Raja Parikshit In Hindi Biography | राजा परीक्षित का जीवन परिचय : वासवानी मिशन के संस्थापक व स्वतंत्रता सेनानी थे।

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राजा परीक्षित का जीवन परिचय, जीवनी, परिचय, इतिहास, जन्म, शासन, युद्ध, उपाधि, मृत्यु, प्रेमिका, जीवनसाथी (Raja Parikshit History in Hindi, Biography, Introduction, History, Birth, Reign, War, Title, Death, Story, Jayanti)

चर्चित हिंदू ग्रंथ महाभारत में कौरवों पांडवों और श्रीकृष्ण जैसे लोकप्रिय चरित्रों के अलावा राजा परीक्षित का भी वर्णन मिलता है। वह पांडवों के भाई अर्जुन के पोते थे और अभिमन्यु और उत्तरा के बेटे थे। अपनी मां के कोख में उन्हें बचाया था भगवान श्रीकृष्ण ने जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र उनकी तरफ कर दिया था। अपनी मां के कोख में ही परीक्षित का दर्शन भगवान श्रीकृष्ण से हो गया था। पैदा होने के बाद वह जिस किसी से भी मिलते वह उनमें श्रीकृष्ण की छवि ढूंढ़ने की कोशिश करते। ये उनके लिए एक परीक्षा जैसे हो गया था इसी से उनका नाम परीक्षित पड़ा।

परीक्षित
कुरु
पूर्ववर्ती युधिष्ठिर (बड़े दादाजी)
उत्तरवर्ती जनमेजय (पुत्र)
जीवनसंगी मदरावती (पहली पत्नी),अद्रिका (दूसरी पत्नी)
संतान जनमेजय
पिता अभिमन्यु
माता उत्तरा

राजा परीक्षित का इतिहास 

राजा परीक्षित का जन्म आजमगढ़ में हुआ था आजमगढ़ के शासक थे आजमगढ़ की धरती ऋषि-मुनियों की धरती है आजमगढ़ को एक पवित्र धरती माना जाता है महाराजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा ,शक्तिशाली और दिग्विजय राजा थे राजा परीक्षित के  दो भाई थे जब गजनवी ने 12वा आक्रमण भारत के भीतरी भागों से प्रारंभ किया था मोहम्मद गजनवी ने सबसे पहले कन्नौज पर आक्रमण किया था

उस समय वहां के राजा राजपाल थे उन्हें मार कर सारा धन लूट कर वह आगे की ओर बढ़ता है उस रास्ते में महाराजा परीक्षित का राज्य आता है मोहम्मद गजनवी के आने का पता राजा परीक्षित के गुप्त चोरों को चल जाता है और वह तुरंत ही राजा परीक्षित को इस बात की खबर देते हैं कि मोहम्मद गजनवी हमारे राज्य को लूटने के लिए आ रहा है यह बात सुनकर तुरंत ही राजा परीक्षित अपने भाइयों और सरदारों को लेकर युद्ध की तैयारी करने लगे

इसके बाद महाराज परीक्षित और मोहम्मद गजनवी के बीच में भयंकर युद्ध हुआ परंतु परीक्षित के छोटे भाई ‘असील देव’ को मोहम्मद गजनवी की सेना ने बुरी तरह से घेर लिया था इस युद्ध में अपने भाई असल देवों के साथ महाराजा परीक्षित को भी अपनी जान गवानी पड़ी थी विश्व युद्ध के बाद महाराजा परीक्षित के सबसे छोटे भाई घोष किसी तरह से बच जाते हैं इसके बाद कन्नौज के जो नए राजा बने थे ‘जसवंत सिंह’ उनके साथ महाराजा परीक्षित के छोटे भाई घोष की मित्रता हो जाती है और वह आजमगढ़ के उत्तराधिकारी बन जाते हैं

