राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) परिचय | RSS Pratigya in Hindi

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) वर्तमान में समस्त सामाजिक एवं राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु बन गया है ।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) भारत का एक , हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक संगठन हैं,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है।  संघ विश्व की एक मात्र सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है।

ऐसा समाज और मीडिया का मत है । समाज में चार प्रकार के लोग हैं- एक जो संघ (आरएसएस) कार्य से प्रत्यक्ष जुड़े हैं , दूसरे जो संघ के प्रति सदिच्छा रखते हैं , तीसरे जो संघ (rss) कार्य से अनभिज्ञ हैं , चौथे वे जो हर हाल में संघ का विरोध करने को कटिबद्ध हैं । यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोधियों संख्या नगण्य है , फिर भी उनका विरोध संघ के लिए उत्प्रेरक के रूप में होता है ।

संघ किसी को अपना विरोधी नहीं मानता है । संघ ” सर्वेषां अविरोधेन ” के सिद्धान्त का अनुशरण करता है । संघ 96 वर्ष के काल खण्ड में समाज की अपेक्षाओं तथा विश्वास की कसौटी पर खरा उतरा है । इसी कारण आज अधिकाधिक लोग संघ को जानना चाहते हैं और संघ के साथ निकट का सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं ।

वास्तव में संघ को पूर्णत : समझने हेतु संघ को निकट से देखना पड़ेगा । दूर रहकर जो संघ को देखते हैं , उनके मन में कई प्रकार की भ्रान्तियाँ उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है । ऐसा इसलिए होता है कि संघ जैसा कोई अन्य संगठन विश्व भर में नहीं है-

गगनम् गगनाकारम् , सागरः सागरोपमः ।

राम रावणयोर्युद्धम् , राम रावण योरिवः ॥

जैसे – आकाश का आकार आकाश जैसा है , सागर , सागर जैसा होता है । राम रावण युद्ध कैसा है तो राम रावण युद्ध जैसा है । इसी प्रकार संघ कैसा है , तो संघ जैसा ही है ।

प्रस्तुत आर्टिकल में संघ को प्रारम्भिक रूप से समझने हेतु कुछ प्रारम्भिक जानकारियाँ , कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर संघ का दृष्टिकोण आदि विषय दिए गये हैं ।  जिन्हें पढ़कर संघ के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में सुविधा होगी । तो आइये जानते है –राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( RSS) एक परिचय

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस )एक परिचय

संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर में पं.पू. डॉ . केशवराव बलिराम हेडगेवार जी के द्वारा हुई । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में तीन शब्द हैं । इनका अर्थ है- अपने राष्ट्र भारत की नि : स्वार्थ भावना से सेवा करने हेतु स्वयं प्रेरणा से कार्य करने वाले लोग , जिन्हें स्वयंसेवक कहते हैं , उनका संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है ।

इस राष्ट्र में रहने वाले सभी लोग जो भारत भूमि को अपनी मातृभूमि , पितृभूमि , कर्मभूमि , मोक्षभूमि , एवं मर्मभूमि मानते हैं , यहाँ के पूर्वजों , महापुरुषों , श्रद्धा केन्द्रों एवं मान बिन्दुओं के प्रति आस्था रखते हैं तथा जिनके हृदयों में समान शत्रु मित्र की भावना है , वे सभी राष्ट्रीय हैं ।

संघ संस्थापक(डॉ . हेडगेवार ) का परिचयः (Introduction of Sangh Founder (Dr. Hedgewar):

1905 में अपने विद्यालय के विद्यार्थियों को साथ ले योजना बना कर विद्यालय निरीक्षक के आगमन पर प्रत्येक कक्षा में उनका स्वागत वन्देमातरम् के उद्घोष से किया जबकि उस समय ब्रिटिश शासन के द्वारा वन्देमातरम् बोलने पर प्रतिबन्ध था । परिणामस्वरूप विद्यालय से निष्कासित हुए । डॉक्टरी की पढ़ाई हेतु विशेष उद्देश्य से कोलकाता गये , क्योंकि उस समय कोलकाता में क्रान्तिकारियों का प्रमुख केन्द्र था ।

