हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Hanuman Ashtottar Shatanam Stotram

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रामभक्त, बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, ना जाने कितने नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है।

भगवान हनुमान त्रेतायुग से लेकर आने वाले तीन युगों तक जीवित रहे हैं। त्रेतायुग में श्रीराम के साथ और द्वापर युग में महाभारत के दौरान भीम से मिलना।

ऐसी मान्यता है कि समस्त संसार में जब-जब हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, रामचरित मानस, रामायण, आदि का पाठ किया जाता है तो हनुमान जी वहां जरूर मौजूद होते हैं।

कलयुग में हनुमान आराधना ही एकमात्र ऐसी आराधना है जो सबसे शीघ्र फल देती है। हनुमान जी के नाम का जप करने से बड़े से बड़ा संकट दूर हो जाता है। भक्तों की परेशानी चाहे कैसी भी हो शत्रु भय हो या रोग हो या फिर जीवन से जुड़ी कैसी भी दिक्कत हो हनुमान आराधना द्वारा हल किया जा सकता है। जीवन की कोई भी कठिनाइयों या संकटों को दूर करने के लिए जीवन में किसी भी मनोकामना की पूर्ति के लिए इस हनुमान अष्टोत्तर शतनाम का प्रयोग किया जाता है।

यहाँ श्रीपराशरसंहितायान्तर्गत श्रीपराशरमैत्रेयसंवाद हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् व इसके अतिरिक्त एक अन्य हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् और केवल नामावली अर्थ सहित नीचे दिया जा रहा है-

अथ हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

श्रीपराशर उवाच –

शृणु मैत्रेय! मन्त्रज्ञ अष्टोत्तरशतसंज्ञिकः ।

नाम्नां हनूमतश्चैव स्तोत्राणां शोकनाशनम् ॥

पूर्वं शिवेन पार्वत्याः कथितं पापनाशनम् ।

गोप्याद्गोपतरं चैव सर्वेप्सितफलप्रदम् ॥

विनियोगः –

ॐ अस्य श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीहनुमान् देवता ह्रां बीजम् ह्रीं शक्तिः ह्रूं कीलकम् श्रीहनुमद्देवता प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यानम् –

