Irom Chanu Sharmila Autobiography | इरोम चानू शर्मिला का जीवन परिचय : कवियित्री, मानवाधिकार और राजनीतिक कार्यकर्ता

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सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी AFSPA की चर्चा हो और इरोम चानू शर्मिला का नाम नहीं आए। ऐसा नहीं हो सकता है। मानवाधिकार कार्यकर्ता और कवियत्री इरोम चानू शर्मिला 28 साल की उम्र से इस AFSPA कानून को हटाने की मांग कर रही थीं। इस कानून को मणिपुर से हटाने के लिए 4 नवंबर 2000 को उन्होंने अनशन शुरू किया था । उनका ये अनशन 16 वर्ष तक यानी 9 अगस्त 2016 तक लगातार जारी रहा था। उस समय लोगों को लगा था कि वह बहुत युवा है और केवल जोश जोश में उन्होंने यह कदम उठाया है। लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरा तो उनके दृढ़ निश्चय होकर जीने की आजादी की लड़ाई के अनोखे प्रयास के बारे में लोगों को समझ में आने लगा। आइए जानते हैं, कि एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाली महिला आयरन लेडी कैसे बनी।

इरोम चानू शर्मिला का शुरुआती जीवन

इरोम चानू शर्मिला का जन्म 14 मार्च 1972 में मणिपुर में हुआ था । उनके पिता का नाम इरोम नंदा और माता का नाम इरोम ओंगबी सखी था। उनके पिता मणिपुर की राजधानी इंफाल के एक पशु चिकित्सालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। वे अपने माता-पिता की 9 संतानों में सबसे छोटी थी।

अनशन की शुरुआत

यह नवंबर 2000 की बात है। जब मणिपुर की राजधानी इंफाल से लगभग 10 किलोमीटर दूर बसे मालोम गांव में आर्मी के जवानों ने यहां के 10 स्थानीय लोगों की हत्या कर दी थी। इसी जगह से इरोम का दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला अनशन शुरू हुआ था। मणिपुर के उस घटनास्थल पर स्थानीय लोगों द्वारा हत्या किए गए उन 10 लोगों की याद में इनोसेंट्स मेमोरियल नामक स्मारक भी बनाया गया है। इरोम ने अफस्पा (AFSPA) के विरोध में 4 नवंबर 2000 से अपना अनशन शुरू किया था। उन्होंने सरकार से अफस्पा एक्ट को वापस लेने की मांग की थी।

इरोम इंफाल के जस्ट पीस फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन से जुड़कर और महात्मा गांधी के नक्शे कदम पर चल कर भूख हड़ताल करती रहीं। उनके अनशन के तीसरे दिन ही पुलिस ने इरोम को आत्महत्या करने के प्रयास के अपराध में गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस और सरकार उन पर लगी धारा के अनुसार उन्हें 1 साल से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकती थी, इसलिए जब उन्हें हर साल रिहा किया जाता वे दोबारा अनशन पर बैठ जाती। और उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया जाता था। जिंदा रखने के लिए उनकी नाक में नली (नोजल ट्यूब) लगाकर उन्हें तरल यानी लिक्विड पदार्थ दिया जाता था। इसके लिए इंफाल के पोरापट के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थाई जेल बना दिया गया था। जहां उन्हें किसी भी बाहरी व्यक्ति से मिलने की इजाजत नहीं थी। 2004 तक इरोम सार्वजनिक प्रतिरोध का प्रतीक बन चुकी थी।

क्या है अफस्पा (AFSPA)

इरोम को करीब से जानने के लिए अफस्पा को भी जानना जरूरी है। अफस्पा या आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम) देश के संविधान लागू होने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ती आंतरिक हिंसा और विदेशी हमलों से सुरक्षा के लिए असम और मणिपुर में 1958 में लागू किया गया था। और 1972 में इस कानून में कुछ संशोधन के बाद इसे असम, मणिपुर,त्रिपुरा मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया, इन 7 राज्यों के समूह को सेवेन सिस्टर्स के नाम से भी जाना जाता है।1990 में उग्रवादी गतिविधियों की वजह से यह कानून जम्मू कश्मीर में भी लागू कर दिया गया था।

केंद्र सरकार किसी भी राज्य या क्षेत्र को वहां के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर अशांत क्षेत्र घोषित कर केंद्रीय सुरक्षा बल को तैनात कर सकती है। इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को तलाशी और बिना वारंट के संदिग्ध को गिरफ्तार करने की इजाजत मिली हुई है। संदेहास्पद स्थिति में सुरक्षाकर्मियों के पास किसी भी व्यक्ति की तलाशी, गाड़ी रोकने और उसे जब्त करने का भी अधिकार होता है। इसके साथ ही गोली मारने का भी अधिकार होता है। सुरक्षाकर्मी बिना किसी कानूनी परिणाम के किसी को भी गोली मार सकते हैं।