राजा परीक्षित और कलयुग की कहानी 

एक बार राजा परीक्षित कुरुक्षेत्र की यात्रा कर रहे थे तब उन्होंने वहां पर एक अद्भुत दृश्य देखा वह दृश्य यह था कि एक बूढ़े बैल के तीन पैर टूटे हुए थे और उसके साथ एक गाय थी उन दोनों के पीछे एक काले रंग का पुरुष राज चिन्ह धारण किए हुए खड़ा था वास्तव में यह बूढ़ा बैल धर्म था, गाय पृथ्वी थी और यह काला पुरुष कल्कि  था बूढ़ा बैल और वह गाय आपस में बातचीत कर रहे थे कि अब कलयुग आ गया है और पृथ्वी पर देवताओं का वास नहीं रहेगा इंद्रदेव वर्षा नहीं करेंगे जिसके कारण प्रजा भूखी मर जाएगी

उनके संवाद को देखकर राजा परीक्षित ने उस पुरुष की तरफ देखा इसके बाद राजा परीक्षित अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर उस पुरुष को मारने के लिए तैयार हो गए तब तक उस पुरुष ने उन राजचिन्ह को त्याग दिया और राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया इसके बाद राजा परीक्षित ने उन्हें माफ कर दिया उस पुरुष ने राजा परीक्षित से कहा कि आप मेरे रहने का कोई स्थान दीजिए जहां पर मैं आपकी आज्ञा से निश्चित होकर रहूं

इसके बाद राजा परीक्षित ने कहा तुम अहिंसा, क्रोध, मोह, लोभ इन चार स्थानों में वास करो इसके बाद उस कलि पुरुष ने महाराजा परीक्षित से यह विनती की कि आप मुझे वह स्थान बताइए जहां पर यह चारों अधर्म एक साथ निवास करते हो तब राजा परीक्षित ने उसे सुवर्ण स्थान बताया जहां पर यह सब एक साथ निवास करते हैं इस प्रकार कलयुग का प्रारंभ हुआ

नाग लोक के राजा वासुकी और राजा परीक्षित की कहानी

एक समय की बात है नाग लोक के राजा बासिक का मन एक दिन शिकार पर जाने का हुआ। राजा ने अपना धनुष – बाण उठाया और घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जंगल में पहुंच गए लेकिन इतेफाक से पृथ्वी लोक के राजा पारिक भी उसी जंगल में शिकार खेलने के लिए मौजूद थे। कुछ समय बाद राजा बासिक को शिकार के लिए एक हिरण उछल – कूद करता हुआ दिखाई देता है, राजा बासिक हिरण के पीछे अपना घोड़ा दौड़ा देते हैं। दूसरी तरफ पृथ्वी लोक के राजा पारिक का ध्यान भी उसी हिरण पर जाता है और वह भी अपना घोड़ा हिरण के पीछे लगा देते हैं यानी दोनों राजा एक ही हिरण का पीछा कर रहे थे।

अचानक हिरण तो झाड़ियों में छिप गया लेकिन दोनों राजा एक – दूसरे के सामने आ जाते हैं। एक – दूसरे को देख कर दोनों राजाओं की हंसी छूट जाती है क्योंकि दोनों ही राजा हिरण का शिकार करने में असमर्थ हो जाते हैं। दोनों राजा अपने घोड़े से नीचे उतरते हैं और एक दूसरे का अभिवादन कर कुछ विचार विमर्श करने लगते है।

राजा पारिक – राजन क्षमा करे लेकिन मैंने पहली बार आपको देखा है। कृपा आप अपना परिचय दे। आप कौन है और कहा से आये है ?

राजा बासिक – राजन मैं नाग लोक का राजा बासिक हूं और आज शिकार के उदेश्य से यहां आया हूं। कृपा आप भी अपने बारे में बताये?

राजा पारिक – मैं पृथ्वी लोक का राजा पारिक हूं और आपकी तरह मैं भी आज शिकार के उदेश्य से यहां आया हूं।

थोड़ी देर बाद दोनों राजा एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ जाते है और बातों ही बातों में एक दूसरे के अच्छे मित्र बन जाते हैं। अपनी वार्ता को आगे बढ़ाते हुए राजा बासिक कहते हैं – मित्र मेरे हृदय में एक विचार आया है यदि आप आज्ञा दे तो मैं आपको बताऊं।

राजा पारिक – मित्र आपका जो भी विचार है, मुझे खुलकर बताइए आज मैं आपसे मिलकर बहुत प्रश्न हूं इसलिए मैं आपके विचारों का तहदिल से स्वागत करता हूं।

राजा बासिक – मित्र मेरा विचार है कि आज हम दोनों एक दूसरे से मिल कर इतने प्रसन्न है तो क्यों ना इस दिन को एक यादगार दिन बना दिया जाए।

राजा पारिक – वो कैसे मित्र बासिक ?

