नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी || Navadurga – Brahmacharini

2

नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं , जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्र में द्वितीय दिवस नवदुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का पूजन किया जाता है।

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

ब्रह्म+ चारिणी= ब्रह्मचारिणी । ब्रह्म अर्थात तप या तपस्या और चारिणी अर्थात आचरण करने वाली । ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली।

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini की कथा –

पुराणों में कथा आता है कि- हिमालय की पुत्री ने नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। कठिन तपस्या के कारण ही इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है । इन्होंने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहते हुए एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं। इसके बाद तीन हज़ार वर्ष तक केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर फिर कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार रहकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया । इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया था। देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या की सराहना करने लगे। अन्त में ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मचारिणी से कहा- हे देवी ! मैं तुम्हारे इस कठोर तपस्या से अति प्रसन्न हूँ। आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की । तुम्हारी सारे मनोरथ पूर्ण होगी और भगवान शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे । अब तुम तपस्या छोड़ घर लौट जाओ।

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini का स्वरूप –

ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत दिव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल है।

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini का पूजन विधि:

नवरात्र में व्रत रहकर माता का पूजन श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है। ब्रह्मचारिणी पूजन के लिए आचमन, गौरी-गणेश, नवग्रह, मातृका व कलश स्थापना आदि के बाद माताजी की मूर्ति का पूजन करें । सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और उसके ऊपर मां ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें । तत्पश्चात् षोडशोपचार विधि से पुजा करें ।

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini पूजन से लाभ

माँ दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। इनकी उपासना से साधक का स्वाधिष्ठान चक्र जागृत होता है।

माता ब्रह्मचारिणी का पूजन, ध्यान, स्तोत्र, कवच आदि इस प्रकार है-

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini Dhyan

ध्यान

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम् ।

जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम् ॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम ।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् ॥

परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन ।

पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini stotra

स्तोत्र

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम् ।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी ।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini Kavacham

कवच

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी ।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो ॥

पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी ॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो ।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी ।

नवदुर्गा – ब्रह्मचारिणी Brahmacharini Aarti

आरती

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता । जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो । ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।

ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा । जिसको जपे सकल संसारा ।

जय गायत्री वेद की माता । जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता ।

कमी कोई रहने न पाए । कोई भी दुख सहने न पाए ।

उसकी विरति रहे ठिकाने । जो तेरी महिमा को जाने ।

रुद्राक्ष की माला ले कर । जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर ।

आलस छोड़ करे गुणगाना । मां तुम उसको सुख पहुंचाना ।

ब्रह्माचारिणी तेरो नाम । पूर्ण करो सब मेरे काम ।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी । रखना लाज मेरी महतारी ।