गर्ग संहिता – हिंदी || Garg Sanhita hindi PDF Free Download [Geeta Press]
मैं उन आदिपुरुष भगवान् गोविन्द (श्रीकृष्ण) की शरण लेता हूँ, जिनकी लाखों कल्पवृक्षोंसे आवृत एवं चिन्तामणिसमूहसे निर्मित भवनोंमें लाखों लक्ष्मी-सदृश युवतियोंके द्वारा निरन्तर सेवा होती रहती है और जो स्वयं वन-वनमें घूम-घूमकर गौओंकी सेवा करते हैं।
जो वंशीमें स्वर फूँक रहे हैं, कमलकी पंखुड़ियोंके समान बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जो मोरपंखका मुकुट धारण किये रहते हैं, मेघके समान श्यामसुन्दर जिनके श्रीअङ्ग हैं, जिनकी विशेष शोभा करोड़ों कामदेवों के द्वारा भी स्पृहणीय है, उन आदिपुरुष भगवान् गोविन्दका मैं भजन करता हूँ।
जो सबके आदि हैं, परंतु जिनका कहीं आदि नहीं है और जो अनन्त रूपोंमें प्रकाशित हैं, जो पुराण (सनातन) पुरुष होते हुए भी नित्य नवयुवक हैं, जिनका स्वरूप वेदोंमें भी प्राप्त नहीं होता (निषेधमुखसे ही वेद जिनका वर्णन करते हैं,) किंतु अपनी भक्ति प्राप्त हो जानेपर जो दुर्लभ नहीं रह जाते- अपने भक्तोंके लिये जो सुलभ हैं, उन आदिपुरुष भगवान् गोविन्दकी मैं शरण ग्रहण ■ करता हूँ।
I take shelter of the Adi Purush Lord Govind (Shri Krishna), who is constantly served by lakhs of Lakshmi-like girls in buildings covered with lakhs of Kalpa trees and built of clusters of chintamanis, and who himself roams in the forest and serves the cows.
The one who blows the voices in the line, who has eyes as big as lotus petals, who wears a crown of peacock feathers, who is like a cloud, Shyamsundar, who has Shriang, whose special splendor is admissible even by crores of Kamadevas, I worship the primordial Lord Govinda. I am…………