महर्षि बाल्मीकि का इतिहास History of maharishi balmiki

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महर्षि बाल्मीकि कौन थे उनका आश्रम कहाँ है महर्षि बाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती है के साथ बाल्मीकि कथा पड़ेंगे। तो आइये दोस्तों पड़ते है यह लेख महर्षि बाल्मीकि का इतिहास:-

महर्षि बाल्मीकि कौन थे who was maharishi balmiki

महर्षि बाल्मीकि प्रणेता ब्रम्हा के पुत्र थे, किन्तु उनका जन्म होते ही उन्हें भीलनी ने चुरा लिया था। इसलिए वे किसी अछूत जाती के नहीं थे। किन्तु उनके श्लोको में उन्हें बाल्मीकि कहा गया है।

भील समाज / निषाद समाज में पले बड़े होने के कारण उन्होंने भील समाज की संस्कृति परंपराओं को अपनाया तथा भीलनी से विवाह किया।

प्रारम्भ से ही उन्होंने भील समाज की परम्पराओं का पालन किया, लकड़ी काटना, शिकार करना तथा जंगल से गुजरने वाले लोगों को लूटना तथा उनकी हत्या करना उनका नित्य कर्म था। इस प्रकार वे डाकू रत्नाकर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

महर्षि बाल्मीकि का आश्रम Maharishi balmiki ka ashram

महर्षि बाल्मीकि का आश्रम गंगा के पार तमसा नदी के किनारे वर्तमान में भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के बाँदा जिला के चित्रकूट नामक स्थान पर था।

यहाँ पर ही महर्षि बाल्मीकि ने माता सीता को आश्रय दिया था। माँ सीता महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में वनदेवी के नाम से जानी जाती थी।

महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में ही माँ सीता ने दो जुड़वा बच्चे लव और कुश को जन्म दिया। जिनकी शिक्षा दीक्षा स्वयं महर्षि बाल्मीकि के संरक्षण में हुई।

महर्षि बाल्मीकि का इतिहास History of maharishi balmiki

पुराणों के अनुसार बताया जाता है, कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। किंतु उन्हें एक भीलनी ने चुरा लिया था।

इस प्रकार से महर्षि वाल्मीकि का पालन पोषण भीलनी के परिवार में हुआ। महर्षि बाल्मीकि ब्रह्मा प्रणेता के पुत्र थे। तथा वशिष्ठ, पुलत्स्य आदि उनके भाई थे।

बाल्मीकि के दिव्य ज्ञान प्राप्त होने से पहले वह डाकू हुआ करते थे। और उनका नाम रत्नाकर डाकू था। डाकू रत्नाकर का का भय उस समय इतना व्याप्त था

कि लोग रात तो क्या दिन में भी उस वन से नहीं गुजरते थे जिस वन में रत्नाकर डाकू रहा करते थे। महर्षि बाल्मीकि ने नीच कर्म भील जाति में रहकर सीखे थे।

उनका विवाह भीलनी जाति की एक कन्या से कर दिया गया था। जिसके पश्चात उनके कई संताने उत्पन्न हुई। अपनी संतानों का भरण पोषण करने के लिए उन्होंने भी भील जात में होने वाले नीच कर्म को अपना लिया।

वे दिन भर वन में घूमा करते थे, और जो भी व्यक्ति बन के रास्ते गुजरता था उसका सब सामान छीन लेते थे। और यदि कोई भी व्यक्ति सामान नहीं देता था तो उसकी हत्या भी कर देते थे।

इस प्रकार से जो भी सामान प्राप्त होता था उसी से उनका जीवन यापन हो रहा था। किंतु एक बार साधुओं की एक मंडली उस वन से होकर गुजर रही थी।

तभी रत्नाकर डाकू ने उन्हें रोका और कहा तुम्हारे पास जो भी सामान हो उसे यही नीचे रख दो और चले जाओ।

सभी साधुगढ़ डाकू रत्नाकर को देखकर डर गए। डाकू रत्नाकर के हाथ में चमचमाती हुई एक तलवार थी जो रक्त से सनी हुई थी।

तब उनमें से नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा भाई तुम यह पाप कर्म किस लिए करते हो। रत्नाकर ने कहा में यह कार्य अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए करता हूँ।

तब नारद मुनि बोले जीवों की हत्या करना उनका सामान लूटना यह तो पाप कर्म है। इस पाप कर्म में तुम्हारे परिवार वाले भागीदार होंगे।

तब रत्नाकर ने कहा हाँ भागीदार होंगे। नारद मुनि बोले मैं ऐसे नहीं मानता तुम अपने घर जाओ और जाकर अपने परिवार वालों से पूछो कि मैं जो भी पाप कर्म करता हूँ क्या उस पाप कर्म मैं तुम सभी भागीदार हो।

तब डाकू रत्नाकर बोले वाह मुनिवर तुम बहुत होशियार लगते हो मैं अपने परिवार वालों से पूँछने जाऊंगा तब तक तुम यहाँ से रफूचक्कर हो जाओगे।

