कालिका पुराण अध्याय २४ || Kalika Puran Adhyay 24 Chapter
कालिका पुराण अध्याय २४ में सती का विभूति वर्णन संहार कथन का वर्णन है।
अथ श्रीकालिका पुराण अध्याय २४
मार्कण्डेय महर्षि ने कहा– इसके उपरान्त हिमालय पर्वत के प्रस्थ पर शिप्र सरोवर के तट पर उपविष्ट हुए महादेवजी समीप में उस सरोवर का अवलोकन कर रहे थे। बारम्बार ब्रह्मा और हरि के द्वारा प्रेष्यमाण यह ध्यान करने के लिए मन को स्थिर करके दृढ़ आत्मा वाले हुए थे। आत्मा के द्वारा आत्मा को आत्मा में ही विशेष रूप देखने के लिए कामदेव को शमन करने वाले शिव ध्यान के द्वारा परम यत्न किया था । दुहिण प्रभृति ने ध्यान प्रविष्ट चित्त वाले उनको देखकर यतमानस होते हुए हर में प्रवेश की हुई माया नाम वाली का स्तवन किया था । माया मोहित हुए शिव बहुत ही अधिक सती के शोक से व्याकुल हैं और वह उसी के लिए विलाप किया करते हैं उसमें मोह के हेतु जगत्प्रभु की स्तुति करके शम्भु के शरीर से इस निराकुला को निकाल कर ध्यान में आशक्त निरंजन शम्भु के चित्त में कर देंगे। जब तक सती पुनः शरीर का ग्रहण करके शिव की भामिनी होवे तब तक यह विगत शोक वाले होकर निष्फल का ध्यान करें । ब्रह्मा आदि देवगण यही मन से चिन्तन करके महामाया योगनिद्रा देवी की स्तुति करने का सभारम्भ उन्होंने कर दिया था ।
कालिका पुराण अध्याय २४
मार्कण्डेय मुनि ने कहा– महामाया योगनिद्रा यह उस समय में सुरों के द्वारा संस्तुता है वह शीघ्र ही भगवान हर के हृदय से निकली थी । उसके विनिःसृत होने पर उसमें मधुसूदन ने प्रवेश किया था । विश्व के रूप को धारण करने वाले भगवान ने स्वयं उन शम्भु की शान्ति के लिए ही उनके अन्दर प्रवेश करके कल्प-कल्प में ऐसे हो गये थे और अच्युत प्रभु ने सृष्टि, स्थिति और अन्त को वैसा ही दिखला दिया था जिस रीति से उनकी सती जाया हुई और वह जो जिसकी पुत्री हुई थी तथा जैसे सती युक्त देह वाली हुई थी वह सभी दिखला दिया था । बाहर व्यक्त हुआ प्रपञ्च और बहुत रजोगुण और पर ज्योति को दिखलाकर फिर उस समय में उनको योग चित्त वाला कर दिया था । फिर भगवान शंकर ने भी अनेक बार उन समस्त प्रपञ्चों का भक्षण करके उस समय में उन्हें निःसार मानकर सार वस्तु में ही चित्त को निवेशित किया था । उस समय में ब्रह्मा आदि देवों की माया उनके द्वारा परितुष्टित होकर और कर्त्तव्य की प्रतिज्ञा करके वहाँ पर ही शीघ्र अन्तर्धान हो गई थी । बैकुण्ठ नाथ भगवान भी पद में भगवान शम्भु के चित्त को संयमित करके रवि मण्डल से राजा की ही भाँति शरीर से निकल गये थे ।
उस समय ब्रह्मा और नारायण प्रभृति समस्त देव कृतकृत्य अर्थात् सफल हो गये थे और प्रीति से युक्त होकर गिरि पर हर को छोड़कर अपने-अपने स्थान को चले गये थे । ध्यान में समासक्त महादेव जी को प्रणाम करके इन्द्र आदि सुरगण मौनधारी देव को विज्ञापन करके अपने-अपने स्थान को चले गये थे। उन देवों के चले जाने पर वृषभ के वाहन वाले शम्भु दिव्यमान से एक सहस्र वर्ष पर्यन्त परज्योति के ध्यान में संलग्न हो गये थे ।
ऋषियों ने कहा– भगवान् मधुरिपु ने कैसे शम्भु के हृदय में शीघ्र प्रवेश करके कल्प-कल्प में सृष्टि, स्थिति और संयम को दिखलाया था। जिस तरह से रजोगुण के द्वारा जगत् के प्रपंच के लिए जगतीतल में गये थे। फिर कैटभारी प्रभु ने उनकी निःसारता को किस प्रकार से दिखलाया था ? हे द्विजश्रेष्ठ ! उन्होंने फिर सारतर, गोपनीय, सनातन परज्योति को दिखलाया था ? वह सत्य बतलाइए । यही हम सब श्रवण करने की इच्छा करते हैं । यह अतीव अद्भुत है उसे हम आप मुनीन्द्र के मुख से ही सुनने के इच्छुक हैं । आप इसको विस्तारपूर्वक कहिए क्योंकि यह परम निःश्रेयम धर्म है ।
॥ इति श्रीकालिकापुराणे सतीविभूतिवर्णनं संहारकथनंनाम चतुर्विंशतितमोऽध्यायः ॥ २४ ॥