कोलकाता में अध्ययन के समय ही क्रान्तिकारियों के प्रमुख संगठन अनुशीलन समिति से सम्पर्क आया और उस संगठन की गतिविधियों में सक्रियता से भाग लिया । अन्ततः उस संगठन के अन्तरंग सदस्य भी बने । अध्ययन समाप्त कर 1916 में नागपुर वापस आए , परन्तु डॉक्टर बनकर किसी रोगी की नाड़ी का परीक्षण नहीं किया । उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे स्वाधीनता आन्दोलन में भी भाग लिया ।

देश को स्वतन्त्र कराने हेतु चल रहे प्रयासों के दो मार्ग थे । एक मार्ग था क्रान्तिकारियों का जो क्रांति के मार्ग से देश को स्वतन्त्र करना चाहते थे तथा दूसरा मार्ग था कांग्रेस के द्वारा अहिंसक आन्दोलन का ।

डॉ . जी ने दोनों मार्गों का गहराई से अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला मुट्ठीभर क्रान्तिकारियों के आधार पर स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं की जा सकती है क्योंकि क्रान्तिकारी लोगों के द्वारा कोई घटना किए जाने के पश्चात वे पकड़े जाते थे , सजा होती थी , आगे की गतिविधि वहीं रुक जाती ।

उनकी गुप्त योजना की सूचना अंग्रेजों को उनके बीच से ही किसी मुखबिर से मिल जाती थी , सब के सब पकड़े जाते थे । कांग्रेस की नीतियों से भी डॉ . जी सन्तुष्ट नहीं थे । उनका गांधी जी से वैचारिक मतभेद था । गाँधी जी का दृढ़ मत था कि मुस्लिमों के सहयोग के बिना स्वतन्त्रता की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है ।

अत : वे मुस्लिमों का तुष्टिकरण करते थे । तृष्टिकरण के कारण गाँधी जी ने खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया । खिलाफत आन्दोलन का स्वाधीनता संग्राम से कोई सम्बन्ध नहीं था ।

कांग्रेस ने 1929 के पहले कभी पूर्ण स्वराज्य की माँग भी नहीं की । डॉ . जी के मन में विचार चल रहा था कि यदि देश स्वतन्त्र हो भी गया , तो जिन कारणों से यह परतन्त्र हुआ , वे कारण बने रहे तो , स्वतन्त्रता को बचाकर रख पाना सम्भव नहीं होगा ।

देश परतन्त्र क्यों हुआ ? इस प्रश्न पर गहन चिन्तन व विश्लेषण करने के पश्चात् उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि , देश में धन – सम्पदा , वीरता , प्राकृतिक संसाधन , ज्ञान सम्पदा आदि किसी की कमी नहीं थी ।

फिर भी देश परतन्त्र हुआ , क्योंकि इस देश का बहुसंख्यक हिन्दू समाज जो अपने को भारत माता का पुत्र मानता है , वह घोर आत्मविस्मृति की अवस्था में पहुँच कर ” मैं और मेरा परिवार ” तक सीमित हो गया । हिन्दू समाज छोटे – छोटे स्वार्थों में बँटा है । हिन्दू समाज का हर व्यक्ति अपने को अकेला मानता है , तथा वह अपने पूर्व के वैभव के प्रति भी स्वाभिमान शून्य हो गया है ।

अतः उन्होंने हिन्दू समाज को दोष मुक्त , जागृत , संगठित व शक्ति सम्पन्न करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की ।

हिन्दू समाज का संगठन और व्यक्ति निर्माण इन दो लक्ष्यों को लेकर संघ की स्थापना हुई । इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु तंत्र के रूप में दैनिक शाखा शुरू की गई ।अर्थात् शाखा व्यक्ति निर्माण की पद्धति का नाम है । शाखा यानी कार्यक्रम , कार्यक्रम यानी संस्कार । शाखा ऊर्जा केन्द्र ( पावर हाऊस ) के समान है , जिस प्रकार पावर हाऊस में केवल विद्युत उत्पादन होता है और उस विद्युत से समस्त उपकरण चलाये जाते हैं ।

