काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र || Kali Pratyangira Stotra

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काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र की रचना महर्षि अंगिरा द्वारा की गयी थी तथा इसमें शत्रुओं का जड़-मूल से नाश करने की अद्भुत क्षमता है एवं इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं जाता ।

अनिष्टकारी ग्रहों की शान्ति तथा किसी भी प्रकार के शत्रुओं का नाश के लिए यह स्तोत्र अति लाभकारी है । इसे सिद्ध कर भोजपत्र में लिखकर दायीं भुजा अथवा कण्ठ में धारण कर लिया जाए तो स्वतः ही शत्रुओं का मर्दन होने लग जाता है ।

|| काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र ||

विनियोग :

ॐ अस्य श्री प्रत्यंगिरा मंत्रस्य, श्री अंगिरा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री प्रत्यंगिरा देवता, हूं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्रीं कीलकं ममाभीष्ट सिद्धये पाठे विनियोगः।

अंगन्यास :

श्री अंगिरा ऋषये नमः शिरसि ।

अनुष्टुप छंदसे नमः मुखे ।

श्री प्रत्यंगिरा देवतायै नमः हृदि ।

हूं बीजाय नमः गुह्ये ।

ह्रीं शक्तये नमः पादयो ।

क्रीं कीलकं नमः सर्वांगे ।

ममाभीष्ट सिद्धये पाठे विनियोगाय नमः अंजलौ ।

ध्यान :

भुजैश्चतुर्भिधृत तीक्ष्ण बाण, धनुर्वरा-भीश्च शवांघ्रि-युग्मा ।

रक्ताम्बरा रक्त तनस्त्रि-नेत्रा, प्रत्यंगिरेयं प्रणतं पुनातु ।।

स्तोत्र :

ॐ नमः सहस्र सूर्येक्षणाय श्रीकण्ठानादि रुपाय पुरुषाय पुरू हुताय ऐं महा सुखय व्यापिने महेश्वराय जगत सृष्टि कारिणे ईशानाय सर्व व्यापिने महा घोराति घोराय ॐ ॐ ॐ प्रभावं दर्शय दर्शय, ॐ ॐ ॐ हिल हिल, ॐ ॐ ॐ विद्द्युतज्जिव्हे बंध-बंध, मथ-मथ, प्रमथ-प्रमथ, विध्वंसय-विध्वंसय, ग्रस-ग्रस, पिव-पिव, नाशय-नाशय, त्रासय-त्रासय, विदारय-विदारय मम शत्रून खाहि -खाहि, मारय-मारय मां सपरिवारं रक्ष-रक्ष कर कुम्भस्तनि सर्वापद्रवेभ्यः ।

ॐ महा मेघौघ राशि सम्वर्तक विद्युदन्त कपर्दिनी दिव्य कनकाम्भो- रुहविकच माला धारिणी परमेश्वरि प्रिये । छिन्दि-छिन्दि, विद्रावय-विद्रावय देवि ! पिशाच नागासुर, गरुण, किन्नर, विद्याधर, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, लोकपालान् स्तम्भय-स्तम्भय, कीलय-कीलय, घातय-घातय विश्वमूर्ति महा तेजसे ।

ॐ हूं सः मम् शत्रूणां विद्यां स्तम्भय-स्तम्भय ।

ॐ हूं सः मम् शत्रूणां मुखं स्तम्भय-स्तम्भय ।

ॐ हूं सः मम् शत्रूणां हस्तौ स्तम्भय-स्तम्भय ।

ॐ हूं सः मम् शत्रूणां पादौ स्तम्भय-स्तम्भय ।

ॐ हूं सः मम् शत्रूणां गृहागत कुटुंब मुखानि स्तम्भय-स्तम्भय, स्थानम् कीलय-कीलय, ग्रामं कीलय-कीलय, मंडलम कीलय-कीलय, देशं कीलय-कीलय सर्वसिद्धि महाभागे धारकस्य सपरिवारस्य शांतिम कुरु कुरु फट् स्वाहा ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अं अं अं अं अं हूं हूं हूं हूं हूं खं खं खं खं खं फट् स्वाहा ।

जय प्रत्यंगिरे धारकस्य सपरिवारस्य मम रक्षाम् कुरु कुरु ॐ हूं सः जय जय स्वाहा ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ब्रह्माणि ! मम शिरो रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वैष्णवि ! मम कण्ठं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कौमारी ! मम वक्त्रं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नारसिंही ! ममोदरं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं इंद्राणी ! मम नाभिं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चामुण्डे ! मम गुह्यं रक्ष-रक्ष, हूं स्वाहा ।

ॐ नमो भगवति उच्छिष्ट चाण्डालिनि, त्रिशूल वज्रांकुशधरे मांस भक्षिणी, खट्वांग कपाल वज्रांसि-धारिणी दह-दह, धम-धम, सर्व दुष्टान् ग्रस-ग्रस, ॐ ऐं ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा ।

काली प्रत्यंगिरा स्तोत्र समाप्त ।

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