ध्यायेद्बालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदर्पापहम्

देवेन्द्रप्रमुखैः प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं ऋचा ।

सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं

संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालङ्कृतम् ॥

॥ इति ध्यानम् ॥

हनुमान् स्थिरकीर्तिश्च तृणीकृतजगत्त्रयः ।

सुरपूज्यस्सुरश्रेष्ठो सर्वाधीशस्सुखप्रदः ॥

ज्ञानप्रदो ज्ञानगम्यो विज्ञानी विश्ववन्दितः ।

वज्रदेहो रुद्रमूर्ती दग्धलङ्का वरप्रदः ॥

इन्द्रजिद्भयकर्ता च रावणस्य भयङ्करः ।

कुम्भकर्णस्य भयदो रमादासः कपीश्वरः ॥

लक्ष्मणानन्दकरो देवः कपिसैन्यस्य रक्षकः ।

सुग्रीवसचिवो मन्त्री पर्वतोत्पाटनो प्रभुः ॥

आजन्मब्रह्मचारी च गम्भीरध्वनिभीतिदः ।

सर्वेशो ज्वरहारी च ग्रहकूटविनाशकः ॥

ढाकिनीध्वंसकस्सर्वभूतप्रेतविदारणः ।

विषहर्ता च विभवो नित्यस्सर्वजगत्प्रभुः ॥

भगवान् कुण्डली दण्डी स्वर्णयज्ञोपवीतधृत् ।

अग्निगर्भः स्वर्णकान्तिः द्विभुजस्तु कृताञ्जलिः ॥

ब्रह्मास्त्रवारणश्शान्तो – ब्रह्मण्यो ब्रह्मरूपधृत् ।

शत्रुहन्ता कार्यदक्षो ललाटाक्षोऽपरेश्वरः ॥

लङ्कोद्दीपो महाकायः रणशूरोऽमितप्रभः ।

वायुवेगी मनोवेगी गरुडस्य समोजसे ॥

महात्मा विष्णुभक्तश्च भक्ताभीष्टफलप्रदः ।

सञ्जीविनीसमाहर्ता सच्चिदानन्दविग्रहः ॥

त्रिमूर्ती पुण्डरीकाक्षो विश्वजिद्विश्वभावनः ।

विश्वहर्ता विश्वकर्ता भवदुःखैकभेषजः ॥

वह्नितेजो महाशान्तो चन्द्रस्य सदृशो भवः ।

सेतुकर्ता कार्यदक्षो भक्तपोषणतत्परः ॥

महायोगी महाधैर्यो महाबलपराक्रमः ।

अक्षहन्ता राक्षसघ्नो धूम्राक्षवधकृन्मुने ॥

ग्रस्तसूर्यो शास्त्रवेत्ता वायुपुत्रः प्रतापवान् ।

तपस्वी धर्मनिरतो कालनेमिवधोद्यमः ॥

छायाहर्ता दिव्यदेहो पावनः पुण्यकृत्शिवः ।

लङ्काभयप्रदो धीरो मुक्ताहारविभूषितः ॥

मुक्तिदो भुक्तिदश्चैव शक्तिद शङ्करस्तथा ।

हरिर्निरञ्जनो नित्यो सर्वपुण्यफलप्रदः ॥

इतीदं श्रीहरेः पुण्यनामाष्टोत्तरशतम् ।

पठनाच्श्रवणान्मर्त्यः जीवन्मुक्तो भवेद्धृवम् ॥

॥ इति श्रीपराशरसंहितायान्तर्गते श्रीपराशरमैत्रेयसंवादे हनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

