Saint Dnyaneshwar Autobiography | संत ज्ञानेश्वर का जीवन परिचय Dnyaneshwar ki Jivani

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हमारे भारतवर्ष में अनेकों महान से महान पंडित और ज्ञाता संतो ने जन्म लिया है और उन्होंने समाज सुधार के लिए अनेकों प्रकार के कार्य किए हैं।

ऐसे महान लोगों में हम ज्यादातर संत गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी को ही जानते हैं। परंतु हम आज के इस लेख के माध्यम से आपको बताने जा रहे है एक ऐसे महान संत के विषय में जिनका जीवन काफी कष्टों के मध्य गुजरा है।

अब आप समझ गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं महा ज्ञाता संत ज्ञानेश्वर जी के बारे में। महा पंडित संत ज्ञानेश्वर जी महावीर गौतम बुध और महावीर स्वामी जी के जितने प्रसिद्ध तो नहीं है परंतु ज्ञान के विषय में इन लोगों के बराबर माने जाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध संपूर्ण विश्व में विख्यात है तो इसी के विपरीत संत ज्ञानेश्वर केवल भारत में सुप्रसिद्ध है।

आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं संत ज्ञानेश्वर जी के विषय में संपूर्ण जानकारी (Sant Dnyaneshwar Information in Hindi)। यदि आप संत ज्ञानेश्वर के विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो कृपया हमारे द्वारा लिखा गया यह लेख अंत तक अवश्य पढ़ें, क्योंकि आपको इस लेख में संत ज्ञानेश्वर जी कौन है? संत ज्ञानेश्वर के पारिवारिक संबंध और संत ज्ञानेश्वर के द्वारा लिखी गई रचना इत्यादि के बारे में विस्तार पूर्वक से चर्चा करने वाले हैं।

संत ज्ञानेश्वर की संक्षिप्त जानकारी

नाम संत ज्ञानेश्वर
जन्म 1275 ईस्वी
पिता का नाम विट्ठल पंत
माता का नाम रुकमणी बाई
लेखन भाषा मराठी
प्रमुख रचनाएं ज्ञानेश्वरी और अमृतानुभव
गुरु निवृत्तिनाथ
मृत्यु 1296 ईस्वी

संत ज्ञानेश्वर कौन है?

संत ज्ञानेश्वर जी की गणना संपूर्ण भारतवर्ष के महान संतों और एक बहुत ही प्रसिद्ध मराठी कवियों में की जाती है। महा संत ज्ञानेश्वर जी ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य में पैदल ही भ्रमण करके लोगों को सत्य की ज्ञान की प्राप्त से अवगत कराया। संत ज्ञानेश्वर स्वामी ने लोगों को एक दूसरे के प्रति समभाव का उपदेश भी दिया। संत ज्ञानेश्वर स्वामी 13वीं सदी के सबसे महान संत होने के साथ-साथ एक महाराष्ट्र संस्कृति के आदि प्रवर्तक के रूप में भी जाने जाते हैं।

संत ज्ञानेश्वर का प्रारंभिक जीवन?

इतना ही नहीं जब संत ज्ञानेश्वर स्वामी बहुत ही छोटी उम्र के थे, तभी उन्हें जाति बहिष्कृत कर दिया गया था। संत ज्ञानेश्वर स्वामी के पास अपना जीवन यापन करने के लिए किसी भी प्रकार का घर नहीं था, घर तो छोड़िए संत ज्ञानेश्वर स्वामी के पास रहने के लिए एक झोपड़ी भी नहीं थी।

इस गांव से बहिष्कृत करने के बाद संत ज्ञानेश्वर जी अनाथ का जीवन व्यतीत करने लगे, इतना सब होने के पश्चात भी संत ज्ञानेश्वर जी किसी प्रकार से भयभीत नहीं हुए थे।

संत ज्ञानेश्वर का जन्म कब और कहां हुआ था?

संत ज्ञानेश्वर जी भारत के सबसे प्रसिद्ध मराठी कवि और महान संत के रूप में जाने जाते हैं। आईए अब जानते हैं कि संत ज्ञानेश्वर जी का जन्म कब हुआ था? संत ज्ञानेश्वर जी का जन्म वर्ष 1275 ईस्वी को हुआ था। इतना ही नहीं संत ज्ञानेश्वर का जन्म भाद्रपद के कृष्ण अष्टमी के दिन हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि संत ज्ञानेश्वर जी का जन्म अहमदनगर जिले में पैरों के पास स्थित एक गांव का नाम आपेगाव में हुआ था।

संत ज्ञानेश्वर का पारिवारिक संबंध

संत ज्ञानेश्वर के पूर्वज पैरों के पास गोदावरी तट पर निवास करते थे। बाद में इन्होंने अपने स्थान परिवर्तन करके आलंदी नामक गांव में रहने लगे। लोगों के द्वारा ऐसा कहा जाता है कि संत ज्ञानेश्वर के पितामह त्र्यंबक पंथ गोरखनाथ के शिष्य थे। यदि हम बात करें संत ज्ञानेश्वर जी के पिताजी के विषय में तो ज्ञानेश्वर जी के पिता का नाम विट्ठल पंत था। विट्ठल पंत बहुत ही विद्वान व्यक्ति होने के साथ-साथ एक बहुत ही बड़े भक्त थे।

