राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शारीरिक विभाग Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) Physical Department

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आरएसएस के शारीरिक विभाग में क्या होता है इसके क्या कार्य है और इनसे आरएसएस को क्या अपेक्षा है ?

शारीरिक विभाग के कार्यक्रम एवं अपेक्षाएँ #शारीरिक विभाग

  • जिला खंडव नगर केन्द्र स्तर तक शारीरिक शिक्षण: प्रमुख की नियुक्ति ।
  • जिला की शारीरिक टोली गठित हो व सक्रिय हो ।
  • महानगर जिला केन्द्र व प्रत्येक घोष केन्द्र स्तर तक घोष प्रमुख की नियुक्ति हो।
  • जिला शारीरिक टोली की वर्ष में कम से कम 3 बार बैठक अपेक्षित। मास में एक बार अभ्यास वर्ग प्रत्येक बैठक के कम से कम 4 सत्र हो।
  • जिला शारीरिक शिक्षण प्रमुख का वर्ष में 1 बार सभी नगरों व खण्डों तक प्रवास करना अपेक्षित है।
  • जिले की बैठकों की कार्यवाही व पूर्ण वृत्त आदि जिले की कार्यवाही पंजिका (रजिस्टर) में लिखना।
  • सभी शारीरिक प्रमुखों के शाखा केन्द्र पर वार्षिकोत्सव अवश्य हो ।
  • शाखा के वार्षिकोत्सव में शाखा के ही घोष वादक हो।
  • वर्ष में 1 बार सभी खण्डों व जिला केन्द्रों का पथ संचलन होवे व इसमें घोष वादक भी स्थानीय रहे।
  • नगरीय क्षेत्र में साप्ताहिक शारीरिक वर्ग अपेक्षित व खण्ड में पाक्षिक/मासिक अभ्यास वर्ग अपेक्षित।
  • वर्ष में एक बार शारीरिक गुणवत्ता का कार्यक्रम प्रत्येक स्तर पर हो।
  • सभी जिलों की शारीरिक विभाग की कार्यवाही पंजिका बने। #शारीरिक विभाग

अन्य आग्रह के बिन्दु- #शारीरिक विभाग

  • आचार विभाग का पालन करवाना।
  • शाखा टोली का प्रशिक्षण वर्ग वर्ष में कम से कम 1 बार 24 घंटे का अपेक्षित।
  • जिला शारीरिक टोली सक्रिय व सक्षम हों इस हेतु विभाग व प्रान्त स्तर पर कोई न कोई उपक्रम हो।
  • शारीरिक विभाग का वार्षिक वृत्त शारीरिक विभाग के ही कार्यकर्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष शाखा पर प्रवास करके भेजना अपेक्षित है, अर्थात् आँखों देखी शाखा का वृत्त संकलित करना।

वर्तमान अनिवार्य कार्यक्रम- #शारीरिक विभाग

  • 1. प्रतिदिन 1 मिनट दण्ड प्रहार ।
  • 2. प्रतिदिन 5 मिनट संचलन अभ्यास।
  • 3. प्रतिदिन 5 मिनट सूर्य नमस्कार ।

जो मनुष्य स्वयं अपने कार्य में शिथिल हो तो उसके सहयोगी भी कार्य में उदासीन क्यों न होंगे? यदि व्यक्ति अपने कार्य में सचेष्ट रहेगा तो उसके सहयोगी भी उसके समाज ही आचरण करेंगे। #शारीरिक विभाग

