ऋषियों के नाम तथा परिचय | Rishiyon ke naam and Parichay

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ऋषि कौन होते हैं who are rishi

ऋषि वे महान आत्मा होते हैं, जो हमेशा मानव जाति (Human) के कल्याण तथा सुरक्षा हेतु यज्ञ अनुष्ठान संबंधी कार्य करते रहते हैं।

भारतीय धर्म और संस्कृति में ऋषियों को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है, कियोकि वह अकेले या फिर परिवार की मदद से हमेशा मानव कल्याण के लिए ही कार्य करते रहते है।

कुछ ऋषि अकेले रहते हुए तप करते है, जिन्हे एकाकी ऋषि कहा जाता है, तो कुछ ऋषि परिवार में रहते हुए ईश्वर की आराधना तथा लोगों में ईश्वर की भक्ति भाव का प्रसाद बांटते रहते है।

ऋषि यज्ञ जप तप के द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते है और संकट आने पर अपनी तप और जप की शक्ति से मनुष्यों की रक्षा भी करते है।

कभी – कभी विवश होकर ऋषि मुनियों को अत्याचार तथा अधर्म के प्रति शस्त्र भी उठाने पढ़ते है। ऋषियों में इतनी शक्ति (Power) होती है, कि वे कभी कभी भगवान को ही श्राप दे देते है,

यहाँ तक की महर्षि भृगु ने तो भगवान विष्णु को लात भी मार दी थी और भगवान ऋषि मुनियों के अपमान श्राप या तिरस्कार को सम्मानपूर्वक ग्रहण करते है,

ऐसे ही ऋषियों के नाम तथा परिचय का वर्णन यहाँ किया जा रहा है, जिन्होंने ऐसे कार्य किये है की समस्त संसार उनके नाम से परिचित है।

ऋषियों के नाम rishiyon ke naam

ऋषियों के नाम – कुछ महान ऋषियों के नाम तथा उनका परिचय का विवरण निम्न प्रकार है:-

महर्षि बाल्मीकि Maharishi Balmiki 

महर्षि बाल्मीकि रामायण कालीन एक महान ऋषि थे, जिन्होंने भगवान ब्रह्मा की आज्ञा से श्रीराम का जीवन चरित्र पर आधारित रामायण नामक ग्रंथ लिखा था।

वे एक महान ऋषि होने के साथ ही त्रिकालदर्शी भी थे। ऋषि बाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था। इनका जन्म अश्विन की पूर्णिमा को हुआ था।

किंतु जन्म के पश्चात ही इनको एक भीलनी ने चुरा लिया था, इसलिए इनका पालन-पोषण जंगल में ही भीलनी के परिवार में हुआ।

वे बड़े होने पर अपने परिवार के साथ जंगल में रहने लगे और एक भीलनी के साथ इनका विवाह कर दिया गया अपने परिवार के पालन पोषण के लिए इन्होंने लूट, मार, चोरी, डकैती का रास्ता अपनाया

और डाकू बन गए तथा इनका नाम रत्नाकर से बदलकर डाकू माल्या हो गया, किंतु एक ऋषि के द्वारा उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और अपनी गलती का एहसास हुआ ऋषि के बताए अनुसार

उन्होंने राम नाम का जप शुरू किया, किंतु वह ठीक से राम का नाम भी नहीं ले पा रहे थे। इसलिए मरा मरा जपने लगे जिससे राम का उच्चारण होने लगा।

इस प्रकार से उनके सारे पाप धुल गए उन्होंने ईश्वर की घोर आराधना की और वह सतयुग के महान त्रिकालदर्शी भविष्यवक्ता ऋषि बाल्मीकि कहलाए।

महर्षि भृगु Maharishi Bhrigu 

महा ऋषि भृर्गु सप्तर्षियों में गिने जाने वाले एक महान ऋषि थे। वे त्रिदेवों (Tridev) की परीक्षा लिए जाने के कारण विख्यात हो गए।

महर्षि भृगु का जन्म सुषानगर वर्तमान में इराक (Irak) में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रणेता ब्रह्मा तथा माता जी का नाम वीरणी था।

महर्षि भृगु ही भृगु सहिंता और मनुस्मृति के संरक्षक भी माने जाते हैं। महर्षि भृगु के बड़े भाई का नाम ऋषि अंगिरा था और ऋषि अंगिरा के पुत्र थे “महर्षि बृहस्पति” जो देवताओं के राजगुरु थे।

महर्षि भृगु की दो पत्नियाँ थी, जिनमें से एक पत्नी हिरणकश्यप की पुत्री दिव्या थी, जिससे शुक्राचार्य और विश्वकर्मा जैसे पुत्र उत्पन्न हुए,

जबकि दूसरी पत्नी पौलमी थी, जो दानवो के अधिपति ऋषि पुलोम की पुत्री थी। इनसे चवन और ऋषीच नामक दो पुत्र उत्पन्न हो हुए।

महर्षि विश्वामित्र Maharishi Vishvamitra 

ऋषि विश्वामित्र महाराज गांधी के पुत्र थे, जो एक प्रजापत साल पराक्रमी और साहसी राजा थे ऋषि विश्वामित्र का वास्तविक नाम राजा कोशिक था

