ज्ञान के साथ आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग मनुष्य को शाश्वत की ओर ले जाता है

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ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और निर्वाण तीनों ही पूर्णिमा के दिन हुए थे। इसलिए इनके जन्मदिन को त्रिविध पावन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बुद्ध शब्द का संबंध बोधि, यानी ज्ञान से है। जहां बुद्धि का संबंध मस्तिष्क से है वहीं बोध का संबंध हृदय से है। बुद्धि का प्रभाव बाह्य रूप से प्रकट होता है और बोध का संबंध आंतरिक प्रकाश से है। तथागत ने ‘अप्प दीपो भव:’ का संदेश संसार के कल्याण के लिए दिया, जिसका अर्थ है- अपना दीपक स्वयं बनो। इसी सत्य को महावीर स्वामी ‘अप्पा सो परमप्पा’ कहते हैं। नाथ पंथ के महान संत गोरखनाथ इसे अपने शब्दों में ‘अत्ता ही अत्तनो नाथो, के ही नाथो परोसिया’ कहकर प्रकट करते हैं।

सम्राट शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ, जिनका कुल शाक्य था और गोत्र गौतम, उन्हें ही बुद्ध कहा गया क्योंकि उन्होंने कठिन तप साधना, मस्तिष्क की सजगता और हृदय की शुद्धता के बल पर बोधि, अर्थात ज्ञान प्राप्त किया था। उन्हें तथागत भी कहा गया। तथागत शब्द तथाता से बना है, जिसका अर्थ है जो जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार करना, अपनी उलझनों के उत्तर स्वयं में खोजना, दोषारोपण से दूर रहकर आत्मावलोकन, आत्मवंचना और आत्मशोधन पर केंद्रित रहना। बुद्ध तथाता को प्राप्त हुए थे, इसलिए उन्हें तथागत कहा गया। जिस तरह बोधि और बोध में अंतर है उसी तरह बुद्ध और तथाता में भी अंतर है। बुद्ध का संबंध बाहरी ज्ञान या विज्ञान से है, वहीं तथाता का अर्थ आंतरिक समझ, शुद्धि और सामर्थ्य से है। इसका अर्थ हुआ कि गौतम बुद्ध ने बुद्धि के साथ-साथ अध्यात्म पर भी जोर दिया। क्योंकि जब तक हृदय शुद्ध नहीं होगा, तब तक शुद्ध बुद्धि का विकास भी नहीं होगा। यदि मात्र बुद्धि का विकास हुआ, तो वह विनाश के साधन या मार्गों का निर्माण भी कर सकती है।

संतों, ऋषियों, मनीषियों ने शरीर के सात चक्रों की खोज की। ये चक्र क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार चक्र हैं। इन सात चक्रों में अनाहत चक्र, जिसका स्थान हृदय पर है, वह बीचोबीच स्थित है। बुद्ध ने अनाहत चक्र को भी बहुत महत्व दिया है। अनाहत चक्र आत्मा की पीठ है। यह हृदय के दैवीय गुणों जैसे, परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमा भाव और सुनिश्चय का प्रतीक है। आपका अनाहत चक्र जितना शुद्ध होगा, उतनी ही जल्दी आपकी इच्छाएं पूरी होंगी। बुद्ध ने आत्म शुद्धि के बल पर जीवन मरण के रहस्य को समझ लिया था। मृत्यु से पूर्व और मृत्यु से परे जीवन के रहस्य का पटाक्षेप कर दिया था। जीव की निर्मिति और उसके विसर्जन के विज्ञान को समझ लिया था। बुद्ध ने विज्ञान और आध्यात्मिक, दोनों की ही शक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि की थी। आज संसार में विज्ञान और तकनीकी में उन्नत देश भी बुद्ध के प्रति नतमस्तक हैं तो तमाम आध्यात्मिक देश उन्हें अपने पथ-प्रदर्शक के रूप में पूजते हैं।

भारत के दो महानायकों, गांधी और आंबेडकर ने तथागत की अलग-अलग शिक्षाओं को अमल में लाकर भारत को अंग्रेजों और सामंतवादियों की दासता से मुक्ति दिलाई। जहां आंबेडकर ने बुद्ध के तर्क और ज्ञान का सहारा लिया, वहीं महात्मा गांधी ने महात्मा बुद्ध से अध्यात्म, सत्य और अहिंसा का वरदान प्राप्त किया।

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