समता क्या है ओर कैसे करे इसका अभ्यास जाने प्रत्येक बिन्दु #शारीरिक विभाग

  • दक्ष : –
    • एड़ियाँ मिली हुई तथा एक ही सीध में हों। पंजों के बीच 30 अंश का कोण । 2. घुटने तने हुए, शरीर सीधा एवम् दोनों पैरों पर समतोल हो।
    • कन्धे एक सीधे में, सामने की ओर तथा जमीन से समानान्तर थोड़े पीछे और नीर खींचे हुए जिससे सीना स्वाभाविक स्थिति में आगे की ओर रहे।
    • हाथ शरीर से सटे हुए कंधों से सीधे तने हुए। कलाइयों भी तनी हुईं।
    • मुट्ठियाँ स्वाभाविक बंधी हुई, उंगलियों के पिछले भाग जंघा से सटे हुए, अँगूठा सामने की ओर उंगुलियों से तथा तथा निकर की सिलाई से लगा हुआ एवं जमीन से लम्बत
    • गर्दन तनी हुई एवं सिर गर्दन पर समतोल हो।
    • दृष्टि सामने अपनी ऊँचाई पर हो। #शारीरिक विभाग
    • शरीर का भार दोनों पैरों पर समतोल तथा श्वसन उच्छवसन हमेशा के समार स्वाभाविक हो ।
  • आरम् : दक्ष की अवस्था में तना हुआ बाँया पैर बाँयी ओर 30 से.मी. के अंतर पर रखना चाहिये, जिससे शरीर का भार दोनों पैरों पर समान रहे। उसी समय दोनों हाथ पीछे से जाकर दाहिनी हथेली बाँयी हथेली और अंगूठे के बीच तथा दाहिना अंगूठा बाँये अँगूठे के ऊपर रखें। दोनों हाथ तने हुए । उंगलियाँ जमीन की ओर खिंची हुई। #शारीरिक विभाग
  • स्वस्थ : इस स्थिति में पैरों को न हिलाते हुए अनुशासन का ध्यान रखकर शरीर की हलचल करने की अनुमति है। सावधान की सूचना मिलते ही आरम् की स्थिति में आना चाहिये। इस आज्ञा का प्रयोग यथावश्यकता शाखा में अवश्य हो जिससे आरम् की स्थिति का पालन ठीक से हो सके और आरम् में स्वस्थ के समान हलचल करने की प्रवृत्ति दूर हो। सके। स्वस्थ में भी बोलना नहीं। #शारीरिक विभाग
  • एकशः सम्पत् : सभी स्वयंसेवक दक्ष करेंगे और शिक्षक के सामने तीन कदम अंतर पर एक पंक्ति में खड़े होंगे। पहला स्वयंसेवक शिक्षक के सम्मुख खड़ा होगा और उस स्वयंसेवक के बाँयी ओर शेष स्वयंसेवक खड़े होंगे। पहला स्वयंसेवक आरम् करेगा। बाद में शेष स्वयंसेवक सम्यक् लेंगे और अपनी दाहिनी ओर के स्वयंसेवक के आरम् करने के पश्चात् क्रमशः आरम् करते जायेंगे। एक स्वयंसेवक 60 से.मी. स्थान घेरता है। एक पंक्ति में खड़े रहते समय ऊँचाई के अनुसार खड़े रहना। #शारीरिक विभाग
  • ध्यातव्य – एकशः सम्पत् की रचना से दक्षिण / वाम वृत्त कर प्रचल की आज्ञा देना उचित नहीं क्योंकि इस रचना में दो स्वयंसेवकों के मध्य 60 सेमी अंतर होता है, जिसमें 75 सेमी का कदम नहीं रखा जा सकता। अतः या तो द्वितति कराकर दक्षिण/ वामवृत कराना चाहिये अथवा प्रचल से पूर्व अन्तर आज्ञा देकर पर्याप्त अन्तर करा लेना चाहिये। #शारीरिक विभाग
  • पुरस/ प्रति/ दक्षिण / वाम सर : आगे या पीछे जाते समय बाँये पैर से प्रारम्भ करना चाहिये। किसी भी कृति में हाथ नहीं हिलेंगे। पुरस/ प्रति/ दक्षिण / वाम सर की आज्ञा एक समय में चार कदम से अधिक अंतर के लिये नहीं देनी चाहिये। #शारीरिक विभाग

1) एक (द्वि-त्रि- चतुष) पद पुरस् (प्रति) सर सब स्वयंसेवक एक (दो, तीन या चार) कदम आगे (पीछे) जायेंगे। प्रत्येक कदम 75 सेमी. होगा। #शारीरिक विभाग

2 ) एक (द्वि-त्रि- चतुष्) पद दक्षिण (वाम) सर दाहिना (बाँया) पैर 30 से.मी. दाहिनी (बाँयी ओर रखकर उससे बाँया (दाहिना) पैर मिलाएं। (इस प्रकार प्रत्येक कदम पर काम करना।) #शारीरिक विभाग

1) संख्या- दाहिनी ओर से 1,2,3,4,5,6 आदि संख्या क्रमशः अंतिम स्वयंसेवक तक ऊँची आवाज में दृष्टि सामने रखते हुए कहेंगे। #शारीरिक विभाग

2 ) गण विभाग एक-दो, एक-दो के क्रम में संख्या कहेंगे। #शारीरिक विभाग

3) अंश भाग – एक-दो-तीन, एक-दो-तीन के क्रम में संख्या कहेंगे।

4) गण भाग- 1-2-3-4, 1-2-3-4 के क्रम में संख्या कहेंगे।

  • एक तति से
    • द्वितति- विषम क्रमांक दो कदम आगे जायेंगे। सम क्रमांक स्थित रहेंगे।
    • त्रि-तति- क्रमांक एक-दो कदम आगे और क्रमांक तीन दो कदम पीछे जायेंगे। क्रमांक दो स्थित रहेंगे।
    • चतुष् तति- विषम क्रमांक के स्वयंसेवक दो कदम आगे जाने के पश्चात् क्रमांक एक दो कदम और आगे तथा क्रमांक चार दो कदम पीछे जायेंगे। क्रमांक दो और तीन स्थित रहेंगे।
  • एक तति
    • द्वितति से विषम क्रमांक दो कदम पीछे जायेंगे।
    • त्रि तति से- क्रमांक एक, दो कदम पीछे, क्रमांक तीन, दो कदम आगे आकर, मूल पंक्ति में मिलेंगे।
    • चतुष तति से- क्रमांक एक दो कदम पीछे और क्रमांक चार दो कदम आगे आयेंगे | पश्चात् पंक्ति में मिलेंगी। आगे की विषम क्रमांक वाली पंक्ति दो कदम पीछे जाकर मूल . #शारीरिक विभाग
  • वर्तन (स्थिर स्थिति से ) :वर्तन की क्रिया तीन अंकों में पूर्ण होगी। तीन अंक प्रचल की गति से दिये जायेंगे। एक में विभागशः 1 का कार्य करना, दूसरे में उसी स्थिति में स्थिर रहना और तीसरे अंक में पैर मिलाना। विभागशः एक और दो के बीच रुकने के अवकाश को यति कहते हैं। अंकताल 1, 1, 2 प्रचलित करना।
    • दक्षिण (वाम) वृत्त 1. शरीर और दोनों घुटने तने हुए रखकर दाहिनी (बाँई) एड़ी और बाँये (दाहिने) पंजे पर दाहिनी (बाँई) और मुडने के पश्चात् दाहिना (बाँया) पैर जमीन पर रखा हुआ और बाँई (दाहिनी) एडी ऊँची उठी हुई, शरीर दाहिने (बाँए) पैर पर तुला हो। 2. उपर्युक्त स्थिति में स्थिर रुकना। 3. बाँया (दाहिना) पैर झटके से दाहिने (बाँए) पैर से मिलाना। #शारीरिक विभाग
    • दक्षिणार्ध (वामार्ध) वृत्त- दक्षिण (वाम) वृत्त के समान आधा दक्षिण (वाम) वृत्त करना। 3 ) अर्धवृत- दक्षिण वृत के अनुसार दाहिनी ओर से 180 अंश में मुड़ना।