आञ्जनेयो महावीरो हनुमान्मारुतात्मजः ।

तत्वज्ञानप्रदः सीतादेवीमुद्राप्रदायकः ॥ १॥

अशोकवनिकाच्छेत्ता सर्वमायाविभञ्जनः ।

सर्वबन्धविमोक्ता च रक्षोविध्वंसकारकः ॥ २॥

परविद्यापरीहारः परशौर्यविनाशनः ।

परमन्त्रनिराकर्ता परयन्त्रप्रभेदनः ॥ ३॥

सर्वग्रहविनाशी च भीमसेनसहायकृत् ।

सर्वदुःखहरः सर्वलोकचारी मनोजवः ॥ ४॥

पारिजातद्रुमूलस्थः सर्वमन्त्रस्वरूपवान् ।

सर्वतन्त्रस्वरूपी च सर्वमन्त्रात्मकस्तथा ॥ ५॥

कपीश्वरो महाकायः सर्वरोगहरः प्रभुः ।

बलसिद्धिकरः सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकः ॥ ६॥

कपिसेनानायकश्च भविष्यच्चतुराननः ।

कुमारब्रह्मचारी च रत्नकुण्डलदीप्तिमान् ॥ ७॥

सञ्चलद्वालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलः ।

गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञो महाबलपराक्रमः ॥ ८॥

कारागृहविमोक्ता च शृङ्खलाबन्धमोचकः ।

सागरोत्तारकः प्राज्ञो रामदूतः प्रतापवान् ॥ ९॥

वानरः केसरिसुतः सीताशोकनिवारनः ।

अञ्जनागर्भसम्भूतो बालार्कसदृशाननः ॥ १०॥

विभीषणप्रियकरो दशग्रीवकुलान्तकः ।

लक्ष्मणप्राणदाता च वज्रकायो महाद्युतिः ॥ ११॥

चिरञ्जीवी रामभक्तो दैत्यकार्यविघातकः ।

अक्षहन्ता काञ्चनाभः पञ्चवक्त्रो महातपाः ॥ १२॥

लङ्किणीभञ्जनः श्रीमान् सिंहिकाप्राणभञ्जनः ।

गन्धमादनशैलस्थो लङ्कापुरविदाहकः ॥ १३॥

सुग्रीवसचिवो भीमः शूरो दैत्यकुलान्तकः ।

सुरार्चितो महातेजो रामचूडामणिप्रदः ॥ १४॥

कामरूपी पिङ्गलाक्षो वार्धिमैनाकपूजितः ।

कबलीकृतमार्तण्डमण्डलो विजितेन्द्रियः ॥ १५॥

रामसुग्रीवसन्धाता महिरावणमर्दनः ।

स्फटिकाभो वागधीशो नवव्याकृतिपण्डितः ॥ १६॥

चतुर्बाहुर्दीनबन्धुर्महात्मा भक्तवत्सलः ।

सञ्जीवननगाहर्ता शुचिर्वाग्मी दृढव्रतः ॥ १७॥

कालनेमिप्रमथनो हरिमर्कटमर्कटः ।

दान्तः शान्तः प्रसन्नात्मा दशकण्ठमदापहृत् ॥ १८॥

योगी रामकथालोलः सीतान्वेषणपण्डितः ।

वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो रुद्रवीर्यसमुद्भवः ॥ १९॥

इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकः ।

पार्थध्वजाग्रसंवासी शरपञ्जरभेदकः ॥ २०॥

दशबाहुलोर्कपूज्यो जाम्बवत्प्रीति वर्धनः ।

सीतासमेत श्रीरामपादसेवाधुरन्धरः ॥ २१॥

इत्येवं श्रीहनुमतो नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥ २२॥

॥ इति श्रीमदाञ्जनेयाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् केवल नामावली अर्थ सहित

1.आंजनेया : अंजना का पुत्र

2.महावीर : सबसे बहादुर

3.हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं

4.मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय

5.तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले

6.सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले

7.अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विनाश करने वाले

8.सर्वमायाविभंजन : छल के विनाशक

9.सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह को दूर करने वाले

10.रक्षोविध्वंसकारक : राक्षसों का वध करने वाले

11.परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले

12.परशौर्य विनाशन : शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले

13.परमन्त्र निराकर्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले

14.परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले

15.सर्वग्रह विनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले

16.भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक

17.सर्वदुखः हरा : दुखों को दूर करने वाले

18.सर्वलोकचारिणे : सभी जगह वास करने वाले

19.मनोजवाय : जिसकी हवा जैसी गति है

20.पारिजात द्रुमूलस्थ : प्राजक्ता पेड़ के नीचे वास करने वाले

21.सर्वमन्त्र स्वरूपवते : सभी मंत्रों के स्वामी

22.सर्वतन्त्र स्वरूपिणे : सभी मंत्रों और भजन का आकार जैसा

23.सर्वयन्त्रात्मक : सभी यंत्रों में वास करने वाले

24.कपीश्वर : वानरों के देवता

25.महाकाय : विशाल रूप वाले

26.सर्वरोगहरा : सभी रोगों को दूर करने वाले

27.प्रभवे : सबसे प्रिय

28.बल सिद्धिकर :

29.सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक : ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले

30.कपिसेनानायक : वानर सेना के प्रमुख

31.भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य की घटनाओं के ज्ञाता

32.कुमार ब्रह्मचारी : युवा ब्रह्मचारी

33.रत्नकुण्डल दीप्तिमते : कान में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले

34.चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला : जिसकी पूंछ उनके सर से भी ऊंची है

35.गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ, : आकाशीय विद्या के ज्ञाता