विट्ठल पंत ने अपने पिता त्रयंबकम पंत के आज्ञा अनुसार देशाटन करके शास्त्रों का अध्ययन कर लिया और यदि हम बात करें इनकी माता की तो इनकी माता का नाम रुकमणी बाई था। रुकमणी बाई और विट्ठल पंत के विवाह के अनेकों वर्षों बाद भी इन्हें किसी भी पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई इस बात से नाराज होकर के विट्ठल पंत जी ने सन्यास ग्रहण कर लिया। सन्यास ग्रहण करने के लिए इन्होंने रात्रि के समय घर से निकल कर के काशी में स्वामी रामानंद जी के पास पहुंच गए और उनसे कहा कि “मैं संसार में अकेला हूं, मुझे सन्यास प्राप्त करने की शिक्षा दीक्षा प्रदान कराएं”।

बाद में उनके गुरु रामानंद जी के आज्ञा अनुसार विट्ठल पंत ने फिर से गृहस्थ जीवन धारण करने का सलाह दिया गया, इसके पश्चात उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन फिर से धारण कर लिया। ऐसा करने पर इन्हें समाज के द्वारा बहिष्कृत कर दिया गया।

विट्ठलनाथ और रुकमणी बाई को पुत्र की प्राप्ति

संत ज्ञानेश्वर जी के पिता और माता को किसी भी प्रकार के पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी, ऐसे में कुछ वर्षों बाद स्वामी रामानंद दक्षिण भारत की यात्रा करते हुए आलंदी गांव पहुंचे थे। जब उधर से गुजरते हुए रामानंद स्वामी को विट्ठल पंत की पत्नी ने देखा, तब उन्होंने रामानंद जी को प्रणाम किया और रामानंद जी ने प्रसन्न होकर उन्हें पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया।

इस आशीर्वाद को सुनते ही विट्ठल पंत की पत्नी ने रामानंद जी से कहा कि आप मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे रहे हैं, परंतु मेरे पति तो पहले से ही सन्यासी बन चुके हैं। इस घटना को सुनने के बाद रामानंद जी ने यह पता लगा लिया कि इनके पति कौन है? इन सभी के पश्चात रामानंद स्वामी जी ने काशी में जाकर के विट्ठल पंत को जीवन अपनाने का आदेश दे दिय।

इसके पश्चात विट्ठल पंत ने अपने गृहस्थ जीवन को फिर से अपना लिया। विट्ठल पंत के गृहस्थ जीवन अपनाने के पश्चात उन्हें 3 पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई, ज्ञानेश्वर जी भी अपने इन्हीं भाई बहनों में से एक थे। ज्ञानेश्वर जी के दोनों भाइयों का नाम निवृत्तिनाथ और सोपानदेव रखा गया था। यह दोनों लोग भी शांत स्वभाव के ही व्यक्ति थे। यदि हम यूं कहे कि इन सभी लोगों को संत की उपाधि अनुवांशिक लक्षण के रूप में प्राप्त है तो यह गलत नहीं होगा। संत ज्ञानेश्वर जी के बहन का नाम मुक्ताबाई था।

संत ज्ञानेश्वर जी के माता-पिता मृत्यु?

जब विट्ठल पंत ने सन्यास छोड़ कर के अपने गृहस्थ जीवन को उजागर करने के लिए आए थे। तभी उनका समाज के द्वारा बहिष्कार किया जाने लगा। ऐसा भी कहा जाता है कि इनके पिता विट्ठल पंत किसी भी प्रकार का प्रायश्चित करने के लिए तैयार थे, परंतु उनके लिए देह त्यागने के अतिरिक्त कोई और प्रायश्चित नहीं बताया गया और ऐसा भी कहा गया कि उनके पुत्र को भी जनेऊ धारण करने का कोई हक नहीं है।

इन सभी के पश्चात विट्ठल पंत ने अपनी पत्नी के सहित प्रयागराज के संगम में डूब करके अपने प्राणों का त्याग कर दिया और इसी के साथ उनके बच्चे अनाथ हो गए। स्वामी ज्ञानेश्वर और उनके भाई बहनों को लोगों ने उस गांव में रहने नहीं दिया और उसके बाद उन लोगों को भी मांग कर रहने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं था, इसीलिए उन्होंने भीख मांग कर अपना जीवन यापन करना शुरू कर दिया।

संत ज्ञानेश्वर को शुद्धि पत्र की प्राप्ति कैसे हुई थी?