मितकाल

  • दक्ष स्थिति से बाँया पैर सामने जमीन से 15 से.मी. ऊँचाई तक उठाकर (तलुआ ज़मीन से साधारणतः समानान्तर रहेगा। घुटना सामने उठा हुआ तथा हाथ बाजू में तने हुए और स्थिर रहेंगे। शरीर भी तना हुआ रहेगा। तुरन्त ही दाहिने पैर से मिलाना और दाहिना पैर उठाना। 2. दाहिना पैर पटककर तुरन्त ही बाँया पैर उठाना।
  • मितकाल – यह आज्ञा मिलते ही ऊपर लिखा काम करते रहना। यदि पैर ठीक न पड़ते हों तो कोई भी एक कदम लगातार दो बार उसी गति से जमीन पर पटकना चाहिये। मितकाल में हाथ नहीं हिलेंगे। #शारीरिक विभाग
  • मितकाल से स्तभ और वर्तन #शारीरिक विभाग
    • स्तभ् – दाहिना पैर जमीन पर आते समय आदेश मिलेगा उसके पश्चात् और एक बार बाँया पैर पटकना ।
    • वाम (दक्षिण) वृत्त- बाँया (दाहिना) पैर जमीन पर आते समय आदेश मिलेगा। उसके पश्चात् दाहिना (बाँया) पैर पटकना बाँई (दाहिनी) दिशा में घुमाकर बाँया (दाहिना) पैर पटकना और उस दिशा में मितकाल प्रारम्भ करना। 3 ) वामार्ध (दक्षिणार्ध) वृत्त – ऊपर लिखी पद्धति से वामार्ध (दक्षिणार्ध) वृत्त करना। #शारीरिक विभाग
  • अर्धवृत्त – बाँया पैर जमीन पर आते समय आदेश मिलेगा। उसके पश्चात् दाहिना पैर पटकना। पश्चात् बाँया पैर दाहिने पैर के बाजू में कुछ तिरछा पटकना। (दाहिने पैर के अंगूठे के पास बाँये पैर के तलुवे का गहरा भाग आयेगा)। पश्चात् दाहिने बाजू में मुड़कर दाहिना पैर बाँये के पास पटकना । दोनों एड़ियाँ पास रहनी चाहिये तथा दाहिने पैर का पंजा अर्धवृत्त की दिशा में होगा। पश्चात् बाँया पैर पटकना । फिर दाहिना पैर बाँये पैर के पास पटककर उस दिशा में मितकाल प्रारम्भ करना। #शारीरिक विभाग
  • प्रचल से स्तभ् और वर्तन
    • स्तभ् – यह आदेश दाहिना पैर जमीन पर आते समय मिलेगा। पश्चात् बाँया पैर आगे रखकर उससे दाहिना पैर मिलाना।
    • वाम (दक्षिण) वृत्त- बाँए (दाहिने) पैर पर आदेश मिलेगा। दाहिना (बाँया) पैर आगे रखकर (इस समय हाथ शरीर से सटे हुए रहेंगे) सामने की गति को रोकना। बाँया (दाहिना पैर बाँयी (दाहिनी ओर 75 से.मी. लम्बा डालकर तथा दाहिना (बाँया) हाथ सामने एवं बाँया (दाहिना हाथ पीछे लेकर चलना प्रारम्भ करना।
    • अर्धवृत्त – बाँए पैर पर आदेश मिलेगा। पश्ताप दाहिना पैर आगे डालकर गति रोकना। पश्चात् बाँया, दाहिना तथा बाँया पैर मितकाल में अर्धवृत्त के समा पटकना। (यह काम होने तक हाथ नहीं हिलेंगे) पश्चात् दाहिना पैर 75 से.मी लम्बा आगे बढ़ाना। बाँया हाथ सामने और दाहिना हाथ पीछे लेकर चलनाप्रारम्भ करना।
    • मितकाल – बाँए पैर पर आदेश मिलेगा। पश्चात् दाहिना पैर आगे बढ़ाकर बाँए पैर से मितकाल आरम्भ करना।
    • दक्ष स्थिति से क्षिप्रचल- बाँए पैर से दौड़ना प्रारम्भ करना। दोनों हाथ मुटिटयाँ बंद रखकर सीने के सामने रहेंगे। 14. क्षिप्रचल से स्तभ्, #शारीरिक विभाग
  • वर्तन और मितकाल-
    • स्तभ् – दाहिने पर आदेश मिलेगा और तीन कदम दौड़ कर चौथी बार दाहिना पैर बाँए पैर से मिलाकर रुकना ।
    • वाम (दक्षिण) वृत्त प्रचल में वर्तन के अनुसार करना। (3 ) अर्धवृत्त बाए पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी। तीन कदम और दौड़कर प्रचल में अर्धवृत्त के अनुसार करना (गति क्षिप्रचल की ही रहेगी। ) । 4) मितकाल – बाँए पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी। दाहिना पैर आगे बढ़ाकर बाँए पैर से क्षिप्रचल की गति से मितकाल प्रारम्भ करना।