उसी प्रकार शाखा पर निर्मित विद्युत रूपी व्यक्ति का उपयोग समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है । वह राष्ट्रभक्ति , प्रामाणिकता के साथ कार्य करता है । एक घंटे की शाखा में शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रम होते हैं ।

शाखा के अतिरिक्त विशेष प्रशिक्षण वर्ग प्रतिवर्ष लगाये जाते हैं जिन्हें प्राथमिक शिक्षा वर्ग तथा संघ शिक्षा वर्ग कहते हैं । शाखा पर खेल – खेल में शिशु , बाल , युवकों को देश प्रेम एवं संस्कृति प्रेम सिखाया जाता है ।

शाखा पर राष्ट्र के महापुरुषों के जीवन परिचय तथा अपने श्रद्धा केन्द्रों के प्रति श्रद्धा निर्माण , समाज के प्रति कर्तव्य भाव का जागरण , व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय चरित्र निर्माण , राष्ट्रानुकूल जीवन आदि विषयों का संस्कार तथा प्रबोधन होता है ।

प्रतिदिन के संस्कार व अभ्यास से व्यक्ति के अन्दर शनैः शनै परिवर्तन आता जाता है । शाखा पर आने के लिए किसी के प्रति कोई प्रतिबन्ध नहीं है , और न ही संघ की कोई सदस्यता होती है । शाखा पर जाकर ध्वज प्रणाम करना यही संघ की सदस्यता है ।

संघ में व्यक्ति नहीं तत्व को प्रमुख माना गया है । इसीलिए संघ ने गुरु के स्थान पर अपने आदि – अनादि काल से चले आ रहे राष्ट्रध्वज भगवाध्वज को ही गुरु माना है । भगवाध्वज की छत्र छाया में शाखा पर प्रतिदिन स्वयंसेवक संस्कार ग्रहण करते हैं । संघ की मान्यता है कि व्यक्ति का जीवन स्खलनशील है । काल और परिस्थिति के अनुसार श्रेष्ठ व्यक्ति के अन्दर भी विकृति आ सकती है । अत : संघ ने व्यक्ति को गुरु मानने की परम्परा को नहीं अपनाया ।

श्री गुरु दक्षिणा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( RSS) कार्य के लिए आवश्यक आर्थिक संसाधनों की पूर्ति संघ के स्वयंसेवकों द्वारा ही हो , इस संकल्प के कारण गुरु दक्षिणा की अभिनव पद्धति विकसित की गई । गुरु दक्षिणा कोई दान या चन्दा नहीं , बल्कि राष्ट्रकार्य के लिए गुरु के समक्ष बिना किसी आशा – अपेक्षा के वर्ष में एक बार का समर्पण है । समर्पण में बड़े या छोटे का अंहकार अथवा हीनता का बोध न हो इस कारण प्रत्येक स्वयंसेवक की दक्षिणा अज्ञात होती है ।

समर्पण पुष्प के द्वारा भी हो सकता है । समर्पण पद्धति के कारण संघ के काम पर किसी धनपति का दबाव व प्रभाव नहीं रहता है । ‘ तन से , मन से , धन से , हम करें राष्ट्र आराधन ‘ यही संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक को याद रहता है , किसी प्रकार सरकारी सहायता , चन्दा या दान के आधार पर संघ कार्य नहीं चलता है ।

संघ कार्य करते – करते स्वयंसेवक वैचारिक दृष्टि से परिपक्व हो जाता है तो उसकी प्रतिज्ञा कराई जाती है । प्रतिज्ञा विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत संकल्प है जिसे स्वयंसेवक जीवन पर्यन्त निभाने का प्रयास करता है । इसी प्रतिज्ञा के कारण यद्यपि जीवन में केवल एक बार ही कराई जाती है , स्वयंसेवक जीवन भर स्वयंसेवक बना रहता है । सक्रियता कम या अधिक हो सकती है ।

