रामाज्ञा प्रश्न Ramagya Prashna
कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने परिचित गंगाराम ज्योतिषी के लिये इस रामाज्ञा–प्रश्न की रचना की थी । गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रह्लाद घाट पर रहते थे । वे प्रतिदिन सायंकाल श्रीगोस्वामीजी के साथ ही संध्या करने गङ्गा तट पर जाया करते थे । एक दिन गोस्वामीजी संध्या-समय उनके द्वार पर आये तो गंगारामजी ने कहा – ‘आप पधारें, मैं आज गङ्गा – किनारे नहीं जा सकूँगा ।‘
गोस्वामीजी ने पूछा – ‘आप बहुत उदास दीखते हैं, कारण क्या है ?’
ज्योतिषीजी ने बतलाया – ‘ राजघाट पर जो गढ़बार- वंशीय नरेश हैं, उनके राजकुमार आखेट के लिये गये थे, किन्तु लौटे नहीं । समाचार मिला है कि आखेट में जो लोग गये थे, उनमें से एक को बाघ ने मार दिया है । राजा ने मुझे आज बुलाया था । मुझसे पूछा गया कि उनका पुत्र सकुशल है या नहीं, किंन्तु यह बात राजाओं की ठहरी, कहा गया है कि उत्तर ठीक निकला तो भारी पुरस्कार मिलेगा अन्यथा प्राणदण्ड दिया जायगा । मैं एक दिन का समय माँगकर घर आ गया हूँ, किन्तु मेरा ज्योतिष – ज्ञान इतना नहीं कि निश्चयात्मक उत्तर दे सकूँ । पता नहीं कल क्या होगा ।‘
दुःखी ब्राह्मण पर गोस्वामीजी को दया आ गयी । उन्होंने कहा – ‘ आप चिन्ता न करें । श्रीरघुनाथजी सब मङ्गल करेंगे।‘
आश्वासन मिलने पर गंगारामजी गोस्वामीजी के साथ संध्या करने गये । संध्या करके लौटने पर गोस्वामीजी यह ग्रन्थ लिखने बैठ गये । उस समय उनके पास स्याही नहीं थी । कत्था घोलकर सरकण्डे की कलम से ६ घंटे में यह ग्रन्थ गोस्वामीजी ने लिखा और गंगारामजी को दे दिया ।
दूसरे दिन ज्योतिषी गंगारामजी राजा के समीप गये। ग्रन्थ से शकुन देखकर उन्होंने बता दिया – ‘राजकुमार सकुशल हैं।‘
राजकुमार सकुशल थे । उनके किसी साथी को बाघ ने मारा था, किन्तु राजकुमार के लौटने तक राजा ने गंगाराम को बन्दीगृह में बन्द रखा । जब राजकुमार घर लौट आये, तब राजा ने ज्योतिषी गंगाराम को कारागार से छोड़ा, क्षमा माँगी और बहुत अधिक सम्पत्ति दी । वह सब धन गंगारामजी ने गोस्वामीजी के चरणों में लाकर रख दिया । गोस्वामीजी को धन का क्या करना था, किन्तु गंगाराम का बहुत अधिक आग्रह देखकर उनके सन्तोष के लिये दस हजार रुपये उसमें से लेकर उनसे हनुमानजी के दस मन्दिर गोस्वामीजी ने बनवाये । उन मन्दिरों में दक्षिणाभिमुख हनुमानजी की मूर्तियाँ हैं ।
रामाज्ञा प्रश्न Ramagya prashna
यह ग्रन्थ सात सर्गों में समाप्त हुआ है । प्रत्येक सर्ग में सात-सात सप्तक हैं और प्रत्येक सप्तक में सात – सात दोहे हैं। इसमें श्रीरामचरितमानस की कथा वर्णित है; किन्तु क्रम भिन्न हैं । प्रथम सर्ग तथा चतुर्थ सर्ग में बालकाण्ड की कथा है । द्वितीय सर्ग में अयोध्याकाण्ड तथा कुछ अरण्यकाण्ड की भी । तृतीय सर्ग में अरण्यकाण्ड तथा किष्किन्धाकाण्ड की कथा है । पञ्चम सर्ग में सुन्दरकाण्ड तथा लंकाकाण्ड की, षष्ठ सर्ग में राज्याभिषेक की कथा तथा कुछ अन्य कथाएँ हैं । सप्तम सर्ग में स्फुट दोहे हैं और शकुन देखने की विधि है ।
इस प्रकार तुलसीदासकृत रामाज्ञा प्रश्न सम्पूर्ण हुआ।