शांत हो जाता है, तब वह पौधा बनता है। दूध में जामुन लगाकर जब बिना हलचल की अवस्था में रखा जाता है, तो दही जम जाती है। लेकिन मन भाग-भागकर उलझनों को सुलझा लेना चाहता है। उलझन मन की भगदड़ से उत्पन्न होने वाला विकार है और सुलझन मन के ठहराव से पैदा होती है। भागता हुआ मन, समस्याओं में ले जाता है और ठहरा हुआ मन हमें समाधान की तरफ ले जाता है।

जीवन में जो महत्वपूर्ण समस्याएं होती हैं, धीरे-धीरे सोचकर ही हम उन सबका समाधान कर सकते हैं। स्लो-थिंकिंग और उसी के हिसाब से प्लानिंग करके हम हर बड़ी समस्या का समाधान कर सकते हैं। मगर हम जल्दबाजी करते हैं, उतावलापन करते हैं, इसलिए समस्याएं जल्दी नहीं सुलझतीं। हमारी कोशिश मन के ठहरेपन की हो, इसलिए अध्यात्म में ध्यान, एकांत, मौन, स्वाध्याय, सत-शास्त्रों का अध्ययन, सत्संग की बात कही गई है कि मन ठहर जाए। ठहरा मन विवेक को पैदा करेगा और विवेक ही जीवन को सही राह दिखाएगा।

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