संघ की प्रतिज्ञा- “ सर्व शक्तिमान श्री परमेश्वर तथा अपने पूर्वजों का स्मरण कर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अपने पवित्र हिन्दू धर्म , हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू समाज का संरक्षण कर हिन्दू राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने के लिए मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ । संघ का कार्य मैं प्रामाणिकता से निःस्वार्थ बुद्धि से तथा तन , मन , धन पूर्वक करूँगा और इस व्रत का मैं आजन्म पालन करूँगा । भारत माता की ” जय ” संघ की प्रार्थना शाखा पर अन्तिम कार्यक्रम प्रार्थना होती है ।

ही संघ का मंत्र है । 3 श्लोकों व 13 पंक्तियों की प्रार्थना में अपनी मातृभूमि की वन्दना , संघ कार्य करने हेतु ईश्वर से पांच गुणों ( अजेय शक्ति , सुशील , ज्ञान , वीरव्रत तथा अक्षय ध्येय निष्ठा ) की माँग तथा संघ का लक्ष्य तथा उसको प्राप्त करने के मार्ग का वर्णन है ।

प्रार्थना की अन्तिम पंक्ति “ भारत माता की जय “ यह पूरी प्रार्थना का निष्कर्ष तथा अन्तिम लक्ष्य है । पूरे देश में प्रतिदिन लाखों स्वयंसेवकों द्वारा यह प्रार्थना दोहराई जाती है जिसके कारण यह मंत्र सिद्ध मंत्र बन गया है । इस प्रार्थना के कारण व्यक्ति अहं भाव से वयं की ओर अग्रसर होता है ।

प्रार्थना संघ के सभी कार्यक्रमों में प्रार्थना आवश्यक होती है । यह भारत माता की वन्दना है , जो भगवा ध्वज के सम्मुख दक्ष में खड़े होकर , दाहिने हाथ को सीने पर प्रणाम की स्थिति में स्वकर की जाती है । जो इस प्रकार है-

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।

महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ॥ १ ॥

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्रांगभूता

इमे सादरन् त्वान नमामो वयम्

त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्

शुभामाशिषन देहि तत्पूर्तये ।

अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्

सुशीलं जगद्येन नम्रम् भवेत्

श्रुतं चैव यत् कण्टकाकीर्ण मार्गम्

स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत ॥ २ ॥

समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम्

परम् साधनं नाम वीरव्रतम्

तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा

हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।

विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्

विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।

परम् वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ॥३ ॥ |

भारत माता की जय ॥

संघ आरएसएस की रीति – नीति

संघ में कोई भी ऐसा प्रतीक चिन्ह नहीं है जिससे यह समाज में अलग दिखे और संघ समाज से अलग है , यह धारणा बने । संघ हिन्दू समाज में संगठन नहीं अपितु हिन्दू समाज का संगठन है । अतः संघ यानी हिन्दू समाज , हिन्दू समाज यानी संघ यह सूत्र है । संघ का वेष गहरा भूरा फुल पैंट , सफेद कमीज , काली टोपी , बेल्ट तथा काला जूता केवल संघ के विशेष कार्यक्रमों में एकरूपता व अनुशासन की दृष्टि से पहना जाता है ।

संघ का वैशिष्ट्य है- सामूहिकता , सामूहिक जिम्मेदारी तथा सामूहिक निर्णय संगठन का स्वरूप है- संघच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांषि जानताम । संघ कोई सैनिक , धार्मिक राजनैतिक संगठन नहीं है बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक संगठन है जो पारिवारिक कल्पना पर आधारित है । संघ में नेता और स्वयंसेवक ऐसा कोई भेद नहीं है । सभी स्वयंसेवकों को व्यवस्था की दृष्टि से योग्यता , क्षमता के अनुरूप दायित्व दिए जाते हैं ।

