नीलसरस्वती स्तोत्र || Neel Saraswati Stotra

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नील सरस्वती स्तोत्र के नित्य पाठ से साधक की बुद्धि तीक्ष्ण होने के साथ ही उसे विद्या, ज्ञान, कवित्वशक्ति भी प्राप्त होने लगती है। प्रतिदिन इसका पाठ सम्भव न हो तो अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को भी इसका पाठ करने से इन साधनों की प्राप्ति होने लगती है। संकटकाल में, मूढ़ता की दशा में, भय की स्थिति में भी इसका पाठ करने से निश्चित ही कल्याण होता है। अधिक क्या कहूँ? आप स्वयं इस स्तोत्र के माहात्म्य से भली भाँति परिचित हैं, तभी तो इसे बोलना चाहते हैं।

स्तोत्र के अन्त में देवी को प्रणाम करके योनिमुद्रा दिखानी चाहिये। योनिमुद्रा के अभ्यास से साधक की बुद्धि तीक्ष्ण होने लगती है, मस्तिष्क में तुरन्त निर्णय करने की शक्ति आने लगती है। यदि स्तोत्र कण्ठस्थ हो जाये तो योनिमुद्रा की स्थिति में नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ करना अधिक श्रेयस्कर है। यह मुद्रा अनेक प्रकार से लगायी जाती है, लेकिन मुख्यरूप से जो प्रचलित और सरल हैं, उसे आप जान लें।

इस मुद्रा के शाब्दिक उच्चारण से इसका अर्थ न लें। इसका अश्लीलता से कोई सरोकार नहीं है। हाथ और पैर के पंजों में पूरे शरीर का स्वीच बोर्ड माना जाता है। इसी आधार पर एक्यूप्रेशर-चिकित्सा की जाती है। इस मुद्रा से हमारे हाथ की उन बिन्दुओं पर दबाव पड़ता है, जो मस्तिष्क की ग्रन्थियों से जुड़े हैं, इसलिये इस स्तोत्र में योनिमुद्रा की बात कही गयी है। मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित किताब देवीस्तोत्ररत्नाकर पर आधारित है।

नील सरस्वती स्रोत्र इन हिंदी (Neel Saraswati Stotram in Hindi )

मनुष्य का जन्म सफल होने के लिए हुआ है. संसार के सारे काम सफलता के लिए किये जाते हैं . सफलता सही तरीके से काम करने ले मिलती है . सही तरीका आता है सही शिक्षा से सही ज्ञान से.  इसलिए हर विषय का सही अर्थ पता होना अनिवार्य ही नहीं अपरिहार्य है . तो मित्रों प्रस्तुत है नील सरस्वती स्रोत्र के श्लोक हिंदी अर्थ सहित |

||नील सरस्वती स्तोत्र ||

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि | भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् ||1 ||

हिंदी अर्थ – डरावने रूपवाली, घोर आवाज करनेवाली, सब  दुश्मनों को डराने वाली तथा भक्तों को वरदान देने वाली हे देवी ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते | जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ||2||

हिंदी अर्थ – देवता और असुरों के द्वारा पूजे जाने वाली , सिद्धों तथा गन्धर्वों की सेवा स्वीकार करने वाली और मुर्खता और पाप को मिटाने वाली हे देवी ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि | द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् ||3||

हिंदी अर्थ – जटाजूट से शोभित , चंचलता को अंदर की ओर करनेवाली, बुद्धि को तेज करने वाली हे देवी ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते | सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् ||4||

हिंदी अर्थ – सुंदर क्रोध करनेवाली,योग्य विग्रह वाली, प्रचण्ड रूपवाली हे देवी ! आपको  मेरा नमस्कार। हे सृष्टिस्वरुपिणि ! आपको मेरा नमस्कार, मुझ शरणागत की रक्षा करें।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला | मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् ||5||

हिंदी अर्थ – हे देवी  आप मूर्खों की मुर्खता को खत्म करती हैं और भक्तों के लिये दया करने वाली हैं। हे देवी  ! मेरी मूढ़ता को समाप्त करें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः | उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम् ||6||

हिंदी अर्थ – वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरूपिणी हे देवी  ! मैं आपके दर्शन की अभिलाषा करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होने वाली हे देवी  ! आपको मेरा नमस्कार है। उग्र आपदाओं से छुटकारा दिलाने वाली हे उग्रतारे ! आपको  निरंतर नमस्कार है, आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे | मूढ़त्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् ||7||

