इसलिए ही मनुष्य को बार-बार जन्म लेकर मरना पड़ता है
भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे।। गीता 8/19||
अर्थ : हे अर्जुन! वही यह भूतसमुदाय परवश हुआ बारंबार जन्म लेकर ब्रह्मा की रात्रि के आरंभ काल में लीन होता है और दिन के आरम्भ काल में उत्पन्न होता है।
व्याख्या : प्रत्येक जीव की अपनी-अपनी जीवन यात्रा है और वह जीवनभर अपने शुभ-अशुभ कर्मों, संस्कारों, वासनाओं व इच्छाओं से उलझा रहता है। इसके अलावा प्रकृति के तीनों गुणों से भी जीव बंधा रहता है ये दोनों बंधन उम्र भर बने रहते हैं, इन्हीं को जीव का बंधन कहते हैं। फिर यह जीव अपने कर्मों के आधार पर बार-बार जन्म-मरण लेता रहता है।
जीव का मरण ही ब्रह्मा की रात समझनी चाहिए और जीव का जन्म ही ब्रह्मा का दिन समझना चाहिए। इस प्रकार ब्रह्मा का दिन और रात, उत्पत्ति-प्रलय व जन्म-मरण से जुड़ा होता है।
इसलिए भगवान कह रहे हैं कि हे अर्जुन! यह भूतसमुदाय परवश होकर ब्रह्मा की रात्रि होते ही काल में लीन हो जाता है और सुबह होते ही फिर से उत्पन्न हो जाता है और यह प्रक्रिया जब तक मुक्ति न हो जाए, तब तक चलती ही रहती है।