अतः कार्यकर्ताओं में दायित्व बोध रहता है , पद का अहंकार नहीं ।

आरएसएस शाखा समाज परिवर्तन का माध्यम

शाखा व्यक्ति निर्माण तथा हिन्दू समाज के संगठन का केन्द्र तो है ही साथ ही यह समाज परिवर्तन का माध्यम भी है । समाज की सज्जन शक्ति , समर्थ बने तथा समाज के सामर्थ्यवान सज्जन बनें और समाज परिवर्तन में सज्जन शक्ति का भी उपयोग हो यह प्रयास रहता है । उस दृष्टि से संघ के अन्दर छः कार्य विभागों ( शारीरिक , बौद्धिक , सेवा , सम्पर्क , प्रचार तथा व्यवस्था ) की रचना की गई है ।

जिसके माध्यम से व्यक्ति निर्माण और हिन्दू समाज के संगठन का काम चलता है । इसके साथ – साथ छह प्रकार की गतिविधियाँ ( सामाजिक समरसता , परिवार प्रबोधन , धर्म जागरण , गो सेवा , ग्राम विकास तथा पर्यावरण एवं जल संरक्षण ) भी शामिल हैं जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से समाज परिवर्तन है । इनके द्वारा सज्जन शक्ति को समाज के अच्छे कार्यों से जोड़कर उनका उपयोग समाज परिवर्तन के लिए किया जाता है ।

संघ के अतिरिक्त समाज में अनेक श्रेष्ठ कार्य व्यक्तिगत स्तर पर चलते हैं तथा अनेक संस्थाएं भी श्रेष्ठ कार्यों में संलग्न हैं । सभी के प्रति संघ का सहयोगात्मक सम्बन्ध रहता है तथा उन्हें प्रोत्साहित करने उनके साथ समन्वय व सहयोग की दृष्टि भी संघ की रहती है । स्वयंसेवकों में किसी प्रकार का संस्थागत अहंकार न हो , संघ की यह प्रेरणा रहती है संघ के बाहर के लोग भी समाज व देश के लिए अच्छे काम करें ।

आरएसएस शाखा गतिविधियों के मुख्य कार्य

धर्म जागरणः

हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्द्धन , हिन्दू जीवन दर्शन के प्रति आस्था जागरण एवं उनके अनुरूप जीवन पद्धति विकिसित एवं पुष्ट हो । एतदर्थ हिन्दू जगाओ , हिन्दू बचाओ , हिन्दू बढ़ाओं , हिन्दू सम्भालो इन बिन्दुओं पर कार्य करता है ।

सामाजिक समरसताः

जन्म के आधार पर हिन्दू समाज के किसी भी व्यक्ति के साथ अस्पृश्यता का व्यवहार न हो , सामाजिक विषमता समाप्त हो तथा सभी बन्धु एक ही भारत माता के पुत्र हैं , अतः परस्पर भाई हैं यह भाव विकसित हो जल के स्रोत , मन्दिर तथा श्मशान समाज के सभी के लिए समान हो ।

हिन्दवः सोदरा सर्वे , न हिन्दू पतितो भवेत । 

मम् दीक्षा हिन्दू रक्षा , मम् मंत्र समानता ॥ 

परिवार प्रबोधन :

परिवार में सुसंस्कार , साहचर्य एवं समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भाव का जागरण हो । परिवार संस्कारित होगा तो समाज संस्कारित होगा , समाज संस्कारित होगा तो राष्ट्र संस्कारित होगा । ग्राम विकास : भारत गाँवों का देश है अतः प्रत्येक गाँव शिक्षा , स्वास्थ्य , स्वावलम्बन , संस्कार , समरसता एवं बुनियादी सुविधाओं से युक्त एवं आत्मनिर्भर हो ।

गौ – सेवा :

गो वंश के संरक्षण एवं संवर्द्धन से भारत रोगमुक्त , ऋण मुक्त , अन्नयुक्त ऊर्जा युक्त बन सकता है , इस मान्यता के आधार पर गो पालक , गो भक्त एवं गो रक्षक तैयार करना ।

पर्यावरण एवं जल संरक्षण :