राजा बासिक – देखो आज हम नए – नए मित्र बने हैं, तो मित्र होने के नाते हम कभी – कभी ही मिल पाएंगे किंतु यदि हम कुछ ऐसा कर दें जिससे हम दोनों में कोई रिश्ता बन जाए तो हम जब चाहे तब ही एक – दुसरे से मिल सकते हैं।

राजा पारिक – आपका विचार तो उत्तम है मित्र लेकिन ये बताइए यह होगा कैसे ?

राजा बासिक – देखिए मित्र मेरी बात ध्यान से सुनिए अभी आपकी भी नई – नई शादी हुई है और मेरी भी यदि आप की रानी एक लड़के को जन्म देती है और हमारी रानी लड़की को तो हम दोनों उनका रिश्ता पक्का कर देंगे और यदि आप की रानी एक लड़की को जन्म देती है और हमारी रानी एक लड़के को तो भी रिश्ता पक्का और यदि हम दोनों के लड़के या लड़कियां जन्म लेती है तो हम मित्र तो है ही फिर धर्म भाई भी बन जाएंगे।

राजा पारिक भी राजा बासिक की मित्रता मे इतने डुब चुके थे कि यह विचार राजा पारिक को बहुत पसंद आया फिर दोनों खड़े हुए और गले मिलते हुए एक दूसरे से बोले, आज जो भी हमारी वार्ता हुई है उसे भूल ना जाना वादा याद रखना। फिर दोनो अपने – अपने घोड़े पर सवार होकर अपनी नगरी की ओर चल दिए।

दोस्तों जैसा की आप जानते है समय किसी का इंतजार नहीं करता, समय धीरे-धीरे अपनी दिशा की ओर बढ़ता जा रहा था इधर दोनों ही राजाओं की रानियों को गर्भ ठहर गया था धीरे – धीरे नौ महीने बाद वह दिन भी आया जब राजा पारिक के यहां लड़के ने जन्म लिया। राजा पारिक के महल और दरबार में ढोल – नगाड़ों से खूब खुशियां मनाई जा रही थी। गरीबों को दान दिया जा रहा था और ज्ञानी पंडितो को बुलाकर बच्चे का नाम संस्करण करवाया जा रहा था।

बच्चे की सारी जन्म – कुंडली देखने के बाद पड़ित बोले – महाराज, राज कुंवर बहुत ही अच्छे नक्षत्र में पैदा हुए हैं इसलिए हम इनका नाम परीक्षित रखते हैं।

राजा पारिक – बहुत ही सुंदर नाम है, हम आज से कुवंर को परीक्षित ही बुलाएंगे।

तो दोस्तों इधर राजा पारिक की नगरी में तो खुब खुशियां मनाई जा रही थी लेकिन मैं यहां का हाल छोड़ कर आपको राजा बासिक कि नगरी का हाल सुनाता हूं।

राजा बासिक अपने दरबार में मंत्री – गणो के साथ एक गहन वार्ता में व्यस्त थे कि तभी एक बांदी दरबार में आई और बोली, महाराज की जय हो आपको जानकर अति प्रसन्नता होगी कि महल में रानी ने एक बहुत ही खूबसूरत कन्या को जन्म दिया है। इतना सुनते ही राजा बासिक के चेहरे पर उदासी के बादल छा गए। राजा गहन चिंता में डूब गए। अब बांदी तो चली गई किन्तु दरबार में एक सन्नाटा छोड़ गई।

राजा को इस कदर खामोश देखकर आखिरकार मंत्री गणों ने पुछा, महाराज क्या बात है, इतनी खुशखबरी की बात सुनकर भी आप खामोश है, कृपा आप हमें बताइए ताकि उस पर विचार कर सके ? लेकिन राजा तो गहन चिंता के अंधकार में डूबे हुए थे। लेकिन मंत्रियों के यूं बार – बार प्रार्थना करने पर राजा को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी और उन्होंने राजा पारिक के साथ हुई अपनी यादगार मुलाकात के बारे में सभी को बता दिया।

