गणपतिसूक्त || Ganapati Sukta And Ganapati Ki Seva Aarati

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भगवान गणेश जी की पूजन व अभिषेक करते समय विनायक की प्रसन्नता के लिए ऋग्वेद के मण्डल ८ सूक्त सूक्त संख्या ८१ के मन्त्र १ जिसे की गणपतिसूक्त कहा जाता है, का पाठ करें।

ऋग्वेदीय गणपतिसूक्त

आ तू न॑ इन्द्र क्षु॒मन्तं॑ चि॒त्रं ग्रा॒भं सं गृ॑भाय ।

म॒हा॒ह॒स्ती दक्षि॑णेन ॥ ८.०८१.०१

वि॒द्मा हि त्वा॑ तुविकू॒र्मिं तु॒विदे॑ष्णं तु॒वीम॑घम् ।

तु॒वि॒मा॒त्रमवो॑भिः ॥ ८.०८१.०२

न॒हि त्वा॑ शूर दे॒वा न मर्ता॑सो॒ दित्स॑न्तम् ।

भी॒मं न गां वा॒रय॑न्ते ॥ ८.०८१.०३

एतो॒ न्विन्द्रं॒ स्तवा॒मेशा॑नं॒ वस्वः॑ स्व॒राज॑म् ।

न राध॑सा मर्धिषन्नः ॥ ८.०८१.०४

प्र स्तो॑ष॒दुप॑ गासिष॒च्छ्रव॒त्साम॑ गी॒यमा॑नम् ।

अ॒भि राध॑सा जुगुरत् ॥ ८.०८१.०५

आ नो॑ भर॒ दक्षि॑णेना॒भि स॒व्येन॒ प्र मृ॑श ।

इन्द्र॒ मा नो॒ वसो॒र्निर्भा॑क् ॥ ८.०८१.०६

उप॑ क्रम॒स्वा भ॑र धृष॒ता धृ॑ष्णो॒ जना॑नाम् ।

अदा॑शूष्टरस्य॒ वेदः॑ ॥ ८.०८१.०७

इन्द्र॒ य उ॒ नु ते॒ अस्ति॒ वाजो॒ विप्रे॑भिः॒ सनि॑त्वः ।

अ॒स्माभिः॒ सु तं स॑नुहि ॥ ८.०८१.०८

स॒द्यो॒जुव॑स्ते॒ वाजा॑ अ॒स्मभ्यं॑ वि॒श्वश्च॑न्द्राः ।

वशै॑श्च म॒क्षू ज॑रन्ते ॥ ८.०८१.०९

ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् ।

ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पत॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभिः॑ सीद॒ साद॑नम् ॥ २.०२३.०१

नि षु सी॑द गणपते ग॒णेषु॒ त्वामा॑हु॒र्विप्र॑तमं कवी॒नाम् ।

न ऋ॒ते त्वत्क्रि॑यते॒ किं च॒नारे म॒हाम॒र्कं म॑घवञ्चि॒त्रम॑र्च ॥ १०.११२.०९

अ॒भि॒ख्या नो॑ मघव॒न्नाध॑माना॒न्सखे॑ बो॒धि व॑सुपते॒ सखी॑नाम् ।

रणं॑ कृधि रणकृत्सत्यशु॒ष्माभ॑क्ते चि॒दा भ॑जा रा॒ये अ॒स्मान् ॥ १०.११२.१०

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

इति ऋग्वेदीय गणपतिसूक्त ॥

गणपति आरती

गणपति की सेवा मंगल मेवा,

सेवा से सब विध्न टरें।

तीन लोक तैतिस देवता,

द्वार खड़े सब अर्ज करे॥

(अथवा – तीन लोक के सकल देवता,

द्वार खड़े नित अर्ज करें॥)

ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजे,

अरु आनन्द सों चवर करें।

धूप दीप और लिए आरती,

भक्त खड़े जयकार करें॥

गुड़ के मोदक भोग लगत है,

मुषक वाहन चढ़ा करें।

सौम्यरुप सेवा गणपति की,

विध्न भागजा दूर परें॥

भादों मास और शुक्ल चतुर्थी,

दिन दोपारा पूर परें ।

लियो जन्म गणपति प्रभुजी ने,

दुर्गा मन आनन्द भरें॥

अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का,

देव वधू जहँ गान करें।

श्री शंकर के आनन्द उपज्यो,

नाम सुन्या सब विघ्न टरें॥

आन विधाता बैठे आसन,

इन्द्र अप्सरा नृत्य करें।

देख वेद ब्रह्माजी जाको,

विघ्न विनाशक नाम धरें॥

एकदन्त गजवदन विनायक,

त्रिनयन रूप अनूप धरें।

पगथंभा सा उदर पुष्ट है,

देख चन्द्रमा हास्य करें॥

दे श्राप श्री चंद्रदेव को,

कलाहीन तत्काल करें।

चौदह लोक मे फिरे गणपति,

तीन भुवन में राज्य करें॥

गणपति की पूजा पहले करनी,

काम सभी निर्विघ्न सरें।

श्री प्रताप गणपतीजी को,

हाथ जोड स्तुति करें॥

गणपति की सेवा मंगल मेवा,

सेवा से सब विध्न टरें।

तीन लोक तैतिस देवता,

द्वार खड़े सब अर्ज करे॥

(तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अर्ज करें॥)

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