हिन्दू दृष्टि के आधार पर पर्यावरण एवं जल संरक्षण सुनिश्चित करना ।

समाजैक्यमभीष्टं नो वैषम्येन न साध्यते । 

समाज सामरस्याद् वै नान्यः पन्था हि विद्यते ॥ 

अर्थः समाज में हमें जो अभीष्ट ऐक्य अर्थात एकता का भाव है , वह भेदभाव के रहते नहीं हो सकता है , क्योंकि समाज में परस्पर समरसता के बिना यह असम्भव है । समरसता के अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग नहीं है ।

आरएसएस शाखा संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh ) और सेवा कार्य

‘ नर सेवा- नारायण सेवा’ संघ का बोध वाक्य है । वर्तमान में संघ तथा • इसके विविध संगठनों के द्वारा देशभर में शिक्षा , स्वास्थ्य , सामाजिक , स्वावलंबन अदि के क्षेत्रों में कुल 1,38,667 नियमित सेवा कार्य चल रहे हैं । इसके अतिरिक्त जब कभी देश के किसी भी भाग में कोई मानवीय या दैवीय आपदा या संकट आता है तो संघ के स्वयंसेवक वहाँ सबसे पहले पहुँचते हैं , ऐसा विश्वास संघ ने समाज में अर्जित किया है ।

स्वयंसेवकों द्वारा बिना भेदभाव के किए गये सेवा कार्यों को देखकर सर्वोदयी नेता श्री प्रभाकर ने कहा था ” आर . एस . एस . को Ready for Selfless Service कहना ज्यादा उचित है । सऊदी अरब से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘ अल रियाद ‘ ने चरखी दादरी की विमान दुर्घटना के समय स्वयंसेवकों द्वारा किए गए राहत कार्यों को देखकर लिखा था- ” अभी तक आर . एस . एस . मुस्लिम विरोधी संस्था है , ऐसी हमारी जो धारण बनी हुई थी वह एकदम गलत थी , अब ऐसा हमको ध्यान में आया । ”

संघ का विरोध करने वालों को भी स्वयंसेवकों द्वारा किए गये सेवा कार्यों को देखकर संघ की प्रशंसा करने को बाध्य होना पड़ा । 1962 में भारत – चीन युद्ध के समय स्वयंसेवकों द्वारा सीमा पर सेना का सहयोग करने तथा आपात स्थिति में दिल्ली की यातायात व्यवस्था को योग्य रीति से संचालित करने के कारण 26 जनवरी 1963 को गणतन्त्र दिवस की परेड में भाग लेने हेतु तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने संघ के स्वयंसेवकों को आमन्त्रित किया था ।

1971 में भी बंग्लादेश मुक्ति संग्राम में स्वयंसेवकों के योगदान को भारत सरकार ने सराहा ।

संघ और विविध संगठन

समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में राष्ट्रवादी विचारों तथा भारतीय चिन्तन की स्थापना हो , इस निमित्त संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी रुचि प्रकृति के अनुसार विभिन्न संगठन शुरू किए जिन्हें संघ विचार परिवार भी कहते हैं । वर्तमान में अ . भा . स्तर पर लगभग 40-42 विविध संगठन समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत हैं ।

इन सभी विविध संगठनों का लक्ष्य राष्ट्र जीवन को जाग्रत , , कर्तव्यनिष्ठ , अनुशासित और स्वावलम्बी बनाना है अर्थात् ये सभी संगठन अपने – अपने क्षेत्र में व्यवस्था परिवर्तन का कार्य कर रहे हैं ।

FAQ

Q- आर एस एस के संस्थापक कौन थे?

A- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( RSS)संस्थापक डॉ .केशवराव बलिराम हेडगेवार(11 अप्रैल 1889 – 21 जून 1940 ) जी थे

Q- आरएसएस का मुख्यालय कहाँ है?

A-आरएसएस का मुख्यालय नागपुर में स्थित है।

Q- वर्तमान में आरएसएस के संघ प्रमुख कौन है ?

A- वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस के प्रमुख श्री मोहन भागवत जी है।

Q- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कब और कहाँ हुई थी ?

A- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर में पं.पू. डॉ . केशवराव बलिराम हेडगेवार जी के द्वारा हुई ।

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