36.महाबल पराक्रम : महान शक्ति के स्वामी

37.काराग्रह विमोक्त्रे : कैद से मुक्त करने वाले

38.शृन्खला बन्धमोचक: तनाव को दूर करने वाले

39.सागरोत्तारक : सागर को उछल कर पार करने वाले

40.प्राज्ञाय : विद्वान

41.रामदूत : भगवान राम के राजदूत

42.प्रतापवते : वीरता के लिए प्रसिद्ध

43.वानर : बंदर

44.केसरीसुत : केसरी के पुत्र

45.सीताशोक निवारक : सीता के दुख का नाश करने वाले

46.अन्जनागर्भसम्भूता : अंजनी के गर्भ से जन्म लेने वाले

47.बालार्कसद्रशानन : उगते सूरज की तरह तेजस

48.विभीषण प्रियकर : विभीषण के हितैषी

49.दशग्रीव कुलान्तक : रावण के राजवंश का नाश करने वाले

50.लक्ष्मणप्राणदात्रे : लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले

51.वज्रकाय : धातु की तरह मजबूत शरीर

52.महाद्युत : सबसे तेजस

53.चिरंजीविने : अमर रहने वाले

54.रामभक्त : भगवान राम के परम भक्त

55.दैत्यकार्य विघातक : राक्षसों की सभी गतिविधियों को नष्ट करने वाले

56.अक्षहन्त्रे : रावण के पुत्र अक्षय का अंत करने वाले

57.कांचनाभ : सुनहरे रंग का शरीर

58.पंचवक्त्र : पांच मुख वाले

59.महातपसी : महान तपस्वी

60.लन्किनी भंजन : लंकिनी का वध करने वाले

61.श्रीमते : प्रतिष्ठित

62.सिंहिकाप्राण भंजन : सिंहिका के प्राण लेने वाले

63.गन्धमादन शैलस्थ : गंधमादन पर्वत पार निवास करने वाले

64.लंकापुर विदायक : लंका को जलाने वाले

65.सुग्रीव सचिव : सुग्रीव के मंत्री

66.धीर : वीर

67.शूर : साहसी

68.दैत्यकुलान्तक : राक्षसों का वध करने वाले

69.सुरार्चित : देवताओं द्वारा पूजनीय

70.महातेजस : अधिकांश दीप्तिमान

71.रामचूडामणिप्रदायक : राम को सीता का चूड़ा देने वाले

72.कामरूपिणे : अनेक रूप धारण करने वाले

73.पिंगलाक्ष : गुलाबी आँखों वाले

74.वार्धिमैनाक पूजित : मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय

75.कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय : सूर्य को निगलने वाले

76.विजितेन्द्रिय : इंद्रियों को शांत रखने वाले

77.रामसुग्रीव सन्धात्रे : राम और सुग्रीव के बीच मध्यस्थ

78.महारावण मर्धन : रावण का वध करने वाले

79.स्फटिकाभा : एकदम शुद्ध

80.वागधीश : प्रवक्ताओं के भगवान

81.नवव्याकृतपण्डित : सभी विद्याओं में निपुण

82.चतुर्बाहवे : चार भुजाओं वाले

83.दीनबन्धुरा : दुखियों के रक्षक

84.महात्मा : भगवान

85.भक्तवत्सल : भक्तों की रक्षा करने वाले

86.संजीवन नगाहर्त्रे : संजीवनी लाने वाले

87.सुचये : पवित्र

88.वाग्मिने : वक्ता

89.दृढव्रता : कठोर तपस्या करने वाले

90.कालनेमि प्रमथन : कालनेमि का प्राण हरने वाले

91.हरिमर्कट मर्कटा : वानरों के ईश्वर

92.दान्त : शांत

93.शान्त : रचना करने वाले

94.प्रसन्नात्मने : हंसमुख

95.शतकन्टमदापहते : शतकंट के अहंकार को ध्वस्त करने वाले

96.योगी : महात्मा

97.रामकथा लोलाय : भगवान राम की कहानी सुनने के लिए व्याकुल

98.सीतान्वेषण पण्डित : सीता की खोज करने वाले

99.वज्रद्रनुष्ट :

100.वज्रनखा : वज्र की तरह मजबूत नाखून

101.रुद्रवीर्य समुद्भवा : भगवान शिव का अवतार

102.इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक : इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले

103.पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने : अर्जुन के रथ पार विराजमान रहने वाले

