Garv karo is vardee par || गर्व करो इस वर्दी पर, सब पर यह रंग नहीं खिलता
गर्व करो इस वर्दी पर ,
सब पर यह रंग नहीं खिलता ।
किस्मत के बिना इस दुनिया मे ,
खाकी परिधान नहीं मिलता ॥
बननें को कलेक्टर बन जाये ।
बननें को कमिश्नर बन जाये ।
गर ठान ले कोई जीवन में,
तो प्राइम मिनिस्टर बन जाए ।
लेकिन इस वर्दी की खातिर,
81 का सीना चहिए ।
फिर 5 अलग से फूले भी,
घुटना भी ना जुड़ना चहिए।
हो कदम बराबर सधे हुए
और आंख कान भी ठीक ठाक,
इन सब खूबी के बावजूद भी,
घोड़े सा उड़ना चहिए ।
चौड़ी छाती, ऊंचे ललाट बिन,
यह सम्मान नहीं मिलता ।
किस्मत के बिना इस दुनिया मे,
खाकी परिधान नही मिलता ॥
क्या सोचा तुमनें ईश्वर ने
क्यों तुमपर ए उपकार किया?
क्यो जन्म दिया इस दुनिया मे ,
सैनिक का हर आधार दिया?
क्यों सभी खूबियां सैनिक की,
तुम पर ही उसने बरसाई ?
क्यों जन रक्षक का रूप दिया ,
क्यों खाकी का श्रंगार दिया ?
इसका उत्तर खुद से पूछो,
तुम एक आम इन्सान नही ।
ईश्वर का पहला चयन हो तुम,
पर तुमको इसका भान नहीं ।
तुम पोंछ सको आंसूं उनके,
जो दीन हीन हैं,शोषित हैं ।
प्रतिकार करो उन दुष्टों का,
जो भी अधर्म से पोषित हैं ।
इस हेतु विधाता ने तुमको,
चयनित कर धाम धरा भेजा ।
मानव हित मे हे श्रेष्ठ मनुज ,
करने को काम बड़ा भेजा ।
मिलता है हजारों मे एक को,
सब को यह मान नहीं मिलता ।
किश्मत के बिना इस दुनिया मे,
खाकी परिधान नहीं मिलता