अनेकों दिनों के बाद ज्ञानेश्वर जी के बड़े भाई निवृत्ति नाथ और गांगीनाथ जी से भेंट हो गई। गांगीनाथ ना केवल इन दोनों के ही गुरु थे, अपितु यह इन दोनों के पिता विट्ठल पंत के भी गुरु थे। गुरु जी ने निवृत्तीनाथ को योग मार्ग की शिक्षा प्रदान कराया और उन्होंने निवृत्तिनाथ को भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने का उपदेश दे दिया, इसके पश्चात निवृत्तिनाथ ने ज्ञानेश्वर जी को भी इस क्षेत्र में शिक्षा प्रदान कराई।

यह लोग पंडितों से शुद्धि पत्र लेने के उद्देश्य से पैठण पहुंचे। वहां रहने के बीच संत ज्ञानेश्वर जी के उपलक्ष में अनेकों प्रकार की चमत्कारिक कथाएं प्रचलित हैं। लोगों के द्वारा ऐसा कहा जाता है कि संत ज्ञानेश्वर जी ने भैंस के सर पर हाथ रख कर उसके मुख से वेद मंत्रों का उच्चारण करवाया था। किसी व्यक्ति ने उस भैंस को डंडे मारे तो उस डंडी का निशान ज्ञानेश्वर जी के शरीर पर उभर आया।

इन सभी घटनाओं के पश्चात वहां के निवासियों ने और पैठण के पंडितों ने ज्ञानेश्वर जी को और उनके भाई निवृत्ति नाथ जी को शुद्धि पत्र की प्राप्ति करवा दी। इन ख्याति को प्राप्त करने के पश्चात अपने गांव आ पहुंचे, वहां में उनका बहुत ही प्रेम पूर्वक स्वागत किया गया।

संत ज्ञानेश्वर द्वारा रचित रचनाएं

संत ज्ञानेश्वर जी ने अपनी एक ग्रंथ में लगभग 10000 से भी अधिक पदों की रचना की है, जिसके कारण आज के समय में उन्हें संपूर्ण भारतवर्ष में महान संतों और मराठी कवि के रूप में ख्याति प्राप्त हो चुकी है। ऐसा कहा जाता है कि जब संत ज्ञानेश्वर जी केवल 15 वर्ष के थे, तभी से उन्होंने भगवान श्री कृष्ण जी के बहुत ही बड़े उपासक बन गए और भगवान श्री कृष्ण के उपासक बनने के साथ-साथ योगी भी बन गए थे।

संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने बड़े भाई जी से दीक्षा शिक्षा प्राप्त की थी और मात्र 1 वर्ष के अंदर ही हिंदू धर्म के सबसे बड़े महाकाव्य में से एक महाकाव्य पर लेखन शुरू कर दिया। वह महाकाव्य कोई और नहीं बल्कि भगवत गीता थी, उन्होंने इस श्रीमद्भगवद्गीता को अपने नाम पर लिखा था। इन्होंने श्रीमद्भागवत गीता को उनके ही नाम से ज्ञानेश्वरी ग्रंथ लिखा था, यह ग्रंथ उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ कहा जाता है।

इन्होंने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ को इन्होंने मराठी भाषा में लिखा है, इनका ज्ञानेश्वरी ग्रंथ मराठी भाषा में लिखित अब तक का सबसे प्रिय ग्रंथ माना जाने लगा है। हम आपकी जानकारी के लिए आपको बता दे कि संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने ही इस सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ ज्ञानेश्वरी में लगभग एक दस हजार से भी अधिक पद्य का उपयोग किया है, अर्थात इन्होंने अपने इस ग्रंथ में लगभग 10,000 पद्य लिखे हैं। इतना ही नहीं इसके अलावा संत ज्ञानेश्वर जी ने हरीपाठ नामक एक बहुत ही प्रसिद्ध पुस्तक लिखी थी, जो कि इन्होंने भगवतम से प्रभावित होकर लिखा था।

संत ज्ञानेश्वर दास की मृत्यु कब हुई थी?

संत ज्ञानेश्वर जी के मृत्यु महज 21 वर्ष की अल्पायु में ही हो गई थी। लोगों का ऐसा कहना है कि संत ज्ञानेश्वर जी ने सांसारिक मोहमाया इत्यादि को छोड़ छाड़ के समाधि धारण कर ली थी। उनकी समाधि आलंदी के सिद्धेश्वर मंदिर के परिसर अर्थात मैदान में स्थित है। अब के समय में उनके उपदेशों और उनके द्वारा रचित ग्रंथों के लिए उनका याद दिलाती है। ज्ञानेश्वर दास की मृत्यु वर्ष 1296 ईस्वी में हो गई थी।

संत ज्ञानेश्वर कौन थे?

प्राचीन समय के समाज सुधारक और लेखक।

संत ज्ञानेश्वर का जन्म कब हुआ था?

वर्ष 1275 ईस्वी।

संत ज्ञानेश्वर के माता पिता कौन है?

विट्ठल पंत और रुक्मिणी बाई।

संत ज्ञानेश्वर की मृत्यु कब हुई थी?

वर्ष 1296 ईस्वी।

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