अनशन का अंत

इरोम ने मणिपुर से अफस्पा एक्ट को हटाने की मांग को लेकर 16 वर्षों तक लंबा संघर्षपूर्ण अनशन किया। लेकिन इसके बाद भी सरकार की तरफ से कोई पॉजिटिव रिस्पांस नहीं मिला। तब शर्मिला ने अपनी भूख हड़ताल 9 अगस्त 2016 को शहद की एक बूंद मुंह द्वारा लेकर खत्म कर दी।

राजनीति में प्रवेश

इरोम ने अनशन खत्म करने के 3 दिनों बाद ही मणिपुर का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की, ताकि वे राजनीति में आकर अफस्पा एक्ट को मणिपुर से हटा सकें। इरोम ने मार्च 2017 के विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस चुनाव में नोटा (इनमें से कोई नहीं) को 143 वोट मिले जबकि इरोम को मात्र 90 वोट मिले। मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने चुनाव जीत लिया था।

इस घटना के बाद इरोम को आम लोगों से निराशा ही हाथ लगी, जिन लोगों के लिए उन्होंने अपने जीवन के बेहतरीन 16 वर्ष अनशन और कानून लड़ाई में गुजार दिए उन्हें आम जनता ने समर्थन नहीं किया। इस बात से वह बेहद निराश हो गई। ये दर्द उनकी आंखों में आज भी नजर आता है। और उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। इस घटना के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में आने का विचार त्याग दिया।

राजनीति में आने का प्रस्ताव और अचीवमेंट्स

आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण ने जस्ट पीस फाउंडेशन ट्रस्ट के जरिए इरोम को आप(AAP) के टिकट पर 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा था पर इरोम ने उसे अस्वीकार कर दिया था। इरोम को मानवाधिकारों के लिए ग्वांगझू पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा मायिलम्मा फाउंडेशन का पहला मायिलामा पुरस्कार इरोम चानू शर्मिला को दिया गया। एशियाई मानवाधिकार आयोग द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से इरोम को सम्मानित किया गया था। 2014 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एमएसएन ने उन्हें वुमेन आइकन ऑफ द इंडिया का खिताब दिया था। इसके अलावा, इरोम के नाम पर दो विश्व रिकॉर्ड दर्ज हैं। पहला सबसे लंबे समय तक भूख हड़ताल करने का और दूसरा सबसे ज्यादा बार जेल से रिहा होने का रिकॉर्ड दर्ज है।

इरोम की कविता

इरोम ने’ बर्थ’ शीर्षक से 1000 शब्दों की लंबी कविता लिखी थी। जो “आयरन इरोम टू जर्नी व्हेयर एबनॉर्मल इज नॉर्मल” नामक किताब में छपी है। कविता में उन्होंने अपने संघर्ष के बारे में बात की है ।

प्यार और शादी

अनशन तोड़ने के बाद उन्होंने दिल्ली की एक अदालत में बयान दिया कि अपने जीवन के 16 महत्वपूर्ण साल अनशन और लोगों की भलाई में गुजारने के बाद अब वे अपने जीवन में प्यार शादी और बच्चे चाहती हैं। अपने अनशन के दिनों में इरोम को पाबंदियों के साथ इंफाल के सरकारी अस्पताल के एक कमरे में रखा गया था। उन्हें किसी भी बाहरी व्यक्ति से मिलने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में उन्हीं दिनों इरोम पर लिखी हुई एक किताब पढ़कर ब्रिटिश मूल के नागरिक डेसमंड कोटिन्हो बहुत प्रभावित हुए और खतों और किताबों के जरिए वे लगातार इरोम के संपर्क में बने रहे। 2017 में उन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली और तमिलनाडु के कोडाईकनाल में बस गई।

मई 2019 में मदर्स डे के मौके पर वे जुडवां बेटियों की मां बनीं। उन्हें उनके कठिन संघर्ष, अधिक प्रतिरोध, राज्य प्रायोजित यातना के विरुद्ध सतत बने रहने के लिए “आयरन लेडी ऑफ मणिपुर” के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में इरोम चानू शर्मिला आज भी अफस्पा एक्ट के विरुद्ध कार्य कर रहीं हैं। और मानव अधिकारों के लिए भी उनकी लड़ाई जारी है।

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