राजा की सारी बात सुन कर सभी मंत्रीगण बोले – किन्तु महाराज इसमें चिंता की क्या बात है ? यह तो बहुत ही प्रसंन्नता की बात है जो हमारी राज कुमारी पृथ्वी लोक के राजा पारिक के घर की बहु बनेंगी। हम धूम – धाम से राजकुमारी की शादी करेंगे।

राजा बासिक – नहीं हम ऐसा ही तो नहीं करना चाहते क्योंकि हम राजा पारिक के यहां लड़की ब्याते हैं तो हमारा सिर सदा ही झुकता रहेगा क्योंकि हम लड़की वाले हैं। लड़की वालों को सदा ही झुकना पड़ता है। हमने सोचा तो कुछ और था लेकिन उसका उल्टा हो गया। अब हम वादा खिलाफी भी नहीं कर सकते। इस परिस्थिति ने हमे चिंता के बादलों में घेर लिया है। लेकिन कुछ भी हो हम हमारी लड़की को पारिक के लड़के के साथ कभी नहीं ब्यायेंगे। फिर राजा मन में कुछ विचार करते हुए गद्दी से खड़े हो गए और महल की ओर चल दिए।

महल जाकर राजा बासिक देखते हैं कि रानी बड़े ही प्यार से लड़की को दुलार रही थी और बहुत ही खुश दिख रही थी। सभी बांदीया रानी और राजकुमारी पर पंखा डोल रही थी। वहां का वातावरण काफी खुशनुमा था। अचानक राजा को आया देखकर सभी बांदी व नौकर कक्ष से बाहर चले जाते गए। राजा, रानी के पास बैठ जाते गए और लड़की को गोद में लेकर कहते हैं, रानी वास्तव में राजकुमारी तो बहुत ही सुंदर है, “लेकिन”।

रानी ( घबराते हुए ) – “लेकिन” क्या महाराज ?

राजा बासिक – रानी यह लड़की जिंदा नहीं रहेगी इसकी उम्र बस इतनी ही थी।

यह बात सुनते ही रानी कि आंखो से जल की धारा बहने लगी और रोते – रोते बोली – मगर क्यों महाराज, आखिर क्यों यह जिंदा नहीं रहेगी, इसका क्या कसुर है, जो आप इसके लिए ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।

राजा बासिक – क्योंकि यह एक लड़की है लड़का नहीं, जिसने मेरा सिर झुकाने के लिए मेरे महल में जन्म लिया है।

राजा के अपनी ही बेटी के लिए ऐसे विचलित कर देने वाले शब्द रानी के हृदय को छल्ली कर रहे थे। जिन्हे रानी केवल अपने आंसूओ से बया कर पा रही थी। रानी अपनी बतकिश्मति पर फूट-फूट कर रो रही थी।

राजा बासिक – अब रोना धोना हो गया हो तो मेरी बात ध्यान से सुनो फिर राजा बासिक ने रानी को उस यादगार मुलाकात के बारे में सारी बात बता दी और कहां मैं सिर झुकाना नहीं चाहता, मैं तो राजा पारिक का सिर झुकाना चाहता हूं।

लेकिन महाराज इसमें सिर झुकाने की क्या बात है लड़की तो पराई अमानत होती है रानी ने समझाते हुए कहां और महाराज इसमें बुराई क्या है ? आप हमारी राजकुमारी को राजा पारिक के पुत्र से ब्याह दिजिए। इसमें आपकी बहुत प्रसंन्ना होगी कि फला राजा जबान का पक्का निकला और वादे के अनुसार अपनी राजकुमारी को पृथ्वी लोक में राजा पारिक के लड़के से ब्याही।

इतनी बात सुनकर राजा बासिक गुस्से मे बोले, बकवास बंद कर और मेरी बात ध्यान से सुन अगर आज रात तक तुने राजकुमारी को नहीं मारा तो मैं कल आकर साथ में तेरे भी टुकड़े – टुकड़े कर दूंगा। ऐसे कढ़वे वचन कहकर राजा गुस्से में वहां से चले गए। रानी सुन्न रह गई और फूट-फूट कर रोती रही।

