हनुमान का जन्म कैसे हुआ था। Birth of hanuman, Hanumaan ka janm kaise hua tha

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हनुमान जी का जन्म कथा Birth story of hanuman

हनुमान जी के जन्म की कथा बड़ी ही रोचक है। पौराणिक धर्म ग्रंथों में हनुमान जी के जन्म की कथा बहुत चर्चित है।

लेकिन जो हनुमान जी की जन्म की कथा रामचरितमानस में वह इस प्रकार से है, की हनुमान जी का जन्म मंगलवार के दिन पूर्णिमा को नक्षत्र और मेष लग्न के युग में हुआ था।

इनकी माता का नाम अंजना था जो इंद्रलोक की अप्सरा थी, जहाँ पर उनका नाम पुंजिकास्थला था। हनुमान जी के पिताजी का नाम वानर राज केसरी था।

जो अंजन प्रदेश (सुमेरु पर्वत) के महाराजा थे। कहा जाता है, कि हनुमान जी का जन्म ऋषि मुनियों के श्राप  तथा माता अंजना की 12 वर्षों की शिव की तपस्या का ही परिणाम था।

एक बार की बात है, जब पुंजिकास्थला देवलोक में रह रही थी। उस समय वो थोड़ी चंचल स्वभाव की थी। एक बार उन्होंने धरती पर संध्याकालीन एक वृक्ष के नीचे साधु महात्मा को देखा

और उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ, कि वृक्ष के नीचे साधु महात्मा नहीं उनकी जगह कोई बंदर ही बैठा हो। इसलिए उन्होंने एक सेब साधु महात्मा (वानर) पर फेंक दिया।

साधु महात्मा अपनी गहरी तपस्या में लीन थे, किंतु सेब अपने पे लगते ही वह तपस्या से उठ खड़े हो गए और कहने लगे कौन है यहाँ ? जिसने मेरी तपस्या को भंग किया है।

अभी मेरे सामने आओ वरना मैं जलाकर भस्म कर दूंगा। तभी पुंजिकास्थला साधु के सामने आ गई और पुंजिकास्थला ने कहा

कि मैंने सोचा शायद कोई बंदर बैठा हुआ है, और भूल बस मैंने बंदर पर यह सेव फेका था। यह सुनकर ऋषि महात्मा को बहुत ही क्रोध आया और उन्होंने पुंजिकास्थला को श्राप दे दिया और कहा

तुमने मुझे वानर समझ कर मुझ पर सेव फेका है। मैं तुम्हें श्राप देता हूँ, तुम एक वानरी का रूप धारण कर लोगी। ऐसा सुनकर पुंजिकास्थला साधु महात्मा के चरणों में गिर गई

और श्राप वापस लेने की प्रार्थना करने लगी। तब साधु ने कहा कि मैं अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकता, किंतु तुम वानरी रूप में भी एक सर्वगुण संपन्न वेदों का ज्ञाता महापराक्रमी, महावीर पुत्र को जन्म दोगी।

देवी पुंजिकास्थला स्वर्ग लोक वापस आ गई और उन्होंने इंद्रदेव को यह घटना सुनाई तब इंद्र ने देवी से कहा तुम धरती पर जाकर निवास करो जहाँ तुम्हें एक राजकुमार से प्रेम हो जाएगा।

जिससे तुम विवाह करना और महादेव के अंश वीर हनुमान को जन्म देना।

ऐसा सुनकर पुंजिकास्थला धरती लोक पर आ गई और जंगलों में विचरण करने लगी तभी उन्हें महाराज केसरी  जंगल में दिखाई दिए और दोनों के बीच प्रेम हो गया।

दोनों ने विवाह करने के पश्चात पुत्र की कामना की, किंतु उन्हें पुत्र प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए पुंजिकास्थला नारायण पर्वत पर तपस्या करने लगी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर पवन देव ने उन्हें दर्शन दिए

और कहा तुम्हारा पुत्र मेरे जैसा ही तेज होगा अब तुम भगवान शिव की तपस्या करो। देवी पुंजिकास्थला ने भगवान शिव की तपस्या की

जिससे भगवान शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने पुंजिकास्थला को वर मांगने के लिए कहा। तब  पुंजिकास्थला ने भगवान शिव को श्राप के बारे में अवगत कराया और भगवान शिव से

अपनी कोख से जन्म लेने के लिए कहा भगवान शिव ने पुंजिकास्थला वर दे दिया और कहा कि वह हनुमान के रूप में तुम्हारे गर्भ से जन्म लेंगे इस प्रकार से हनुमान जी का जन्म हुआ।

केसरी और हनुमान जन्म की कथा Kesari or Hanuman birth story

पौराणिक ग्रंथों में यह मानता है, कि हनुमान जी का जन्म कई ऋषि-मुनियों (Rishi-Muni) के आशीर्वाद के फलस्वरूप भी हुआ था।

कहा जाता है, कि एक बार वानर राज केसरी विचरण  करते हुए समुद्र के तट पर गए जहाँ पर कई ऋषि मुनि यज्ञ संबंधी कार्य कर रहे थे।

तभी वहाँ पर एक विशालकाय हाथी आ गया और ऋषि मुनियों को मारने लगा तथा उनका यज्ञ अनुष्ठान को भंग करने लगा।

यह देख केसरी से रहा नहीं गया और वह जाकर उस विशाल हाथी से युद्ध करने लगे। कई घंटों तक घमासान और भयंकर युद्ध हुआ आज अंततः केसरी ने उस विशाल हाथी के दांत तोड़ दिए

उसका मुँह लहूलुहान कर दिया और हाथी के प्राण ले लिए। यह देख कर सभी ऋषि बहुत ही प्रसन्न हो गए और उन्होंने केसरी को आशीर्वाद दिया

कि उनका पुत्र पवन के समान तेजस्वी सूर्यदेव के समान तेज इच्छा के अनुसार रूप धारण करने वाला भगवान शिव का रूद्र अवतार होगा।

इस प्रकार से महाराज केसरी को मिले आशीर्वाद के द्वारा भगवान शिव ने महाराज केसरी के पुत्र हनुमान जी के रूप में जन्म लिया।

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