तब नारद मुनि ने कहा तुम हमारा यह समस्त सामान अपने पास ले लो और हमें इस रस्सी के द्वारा पेड़ से बांध दो तब हम कहीं पर भी नहीं जा पाएंगे।

रत्नाकर ने एक मोटी रस्सी से सभी ऋषियों को वृक्ष से बांध दिया। और अपने परिवार वालों के पास पहुंचे। रत्नाकर ने अपने माता-पिता और अपनी पत्नी से पूछा

कि मैं जो पाप कर्म करता हूँ जिस पाप कर्म के द्वारा आप सभी का भरण पोषण होता है, क्या उस पाप कर्म में तुम सभी मेरे साथ भागीदार हो।

तब माता पिता और पत्नी ने जवाब दिया कि आप घर के सबसे बड़े पुरुष हैं आपका कार्य संपूर्ण परिवार का पालन पोषण करना है

पालन पोषण आप किस प्रकार से कर रहे हैं, हम यह नहीं जानते और आप जो भी पाप कर्म कर रहे हैं, उस पाप कर्म में हम भागीदार नहीं है।

परिवार का पालन पोषण करना आपका कर्तव्य है, लेकिन जिस पाप कर्म के द्वारा तुम धन लाते हो उस पाप कर्म में हम भागीदार नहीं हो सकते हैं।

परिवार वालों की यह बात सुनकर रत्नाकर दौड़ते हुए वन पहुंचते हैं। और साधुओं के चरणों में गिर जाते हैं। उनकी रस्सी खोलते हैं और उनसे माफी मांगने लगते हैं

और कहते है कि हे! ऋषि श्रेष्ठ मैंने अपने जीवन में कई लोगों को बिना कारण ही मौत के घाट उतार दिया है, बहुत से लोगों का धन छीना है, और ना जाने मैंने कितने पाप किए हैं।

मैं इस दुनिया का सबसे बड़ा पापी हूँ और इस प्रकार से डाकू रत्नाकर अपने पापों पर रोने लगता है। तब नारद मुनि कहते हैं तुम भगवान श्रीराम की भक्ति करो जिससे तुम्हारे सभी पाप धुल जाएंगे।

किन्तु डाकू रत्नाकर राम की जगह मरा का उच्चारण कर पा रहा था। और यह उच्चारण बार -बार करने से राम की ध्वनि उत्पन्न होने लगी।

एक बार रत्नाकर मरा – मरा का उच्चारण कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक चरवाहा गायों को पानी नहीं पीने दे रहा है, तभी डाकू रत्नाकर को क्रोध आ गया

तथा एक अधजली लकड़ी से उस चरवाहे को मृत्यु के घाट उतार दिया। और गायों को पानी पिला दिया जैसे ही गायों ने पानी पिया उस अधजली लकड़ी में भी पौधे

उगने लगे और रत्नाकर राम का शुद्ध उच्चारण करने लगे। इसके बाद उन्होंने कठिन तपस्या की जिससे उनका शरीर कांटे की तरह हो गया।

उनके ऊपर दीमक ने बाँबी बना ली और फिर उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ। जब रत्नाकर दीमक की बाँबी तोड़ बाहर आये कियोकि बाँबी को बाल्मीकि कहा जाता है, और बाँबी से बाहर आने पर उनको बाल्मीकि कहा जाने लगा।

महर्षि बाल्मीकि जयंती 2021 Maharishi balmiki ki jayanti 2021

महर्षि वाल्मीकि प्राचीन ऋषियों में से एक हैं, जिन्हें आदिकवि के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण महाकाव्य को लिखा है।

महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को हुआ था। महर्षि वाल्मीकि जयंती 2021 में 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी।

महर्षि वाल्मीकि जयंती संपूर्ण देश में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाई जाती है। बाल्मीकि समाज के लोगों में एक अलग ही उत्साह दिखाई देता है।

भारत तथा अन्य देशों में भी कई विभिन्न प्रकार के संगठनों और जातियों के द्वारा भी बाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।

बाल्मीकि जयंती के कई दिन पहले से ही बाल्मीकि जयंती मनाने की तैयारियाँ प्रारंभ हो जाती है। कई स्थानों पर बाल्मीकि की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं, तथा उन्हें फूल मालाओं से सजाया जाता है।

महर्षि बाल्मीकि की शोभायात्रा निकाली जाती हैं। मिष्ठान फल आदि वितरित किए जाते हैं। विख्यात स्थानों पर महर्षि वाल्मीकि जयंती का आयोजन बड़ी ही धूमधाम हर्ष उल्लास के साथ होता है।

महर्षि बाल्मीकि की जीवन गाथा और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को सभी लोगों को सुनाते हैं। महर्षि बाल्मीकि के जीवन से सभी लोगों को सभी बाधाओं को पार करते हुए सत्य धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा लेनी चाहिए।

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