राजा परीक्षित की पौराणिक कथा

एक बार आजा परीक्षित कहीं पर शिकार खेलने के लिए जाते हैं वह चलते-चलते बहुत ही थक गए थे और प्यास से व्याकुल हो उठे थे तब उन्होंने एक ऋषि को कुछ दूरी पर बैठे हुए देखा तब वहां जाकर उन्होंने जल की उस ऋषि से प्रार्थना की वह ऋषि उस समय ध्यान मग्न थे उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी थी उस मुनि पर राजा परीक्षित को क्रोध आ गया और  सोचा कि इन्होंने मुझे बैठने का भी स्थान नहीं दिया

उनके सुवर्ण मुकुट में कलि का वास था जिसके कारण उनकी बुद्धि विवेक शुन्य हो गई थी इसके बाद राजा परीक्षित वहां से चलने लगे तभी उनकी दृष्टि एक मरे हुए सांप पर पड़ी इसके बाद क्रोधित हुए राजा परीक्षित ने उत्साह को धनुष के अग्रभाग से उठाकर उस ऋषि के गले में टांग दिया इसके बाद वह राजा वहां से चले गए उनके इस अपराध का पता उस ऋषि के पुत्र को लगा तब उनके क्रोध की कोई भी सीमा नहीं रही और उसने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि मेरे पिता के गले में मरा हुआ  सांप टांगने वाले और मर्यादा का उल्लंघन करने वाले उस राजा को सातवें दिन तक्षक सांप काट लेगा तभी उनके पिता जी की समाधि टूटी और उन्हें इस सारी घटना का पता चल गया

ऋषि ने अपने पुत्र को डांटते हुए कहा कि तुमने उस महा प्रतापी राजा को ऐसा श्राप क्यों दिया तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था उसके बाद उस ऋषि ने अपने एक शिष्य के हाथ यह सारा वृत्तांत पहुंचा दिया जब राजा को अपने श्राप का पता चला तो है बहुत ही चिंतित हुए और उनका मन संसार से विरक्त हो गया इसके बाद राजा परीक्षित ने राज्य का सारा भार अपने पुत्र जनमेजय को सौंप दिया राजा का यह हाल सुनकर सभी देव ऋषि ऋषि मुनि राजा परीक्षित के पास पहुंच गए और उन्हें जाकर सहानुभूति दी इसके बाद राजा परीक्षित ने उन सभी से यह प्रार्थना की कि आप मुझे तक्षक सांप से ना बचाकर भगवान श्री कृष्ण की कथाओं को विस्तार के साथ सुनाना आरंभ करें

राजा नदी के दक्षिण तट पर उत्तर की ओर मुंह कर कर बैठ गए और उन्होंने महर्षियो से पूछा ऐसा कौन सा कर्म है जिसे व्यक्ति सब अवस्थाओं में कर सकता है, जिसके करने से कुछ भी पाप नहीं लगता हो इसके बाद वहां पर जितने भी ऋषि मुनि थी वह आपस में वाद-विवाद करने लगे वह सभी आपस में वार्तालाप कर रहे थे तभी वहां पर नारद मुनि आ जाते हैं और उन्होंने उस सवाल का जवाब नारद मुनि से पूछा नारद मुनि ने कहा इसका जवाब  शुकदेव  मुनि ही दे सकते हैं उन्हें यहां पर सम्मान पूर्वक लाना होगा तभी राजा परीक्षित इस श्राप से मुक्त हो पाएंगे

इसके बाद नारद मुनि और उनके साथ कुछ ऋषि  शुकदेव  के पास पहुंचे और उन्होंने राजा परीक्षित का सारा वृतांत होने सुनाया तब उन्होंने वहां आने से मना कर दिया कहा कि मैं अभी वहां नहीं जा सकता कुछ समय बाद नारद मुनि के मनाने पर ऋषि शुकदेव वहां चलने के लिए राजी हो गए उस समय उनकी आयु केवल 16 वर्ष की थी अपने बीच ऋषि  शुकदेव को देखकर सभी ऋषि मुनि बहुत ही खुश हुए सभी ने ऋषि सुखदेव की पूजा की इसके बाद ऋषि सुखदेव ने प्रसन्न होकर रसद दीक्षित से कहा मोक्ष की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को भगवान श्री हरि का यशोगान करना चाहिए

