जो मृत्यु के समय भी आत्मा के बारे में सोचते हैं
अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन। प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि: ।।गीता 8/2।।
अर्थ : हे मधुसूदन ! अधियज्ञ कौन है और इस देह में कैसे है, निरंतर आत्मा में स्थित पुरुष द्वारा प्रयाणकाल में आप किस प्रकार जाने जाते हो।
व्याख्या : अर्जुन बोले ! हे मधुसूदन, अधियज्ञ कौन है और इस शरीर में वह किस रूप में रहता है। साथ ही अर्जुन जानना चाह रहे हैं कि जो साधक निरंतर आत्मा में ही स्थित रहता है और वो उसी आत्मा को सर्वत्र देखता रहता है।
अर्थात जो साधक केवल आत्मा में ही रमण करता रहता है उसका जब अंतकाल आता है, जिसको प्रयाणकाल कहते हैं, उस काल में वह आपको किस प्रकार जान पाता है और उस समय वह कैसे आप में लीन होता है, क्योंकि अब अर्जुन इस बात को भलीभांति जान गए हैं कि जो जीते-जी निरंतर आत्मा में टिका रहता है, वह अंतकाल में परमात्मा में लीन होकर मुक्त हो जाता है।