सन्तानगोपालस्तोत्र || Santan Gopal Stotra

1

जो प्रतिदिन जप के समय श्रीवासुदेव कथित पुत्र शतक अथवा सन्तानगोपालस्तोत्र का पाठ करता है, वह भी उत्तम पुत्र से सम्पन्न होता है तथा वह शीघ्र ही धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य एवं राजसम्मान प्राप्त कर लेता है।

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

संतानगोपालस्तोत्रम्

सन्तान गोपाल स्तोत्र

पुत्र शतक

श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् ।

सुतसंप्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥१॥

मैं पुत्र की प्राप्ति के लिये लक्ष्मीपति, कमलनयन, देवकीनन्दन तथा सर्वपापहारी, मधुसूदन, श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूँ॥१॥

नमाम्यहं वासुदेवं सुतसंप्राप्तये हरिम् ।

यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥ २॥

मैं पुत्रप्राप्ति के उद्देश्य से उन वासुदेव श्रीहरि को प्रणाम करता हूँ, जो यशोदा के अंक में बालगोपालरूप से विराजमान हैं और नन्द को आनन्द दे रहे हैं ॥ २॥

अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।

नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥ ३॥

अपने को पुत्र की प्राप्ति के लिये मैं मुनिवन्दित वसुदेव-देवकीनन्दन गोविन्द को सदा नमस्कार करता हूँ॥ ३॥

गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् ।

पुत्रसंप्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम् ॥ ४॥

मैं पुत्र पाने की कामना से उन यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूँ, जो साक्षात् कमलापति अच्युत (विष्णु) होकर भी गोपबालकरूप से गौओं की रक्षा में लगे हुए हैं॥४॥

पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम् ।

देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥ ५॥

मुझे पुत्र की प्राप्ति हो, इसके लिये मैं पुत्रेष्टियज्ञ का फल देनेवाले कमलनयन लक्ष्मीपति देवकीनन्दन श्रीकृष्ण की वन्दना करता हूँ॥ ५॥

पद्मापते पद्मनेत्रे पद्मनाभ जनार्दन ।

देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥ ६॥

पद्मापते! कमलनयन! पद्मनाभ! जनार्दन! श्रीश! वासुदेव! जगत्पते! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥६॥

यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।

अस्माकं पुत्र लाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥ ७॥

यशोदा के अंक में बालरूप से विराजमान तथा अपनी महिमा से कभी च्युत न होनेवाले मुनिवन्दित लक्ष्मीपति गोविन्द को मैं प्रणाम करता हूँ। ऐसा करने से मुझे पुत्र की प्राप्ति हो॥७॥

श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिर्हरणाच्युत ।

गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ॥ ८॥

श्रीपते ! देवदेवेश्वर! दीन-दुःखियों की पीड़ा दूर करनेवाले अच्युत! गोविन्द! मुझे पुत्र दीजिये। जनार्दन ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ॥८॥

भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद ।

देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ ९॥

भक्तों की कामना पूर्ण करनेवाले गोविन्द! भक्त की रक्षा कीजिये। शुभदायक! रुक्मिणीवल्लभ! प्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥९॥

रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।

भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः ॥ १०॥

रुक्मिणीनाथ! सर्वेश्वर! मुझे सदा के लिये पुत्र दीजिये। भक्तों की इच्छा पूर्ण करने के लिये कल्पवृक्षस्वरूप कमलनयन श्रीकृष्ण! मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ १०॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ११॥

देवकीपुत्र! गोविन्द! वासुदेव! जगन्नाथ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ॥११॥

वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ १२॥

विश्ववन्द्य वासुदेव! लक्ष्मीपते! पुरुषोत्तम! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ १२॥

कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ १३॥

कमलनयन! कमलाकान्त! दूसरों पर दया करनेवालों में सर्वश्रेष्ठ श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ॥१३॥

लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ १४॥

लक्ष्मीपते! पद्मनाभ! मुनिवन्दित मुकुन्द! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ॥१४॥

कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा ।

नमामि पुत्रलाभार्थ सुखदाय बुधाय ते ॥ १५॥

आप कार्य-कारणरूप, सुखदायक एवं विद्वान् हैं। मैं पुत्र की प्राप्ति के लिये आप वासुदेव को सदा नमस्कार करता हूँ॥ १५ ॥

राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे ।

तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे ॥ १६॥

राजीवनेत्र (कमलनयन)! रावणारे (रावण के शत्रु)! हरे ! कवे (विद्वन्) ! देवेश्वर! विष्णो! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥१६॥

अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ॥ १७॥

जगदीश्वर! मैं अपने लिये पुत्र-प्राप्ति के उद्देश्य से आपकी आराधना करता हूँ। रमावल्लभ! वासुदेव! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ॥ १७॥

श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक ।

देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥ १८॥

मानिनी श्रीराधा के मान का अपहरण करनेवाले तथा अपनी आराधना करनेवाली गोपांगनाओं के वस्त्र को यमुनातट से हटानेवाले (उन्हें सुख प्रदान करनेवाले) जगन्नाथ! वासुदेव! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये॥ १८॥

अस्माकं पुत्रसंप्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन ।

रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ॥ १९॥

यदुनन्दन! रमापते! वासुदेव! मुनिवन्दित मुकुन्द! हमें पुत्र की प्राप्ति कराइये ॥ १९॥

वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव ।

पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो ॥२०॥

वासुदेव! मुझे बेटा दीजिये। माधव! मुझे तनय (संतान) दीजिये। श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये। महाप्रभो! मुझे वत्स (बच्चा) दीजिये ॥२०॥

डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव ।

भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ॥ २१॥

श्रीकृष्ण! मुझे डिंभक (पुत्र) दीजिये। रघुनन्दन! मुझे आत्मज (औरस पुत्र) दीजिये। भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने के लिये कल्पवृक्षस्वरूप नन्दनन्दन! मुझे तनय दीजिये॥ २१ ॥

नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।

कमलनाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ॥ २२॥

श्रीकृष्ण! वासुदेव! जगत्पते! कमलानाथ! गोविन्द! मुनिवन्दित मुकुन्द! मुझे आनन्ददायक पुत्र प्रदान कीजिये ॥ २२ ॥

अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।

सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ॥ २३॥

प्रभो! यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो दूसरा कोई मुझे शरण देनेवाला नहीं है। आप ही मेरे शरणदाता हैं। मुझे पुत्र दीजिये। सम्पत्ति दीजिये। सम्पत्ति और पुत्र दोनों प्रदान कीजिये ॥ २३॥

यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनम् ।

वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ॥ २४॥

यशोदाजी के स्तनों के दुग्धपान के रस को जाननेवाले और उनका स्तनपान करनेवाले, भूरे नेत्रों से सुशोभित यदुनन्दन श्रीकृष्ण की मैं सदा वन्दना करता हूँ। इससे मुझे पुत्र की प्राप्ति हो॥ २४॥

नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो ।

रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ॥ २५॥

देवेश्वर! नन्दनन्दन! प्रभो! मुझे आनन्ददायक पुत्र दीजिये। रमापते! वासुदेव! जगन्नाथ! मुझे धन और पुत्र दीजिये ॥ २५ ।।

पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव ।

अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ॥ २६॥

माधव! पुत्र और धन (दीजिये), धन और पुत्र (दीजिये), मुझे पुत्र प्रदान कीजिये। श्रीपते! हमारे दीनतापूर्ण वचन पर ध्यान दीजिये॥ २६॥

गोपाल डिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते ।

अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ॥ २७॥

गोपकुमार गोविन्द! रमावल्लभ वासुदेव! जगन्नाथ! मुझे पुत्र दीजिये, सम्पत्ति दीजिये ॥२७॥

मद्वाञ्छितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत ।

मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ॥ २८॥

देवकीनन्दन! अच्युत! मुझे मनोवांछित फल (पुत्र) दीजिये। यदुनन्दन ! मेरी पुत्रविषयक प्रार्थना को सफल एवं धन्य कीजिये ॥ २८॥

याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसंपदम् ।

भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ॥ २९॥

भक्तों के लिये चिन्तामणिस्वरूप राम! भक्तवांछाकल्पतरो! महाप्रभो! मैं आपसे धन और पुत्र की याचना करता हूँ। मुझे पुत्र और धन-सम्पत्ति दीजिये ।। २९॥

आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् ।

अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ॥ ३०॥

रघुनन्दन! आप सदा मुझे आनन्ददायक आत्मज, पुत्र, कुमार, डिंभक (बालक), सुत, अर्भक (बच्चा) एवं तनय (बेटा) दीजिये॥३०॥

वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् ।

अस्माकं पुत्रसंप्राप्त्यै सदा गोविन्दमच्युतम् ॥ ३१॥

मैं अपने लिये पुत्र की प्राप्ति के उद्देश्य से संतानप्रद गोपाल, माधव, भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाले अच्युत गोविन्द की वन्दना करता हूँ॥३१॥

ॐकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् ।

क्लींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ॥ ३२॥

ॐकारयुक्त गोपाल, श्रीयुक्त यदुनन्दन तथा क्लीयुक्त देवकीपुत्र यदुनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ (अर्थात् ‘ॐ श्रीं क्लीं’ इन तीनों बीजों से युक्त ‘देवकीसुत गोविन्द……’ इत्यादि मन्त्र का मैं आश्रय लेता हूँ) ॥ ३२॥

वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत ।

देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ॥ ३३॥

वासुदेव! मुकुन्द ! ईश्वर! गोविन्द! माधव! अच्युत! श्रीकृष्ण! रमानाथ! महाप्रभो! मुझे पुत्र दीजिये ॥ ३३॥

राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो ।

समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ॥ ३४॥

राजीवनयन (कमल-सदृश नेत्रवाले) ! गोविन्द! कपिलाक्ष! हरे! प्रभो! सम्पूर्ण कमनीय मनोरथों की सिद्धि के लिये वर देनेवाले श्रीकृष्ण ! मुझे सदा के लिये पुत्र दीजिये॥ ३४॥

अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते ।

देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ॥ ३५॥

नीलकमलसमूह के समान श्यामसुन्दर रूपवाले जगन्नाथ! रमानायक! माधव! मुझे जलज-कमल के सदृश मनोहर एवं श्रेष्ठ सत्पुत्र प्रदान कीजिये ॥ ३५॥

नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन ।

देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ ३६॥

अजगर और वरुण के दूतों से नन्दजी की रक्षा करनेवाले ! पृथ्वीपालक! यदुनन्दन ! गोविन्द! प्रभो! रुक्मिणीवल्लभ श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥३६॥

दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत ।

गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ॥ ३७॥

अपने सेवकों की इच्छा पूर्ण करने के लिये कल्पवृक्षस्वरूप! गोविन्द! मुकुन्द! माधव! अच्युत! गोपाल! पुण्डरीकाक्ष (कमलनयन)! मुझे संतान और सम्पत्ति दीजिये॥ ३७॥

यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत ।

देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ॥ ३८॥

यदुनायक! लक्ष्मीपते! यशोदानन्दन! श्रीधर! प्राणवल्लभ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ॥ ३८॥

अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते ।

भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ॥ ३९॥

रमापते ! भगवन् ! सर्वेश्वर! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकृष्ण! हमें मनोवांछित वस्तु दीजिये। पुत्र प्रदान कीजिये॥३९॥

रमाहृदयसंभारसत्यभामामनः प्रिय ।

देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ ४०॥

रमा (लक्ष्मी)-को अपने वक्षःस्थल में धारण करनेवाले! सत्यभामा के हृदयवल्लभ! तथा रुक्मिणी के प्राणनाथ! प्रभो! मुझे पुत्र दीजिये ॥ ४०॥

चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव ।

अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ॥ ४१॥

चन्द्रमा और सूर्यरूप नेत्र धारण करनेवाले गोविन्द! कमलनयन ! माधव! देव! जगदीश्वर! हमें भाग्यशाली श्रेष्ठ पुत्र प्रदान कीजिये॥४१॥

कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित ।

देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ॥ ४२॥

करुणामय! कमलनयन! पद्मनाभ श्रीविष्णु से सम्मानित देवकीनन्दनन्दन श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये॥ ४२ ॥

देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते ।

समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ॥ ४३॥

देवकीपुत्र! श्रीनाथ! वासुदेव! जगत्पते! समस्त मनोवांछित फलों को देनेवाले श्रीकृष्ण! मुझे सदा पुत्र दीजिये ॥४३॥

भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव ।

देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ॥ ४४॥

भक्तवांछाकल्पतरो! गंभीर स्वभाववाले कल्याणकारी अच्युत! माधव! ग्वालबालों पर स्नेह करनेवाले श्रीपते! मुझे पुत्र दीजिये॥४४॥

श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन ।

भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो ॥४५॥

श्रीकान्त ! वसुदेवनन्दन! ईश्वर! देवकी के प्रिय पुत्र! भक्तों के लिये कल्पवृक्षरूप! जगत्प्रभो! मुझे पुत्र दीजिये ॥ ४५ ॥

जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे ।

वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ॥ ४६॥

जगन्नाथ! रमानाथ! पृथ्वीनाथ! दयानिधे! वासुदेव! ईश्वर! सर्वेश्वर! प्रभो! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ॥ ४६॥

श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ४७॥

श्रीनाथ! कमलदललोचन! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ। ४७ ॥

दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ४८॥

अपने दासों के लिये कल्पवृक्ष! गोविन्द ! भक्तों की इच्छापूर्ति के लिये चिन्तामणि-स्वरूप प्रभो! श्रीकृष्ण! मैं आपकी शरण में आया हूँ, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ॥४८॥

गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ४९॥

गोविन्द! पुंडरीकाक्ष! रमानाथ! महाप्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ। ४९ ॥

श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन ।

मत्पुत्रफलसिद्ध्यर्थं भजामि त्वां जनार्दन ॥ ५०॥

श्रीनाथ! कमलदललोचन! गोविन्द! मधुसूदन! जनार्दन ! मैं अपने लिये पुत्ररूप फल की सिद्धि के निमित्त आपकी आराधना करता हूँ॥५०॥

स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखांबुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलाङ्गम् ।

स्पृशन्तमन्यस्तनमङ्गुलीभिर्वन्दे यशोदाङ्कगतं मुकुन्दम् ॥ ५१॥

जो मैया यशोदा के मुखारविन्द की ओर देखते हुए मन्द मुसकराहट के साथ उनके एक स्तन का दूध पी रहे हैं और दूसरे स्तन का अंगुलियों से स्पर्श कर रहे हैं तथा जिनका प्रत्येक अंग उज्ज्वल आभा से प्रकाशित होता है, मैया यशोदा के अंक में बैठे हुए उन बाल-मुकुन्द की मैं वन्दना करता हूँ॥५१ ।।

याचेऽहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ५२॥

कमललोचन ! मैं आपसे पुत्र-संतति की याचना करता हूँ। श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥५२॥

अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते ।

शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित ॥ ५३॥

जगत्पते! हमें पुत्र की प्राप्ति हो, इस उद्देश्य से हम आपका चिन्तन करते हैं। आप मुझे शीघ्र पुत्र प्रदान कीजिये। मुनिवन्दित श्रीकृष्ण! आपको मुझे अवश्य मेरी प्रार्थित वस्तु-संतान देनी चाहिये॥५३॥

वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम ।

कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित ॥ ५४॥

वासुदेव! जगन्नाथ! श्रीपते! पुरुषोत्तम! देवेन्द्रपूजित श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र-दान कीजिये ॥५४॥

कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दनम् ।

मह्यं च पुत्रसन्तानं दातव्यंभवता हरे ॥ ५५॥

यशोदा के प्रिय नन्दन ! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये। हरे! आपको मुझे पुत्ररूप संतान का दान अवश्य करना चाहिये ॥ ५५ ॥

वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत ।

देहि मे तनयं राम कौशल्याप्रियनन्दन ॥ ५६॥

वासुदेव! जगन्नाथ! गोविन्द! देवकीकुमार! कौसल्या के प्रिय पुत्र राम! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥५६॥

पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव ।

देहि मे तनयं सीताप्राणनायक राघव ॥ ५७॥

कमलदललोचन! गोविन्द! विष्णो! वामन ! माधव! सीता के प्राणवल्लभ! रघुनन्दन! मुझे पुत्र दीजिये॥५७॥