उनके कथामृत को सुनना चाहिए यदि व्यक्ति मरते समय श्रीहरि का ध्यान कर ले तो वह मर कर श्री हरि का रूप धारण करता है इसके बाद ऋषि  शुकदेव ने राजा परीक्षित से कहा कि अपने मन को एकाग्र चित्त कर के भगवान के ध्यान में लगा लो के बाद राजा परीक्षित ने महर्षि सुखदेव से श्री हरि कथामृत पान कराने का अनुरोध किया इसके बाद ऋषि  शुकदेव ने उन्हें 1 सप्ताह में श्रीमद् भागवत की कथा सुना दी थी और उसे राजा को बहुत ही सांत्वना मिली और अंत में उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति हुई

राजा परीक्षित की मृत्यु

 राजा परीक्षित अपने राज्य का सारा भार अपने पुत्र और मुख्यमंत्रियों को सौंपकर अपनी जान बचाने में लग गए थे उन्होंने 6 दिन के अंदर ही सात मंजिला भवन बनवा दिया था वह मंत्रियों के साथ उसी भवन  के ऊपर जाकर रहने लगे मंत्र जानने वाले अनेकों प्रसिद्ध पुरुषों की युक्ति की गई उस घर के बाहर इतना कड़ा प्रबंध था कि कोई भी उसके अंदर नहीं जा सकता था राजा अपने सारे कार्य ऊपर के भवन में ही संपन्न किया करते थे

जब साथ में दिन तक्षक नाग एक मनुष्य का रूप धारण करके राजा के प्राण हरने के लिए जा रहे थे तभी उन्हें रास्ते में एक मुनि मिले जो कि राजा को जीवन दान देने जा रहे थे उस तक्षक नाग ने उस ब्राह्मण को धन देकर उसे घर की ओर वापस लौटा दिया था  उस ऋषि को लौटा कर वह तक्षक नाग हस्तिनापुर की ओर चल पड़े परंतु राज्य की व्यवस्था को देखकर वह चिंतित हो गए और उन्होंने सोचा कि यदि मैं राजा परीक्षित को काट नहीं सका तो ब्राह्मण मुझे श्राप दे देंगे तक्षक नाग ने विचार किया कि

इस ऊंचे महल में कैसे जाया जा सकता है इसके बाद तक्षक नाग ने योजना बनाई और बहुत से नागो को तपस्वी के रूप में राजा के पास भेजा वह फल फूल लेकर राजभवन की ओर चले तक्षक नाग एक छोटा सा कीड़ा बनकर फल में जा बैठा राज भवन के द्वार पर तपस्वीओ को देखकर राज दरबारों ने उनके आने का कारण पूछा तभी उन नागों(तपस्वीयो) ने कहा कि हम महाराज का दर्शन करने के लिए तपोवन से आए हैं इसके बाद उन्होंने कहा कि हम राजा को अभीष्ट फल देकर वापस लौट जाएंगे तब राजा परीक्षित ने उन्हें अंदर आने से इंकार कर दिया

इसके बाद उन्होंने कहा कि यह फल फूल ब्राह्मणों का आशीर्वाद है आप इन्हें राजा को दे दे इसके बाद उन द्वारपालों ने उनसे वह फल ले लिए और उन्हें कल फिर से आने का आग्रह किया इसके बाद द्वारपालों ने सभी फल सम्मान के साथ महाराज परीक्षित के पास पहुंचा दिए इसके बाद राजा परीक्षित ने एक पके हुए फल को उठाया और जब उस फल को काटा तो उसमें से एक छोटा सा कीड़ा निकला उस राजा ने उसे कीड़ा समझ कर अपने कंधे पर रख लिया और वह कीड़ा राजा परीक्षित के कंधे पर तक्षक नाग का रूप ले लिया और उस तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को काट लिया इसके बाद राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई या देखकर वहां पर मौजूद सभी मंत्री हैरान रह गए थे

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