    • मितकाल से क्षिप्रचल बाँए पैर पर आज्ञा पूर्ण होगी। दाहिना पैर वहीं पटक – कर बाँए पैर से दौड़ना प्रारम्भ करना। #शारीरिक विभाग
  • युज् –
    • पुरो युज् – आगे का स्वयंसेवक (तति) स्थिर रहकर बाकी स्वयंसेवक (तति) आगे मिलेंगे। युज् में हाथ नहीं हिलेंगे।
    • वाम युज् – बाँयी ओर का स्वयंसेवक (प्रतति) स्थिर रहकर बाकी स्वयंसेवक (प्रतति) बाँयी ओर मिलेंगे।
    • दक्षिण युज् – दाहिनी ओर का स्वयंसेवक (प्रतति) स्थिर रहकर बाकी स्वयंसेवक (प्रतति) दाहिनी ओर मिलेंगे। विस्तर- स्वयंसेवकों के (तति के प्रतति के) बीच बताया हुआ अंतर लेना। (विशेष – जब पंक्ति में स्वयंसेवक एक दूसरे के बाजू में खड़े रहते हैं, तब उस पंक्ति को ‘तति’ तथा जब एक के पीछे दूसरा, तीसरा इस क्रम से खड़े रहते हैं, तब उसे प्रतति कहा जाता है।
  • विश्रम् –दक्षिणवृत् कर मन में चार अंक गिनकर स्थान छोड़ना।
  • विकिर- दक्षिणावृत्त कर प्रणाम करना और मन में चार अंक गिनकर स्थान छोड़ना ।
  • कदमों का अंतर- प्रचल 75 से.मी., क्षिप्रचल 100 से.मी., मंदचल-75 से.मी. दीर्घ पद 85 से.मी., ह्रस्वपद-50 सेमी (संचलन में अंतर ठीक करने के लिये इनका उपयोग होता है।) पार्श्वपद- 30 सेमी ।
  • गति-प्रचल में एक मिनट में 120 कदम चलना चाहिये अर्थात् 120x 75 सेमी = 90 मीटर) क्षिप्रचल में एक मिनट में 180 कदम दौड़ना चाहिये (अर्थात् 180 x 100 = 180 मीटर) मंदचल में एक मिनट में 60 कदम चलना चाहिये (अर्थात् 60 x 75 सेमी = 45 मीटर)। भुजदण्ड से स्कन्ध 1) बाँया हाथ दंड के साथ झटके से सामने, जमीन से समानान्तर बाँए हाथ के सामने दाहिने हाथ से नीचे से दण्ड पकड़ना। 2) बाँया हाथ सीधा जंघा के पास (दक्ष के समान) लेकर दंड दोनों हाथों से तिरछा पकड़ना ।
  • बाँया हाथ कोहनी में मोड़कर दाहिने हाथ से दंड बाँए कंधे पर रखना, बाँयी कोहनी कमर के ऊपर सटी हुई, दोनों प्रकोष्ठ जमीन से समानान्तर तथा एक- दूसरे के लम्बवत्
  • दाहिना हाथ छोड़कर दक्ष की स्थिति में लाना (निकटतम मार्ग से)। स्कन्ध से भुजदंड- ऊपर के काम का व्यत्यास करना । प्रचल में बाँए पैर पर आदेश मिलेगा, आगे आने वाले हरेक बाँए पैर पर विभागशः काम करना।
  • भुजदंड से उपविश- बाँया हाथ दण्ड सहित जमीन के समानान्तर सामने उठाना, दण्ड का सामने वाला पतला सिरा अपने सूर्य चक्र दे ॐ समाने ताकि पिछला सिरा पिछले स्वयंसेवक को न लगे। दाहिने हाथ से दण्ड को बाँई कोहनी के पास से पकड़ना।
    • हाथों की स्थिति यथावत रखते हुए बैठना।
    • दण्ड जमीन पर शरीर के पास रखना।
    • दोनों हाथ घुटनों पर रखना।

विभागशः 1 , विभागशः 2, विभागशः 3, विभागशः 4 #शारीरिक विभाग

उपविश से उत्तिष्ठ – उपरोक्त काम का व्यत्यास करना । (यदि कुछ ऐसे स्वयंसेवक भी हैं कि जिनके पास दण्ड नहीं हैं तो ऐसे में उन्हें विभागशः 2 में बैठना तथा उत्तिष्ठ में खड़े होने का काम विभागशः 3 में करना चाहिये।) भुजदण्ड में दक्ष दक्ष के समान, दण्ड बाँए हाथ में लपेटा हुआ, मोटा सिरा ऊपर, पतला नींचे, नीये एक बालिश्त छूटा हुआ, दण्ड जमीन के लम्बवत् ।

आरम्- आरम् के समान पैर खोलना। बाँए हाथ के अंगूठे को दाहिने हाथ के अंगूठे तथा हथेली के बीच पकड़ना, दाहिने हाथ की सभी अंगुलियाँ सीधी रहेंगी।

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