जिन्होंने अपनी प्रजा का पालन पोषण अपने पुत्रों के समान किया था। महर्षि विश्वामित्र जन्म से क्षत्रिय थे, किंतु अपने तपस्या के बल पर वह ब्राह्मणत्व को प्राप्त कर पाए

इनकी माता पुरुकुत्स की कन्या थी. महर्षि विश्वामित्र का जन्म इनकी बहन सत्यवती के पति महान ऋषि ऋषीच के वरदान के स्वरूप हुआ था।

महर्षि विश्वामित्र का लंबे समय तक महर्षि वशिष्ठ के साथ संघर्ष होता रहा अंत में उन्होंने महर्षि विश्वामित्र के साथ मित्रता कर ली महर्षि विश्वामित्र का महत्वपूर्ण योगदान राजा दशरथ के पुत्रों श्रीराम और लक्ष्मण की जीवन में भी रहा।

महर्षि विश्वामित्र की आज्ञा से ही श्रीराम और लक्ष्मण ने ताड़का का वध किया तथा अहिल्या का उद्धार किया। महर्षि विश्वामित्र महान पराक्रमी राजा होने के साथ ही एक परम तपस्वी भी थे

जिन्होंने अपनी तपस्या के बल पर भगवान ब्रह्मा को ब्राह्मणत्व प्रदान करने के लिए विवश कर दिया, और सभी ऋषि मुनियों देवताओं ने उन्हें ब्राह्मण सवेकरा।

महर्षि कपिल Maharishi kapil 

कपिल ऋषि भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों में से एक हैं, जो सांख्य दर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं। कपिल मुनि ने ही कपिल स्मृति (Kapil Smriti) नामक धर्मशास्त्र की भी रचना की थी।

कपिल मुनि के पिता जी का नाम ऋषि कर्दम था तथा इनकी माता जी का नाम देवहूति था। कपिल मुनि ने अपनी माता देवहूति को सांख्य दर्शन (Sankhy darshan) का उपदेश दिया था।

कपिल मुनि के पास अपार सिद्धियाँ थी, इसलिए कपिल मुनि को आदिसिद्ध और आदिविद्वान की संज्ञा भी दी जाती है।

कपिल मुनि के द्वारा ही महाराज सगर के 60000 पुत्र भस्म हो गए थे, जिनका उद्धार भागीरथ के द्वारा लाई गई माँ गंगा के पावन जल से हुआ था।

महर्षि दधीचि Maharishi Dadhichi 

महर्षि दधीचि भी पौराणिक कालीन एक महान ऋषि थे, जिन्होंने अपने शरीर का भी त्याग मानव जाति के कल्याण के लिए कर दिया था।

महर्षि दधीचि के पिता का नाम अथर्वा तथा माता जी का नाम चित्ति देवी था। महर्षि दधीचि का बचपन का नाम दध्यच था। महर्षि दधीचि बड़े ही परोपकारी (Benevolence) स्वभाव के थे

और हमेशा जंगली जानवरों की सेवा तथा दूसरे लोगों की मदद किया करते थे। महर्षि दधीचि ने शरीर का त्याग बिना संकोच कीजिए ही बत्रासूर जैसे राक्षस का अंत करने के लिए कर दिया था।

महर्षि दधीचि के शरीर से प्राप्त हड्डियों का एक दिव्य और तेजस्वी वज्र बनाया गया था, जिससे बत्रासुर का संघार देवराज इंद्र ने किया।

महर्षि दुर्वासा Maharishi Durvasa 

महर्षि दुर्वासा एक ऐसे ऋषि थे, जो रामायण काल और महाभारत काल दोनों में ही थे। महर्षि दुर्वासा ब्रह्माजी के मानस पुत्र माने जाते हैं।

महर्षि दुर्वासा की पत्नी का नाम सती अनुसुइया था. जो पति परायण और एक धार्मिक महिला होने के साथ परम तपस्वी थी। महर्षि दुर्वासा अति क्रोधित स्वभाव के थे

और बहुत ही जल्दी क्रोधित होकर श्राप भी दे देते थे। महर्षि दुर्वासा ने शकुंतला महादेव के गणों आदि कई लोगों को भी श्राप दिया था।

भारतवर्ष में महर्षि दुर्वासा के कई आश्रम थे, जिनमें से एक आश्रम मथुरा से 2 किलोमीटर दूर एक गांव में यमुना नदी के किनारे भी स्थित है।

महर्षि अगस्त्य Maharishi Agastya 

महर्षि अगस्त्य वैदिक कालीन एक महान ऋषि थे। इनके पिता का नाम महर्षि पुलत्स्य था, जबकि उनके छोटे भाई का नाम महर्षि विश्वा था, जो रावण के पिताजी थे।

महर्षि अगस्त्य का विवाह विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा के साथ हुआ था जो अत्यंत सुंदर होने के साथ ही रूपवती और गुणवान भी थी।

महर्षि अगस्त्य कई वेद मंत्रों के ज्ञाता तथा निर्माता भी थे। इसके साथ ही कई प्रकार की देवी सिद्धियाँ प्राप्त तथा अतापी वतापी राक्षसों का वध इन्हीं के द्वारा किया गया था।

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