104.शरपंजर भेदक : तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले

105.दशबाहवे : दस भुजाओं वाले

106.लोकपूज्य : ब्रह्मांड के सभी जीवों द्वारा पूजनीय

107.जाम्बवत्प्रीतिवर्धन : जाम्बवत के प्रिय

108.सीताराम पादसेवक : भगवान राम और सीता की सेवा में तल्लीन रहने वाले

हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

अथ हनुमत अष्टोत्तरशतनाम

ॐ आञ्जनेयाय नमः । महावीराय नमः । तत्त्वज्ञानप्रदाय नमः । सीतादेवीमुद्राप्रदायकाय नमः । सर्वग्रहविनाशिने नमः । भीमसेनसहायकृते नमः । परविद्यापरीहाराय नमः । परशौर्यविनाशकाय नमः । परयन्त्रनिराकर्त्रे नमः । परमन्त्रप्रभेदकाय नमः । सर्वदुःखहराय नमः । सर्वलोकचारिणे नमः । मनोजवाय नमः । पारिजातद्रुममूलस्थाय नमः । अशोकवनिकाच्छेत्रे नमः । सर्वमायाविभञ्जकाय नमः । सर्वबन्धविमोक्त्रे नमः । रक्षोविध्वंसकारकाय नमः । सर्वयन्त्रात्मकाय नमः । कपीश्वराय नमः ।

ॐ महाकायाय नमः । सर्वरोगहराय नमः । सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकाय नमः । कपिसेनानायकाय नमः । भविष्यच्चतुराननाय नमः । कुमारब्रह्मचारिणे नमः । रत्नकुण्डलदीप्तिमते नमः । सञ्चलद्वालसन्नद्धलम्बमानाय नमः ।

हनुमते नमः । मारुतात्मजाय नमः । महाबलपराक्रमाय नमः । कारागृहविमोक्त्रे नमः । शृङ्खलाबन्धमोचकाय नमः । सागरोत्तारकाय नमः । प्राज्ञाय नमः । रामदूताय नमः । प्रतापवते नमः । वानराय नमः । लङ्किणीभञ्जकाय नमः । श्रीमते नमः । ४०

ॐ सर्वमन्त्रस्वरूपिणे नमः । सर्वतन्त्रस्वरूपिणे नमः । गन्धमादनशैलस्थाय नमः । लङ्कापुरविदाहकाय नमः । सुग्रीवसचिवाय नमः । धीराय नमः । शूराय नमः । दैत्यकुलान्तकाय नमः । सुरार्चिताय नमः । महातेजसे नमः ।

प्रभवे नमः । बलसिद्धिकराय नमः । केसरीसुताय नमः । शिखोज्ज्वलाय नमः । सीताशोकनिवारकाय नमः । अञ्जनागर्भसम्म्भूताय नमः । गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञाय नमः । लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः । वज्रकायाय नमः । महाद्युतये नमः ।

ॐ चिरजीविने नमः । रामभक्ताय नमः । दैत्यकार्यविघातकाय नमः । अक्षहन्त्रे नमः । काञ्चनाभाय नमः ।

पञ्चवक्त्राय नमः । महातपसे नमः । विजितेन्द्रियाय नमः । सिंहिकाप्राणभञ्जनाय नमः । महारावणमर्दनाय नमः । स्फटिकाभाय नमः । वागधीशाय नमः । नवव्याकरणपण्डिताय नमः । चतुर्बाहवे नमः । दीनबन्धवे नमः । महात्मने नमः । भक्तवत्सलाय नमः । रामचूडामणिप्रदाय नमः । कामरूपिणे नमः । पिङ्गलाक्षाय नमः ।

ॐ वार्धिमैनाकपूजिताय नमः । कबलीकृतमार्तण्डमण्डलाय नमः । बालार्कसदृशाननाय नमः । विभीषणप्रियकराय नमः । दशग्रीवकुलान्तकाय नमः । दान्ताय नमः । शान्ताय नमः । प्रसन्नात्मने नमः । शतकण्ठमदापहर्त्रे नमः । योगिने नमः । रामकथालोलाय नमः । सीतान्वेषणपण्डिताय नमः । वज्रदंष्ट्राय नमः । वज्रनखाय नमः । रुद्रवीर्यसमुद्भवाय नमः । सञ्जीवननगाहर्त्रे नमः । शुचये नमः । वाग्मिने नमः । दृढव्रताय नमः । कालनेमिप्रमथनाय नमः ।

ॐ हरिमर्कटमर्कटाय नमः । इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकाय नमः । पार्थध्वजाग्रसंवासिने नमः ।

शरपञ्जरभेदकाय नमः । लोकपूज्याय नमः । जाम्बवत्प्रीतिवर्धनाय नमः । मारुतये नमः ।

हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् समाप्त ।

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