हिंदी अर्थ – हे देवि ! मुझे आप बुद्धि दें, यश दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढ़ता को हर लें | आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

इन्द्रादिविलसद्द्वन्द्ववन्दिते करुणामयि | तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम् ||8||

हिंदी अर्थ – इन्द्र  जैसे देवों आदि के द्वारा अर्चित , शोभायुक्त चरणयुगल वाली, दया से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखवाली और जगत को मोक्ष प्रदान करने वाली हे भगवती तारा ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः | षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ||9||

हिंदी अर्थ – जो व्यक्ति अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी को इस नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करता है, वह छः महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह और विचार करने वाली कोई बात नही है ।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम् | विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम् ||10||

हिंदी अर्थ – इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना वाला मोक्ष प्राप्त करता है, धन चाहनेवाला धन पाता है और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क – व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त करता है।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः | तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते ||11||

हिंदी अर्थ – जो व्यक्ति भक्तिभाव रखकर प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु समाप्त हो जाते हैं | और उसमें महानता का उदय होता  है।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये | य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः ||12||

हिंदी अर्थ – जो व्यक्ति परेशानी में, संघर्ष में, मूर्खता में, दान के समय व् डर की अवस्था में इस स्तोत्र को पाठ करता है, उसका कल्याण होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत् ||13||

अर्थ – इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिए।

|| नील सरस्वती स्तोत्र सम्पूर्ण ||

कैसे करें नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ  

नील सरस्वती स्रोतम (Neel Saraswati Stotra in Sanskrit) का पाठ करने से पहले सभी को नील सरस्वती स्रोतम को समझना बहुत आवश्यक और अनिवार्य है. नील सरस्वती  स्रोत्र का अधिकतम लाभ के लिए नील सरस्वती स्रोत्र का सही उच्चारण और सही अर्थ जरुर समझें. वर्ना साधक को नील सरवती स्रोत्र का लाभ नहीं होता है. यदि आप भी इस दिव्य स्तोत्र को अभी डाउनलोड करना चाहते हैं तो अभी इस लेख के नीचे दिए हुए डाउनलोड लिंक पर जाकर आप फ्री pdf download कर  Neel Saraswati Stotra का लाभ प्राप्त करें .

नील सरस्वती स्रोतम के लाभ (Neel Saraswati Stotram Benefits) 

  1. एकाग्रता बढाने में सहायक है नील सरस्वती स्रोतम .
  2. नील सरस्वती स्रोतम का पाठ करने से साधक को लाभ ही लाभ होता है. नील सरस्वती स्रोत्र का आस्था पूर्वक पाठ करने से माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है.
  3.  प्रतिदिन नील स्रोतम का पाठ करने से साधक की बुद्वि तेज होती है  | पाठक को विद्या, कवितत्व, लेखन और समझने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है |
  4. पाठक को नील सरस्वती स्रोतम का पाठ अष्टमी और नवमी और चतुर्दशी को करना चाहिए . इससे पाठक को साधन हासिल होने शुरू हो जाते हैं.
  5. हर व्यक्ति की जिंदगी में कोई ना कोई शत्रु अवश्य होता है। कोई शत्रु प्रत्यक्ष रूप से तो कोई अप्रत्यक्ष रूप से परेशान करता रहता है अगर आप भी अपने शत्रु के कारण परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो आपके लिए यह नील सरस्वती स्तोत्र बहुत ही मददगार साबित होगा. इसके पाठ से हम अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकते हैं.  यह स्तोत्र दुश्मनों का नाश करने में सहायक है ।
  6. विपरीत परिस्थिति में डर भी डर नहीं लगता है | विपत्ति के समय में मनोस्थिति ख़राब नहीं  होती है शत्रुओं को हराने और उनके नाश के लिए युक्तियाँ मन में आने लगती हैं जो सफल होती हैं
  7. जो  व्यक्ति हर दिन या अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी के दिन अथवा प्रतिदिन नील सरस्वती स्रोत्र का पाठ करता है उसके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है।
  8. पाठ के समापन में माँ के समक्ष योनिमुद्रा में नमन करना चाहिए | योनिमुद्रा के नमन से साधक की बुद्वि तेज होती है और उसमे निर्णय लेने की क्षमता का तेजी से विकास होता .है|

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