कञ्जाक्ष कृष्ण देवेन्द्रमण्डित मुनिवन्दित ।

लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा ॥ ५८॥

कमलनयन श्रीकृष्ण! देवराज से अलंकृत एवं पूजित हरे! लक्ष्मण के बड़े भैया मुनिवन्दित श्रीराम! मुझे सदा के लिये पुत्र प्रदान कीजिये॥५८॥

देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन ।

सीतानायक कञ्जाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद ॥ ५९॥

दशरथ के प्रिय नन्दन श्रीराम! सीतापते! कमलनयन! मुचुकुन्द को वर देनेवाले श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये ॥ ५९॥

विभीषणस्य या लङ्का प्रदत्ता भवता पुरा ।

अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव ॥ ६०॥

माधव! आपने पूर्वकाल में जो विभीषण को लंका का राज्य दिया था, उसी प्रकार हमें पुत्र दीजिये। ६०॥

भवदीयपदांभोजे चिन्तयामि निरन्तरम् ।

देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव ॥ ६१॥

सीता के प्राणवल्लभ रघुनन्दन ! मैं आपके चरणारविन्दों का निरन्तर चिन्तन करता हूँ, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥६१॥

राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद ।

देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित ॥ ६२॥

मुझे मनोवांछित वर और पुत्रोत्पत्तिरूप फल देनेवाले श्रीराम ! ब्रह्माजी के द्वारा वन्दित लक्ष्मीपते! आप मुझे पुत्र दीजिये॥६२ ॥

राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे ।

भाग्यवत्पुत्रसंतानं दशरथात्मज श्रीपते ॥ ६३ ॥

लक्ष्मण के बड़े भाई! सीता के प्राणवल्लभ! दशरथकुमार! रघुकुलनन्दन! श्रीराम! श्रीपते! आप मुझे भाग्यशाली पुत्ररूप संतान दीजिये। ६३ ॥

देवकीगर्भसंताज यशोदाप्रियनन्दन ।

देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव ॥ ६४॥

देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुए यशोदा के लाड़ले लाल! गोपाल कृष्ण! राम! माधव। मुझे पुत्र दीजिये॥६४॥

कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शङ्कर ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥ ६५॥

माधव! गोविन्द! वामन! अच्युत! कल्याणकारी श्रीपते ! गोपबालकनायक! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये॥६५॥

गोपबाल महाधन्य गोविन्दाच्युत माधव ।

देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥ ६६॥

गोपकुमार! सबसे बढ़कर धन्य! गोविन्द! अच्युत! माधव! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥६६॥

दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोऽयं

दिशतु दिशतु शीघ्रं भाग्यवत्पुत्रलाभम् ।

दिशतु दिशतु शीघ्रं श्रीशो राघवो रामचन्द्रो

दिशतु दिशतु पुत्रं वंश विस्तारहेतोः ॥ ६७॥

ये भगवान् देवकीनन्दन मुझे पुत्र दें, पुत्र दें। शीघ्र ही भाग्यवान् पुत्र की प्राप्ति करायें। श्रीसीता के स्वामी! रघुकुलनन्दन श्रीरामचन्द्र! मेरे वंश के विस्तार के लिये मुझे पुत्र प्रदान करें, पुत्र प्रदान करें॥६७॥

दीयतां वासुदेवेन तनयोमत्प्रियः सुतः ।

कुमारो नन्दनः सीतानायकेन सदा मम ॥ ६८॥

वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण तथा सीतापति भगवान श्रीराम सदा मुझे आनन्ददायक कुमारोपम प्रिय पुत्र प्रदान करें॥६८॥

राम राघव गोविन्द देवकीसुत माधव ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥ ६९॥

राम! राघव! गोविन्द! देवकीपुत्र! माधव! श्रीपते! गोपबालकनायक श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये ॥६९॥

वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥ ७०॥

मधुसूदन ! मुझे वंश का विस्तार करनेवाला पुत्र दीजिये ! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये !!! मैं आपकी शरण में आया हूँ॥७० ॥

ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७१॥

कंसारे! माधव! अच्युत! मुझे मनोवांछित पुत्र प्रदान कीजिये! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरण में आया हूँ॥७१॥

चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७२॥

माधव! जब तक चन्द्रमा, सूर्य और कल्प की स्थिति रहे, तब तक के लिये मुझे पुत्र परम्परा प्रदान कीजिये! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरण में आया हूँ। ७२ ॥

विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा ।

देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो ॥ ७३॥

प्रभो! देवकीनन्दन श्रीकृष्ण! आप सदा मेरे लिये विद्वान्, बुद्धिमान् और धनसम्पन्न पुत्र प्रदान कीजिये॥७३॥

नमामि त्वां पद्मनेत्र सुतलाभाय कामदम् ।

मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम् ॥ ७४॥

कमलनयन श्रीकृष्ण! मैं पुत्र की प्राप्ति के लिये समस्त कामनाओं के दाता आप पुंडरीकाक्ष श्रीकृष्ण मुकुन्द मधुसूदन गोविन्द को प्रणाम करता हूँ॥७४॥

भगवन् कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद ।

देहि मे तनयं स्वामिंस्त्वामहं शरणं गतः ॥ ७५॥

सम्पूर्ण मनोवांछित फलों के दाता! गोविन्द! स्वामिन्! भगवन्! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ॥७५ ॥

स्वामिंस्त्वं भगवन् राम कृष्न माधव कामद ।

देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गतः ॥ ७६॥

स्वामिन् ! भगवन्! राम! कृष्ण! कामनाओं के दाता माधव! मुझे सदा पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥७६॥

तनयं देहिओ गोविन्द कञ्जाक्ष कमलापते ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७७॥

गोविन्द! कमलनयन! कमलापते! मुझे पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये!!! मैं आपकी शरण में आया हूँ ।। ७७॥

पद्मापते पद्मनेत्र प्रद्युम्न जनक प्रभो ।

सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥ ७८॥

लक्ष्मीपते! कमललोचन! प्रद्युम्न को जन्म देनेवाले प्रभो! मुझे पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये !! मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ ७८॥

शङ्खचक्रगदाखड्गशार्ङ्गपाणे रमापते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ७९॥

अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा, खड्ग और शार्ङ्ग धनुष धारण करनेवाले रमापते! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ॥७९॥

नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन ।

सुतं मे देहि देवेश पद्मपद्मानुवन्दित ॥ ८०॥

नारायण! रमानाथ! कमलदललोचन! देवेश्वर! कमलालया लक्ष्मी से वन्दित श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये।८० ॥

राम राघव गोविन्द देवकीवरनन्दन ।

रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुरार्चित ॥ ८१॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥ ८२॥

राम! राघव! गोविन्द! देवकी के श्रेष्ठ पुत्र! रुक्मिणीनाथ! सर्वेश्वर! नारदादि महर्षियों तथा देवताओं से पूजित देवकीकुमार गोविन्द! वासुदेव! जगत्पते! श्रीकान्त! गोपबालकनायक! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये ॥ ८१-८२ ।।

मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ८३॥

मुनिवन्दित गोविन्द ! रुक्मिणीवल्लभ! प्रभो! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये! मैं आपकी शरण में आया हूँ। ८३॥

गोपिकार्जितपङ्केजमरन्दासक्तमानस ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ८४॥

गोपियों द्वारा लाकर समर्पित किये गये कमलों के मकरन्द में आसक्त चित्तवाले श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ। ८४॥

रमाहृदयपङ्केजलोल माधव कामद ।

ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥ ८५॥

लक्ष्मी के हृदयकमल के लिये लोलुप माधव! समस्त कामनाओं के दाता श्रीकृष्ण ! मुझे मनोवांछित पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ ८५ ॥

वासुदेव रमानाथ दासानां मङ्गलप्रद ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ८६॥

अपने सेवकों के लिये मंगलदायक रमानाथ! वासुदेव! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ ८६ ।।

कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ८७॥

कल्याणप्रद गोविन्द ! मुनिवन्दित मुरशत्रु श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ।। ८७ ॥

पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ८८॥

पुत्रदाता मुकुन्द ! ईश्वर! रुक्मिणीवल्लभ प्रभो! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥८८॥

पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ८९॥

पुण्डरीकाक्ष! गोविन्द ! वासुदेव! जगदीश्वर! श्रीकृष्ण ! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ ८९ ॥

दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ९०॥

दयानिधे ! वासुदेव! मुनिवन्दित मुकुन्द ! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥९० ॥

पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम् ।

वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्र लाभ प्रदायिनम् ॥ ९१॥

पुत्र और सम्पत्ति के दाता, पुत्रलाभदायक, देवपूजित गोविन्द श्रीकृष्ण की हम सदा वन्दना करते हैं ॥ ९१॥

कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये ।

नमस्ते पुत्रलाभाय देहि मे तनयं विभो ॥ ९२॥

प्रभो! आप करुणा के सागर, गोपियों के प्राणवल्लभ और मुर नामक दैत्य के शत्रु हैं, पुत्र की प्राप्ति के लिये आपको मेरा नमस्कार है, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥९२॥

नमस्तस्मै रमेशाय रुक्मिणीवल्लभाय ते ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥ ९३॥

लक्ष्मी के स्वामी तथा रुक्मिणी के प्राणवल्लभ! आप भगवान् श्रीकृष्ण को नमस्कार है। गोपबालकों के नायक श्रीकान्त! मुझे पुत्र दीजिये ॥९३ ॥

नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च ।

पुत्रदाय च सर्पेन्द्रशायिने रङ्गशायिने ॥ ९४॥

सदा ही श्रीजी की कामना रखनेवाले आप वासुदेव को नमस्कार है। आप पुत्रदायक, नागराज शेष की शय्या पर शयन करनेवाले तथा श्रीरंगक्षेत्र में सोनेवाले हैं, आपको नमस्कार है॥ ९४ ॥

रङ्गशायिन् रमानाथ मङ्गलप्रद माधव ।

देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥ ९५॥

रंगशायी रमानाथ! मंगलदायक माधव! गोपबालकनायक श्रीपते! मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥ ९५ ॥

दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव ।

सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते ॥ ९६॥

दीनों के लिये कल्पवृक्षस्वरूप रघुनन्दन! मुझ दास को पुत्र दीजिये। रमापते! पुत्र दीजिये! पुत्र दीजिये!! पुत्र दीजिये!!!॥ ९६ ॥

यशोदातनयाभीष्टपुत्रदानरतः सदा ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥९७॥

सदा मनोवांछित पुत्र देने में तत्पर रहनेवाले यशोदानन्दन श्रीकृष्ण! मैं आपकी शरण में आया हूँ, मुझे पुत्र प्रदान कीजिये॥९७॥

मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन ।

देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ९८॥

मेरे इष्टदेव गोविन्द ! वासुदेव! जनार्दन! श्रीकृष्ण! मुझे पुत्र दीजिये, मैं आपकी शरण में आया हूँ॥९८॥

नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजापते ।

भगवंस्त्वत्कृपायाश्च वासुदेवेन्द्रपूजित ॥ ९९॥

भगवन् ! इन्द्रपूजित वासुदेव! आपकी कृपा से नीतिज्ञ, धनवान् और विद्वान् पुत्र उत्पन्न होता है॥ ९९ ॥

यःपठेत् पुत्रशतकं सोऽपि सत्पुत्रवान् भवेत ।

श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च ॥ १००॥

जो श्रीवासुदेव कथित पुत्र शतक का पाठ करता है, वह भी उत्तम पुत्र से सम्पन्न होता है। यह स्तोत्र रत्न सुख की भी प्राप्ति करानेवाला है॥१०० ॥

जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम् ।

ऐश्वर्यं राजसम्मानं सद्यो याति न संशयः ॥ १०१॥

जो प्रतिदिन जप के समय इसका पाठ करता है, उसे तत्काल पुत्रलाभ होता है तथा वह शीघ्र ही धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य एवं राजसम्मान प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है॥१०१ ॥

इति श्रीलक्ष्मीकेशवसंवादे सन्तानगोपालस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

॥ इस प्रकार संतानगोपालस्तोत्र पूर्ण हुआ॥

1 thought on “सन्तानगोपालस्तोत्र || Santan Gopal Stotra

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *