शिव सहस्रनाम स्तोत्र || Shiv Sahastranam Stotram

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महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय १७ में शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ के फल वर्णन हुआ है। इसे तंडिकृत शिव सहस्रनाम स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है।

शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ के फल का वर्णन

श्रीकृष्ण! इस प्रकार बहुत-से नामों में से प्रधान-प्रधान नाम चुनकर मैंने उनके द्वारा भक्तिपूर्वक भगवान शंकर का स्तवन किया। जिन्हें ब्रह्मा आदि देवता तथा ऋषि भी तत्त्व से नहीं जानते। उन्हीं स्तवन के योग्य, अर्चनीय और वन्दनीय जगत्पति शिव की कौन स्तुति करेगा? (महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १७ श्लोक १३८ -१५४)

इस तरह भक्ति के द्वारा भगवान को सामने रखते हुए मैंने उन्हीं से आज्ञा लेकर उन बुद्धिमानों में श्रेष्ठ भगवान यज्ञपति की स्तुति की। जो सदा योगयुक्त एवं पवित्रभाव से रहने वाला भक्त इन पुष्टिवर्धक नामों द्वारा भगवान शिव की स्तुति करता हैं, वह स्वयं ही उन परमात्मा शिव को प्राप्त कर लेता है। यह उत्तम वेदतुल्य स्तोत्र परब्रहा परमात्मा-स्वरूप शिव को अपना लक्ष्य बनाता है। ऋषि और देवता भी उसके द्वारा उन परमात्मा शिव की स्तुति करते हैं। जो लोग मन को संयम में रखकर इन नामों द्वारा भक्तवत्यल्य तथा आत्मनिष्ठा प्रदान करने वाले भगवान महादेव की स्तुति करते है, उन पर वे बहुत संतुष्ट होते हैं। इसी प्रकार मनुष्यों में जो प्रधानतः आस्तिक और श्रद्धालु हैं तथा अनेक जन्म तक की हुई स्तुति एवं भक्ति के प्रभाव से मन, वाणी, क्रिया तथा प्रेमभाव के द्वारा सोते-जागते, चलते-बैठते और आंखो के खोलते-मीचते समय भी सदा अनन्य भाव से उन परम सनातन देव जगदीश्वर शिव का बारंबार ध्यान करते हैं, वे अमित तेज से सम्पन्न हो जाते हैं तथा जो उन्हीं के विषय में सुनते-सुनाते एवं उन्हीं की महिमा का कथोपकथन करते हुए इस स्तोत्र द्वारा सदा उनकी स्तुति करते है, वे स्वयं भी स्तुत्य होकर सदा संतुष्ट होते हैं और रमण करते हैं। कोटि सहस्र जन्मों तक नाना प्रकार की संसारी योनियों मे भटकते-भटकते जब कोई जीव सर्वथा पापों से रहित हो जाता है, तब उसकी भगवान शिव में भक्ति होती है। भाग्य से जो सर्वसाधनस्वरूप हो गया है, उसको जगत के कारण भगवान शिव में सम्पूर्णभाव से सर्वथा अनन्य भक्ति प्राप्त होती है। रुद्र में निश्चल एवं निर्विध्नरूपसे अनन्य-भक्ति हो जाय-यह देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। मनुष्यों में तो प्रायः ऐसी भक्ति स्वतः नहीं उपलब्ध होती है। भगवान शंकर की कृपा से ही मनुष्यों के हदय में उनकी अनन्य भक्ति उत्पन्न होती है, जिससे वे अपने चित को उन्हीं के चिन्तन में लगाकर परम सिद्धि को प्राप्त होते हैं। जो सम्पूर्ण भाव से अनुगत होकर महेश्वर की शरण लेते हैं, शरणागतवत्सल महादेव जी इस संसार से उनका उद्धार कर देते हैं। इसी प्रकार भगवान कि स्तुति द्वारा अन्य देवगण भी अपने संसार बन्धन का नाश करते है; क्योंकि महादेव जी की शरण लेने के सिवा ऐसी दूसरी कोई शक्ति या तप का बल नहीं है जिससे मनुष्यों का संसार बन्धन से छुटकारा हो सके। श्रीकृष्ण! यह सोचकर उन इन्द्र के समान तेजस्वी एवं कल्याणमयी बुद्धि वाले तण्डि मुनि ने गज चर्मधारी एवं समस्त कार्यकारण के स्वामी भगवान शिव की स्तुति की। भगवान शकर के इस स्तोत्र को ब्रह्माजी ने स्वयं अपने हदय में धारण किया है। वे भगवान शिव के समीप इस वेदतुल्य स्तुति का गान करते रहते अतः सबको इस स्तोत्र का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। यह परम पवित्र, पुण्यजनक तथा सर्वदा सब पापों का नाश करने वाला है। यह योग, मोक्ष, स्वर्ग और संतोष-सब कुछ देने वाला है। जो लोग अनन्य भक्ति भाव से भगवान शिव के स्वरूप-भूत इस स्तोत्र का पाठ करते हैं उन्हें वही गति प्राप्त होती है जो सांख्यवेताओं और योगियों को मिलती है।

ब्रह्मा द्वारा शिव सहस्रनाम का उपदेश

जो भक्त भगवान शंकर के समीप एक वर्ष तक सदा प्रयत्नपूर्वक शिव सहस्रनाम स्तोत्र पाठ करता है वह मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है। यह परम रहस्यमय स्तोत्र ब्रह्मा जी के हदय में स्थित है। ब्रह्मा जी ने इन्द्र को इसका उपदेश दिया और इन्द्र ने मृत्यु को। मृत्यु ने एकादश रुद्रों को इसका उपदेश किया। रुद्रों से तण्डि को इसकी प्राप्ति हुई। तण्डि ने ब्रहमालोक में ही बड़ी भारी तपस्या करके इसे प्राप्त किया था। माधव! तण्डि ने शुक्र को, शुक्र ने गौतम को और गौतम ने वैवस्वत मनु को इसका उपदेश दिया। वैवस्वत मनु ने समाधिनिष्ठ और ज्ञानी नारायण नामक किसी साध्य देवताओं को यह स्तोत्र प्रदान किया। धर्म से कभी च्युत न होने वाले उन पूजनीय नारायण नामक साध्य देव ने यम को इसका उपदेश किया। वृष्णिनन्दन! ऐश्वर्यशाली वैवस्वत यम ने नाचिकेता को और नाचिकेत ने मार्कण्डेय मुनि को यह स्तोत्र प्रदान किया। शत्रुसूदन जनार्दन! मार्कण्डेय जी से मैंने नियमपूर्वक यह स्तोत्र ग्रहण किया था। अभी इस स्तोत्र की अधिक प्रसिद्धि नहीं हुई है, अतः मैं तुम्हें इसका उपदेश देता हूँ। यह वेदतुल्य स्तोत्र स्वर्ग, आरोग्य, आयु तथा धन-धान्य प्रदान करने वाला है। यक्ष, राक्षस, दानव, पिशाच, यातुधान, गुहाक, और नाग भी इसमें विध्न नहीं डाल पाते है।

श्रीकृष्ण कहते है- कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर! जो मनुष्य पवित्र भाव से ब्रहाचर्य के पालनपूर्वक इन्द्रियों को संयम में रखकर एक वर्ष तक योगयुक्त रहते हुए इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।[महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय १७ श्लोक १५५ -१८२]
अथ तंडिकृत शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् (महाभारतान्तर्गतम्)

वासुदेव उवाच

ततः स प्रयतो भूत्वा मम तात युधिष्ठिर ।

प्राञ्जलिः प्राह विप्रर्षिर्नामसङ्ग्रहमादितः ॥ १॥

उपमन्युरुवाच

ब्रह्मप्रोक्तैरृषिप्रोक्तैर्वेदवेदाङ्गसम्भवैः ।

सर्वलोकेषु विख्यातं स्तुत्यं स्तोष्यामि नामभिः ॥ २॥

महद्भिर्विहितैः सत्यैः सिद्धैः सर्वार्थसाधकैः ।

ऋषिणा तण्डिना भक्त्या कृतैर्वेदकृतात्मना ॥ ३॥

यथोक्तैः साधुभिः ख्यातैर्मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ।

प्रवरं प्रथमं स्वर्ग्यं सर्वभूतहितं शुभम् ॥ ४॥

श्रुतै: सर्वत्र जगति ब्रह्मलोकावतारितैः ।

सत्यैस्तत्परमं ब्रह्म ब्रह्मप्रोक्तं सनातनम् ।

वक्ष्ये यदुकुलश्रेष्ठ श्रृणुष्वावहितो मम ॥ ५॥

वरयैनं भवं देवं भक्तस्त्वं परमेश्वरम् ।

तेन ते श्रावयिष्यामि यत्तद्ब्रह्म सनातनम् ॥ ६॥

न शक्यं विस्तरात्कृत्स्नं वक्तुं सर्वस्य केनचित् ।

युक्तेनापि विभूतीनामपि वर्षशतैरपि ॥ ७॥

यस्यादिर्मध्यमन्तं च सुरैरपि न गम्यते ।

कस्तस्य शक्नुयाद्वक्तुं गुणान्कार्त्स्न्येन माधव ॥ ८॥

किन्तु देवस्य महतः सङ्क्षिप्तार्थपदाक्षरम् ।

शक्तितश्चरितं वक्ष्ये प्रसादात्तस्य धीमतः ॥ ९॥

अप्राप्य तु ततोऽनुज्ञां न शक्यः स्तोतुमीश्वरः ।

यदा तेनाभ्यनुज्ञातः स्तुतो वै स तदा मया ॥ १०॥

अनादिनिधनस्याहं जगद्योनेर्महात्मनः ।

नाम्नां कञ्चित्समुद्देशं वक्ष्याम्यव्यक्तयोनिनः ॥ ११॥

वरदस्य वरेण्यस्य विश्वरूपस्य धीमतः ।

श्रृणु नाम्नां चयं कृष्ण यदुक्तं पद्मयोनिना ॥ १२॥

दश नामसहस्राणि यान्याह प्रपितामहः ।

तानि निर्मथ्य मनसा दध्नो घृतमिवोद्धृतम् ॥ १३॥

गिरेः सारं यथा हेम पुष्पसारं यथा मधु ।

घृतात्सारं यथा मण्डस्तथैतत्सारमुद्धृतम्। १४॥

सर्वपापापहमिदं चतुर्वेदसमन्वितम् ।

प्रयत्नेनाधिगन्तव्यं धार्यं च प्रयतात्मना ॥ १५॥

माङ्गल्यं पौष्टिकं चैव रक्षोघ्नं पावनं महत् ॥ १६॥

इदं भक्ताय दातव्यं श्रद्दधानास्तिकाय च ।

नाश्रद्दधानरूपाय नास्तिकायाजितात्मने ॥ १७॥

यश्चाभ्यसूयते देवं कारणात्मानमीश्वरम् ।

स कृष्ण नरकं याति सहपूर्वैः सहात्मजैः ॥ १८॥

इदं ध्यानमिदं योगमिदं ध्येयमनुत्तमम् ।

इदं जप्यमिदं ज्ञानं रहस्यमिदमुत्तम् ॥ १९॥

यं ज्ञात्वा अन्तकालेऽपि गच्छेत परमां गतिम् ।

पवित्रं मङ्गलं मेध्यं कल्याणमिदमुत्तमम् ॥ २०॥

इदं ब्रह्मा पुरा कृत्वा सर्वलोकपितामहः ।

सर्वस्तवानां राजत्वे दिव्यानां समकल्पयत् ॥ २१॥

तदा प्रभृति चैवायमीश्वरस्य महात्मनः ।

स्तवराज इति ख्यातो जगत्यमरपूजितः ॥ २२॥

ब्रह्मलोकादयं स्वर्गे स्तवराजोऽवतारितः ।

यतस्तण्डिः पुरा प्राप तेन तण्डिकृतोऽभवत् ॥ २३॥

स्वर्गाच्चैवात्र भूर्लोकं तण्डिना ह्यवतारितः ।

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ॥ २४॥

निगदिष्ये महाबाहो स्तवानामुत्तमं स्तवम् ।

ब्रह्मणामपि यद्ब्रह्म पराणामपि यत्परम् ॥ २५॥

तेजसामपि यत्तेजस्तपसामपि यत्तपः ।

शान्तीनामपि या शान्तिर्द्युतीनामपि या द्युतिः ॥ २६॥

दान्तानामपि यो दान्तो धीमतामपि या च धीः ।

देवानामपि यो देवो ऋषीणामपि यस्त्वृषिः ॥ २७॥

यज्ञानामपि यो यज्ञः शिवानामपि यः शिवः ।

रुद्राणामपि यो रुद्रः प्रभा प्रभवतामपि ॥ २८॥

योगिनामपि यो योगी कारणानां च कारणम् ।

यतो लोकाः सम्भवन्ति न भवन्ति यतः पुनः ॥ २९॥

सर्वभूतात्मभूतस्य हरस्यामिततेजसः ।

अष्टोत्तरसहस्रं तु नाम्नां शर्वस्य मे श्रृणु ।

यच्छ्रुत्वा मनुजव्याघ्र सर्वान्कामानवाप्स्यसि ॥ ३०॥

 

शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् सहस्रनाम प्रारम्भ

स्थिरः स्थाणुः प्रभुर्भीमः प्रवरो वरदो वरः ।

सर्वात्मा सर्वविख्यातः सर्वः सर्वकरो भवः ॥ ३१॥

जटी चर्मी शिखण्डी च सर्वाङ्गः सर्वभावनः ।

हरश्च हरिणाक्षश्च सर्वभूतहरः प्रभुः ॥ ३२॥

प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च नियतः शाश्वतो ध्रुवः ।

श्मशानवासी भगवान्खचरो गोचरोऽर्दनः ॥ ३३॥

अभिवाद्यो महाकर्मा तपस्वी भूतभावनः ।

उन्मत्तवेषप्रच्छन्नः सर्वलोकप्रजापतिः ॥ ३४॥

महारूपो महाकायो वृषरूपो महायशाः ।

महात्मा सर्वभूतात्मा विश्वरूपो महाहनुः ॥ ३५॥

लोकपालोऽन्तर्हितात्मा प्रसादो हयगर्दभिः ।

पवित्रं च महांश्चैव नियमो नियमाश्रितः ॥ ३६॥

सर्वकर्मा स्वयम्भूत आदिरादिकरो निधिः ।

सहस्राक्षो विशालाक्षः सोमो नक्षत्रसाधकः ॥ ३७॥

चन्द्रः सूर्यः शनिः केतुर्ग्रहो ग्रहपतिर्वरः ।

अत्रिरत्र्यानमस्कर्ता मृगबाणार्पणोऽनघः ॥ ३८॥

महातपा घोरतपा अदीनो दीनसाधकः ।

संवत्सरकरो मन्त्रः प्रमाणं परमं तपः ॥ ३९॥

योगी योज्यो महाबीजो महारेता महाबलः ।

सुवर्णरेताः सर्वज्ञः सुबीजो बीजवाहनः ॥ ४०॥

दशबाहुस्त्वनिमिषो नीलकण्ठ उमापतिः ।

विश्वरूपः स्वयंश्रेष्ठो बलवीरोऽबलोगणः ॥ ४१॥

गणकर्ता गणपतिर्दिग्वासाः काम एव च ।

मन्त्रवित्परमो मन्त्रः सर्वभावकरो हरः ॥ ४२॥

कमण्डलुधरो धन्वी बाणहस्तः कपालवान् ।

अशनी शतघ्नी खड्गी पट्टिशी चायुधी महान् ॥ ४३॥

स्रुवहस्तः सुरूपश्च तेजस्तेजस्करो निधिः ।

उष्णीषी च सुवक्त्रश्च उदग्रो विनतस्तथा ॥ ४४॥

दीर्घश्च हरिकेशश्च सुतीर्थः कृष्ण एव च ।

श्रृगालरूपः सिद्धार्थो मुण्डः सर्वशुभङ्करः ॥ ४५॥

अजश्च बहुरूपश्च गन्धधारी कपर्द्यपि ।

ऊर्ध्वरेता ऊर्ध्वलिङ्ग ऊर्ध्वशायी नभःस्थलः ॥ ४६॥

त्रिजटी चीरवासाश्च रुद्रः सेनापतिर्विभुः ।

अहश्चरो नक्तञ्चरस्तिग्ममन्युः सुवर्चसः ॥ ४७॥

गजहा दैत्यहा कालो लोकधाता गुणाकरः ।

सिंहशार्दूलरूपश्च आर्द्रचर्माम्बरावृतः ॥ ४८॥

कालयोगी महानादः सर्वकामश्चतुष्पथः ।

निशाचरः प्रेतचारी भूतचारी महेश्वरः ॥ ४९॥

बहुभूतो बहुधरः स्वर्भानुरमितो गतिः ।

नृत्यप्रियो नित्यनर्तो नर्तकः सर्वलालसः ॥ ५०॥

घोरो महातपाः पाशो नित्यो गिरिरुहो नभः ।

सहस्रहस्तो विजयो व्यवसायो ह्यतन्द्रितः ॥ ५१॥

अधर्षणो धर्षणात्मा यज्ञहा कामनाशकः ।

दक्षयागापहारी च सुसहो मध्यमस्तथा ॥ ५२॥

तेजोपहारी बलहा मुदितोऽर्थोऽजितोऽवरः ।

गम्भीरघोषा गम्भीरो गम्भीरबलवाहनः ॥ ५३॥

न्यग्रोधरूपो न्यग्रोधो वृक्षकर्णस्थितिर्विभुः ।

सुतीक्ष्णदशनश्चैव महाकायो महाननः ॥ ५४॥

विष्वक्सेनो हरिर्यज्ञः संयुगापीडवाहनः ।

तीक्ष्णतापश्च हर्यश्वः सहायः कर्मकालवित् ॥ ५५॥

विष्णुप्रसादितो यज्ञः समुद्रो वडवामुखः ।

हुताशनसहायश्च प्रशान्तात्मा हुताशनः ॥ ५६॥

उग्रतेजा महातेजा जन्यो विजयकालवित् ।

ज्योतिषामयनं सिद्धिः सर्वविग्रह एव च ॥ ५७॥

शिखी मुण्डी जटी ज्वाली मूर्तिजो मूर्धगो बली ।

वेणवी पणवी ताली खली कालकटङ्कटः ॥ ५८॥

नक्षत्रविग्रहमतिर्गुणबुद्धिर्लयोऽगमः ।

प्रजापतिर्विश्वबाहुर्विभागः सर्वगोऽमुखः ॥ ५९॥

विमोचनः सुसरणो हिरण्यकवचोद्भवः ॥

मेढ्रजो बलचारी च महीचारी स्रुतस्तथा ॥ ६०॥

सर्वतूर्यनिनादी च सर्वातोद्यपरिग्रहः ।

व्यालरूपो गुहावासी गुहो माली तरङ्गवित् ॥ ६१॥

त्रिदशस्त्रिकालधृक्कर्मसर्वबन्धविमोचनः ।

बन्धनस्त्वसुरेन्द्राणां युधि शत्रुविनाशनः ॥ ६२॥

साङ्ख्यप्रसादो दुर्वासाः सर्वसाधुनिषेवितः ।

प्रस्कन्दनो विभागज्ञो अतुल्यो यज्ञभागवित् ॥ ६३॥

सर्ववासः सर्वचारी दुर्वासा वासवोऽमरः ।

हैमो हेमकरो यज्ञः सर्वधारी धरोत्तमः ॥ ६४॥

लोहिताक्षो महाक्षश्च विजयाक्षो विशारदः ।

सङ्ग्रहो निग्रहः कर्ता सर्पचीरनिवासनः ॥ ६५॥

मुख्योऽमुख्यर्श्च देहश्च काहलिः सर्वकामदः ।

सर्वकासप्रसादश्च सुबलो बलरूपधृत् ॥ ६६॥

सर्वकामवरश्चैव सर्वदः सर्वतोमुखः ।

आकाशनिर्विरूपश्च निपाती ह्यवशः खगः ॥ ६७॥

रौद्ररूपोंऽशुरादित्यो बहुरश्मिः सुवर्चसी ।

वसुवेगो महावेगो मनोवेगो निशाचरः ॥ ६८॥

सर्ववासी श्रियावासी उपदेशकरोऽकरः ।

मुनिरात्मनिरालोकः सम्भग्नश्च सहस्रदः ॥ ६९॥

पक्षी च पक्षरूपश्च अतिदीप्तो विशाम्पतिः ।

उन्मादो मदनः कामो ह्यश्वत्थोऽर्थकरो यशः ॥ ७०॥

वामदेवश्च वामश्च प्राग्दक्षिणश्च वामनः ।

सिद्धयोगी महर्षिश्च सिद्धार्थः सिद्धसाधकः ॥ ७१॥

भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च विपणो मृदुरव्ययः ।

महासेनो विशाखश्च षष्टिभागो गवाम्पतिः ॥ ७२॥

वज्रहस्तश्च विष्कम्भी चमूस्तम्भन एव च ।

वृत्तावृत्तकरस्तालो मधुर्मधुकलोचनः ॥ ७३॥

वाचस्पत्यो वाजसनो नित्यमाश्रमपूजितः ।

ब्रह्मचारी लोकचारी सर्वचारी विचारवित् ॥ ७४॥

ईशान ईश्वरः कालो निशाचारी पिनाकवान् ।

निमित्तस्थो निमित्तं च नन्दिर्नन्दिकरो हरिः ॥ ७५॥

नन्दीश्वरश्च नन्दी च नन्दनो नन्दिवर्धनः ।

भगहारी निहन्ता च कालो ब्रह्मा पितामहः ॥ ७६॥

चतुर्मुखो महालिङ्गश्चारुलिङ्गस्तथैव च ।

लिङ्गाध्यक्षः सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावहः ॥ ७७॥

बीजाध्यक्षो बीजकर्ता अव्यात्माऽनुगतो बलः ।

इतिहासः सकल्पश्च गौतमोऽथ निशाकरः ॥ ७८॥

दम्भो ह्यदम्भो वैदम्भो वश्यो वशकरः कलिः ।

लोककर्ता पशुपतिर्महाकर्ता ह्यनौषधः ॥ ७९॥

अक्षरं परमं ब्रह्म बलवच्छक्र एव च ।

नीतिर्ह्यनीतिः शुद्धात्मा शुद्धो मान्यो गतागतः ॥ ८०॥

बहुप्रसादः सुस्वप्नो दर्पणोऽथ त्वमित्रजित् ।

वेदकारो मन्त्रकारो विद्वान्समरमर्दनः ॥ ८१॥

महामेघनिवासी च महाघोरो वशीकरः ।

अग्निर्ज्वालो महाज्वालो अतिधूम्रो हुतो हविः ॥ ८२॥

वृषणः शङ्करो नित्यं वर्चस्वी धूमकेतनः ।

नीलस्तथाङ्गलुब्धश्च शोभनो निरवग्रहः ॥ ८३॥

स्वस्तिदः स्वस्तिभावश्च भागी भागकरो लघुः ।

उत्सङ्गश्च महाङ्गश्च महागर्भपरायणः ॥ ८४॥

कृष्णवर्णः सुवर्णश्च इन्द्रियं सर्वदेहिनाम् ।

महापादो महाहस्तो महाकायो महायशाः ॥ ८५॥

महामूर्धा महामात्रो महानेत्रो निशालयः ।

महान्तको महाकर्णो महोष्ठश्च महाहनुः ॥ ८६॥

महानासो महाकम्बुर्महाग्रीवः श्मशानभाक् ।

महावक्षा महोरस्को ह्यन्तरात्मा मृगालयः ॥ ८७॥

लम्बनो लम्बितोष्ठश्च महामायः पयोनिधिः ।

महादन्तो महादंष्ट्रो महाजिह्वो महामुखः ॥ ८८॥

महानखो महारोमा महाकेशो महाजटः ।

प्रसन्नश्च प्रसादश्च प्रत्ययो गिरिसाधनः ॥ ८९॥

स्नेहनोऽस्नेहनश्चैव अजितश्च महामुनिः ।

वृक्षाकारो वृक्षकेतुरनलो वायुवाहनः ॥ ९०॥

गण्डली मेरुधामा च देवाधिपतिरेव च ।

अथर्वशीर्षः सामास्य ऋक्सहस्रामितेक्षणः ॥ ९१॥

यजुःपादभुजो गुह्यः प्रकाशो जङ्गमस्तथा ।

अमोघार्थः प्रसादश्च अभिगम्यः सुदर्शनः ॥ ९२॥

उपकारः प्रियः सर्वः कनकः काञ्चनच्छविः ।

नाभिर्नन्दिकरो भावः पुष्करस्थपतिः स्थिरः ॥ ९३॥

द्वादशस्त्रासनश्चाद्यो यज्ञो यज्ञसमाहितः ।

नक्तं कलिश्च कालश्च मकरः कालपूजितः ॥ ९४॥

सगणो गणकारश्च भूतवाहनसारथिः ।

भस्मशयो भस्मगोप्ता भस्मभूतस्तरुर्गणः ॥ ९५॥

लोकपालस्तथाऽलोको महात्मा सर्वपूजितः ।

शुक्लस्त्रिशुक्लः सम्पन्नः शुचिर्भूतनिषेवितः ॥ ९६॥

आश्रमस्थः क्रियावस्थो विश्वकर्ममतिर्वरः ।

विशालशाखस्ताम्रोष्ठो ह्यम्बुजालः सुनिश्चलः ॥ ९७॥

कपिलः कपिशः शुक्ल आयुश्चैवि परोऽपरः ।

गन्धर्वो ह्यदितिस्तार्क्ष्यः सुविज्ञेयः सुशारदः ॥ ९८॥

परश्वधायुधो देव अनुकारी सुबान्धवः ।

तुम्बवीणो महाक्रोध ऊर्ध्वरेता जलेशयः ॥ ९९॥

उग्रो वंशकरो वंशो वंशनादो ह्यनिन्दितः ।

सर्वाङ्गरूपो मायावी सुहृदो ह्यनिलोऽनलः ॥ १००॥

बन्धनो बन्धकर्ता च सुबन्धनविमोचनः ।

स यज्ञारिः स कामारिर्महादंष्ट्रो महायुधः ॥ १०१॥

बहुधानिन्दितः शर्वः शङ्करः शङ्करोऽधनः ।

अमरेशो महादेवो विश्वदेवः सुरारिहा ॥ १०२॥

अहिर्बुध्न्योऽनिलाभश्च चेकितानो हविस्तथा ।

अजैकपाच्च कापाली त्रिशङ्कुरजितः शिवः ॥ १०३॥

धन्वन्तरिर्धूमकेतुः स्कन्दो वैश्रवणस्तथा ।

धाता शक्रश्च विष्णुश्च मित्रस्त्वष्टा ध्रुवो धरः ॥ १०४॥

प्रभावः सर्वगो वायुरर्यमा सविता रविः ।

उषङ्गुश्च विधाता च मान्धाता भूतभावनः ॥ १०५॥

विभुर्वर्णविभावी च सर्वकामगुणावहः ।

पद्मनाभो महागर्भश्चन्द्रवक्त्रोऽनिलोऽनलः ॥ १०६॥

बलवांश्चोपशान्तश्च पुराणः पुण्यचञ्चुरी ।

कुरुकर्ता कुरुवासी कुरुभूतो गुणौषधः ॥ १०७॥

सर्वाशयो दर्भचारी सर्वेषां प्राणिनां पतिः ।

देवदेवः सुखासक्तः सदसत्सर्वरत्नवित् ॥ १०८॥

कैलासगिरिवासी च हिमवद्गिरिसंश्रयः ।

कूलहारी कूलकर्ता बहुविद्यो बहुप्रदः ॥ १०९॥

वणिजो वर्धकी वृक्षो बकुलश्चन्दनश्छदः ।

सारग्रीवो महाजत्रुरलोलश्च महौषधः ॥ ११०॥

सिद्धार्थकारी सिद्धार्थश्छन्दोव्याकरणोत्तरः ।

सिंहनादः सिंहदंष्ट्रः सिंहगः सिंहवाहनः ॥ १११॥

प्रभावात्मा जगत्कालस्थालो लोकहितस्तरुः ।

सारङ्गो नवचक्राङ्गः केतुमाली सभावनः ॥ ११२॥

भूतालयो भूतपतिरहोरात्रमनिन्दितः ॥ ११३॥

वाहिता सर्वभूतानां निलयश्च विभुर्भवः ।

अमोघः संयतो ह्यश्वो भोजनः प्राणधारणः ॥ ११४॥

धृतिमान्मतिमान्दक्षः सत्कृतश्च युगाधिपः ।

गोपालिर्गोपतिर्ग्रामो गोचर्मवसनो हरिः। ११५॥

हिरण्यबाहुश्च तथा गुहापालः प्रवेशिनाम् ।

प्रकृष्टारिर्महाहर्षो जितकामो जितेन्द्रियः ॥ ११६॥

गान्धारश्च सुवासश्च तपःसक्तो रतिर्नरः ।

महागीतो महानृत्यो ह्यप्सरोगणसेवितः ॥ ११७॥

महाकेतुर्महाधातुर्नैकसानुचरश्चलः ।

आवेदनीय आदेशः सर्वगन्धसुखावहः ॥ ११८॥

तोरणस्तारणो वातः परिधी पतिखेचरः ।

संयोगो वर्धनो वृद्धो अतिवृद्धो गुणाधिकः ॥ ११९॥

नित्य आत्मसहायश्च देवासुरपतिः पतिः ।

युक्तश्च युक्तबाहुश्च देवो दिवि सुपर्वणः ॥ १२०॥

आषाढश्च सुषाण्ढश्च ध्रुवोऽथ हरिणो हरः ।

वपुरावर्तमानेभ्यो वसुश्रेष्ठो महापथः ॥ १२१॥

शिरोहारी विमर्शश्च सर्वलक्षणलक्षितः ।

अक्षश्च रथयोगी च सर्वयोगी महाबलः ॥ १२२॥

समाम्नायोऽसमाम्नायस्तीर्थदेवो महारथः ।

निर्जीवो जीवनो मन्त्रः शुभाक्षो बहुकर्कशः ॥ १२३॥

रत्नप्रभूतो रत्नाङ्गो महार्णवनिपानवित् ।

मूलं विशालो ह्यमृतो व्यक्ताव्यक्तस्तपोनिधिः ॥ १२४॥

आरोहणोऽधिरोहश्च शीलधारी महायशाः ।

सेनाकल्पो महाकल्पो योगो युगकरो हरिः ॥ १२५॥

युगरूपो महारूपो महानागहनो वधः ।

न्यायनिर्वपणः पादः पण्डितो ह्यचलोपमः ॥ १२६॥

बहुमालो महामालः शशी हरसुलोचनः ।

विस्तारो लवणः कूपस्त्रियुगः सफलोदयः ॥ १२७॥

त्रिलोचनो विषण्णाङ्गो मणिविद्धो जटाधरः ।

बिन्दुर्विसर्गः सुमुखः शरः सर्वायुधः सहः ॥ १२८॥

निवेदनः सुखाजातः सुगन्धारो महाधनुः ।

गन्धपाली च भगवानुत्थानः सर्वकर्मणाम् ॥ १२९॥

मन्थानो बहुलो वायुः सकलः सर्वलोचनः ।

तलस्तालः करस्थाली ऊर्ध्वसंहननो महान् ॥ १३०॥

छत्रं सुच्छत्रो विख्यातो लोकः सर्वाश्रयः क्रमः ।

मुण्डो विरूपो विकृतो दण्डी कुण्डी विकुर्वणः। १३१॥

हर्यक्षः ककुभो वज्रो शतजिह्वः सहस्रपात् ।

सहस्रमूर्धा देवेन्द्रः सर्वदेवमयो गुरुः ॥ १३२॥

सहस्रबाहुः सर्वाङ्गः शरण्यः सर्वलोककृत् ।

पवित्रं त्रिककुन्मन्त्रः कनिष्ठः कृष्णपिङ्गलः। १३३॥

ब्रह्मदण्डविनिर्माता शतघ्नीपाशशक्तिमान् ।

पद्मगर्भो महागर्भो ब्रह्मगर्भो जलोद्भवः ॥ १३४॥

गभस्तिर्ब्रह्मकृद्ब्रह्मी ब्रह्मविद्ब्राह्मणो गतिः ।

अनन्तरूपो नैकात्मा तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः ॥ १३५॥

ऊर्ध्वगात्मा पशुपतिर्वातरंहा मनोजवः ।

चन्दनी पद्मनालाग्रः सुरभ्युत्तरणो नरः ॥ १३६॥

कर्णिकारमहास्रग्वी नीलमौलिः पिनाकधृत् ।

उमापतिरुमाकान्तो जाह्नवीधृगुमाधवः ॥ १३७॥

वरो वराहो वरदो वरेण्यः सुमहास्वनः ।

महाप्रसादो दमनः शत्रुहा श्वेतपिङ्गलः ॥ १३८॥

पीतात्मा परमात्मा च प्रयतात्मा प्रधानधृत् ।

सर्वपार्श्वमुखस्त्र्यक्षो धर्मसाधारणो वरः ॥ १३९॥

चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा अमृतो गोवृषेश्वरः ।

साध्यर्षिर्वसुरादित्यो विवस्वान्सविताऽमृतः १४०॥

व्यासः सर्गः सुसङ्क्षेपो विस्तरः पर्ययो नरः ।

ऋतु संवत्सरो मासः पक्षः सङ्ख्यासमापनः ॥ १४१॥

कला काष्ठा लवा मात्रा मुहूर्ताहःक्षपाः क्षणाः ।

विश्वक्षेत्रं प्रजाबीजं लिङ्गमाद्यस्तु निर्गमः ॥ १४२॥

सदसद्व्यक्तमव्यक्तं पिता माता पितामहः ।

स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम् ॥ १४३॥

निर्वाणं ह्लादनश्चैव ब्रह्मलोकः परा गतिः ।

देवासुरविनिर्माता देवासुरपरायणः ॥ १४४॥

देवासुरगुरुर्देवो देवासुरनमस्कृतः ।

देवासुरमहामात्रो देवासुगणाश्रयः ॥ १४५॥

देवासुरगणाध्यक्षो देवासुरगणाग्रणीः ।

देवातिदेवो देवर्षिर्देवासुरवरप्रदः ॥ १४६॥

देवासुरेश्वरो विश्वो देवासुरमहेश्वरः ।

सर्वदेवमयोऽचिन्त्यो देवतात्माऽऽत्मसम्भवः ॥ १४७॥

उद्भित्त्रिविक्रमो वैद्यो विरजो नीरजोऽमरः ॥

ईड्यो हस्तीश्वरो व्याघ्रो देवसिंहो नरर्षभः ॥ १४८॥

विबुधोऽग्रवरः सूक्ष्मः सर्वदेवस्तपोमयः ।

सुयुक्तः शोभनो वज्री प्रासानां प्रभवोऽव्ययः ॥ १४९॥

गुहः कान्तो निजः सर्गः पवित्रं सर्वपावनः ।

श्रृङ्गी श्रृङ्गप्रियो बभ्रू राजराजो निरामयः ॥ १५०॥

अभिरामः सुरगणो विरामः सर्वसाधनः ।

ललाटाक्षो विश्वदेवो हरिणो ब्रह्मवर्चसः ॥ १५१॥

स्थावराणां पतिश्चैव नियमेन्द्रियवर्धनः ।

सिद्धार्थः सिद्धभूतार्थोऽचिन्त्यः सत्यव्रतः शुचिः ॥ १५२॥

व्रताधिपः परं ब्रह्म भक्तानां परमा गतिः ।

विमुक्तो मुक्ततेजाश्च श्रीमान्श्रीवर्धनो जगत् ॥ १५३॥

(इति सहस्रनाम )

तंडिकृत शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् फलश्रुति

यथा प्रधानं भगवानिति भक्त्या स्तुतो मया ।

यन्न ब्रह्मादयो देवा विदुस्तत्त्वेन नर्षयः ।

स्तोतव्यमर्च्यं वन्द्यं च कः स्तोष्यति जगत्पतिम् ॥ १५४॥

भक्तिं त्वेवं पुरस्कृत्य मया यज्ञपतिर्विभुः ।

ततोऽभ्यनुज्ञां सम्प्राप्य स्तुतो मतिमतां वरः ॥ १५५॥

शिवमेभिः स्तुवन्देवं नामभिः पुष्टिवर्धनैः ।

नित्ययुक्तः शुचिर्भक्तः प्राप्नोत्यात्मानमात्मना ॥ १५६॥

एतद्धि परमं ब्रह्म परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ १५७॥

ऋषयश्चैव देवाश्च स्तुवन्त्येतेन तत्परम् ॥ १५८॥

स्तूयमानो महादेवस्तुष्यते नियतात्मभिः ।

भक्तानुकम्पी भगवानात्मसंस्थाकरो विभुः ॥ १५९॥

तथैव च मनुष्येषु ये मनुष्याः प्रधानतः ।

आस्तिकाः श्रद्धधानाश्च बहुभिर्जन्मभिः स्तवैः ॥ १६०॥

भक्त्या ह्यनन्यमीशानं परं देवं सनातनम् ।

कर्मणा मनसा वाचा भावेनामिततेजसः ॥ १६१॥

शयाना जाग्रमाणाश्च व्रजन्नुपविशंस्तथा ।

उन्मिषन्निमिषंश्चैव चिन्तयन्तः पुनःपनः ॥ १६२॥

श्रृण्वन्तः श्रावयन्तश्च कथयन्तश्च ते भवम् ।

स्तुवन्तः स्तूयमानाश्च तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ १६३॥

जन्मकोटिसहस्रेषु नानासंसारयोनिषु ।

जन्तोर्विगतपापस्य भवे भक्तिः प्रजायते ॥ १६४॥

उत्पन्ना च भवे भक्तिरनन्या सर्वभावतः ।

भाविनः कारणे चास्य सर्वयुक्तस्य सर्वथा ॥ १६५॥

एतद्देवेषु दुष्प्रापं मनुष्येषु न लभ्यते ।

निर्विघ्ना निश्चला रुद्रे भक्तिरव्यभिचारिणी ॥ १६६॥

तस्यैव च प्रसादेन भक्तिरुत्पद्यते नॄणाम् ।

येन यान्ति परां सिद्धिं तद्भागवतचेतसः ॥ १६७॥

ये सर्वभावानुगताः प्रपद्यन्ते महेश्वरम् ।

प्रपन्नवत्सलो देवः संसारात्तान्समुद्धरेत् ॥ १६८॥

एवमन्ये विकुर्वन्ति देवाः संसारमोचनम् ।

मनुष्याणामृते देवं नान्या शक्तिस्तपोबलम् ॥ १६९॥

इति तेनेन्द्रकल्पेन भगवान्सदसत्पतिः ।

कृत्तिवासाः स्तुतः कृष्ण तण्डिना शुभबुद्धिना ॥ १७०॥

स्तवमेतं भगवतो ब्रह्मा स्वयमधारयत् ।

गीयते च स बुद्ध्येत ब्रह्मा शङ्करसन्निधौ ॥ १७१॥

इदं पुण्यं पवित्रं च सर्वदा पापनाशनम् ।

योगदं मोक्षदं चैव स्वर्गदं तोषदं तथा ॥ १७२॥

एवमेतत्पठन्ते य एकभक्त्या तु शङ्करम् ।

या गतिः साङ्ख्ययोगानां व्रजन्त्येतां गतिं तदा ॥ १७३॥

स्तवमेतं प्रयत्नेन सदा रुद्रस्य सन्निधौ ।

अब्दमेकं चरेद्भक्तः प्राप्नुयादीप्सितं फलम् ॥ १७४॥

एतद्रहस्यं परमं ब्रह्मणो हृदि संस्थितम् ।

ब्रह्मा प्रोवाच शक्राय शक्रः प्रोवाच मृत्यवे ॥ १७५॥

मृत्युः प्रोवाच रुद्रेभ्यो रुद्रेभ्यस्तण्डिमागमत् ।

महता तपसा प्राप्तस्तण्डिना ब्रह्मसद्मनि ॥ १७६॥

तण्डिः प्रोवाच शुक्राय गौतमाय च भार्गवः ।

वैवस्वताय मनवे गौतमः प्राह माधव ॥ १७७॥

नारायणाय साध्याय समाधिष्ठाय धीमते ।

यमाय प्राह भगवान्साध्यो नारायणोऽच्युतः ॥ १७८॥

नाचिकेताय भगवानाह वैवस्वतो यमः ।

मार्कण्डेयाय वार्ष्णेय नाचिकेतोऽभ्यभाषत ॥ १७९॥

मार्कण्डेयान्मया प्राप्तो नियमेन जनार्दन ।

तवाप्यहममित्रघ्न स्तवं दद्यां ह्यविश्रुतम् ॥ १८०॥

स्वर्ग्यमारोग्यमायुष्यं धन्यं वेदेन संमितम् ।

नास्य विघ्नं विकुर्वन्ति दानवा यक्षराक्षसाः ॥ १८१॥

पिशाचा यातुधाना वा गुह्यका भुजगा अपि ।

यः पठेत शुचिः पार्थ ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः ।

अभग्नयोगो वर्षं तु सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥ १८२॥

इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि अष्टचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४८ ॥

श्री तंडिकृत शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् समाप्तम् ।

|| शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् श्रीशिवसहस्रनामावली ||

ॐ स्थिराय नमः ।

ॐ स्थाणवे नमः ।

ॐ प्रभवे नमः ।

ॐ भीमाय नमः ।

ॐ प्रवराय नमः ।

ॐ वरदाय नमः ।

ॐ वराय नमः ।

ॐ सर्वात्मने नमः ।

ॐ सर्वविख्याताय नमः ।

ॐ सर्वस्मै नमः । १०।

ॐ सर्वकराय नमः ।

ॐ भवाय नमः ।

ॐ जटिने नमः ।

ॐ चर्मिणे नमः ।

ॐ शिखण्डिने नमः ।

ॐ सर्वाङ्गाय नमः ।

ॐ सर्वभावनाय नमः ।

ॐ हराय नमः ।

ॐ हरिणाक्षाय नमः ।

ॐ सर्वभूतहराय नमः । २०।

ॐ प्रभवे नमः ।

ॐ प्रवृत्तये नमः ।

ॐ निवृत्तये नमः ।

ॐ नियताय नमः ।

ॐ शाश्वताय नमः ।

ॐ ध्रुवाय नमः ।

ॐ श्मशानवासिने नमः ।

ॐ भगवते नमः ।

ॐ खचराय नमः ।

ॐ गोचराय नमः । ३०।

ॐ अर्दनाय नमः ।

ॐ अभिवाद्याय नमः ।

ॐ महाकर्मणे नमः ।

ॐ तपस्विने नमः ।

ॐ भूतभावनाय नमः ।

ॐ उन्मत्तवेषप्रच्छन्नाय नमः ।

ॐ सर्वलोकप्रजापतये नमः ।

ॐ महारूपाय नमः ।

ॐ महाकायाय नमः ।

ॐ वृषरूपाय नमः । ४०।

ॐ महायशसे नमः ।

ॐ महात्मने नमः ।

ॐ सर्वभूतात्मने नमः ।

ॐ विश्वरूपाय नमः ।

ॐ महाहणवे नमः ।

ॐ लोकपालाय नमः ।

ॐ अन्तर्हितत्मने नमः ।

ॐ प्रसादाय नमः ।

ॐ हयगर्धभये नमः ।

ॐ पवित्राय नमः । ५०।

ॐ महते नमः ।

ॐनियमाय नमः ।

ॐ नियमाश्रिताय नमः ।

ॐ सर्वकर्मणे नमः ।

ॐ स्वयंभूताय नमः ।

ॐ आदये नमः ।

ॐ आदिकराय नमः ।

ॐ निधये नमः ।

ॐ सहस्राक्षाय नमः ।

ॐ विशालाक्षाय नमः । ६०।

ॐ सोमाय नमः ।

ॐ नक्षत्रसाधकाय नमः ।

ॐ चन्द्राय नमः ।

ॐ सूर्याय नमः ।

ॐ शनये नमः ।

ॐ केतवे नमः ।

ॐ ग्रहाय नमः ।

ॐ ग्रहपतये नमः ।

ॐ वराय नमः ।

ॐ अत्रये नमः । ७०।

ॐ अत्र्या नमस्कर्त्रे नमः ।

ॐ मृगबाणार्पणाय नमः ।

ॐ अनघाय नमः ।

ॐ महातपसे नमः ।

ॐ घोरतपसे नमः ।

ॐ अदीनाय नमः ।

ॐ दीनसाधकाय नमः ।

ॐ संवत्सरकराय नमः ।

ॐ मन्त्राय नमः ।

ॐ प्रमाणाय नमः । ८०।

ॐ परमायतपसे नमः ।

ॐ योगिने नमः ।

ॐ योज्याय नमः ।

ॐ महाबीजाय नमः ।

ॐ महारेतसे नमः ।

ॐ महाबलाय नमः ।

ॐ सुवर्णरेतसे नमः ।

ॐ सर्वज्ञाय नमः ।

ॐ सुबीजाय नमः ।

ॐ बीजवाहनाय नमः । ९०।

ॐ दशबाहवे नमः ।

ॐ अनिमिशाय नमः ।

ॐ नीलकण्ठाय नमः ।

ॐ उमापतये नमः ।

ॐ विश्वरूपाय नमः ।

ॐ स्वयंश्रेष्ठाय नमः ।

ॐ बलवीराय नमः ।

ॐ अबलोगणाय नमः ।

ॐ गणकर्त्रे नमः ।

ॐ गणपतये नमः । १००।

ॐ दिग्वाससे नमः ।

ॐ कामाय नमः ।

ॐ मन्त्रविदे नमः ।

ॐ परमाय मन्त्राय नमः ।

ॐ सर्वभावकराय नमः ।

ॐ हराय नमः ।

ॐ कमण्डलुधराय नमः ।

ॐ धन्विने नमः ।

ॐ बाणहस्ताय नमः ।

ॐ कपालवते नमः । ११०।

ॐ अशनये नमः ।

ॐ शतघ्निने नमः ।

ॐ खड्गिने नमः ।

ॐ पट्टिशिने नमः ।

ॐ आयुधिने नमः ।

ॐ महते नमः ।

ॐ स्रुवहस्ताय नमः ।

ॐ सुरूपाय नमः ।

ॐ तेजसे नमः।

ॐ तेजस्कराय निधये नमः । १२०।

ॐ उष्णीषिणे नमः ।

ॐ सुवक्त्राय नमः ।

ॐ उदग्राय नमः ।

ॐ विनताय नमः ।

ॐ दीर्घाय नमः ।

ॐ हरिकेशाय नमः ।

ॐ सुतीर्थाय नमः ।

ॐ कृष्णाय नमः ।

ॐ श्रृगालरूपाय नमः ।

ॐ सिद्धार्थाय नमः । १३०।

ॐ मुण्डाय नमः ।

ॐ सर्वशुभङ्कराय नमः ।

ॐ अजाय नमः ।

ॐ बहुरूपाय नमः ।

ॐ गन्धधारिणे नमः ।

ॐ कपर्दिने नमः ।

ॐ उर्ध्वरेतसे नमः ।

ॐ ऊर्ध्वलिङ्गाय नमः ।

ॐ ऊर्ध्वशायिने नमः ।

ॐ नभस्थलाय नमः । १४०।

ॐ त्रिजटिने नमः ।

ॐ चीरवाससे नमः ।

ॐ रुद्राय नमः ।

ॐ सेनापतये नमः ।

ॐ विभवे नमः ।

ॐ अहश्चराय नमः ।

ॐ नक्तंचराय नमः ।

ॐ तिग्ममन्यवे नमः ।

ॐ सुवर्चसाय नमः ।

ॐ गजघ्ने नमः । १५०।

ॐ दैत्यघ्ने नमः ।

ॐ कालाय नमः ।

ॐ लोकधात्रे नमः ।

ॐ गुणाकराय नमः ।

ॐ सिंहशार्दूलरूपाय नमः ।

ॐ आर्द्रचर्माम्बरावृताय नमः ।

ॐ कालयोगिने नमः ।

ॐ महानादाय नमः ।

ॐ सर्वकामाय नमः ।

ॐ चतुष्पथाय नमः । १६०।

ॐ निशाचराय नमः ।

ॐ प्रेतचारिणे नमः ।

ॐ भूतचारिणे नमः ।

ॐ महेश्वराय नमः ।

ॐ बहुभूताय नमः ।

ॐ बहुधराय नमः ।

ॐ स्वर्भानवे नमः ।

ॐ अमिताय नमः ।

ॐ गतये नमः ।

ॐ नृत्यप्रियाय नमः । १७०।

ॐ नित्यनर्ताय नमः ।

ॐ नर्तकाय नमः ।

ॐ सर्वलालसाय नमः ।

ॐ घोराय नमः ।

ॐ महातपसे नमः ।

ॐ पाशाय नमः ।

ॐ नित्याय नमः ।

ॐ गिरिरुहाय नमः ।

ॐ नभसे नमः ।

ॐ सहस्रहस्ताय नमः । १८०।

ॐ विजयाय नमः ।

ॐ व्यवसायाय नमः ।

ॐ अतन्द्रिताय नमः ।

ॐ अधर्षणाय नमः ।

ॐ धर्षणात्मने नमः ।

ॐ यज्ञघ्ने नमः ।

ॐ कामनाशकाय नमः ।

ॐ दक्ष्यागपहारिणे नमः ।

ॐ सुसहाय नमः ।

ॐ मध्यमाय नमः । १९०।

ॐ तेजोपहारिणे नमः ।

ॐ बलघ्ने नमः ।

ॐ मुदिताय नमः ।

ॐ अर्थाय नमः ।

ॐ अजिताय नमः ।

ॐ अवराय नमः ।

ॐ गम्भीरघोषय नमः ।

ॐ गम्भीराय नमः ।

ॐ गम्भीरबलवाहनाय नमः ।

ॐ न्यग्रोधरूपाय नमः । २००।

ॐ न्यग्रोधाय नमः ।

ॐ वृक्षकर्णस्थिताय नमः ।

ॐ विभवे नमः ।

ॐ सुतीक्ष्णदशनाय नमः ।

ॐ महाकायाय नमः ।

ॐ महाननाय नमः ।

ॐ विश्वक्सेनाय नमः ।

ॐ हरये नमः ।

ॐ यज्ञाय नमः ।

ॐ संयुगापीडवाहनाय नमः । २१०।

ॐ तीक्षणातापाय नमः ।

ॐ हर्यश्वाय नमः ।

ॐ सहायाय नमः ।

ॐ कर्मकालविदे नमः ।

ॐ विष्णुप्रसादिताय नमः ।

ॐ यज्ञाय नमः ।

ॐ समुद्राय नमः ।

ॐ बडवामुखाय नमः ।

ॐ हुताशनसहायाय नमः ।

ॐ प्रशान्तात्मने नमः । २२०।

ॐ हुताशनाय नमः ।

ॐ उग्रतेजसे नमः ।

ॐ महातेजसे नमः ।

ॐ जन्याय नमः ।

ॐ विजयकालविदे नमः ।

ॐ ज्योतिषामयनाय नमः ।

ॐ सिद्धये नमः ।

ॐ सर्वविग्रहाय नमः ।

ॐ शिखिने नमः ।

ॐ मुण्डिने नमः । २३०।

ॐ जटिने नमः ।

ॐ ज्वलिने नमः ।

ॐ मूर्तिजाय नमः ।

ॐ मूर्धजाय नमः ।

ॐ बलिने नमः ।

ॐ वैनविने नमः ।

ॐ पणविने नमः ।

ॐ तालिने नमः ।

ॐ खलिने नमः ।

ॐ कालकटङ्कटाय नमः । २४०।

ॐ नक्षत्रविग्रहमतये नमः ।

ॐ गुणबुद्धये नमः ।

ॐ लयाय नमः ।

ॐ अगमाय नमः ।

ॐ प्रजापतये नमः ।

ॐ विश्वबाहवे नमः ।

ॐ विभागाय नमः ।

ॐ सर्वगाय नमः ।

ॐ अमुखाय नमः ।

ॐ विमोचनाय नमः । २५०।

ॐ सुसरणाय नमः ।

ॐ हिरण्यकवचोद्भवाय नमः ।

ॐ मेढ्रजाय नमः ।

ॐ बलचारिणे नमः ।

ॐ महीचारिणे नमः ।

ॐ स्रुताय नमः ।

ॐ सर्वतूर्यविनोदिने नमः ।

ॐ सर्वतोद्यपरिग्रहाय नमः ।

ॐ व्यालरूपाय नमः ।

ॐ गुहावासिने नमः । २६०।

ॐ गुहाय नमः ।

ॐ मालिने नमः ।

ॐ तरङ्गविदे नमः ।

ॐ त्रिदशाय नमः ।

ॐ त्रिकालधृते नमः ।

ॐ कर्मसर्वबन्धविमोचनाय नमः ।

ॐ असुरेन्द्राणांबन्धनाय नमः ।

ॐ युधि शत्रुविनाशनाय नमः ।

ॐ साङ्ख्यप्रसादाय नमः ।

ॐ दुर्वाससे नमः । २७०।

ॐ सर्वसाधिनिषेविताय नमः ।

ॐ प्रस्कन्दनाय नमः ।

ॐ यज्ञविभागविदे नमः ।

ॐ अतुल्याय नमः ।

ॐ यज्ञविभागविदे नमः ।

ॐ सर्ववासाय नमः ।

ॐ सर्वचारिणे नमः ।

ॐ दुर्वाससे नमः ।

ॐ वासवाय नमः ।

ॐ अमराय नमः । २८०।

ॐ हैमाय नमः ।

ॐ हेमकराय नमः ।

ॐ निष्कर्माय नमः ।

ॐ सर्वधारिणे नमः ।

ॐ धरोत्तमाय नमः ।

ॐ लोहिताक्षाय नमः ।

ॐ माक्षाय नमः ।

ॐ विजयक्षाय नमः ।

ॐ विशारदाय नमः ।

ॐ संग्रहाय नमः । २९०।

ॐ निग्रहाय नमः ।

ॐ कर्त्रे नमः ।

ॐ सर्पचीरनिवासनाय नमः ।

ॐ मुख्याय नमः ।

ॐ अमुख्याय नमः ।

ॐ देहाय नमः ।

ॐ काहलये नमः ।

ॐ सर्वकामदाय नमः ।

ॐ सर्वकालप्रसादये नमः ।

ॐ सुबलाय नमः । ३००।

ॐ बलरूपधृते नमः ।

ॐ सर्वकामवराय नमः ।

ॐ सर्वदाय नमः ।

ॐ सर्वतोमुखाय नमः ।

ॐ आकाशनिर्विरूपाय नमः ।

ॐ निपातिने नमः ।

ॐ अवशाय नमः ।

ॐ खगाय नमः ।

ॐ रौद्ररूपाय नमः ।

ॐ अंशवे नमः । ३१०।

ॐ आदित्याय नमः ।

ॐ बहुरश्मये नमः ।

ॐ सुवर्चसिने नमः ।

ॐ वसुवेगाय नमः ।

ॐ महावेगाय नमः ।

ॐ मनोवेगाय नमः ।

ॐ निशाचराय नमः ।

ॐ सर्ववासिने नमः ।

ॐ श्रियावासिने नमः ।

ॐ उपदेशकराय नमः । ३२०।

ॐ अकराय नमः ।

ॐ मुनये नमः ।

ॐ आत्मनिरालोकाय नमः ।

ॐ सम्भग्नाय नमः ।

ॐ सहस्रदाय नमः ।

ॐ पक्षिणे नमः ।

ॐ पक्षरूपाय नमः ।

ॐ अतिदीप्ताय नमः ।

ॐ विशाम्पतये नमः ।

ॐ उन्मादाय नमः । ३३०।

ॐ मदनाय नमः ।

ॐ कामाय नमः ।

ॐ अश्वत्थाय नमः ।

ॐ अर्थकराय नमः ।

ॐ यशसे नमः ।

ॐ वामदेवाय नमः ।

ॐ वामाय नमः ।

ॐ प्राचे नमः ।

ॐ दक्षिणाय नमः ।

ॐ वामनाय नमः । ३४०।

ॐ सिद्धयोगिने नमः ।

ॐ महर्शये नमः ।

ॐ सिद्धार्थाय नमः ।

ॐ सिद्धसाधकाय नमः ।

ॐ भिक्षवे नमः ।

ॐ भिक्षुरूपाय नमः ।

ॐ विपणाय नमः ।

ॐ मृदवे नमः ।

ॐ अव्ययाय नमः ।

ॐ महासेनाय नमः । ३५०।

ॐ विशाखाय नमः ।

ॐ षष्टिभागाय नमः ।

ॐ गवां पतये नमः ।

ॐ वज्रहस्ताय नमः ।

ॐ विष्कम्भिने नमः ।

ॐ चमूस्तम्भनाय नमः ।

ॐ वृत्तावृत्तकराय नमः ।

ॐ तालाय नमः ।

ॐ मधवे नमः ।

ॐ मधुकलोचनाय नमः । ३६०।

ॐ वाचस्पत्याय नमः ।

ॐ वाजसेनाय नमः ।

ॐ नित्यमाश्रितपूजिताय नमः ।

ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।

ॐ लोकचारिणे नमः ।

ॐ सर्वचारिणे नमः ।

ॐ विचारविदे नमः ।

ॐ ईशानाय नमः ।

ॐ ईश्वराय नमः ।

ॐ कालाय नमः । ३७०।

ॐ निशाचारिणे नमः ।

ॐ पिनाकभृते नमः ।

ॐ निमित्तस्थाय नमः ।

ॐ निमित्ताय नमः ।

ॐ नन्दये नमः ।

ॐ नन्दिकराय नमः ।

ॐ हरये नमः ।

ॐ नन्दीश्वराय नमः ।

ॐ नन्दिने नमः ।

ॐ नन्दनाय नमः । ३८०।

ॐ नन्दिवर्धनाय नमः ।

ॐ भगहारिणे नमः ।

ॐ निहन्त्रे नमः ।

ॐ कलाय नमः ।

ॐ ब्रह्मणे नमः ।

ॐ पितामहाय नमः ।

ॐ चतुर्मुखाय नमः ।

ॐ महालिङ्गाय नमः ।

ॐ चारुलिङ्गाय नमः ।

ॐ लिङ्गाध्याक्षाय नमः । ३९०।

ॐ सुराध्यक्षाय नमः ।

ॐ योगाध्यक्षाय नमः ।

ॐ युगावहाय नमः ।

ॐ बीजाध्यक्षाय नमः ।

ॐ बीजकर्त्रे नमः ।

ॐ अध्यात्मानुगताय नमः ।

ॐ बलाय नमः ।

ॐ इतिहासाय नमः ।

ॐ सकल्पाय नमः ।

ॐ गौतमाय नमः । ४००।

ॐ निशाकराय नमः ।

ॐ दम्भाय नमः ।

ॐ अदम्भाय नमः ।

ॐ वैदम्भाय नमः ।

ॐ वश्याय नमः ।

ॐ वशकराय नमः ।

ॐ कलये नमः ।

ॐ लोककर्त्रे नमः ।

ॐ पशुपतये नमः ।

ॐ महाकर्त्रे नमः । ४१०।

ॐ अनौषधाय नमः ।

ॐ अक्षराय नमः ।

ॐ परमाय ब्रह्मणे नमः ।

ॐ बलवते नमः ।

ॐ शक्राय नमः ।

ॐ नित्यै नमः ।

ॐ अनित्यै नमः ।

ॐ शुद्धात्मने नमः ।

ॐ शुद्धाय नमः ।

ॐ मान्याय नमः । ४२०।

ॐ गतागताय नमः ।

ॐ बहुप्रसादाय नमः ।

ॐ सुस्वप्नाय नमः ।

ॐ दर्पणाय नमः ।

ॐ अमित्रजिते नमः ।

ॐ वेदकाराय नमः ।

ॐ मन्त्रकाराय नमः ।

ॐ विदुषे नमः ।

ॐ समरमर्दनाय नमः ।

ॐ महामेघनिवासिने नमः । ४३०।

ॐ महाघोराय नमः ।

ॐ वशिने नमः ।

ॐ कराय नमः ।

ॐ अग्निज्वालाय नमः ।

ॐ महाज्वालाय नमः ।

ॐ अतिधूम्राय नमः ।

ॐ हुताय नमः ।

ॐ हविषे नमः ।

ॐ वृषणाय नमः ।

ॐ शङ्कराय नमः । ४४०।

ॐ नित्यं वर्चस्विने नमः ।

ॐ धूमकेतनाय नमः ।

ॐ नीलाय नमः ।

ॐ अङ्गलुब्धाय नमः ।

ॐ शोभनाय नमः ।

ॐ निरवग्रहाय नमः ।

ॐ स्वस्तिदाय नमः ।

ॐ स्वस्तिभावाय नमः ।

ॐ भागिने नमः ।

ॐ भागकराय नमः । ४५०।

ॐ लघवे नमः ।

ॐ उत्सङ्गाय नमः ।

ॐ महाङ्गाय नमः ।

ॐ महागर्भपरायणाय नमः ।

ॐ कृष्णवर्णाय नमः ।

ॐ सुवर्णाय नमः ।

ॐ सर्वदेहिनां इन्द्रियाय नमः ।

ॐ महापादाय नमः ।

ॐ महाहस्ताय नमः ।

ॐ महाकायाय नमः । ४६०।

ॐ महायशसे नमः ।

ॐ महामूर्ध्ने नमः ।

ॐ महामात्राय नमः ।

ॐ महानेत्राय नमः ।

ॐ निशालयाय नमः ।

ॐ महान्तकाय नमः ।

ॐ महाकर्णाय नमः ।

ॐ महोष्ठाय नमः ।

ॐ महाहणवे नमः ।

ॐ महानासाय नमः । ४७०।

ॐ महाकम्बवे नमः ।

ॐ महाग्रीवाय नमः ।

ॐ श्मशानभाजे नमः ।

ॐ महावक्षसे नमः ।

ॐ महोरस्काय नमः ।

ॐ अन्तरात्मने नमः ।

ॐ मृगालयाय नमः ।

ॐ लम्बनाय नमः ।

ॐ लम्बितोष्ठाय नमः ।

ॐ महामायाय नमः । ४८०।

ॐ पयोनिधये नमः ।

ॐ महादन्ताय नमः ।

ॐ महादंष्ट्राय नमः ।

ॐ महजिह्वाय नमः ।

ॐ महामुखाय नमः ।

ॐ महानखाय नमः ।

ॐ महारोमाय नमः ।

ॐ महाकोशाय नमः ।

ॐ महाजटाय नमः ।

ॐ प्रसन्नाय नमः । ४९०।

ॐ प्रसादाय नमः ।

ॐ प्रत्ययाय नमः ।

ॐ गिरिसाधनाय नमः ।

ॐ स्नेहनाय नमः ।

ॐ अस्नेहनाय नमः ।

ॐ अजिताय नमः ।

ॐ महामुनये नमः ।

ॐ वृक्षाकाराय नमः ।

ॐ वृक्षकेतवे नमः ।

ॐ अनलाय नमः । ५००।

ॐ वायुवाहनाय नमः ।

ॐ गण्डलिने नमः ।

ॐ मेरुधाम्ने नमः ।

ॐ देवाधिपतये नमः ।

ॐ अथर्वशीर्षाय नमः ।

ॐ सामास्याय नमः ।

ॐ ऋक्सहस्रामितेक्षणाय नमः ।

ॐ यजुः पाद भुजाय नमः ।

ॐ गुह्याय नमः ।

ॐ प्रकाशाय नमः । ५१०।

ॐ जङ्गमाय नमः ।

ॐ अमोघार्थाय नमः ।

ॐ प्रसादाय नमः ।

ॐ अभिगम्याय नमः ।

ॐ सुदर्शनाय नमः ।

ॐ उपकाराय नमः ।

ॐ प्रियाय नमः ।

ॐ सर्वाय नमः ।

ॐ कनकाय नमः ।

ॐ कञ्चनच्छवये नमः । ५२०।

ॐ नाभये नमः ।

ॐ नन्दिकराय नमः ।

ॐ भावाय नमः ।

ॐ पुष्करस्थापतये नमः ।

ॐ स्थिराय नमः ।

ॐ द्वादशाय नमः ।

ॐ त्रासनाय नमः ।

ॐ आद्याय नमः ।

ॐ यज्ञाय नमः ।

ॐ यज्ञसमाहिताय नमः । ५३०।

ॐ नक्तं नमः ।

ॐ कलये नमः ।

ॐ कालाय नमः ।

ॐ मकराय नमः ।

ॐ कालपूजिताय नमः ।

ॐ सगणाय नमः ।

ॐ गणकाराय नमः ।

ॐ भूतवाहनसारथये नमः ।

ॐ भस्मशयाय नमः ।

ॐ भस्मगोप्त्रे नमः । ५४०।

ॐ भस्मभूताय नमः ।

ॐ तरवे नमः ।

ॐ गणाय नमः ।

ॐ लोकपालाय नमः ।

ॐ अलोकाय नमः ।

ॐ महात्मने नमः ।

ॐ सर्वपूजिताय नमः ।

ॐ शुक्लाय नमः ।

ॐ त्रिशुक्लाय नमः ।

ॐ सम्पन्नाय नमः । ५५०।

ॐ शुचये नमः ।

ॐ भूतनिषेविताय नमः ।

ॐ आश्रमस्थाय नमः ।

ॐ क्रियावस्थाय नमः ।

ॐ विश्वकर्ममतये नमः ।

ॐ वराय नमः ।

ॐ विशालशाखाय नमः ।

ॐ ताम्रोष्ठाय नमः ।

ॐ अम्बुजालाय नमः ।

ॐ सुनिश्चलाय नमः । ५६०।

ॐ कपिलाय नमः ।

ॐ कपिशाय नमः ।

ॐ शुक्लाय नमः ।

ॐ अयुशे नमः ।

ॐ पराय नमः ।

ॐ अपराय नमः ।

ॐ गन्धर्वाय नमः ।

ॐ अदितये नमः ।

ॐ तार्क्ष्याय नमः ।

ॐ सुविज्ञेयाय नमः । ५७०।

ॐ सुशारदाय नमः ।

ॐ परश्वधायुधाय नमः ।

ॐ देवाय नमः ।

ॐ अनुकारिणे नमः ।

ॐ सुबान्धवाय नमः ।

ॐ तुम्बवीणाय नमः ।

ॐ महाक्रोधाया नमः ।

ॐ ऊर्ध्वरेतसे नमः ।

ॐ जलेशयाय नमः ।

ॐ उग्राय नमः । ५८०।

ॐ वशङ्कराय नमः ।

ॐ वंशाय नमः ।

ॐ वंशनादाय नमः ।

ॐ अनिन्दिताय नमः ।

ॐ सर्वाङ्गरूपाय नमः ।

ॐ मायाविने नमः ।

ॐ सुहृदाय नमः ।

ॐ अनिलाय नमः ।

ॐ अनलाय नमः ।

ॐ बन्धनाय नमः । ५९०।

ॐ बन्धकर्त्रे नमः ।

ॐ सुबन्धनविमोचनाय नमः ।

ॐ सयज्ञारये नमः ।

ॐ सकामारये नमः ।

ॐ महादंश्ट्राय नमः ।

ॐ महायुधाय नमः ।

ॐ बहुधानिन्दिताय नमः ।

ॐ शर्वाय नमः ।

ॐ शङ्कराय नमः ।

ॐ शङ्कराय नमः । ६००।

ॐ अधनाय नमः ।

ॐ अमरेशाय नमः ।

ॐ महादेवाय नमः ।

ॐ विश्वदेवाय नमः ।

ॐ सुरारिघ्ने नमः ।

ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः ।

ॐ अनिलाभाय नमः ।

ॐ चेकितानाय नमः ।

ॐ हविषे नमः ।

ॐ अजैकपाते नमः । ६१०।

ॐ कापालिने नमः ।

ॐ त्रिशङ्कवे नमः ।

ॐ अजिताय नमः ।

ॐ शिवाय नमः ।

ॐ धन्वन्तरये नमः ।

ॐ धूमकेतवे नमः ।

ॐ स्कन्दाय नमः ।

ॐ वैश्रवणाय नमः ।

ॐ धात्रे नमः ।

ॐ शक्राय नमः । ६२०।

ॐ विष्णवे नमः ।

ॐ मित्राय नमः ।

ॐ त्वष्ट्रे नमः ।

ॐ धृवाय नमः ।

ॐ धराय नमः ।

ॐ प्रभावाय नमः ।

ॐ सर्वगाय वायवे नमः ।

ॐ अर्यम्ने नमः ।

ॐ सवित्रे नमः ।

ॐ रवये नमः । ६३०।

ॐ उषङ्गवे नमः ।

ॐ विधात्रे नमः ।

ॐ मान्धात्रे नमः ।

ॐ भूतभावनाय नमः ।

ॐ विभवे नमः ।

ॐ वर्णविभाविने नमः ।

ॐ सर्वकामगुणावहाय नमः ।

ॐ पद्मनाभाय नमः ।

ॐ महागर्भाय नमः ।

ॐ चन्द्रवक्त्राय नमः । ६४०।

ॐ अनिलाय नमः ।

ॐ अनलाय नमः ।

ॐ बलवते नमः ।

ॐ उपशान्ताय नमः ।

ॐ पुराणाय नमः ।

ॐ पुण्यचञ्चवे नमः ।

ॐ ये नमः ।

ॐ कुरुकर्त्रे नमः ।

ॐ कुरुवासिने नमः ।

ॐ कुरुभूताय नमः । ६५०।

ॐ गुणौषधाय नमः ।

ॐ सर्वाशयाय नमः ।

ॐ दर्भचारिणे नमः ।

ॐ सर्वेषं प्राणिनां पतये नमः ।

ॐ देवदेवाय नमः ।

ॐ सुखासक्ताय नमः ।

ॐ सते नमः ।

ॐ असते नमः ।

ॐ सर्वरत्नविदे नमः ।

ॐ कैलासगिरिवासिने नमः । ६६०।

ॐ हिमवद्गिरिसंश्रयाय नमः ।

ॐ कूलहारिणे नमः ।

ॐ कुलकर्त्रे नमः ।

ॐ बहुविद्याय नमः ।

ॐ बहुप्रदाय नमः ।

ॐ वणिजाय नमः ।

ॐ वर्धकिने नमः ।

ॐ वृक्षाय नमः ।

ॐ वकिलाय नमः ।

ॐ चन्दनाय नमः । ६७०।

ॐ छदाय नमः ।

ॐ सारग्रीवाय नमः ।

ॐ महाजत्रवे नमः ।

ॐ अलोलाय नमः ।

ॐ महौषधाय नमः ।

ॐ सिद्धार्थकारिणे नमः ।

ॐ सिद्धार्थश्छन्दोव्याकरणोत्तराय नमः ।

ॐ सिंहनादाय नमः ।

ॐ सिंहदंष्ट्राय नमः ।

ॐ सिंहगाय नमः । ६८०।

ॐ सिंहवाहनाय नमः ।

ॐ प्रभावात्मने नमः ।

ॐ जगत्कालस्थालाय नमः ।

ॐ लोकहिताय नमः ।

ॐ तरवे नमः ।

ॐ सारङ्गाय नमः ।

ॐ नवचक्राङ्गाय नमः ।

ॐ केतुमालिने नमः ।

ॐ सभावनाय नमः ।

ॐ भूतालयाय नमः । ६९०।

ॐ भूतपतये नमः ।

ॐ अहोरात्राय नमः ।

ॐ अनिन्दिताय नमः ।

ॐ सर्वभूतानां वाहित्रे नमः ।

ॐ निलयाय नमः ।

ॐ विभवे नमः ।

ॐ भवाय नमः ।

ॐ अमोघाय नमः ।

ॐ संयताय नमः ।

ॐ अश्वाय नमः । ७००।

ॐ भोजनाय नमः ।

ॐ प्राणधारणाय नमः ।

ॐ धृतिमते नमः ।

ॐ मतिमते नमः ।

ॐ दक्षाय नमः ।

ॐ सत्कृताय नमः ।

ॐ युगाधिपाय नमः ।

ॐ गोपालये नमः ।

ॐ गोपतये नमः ।

ॐ ग्रामाय नमः ।

ॐ गोचर्मवसनाय नमः ।

ॐ हरये नमः ।

ॐ हिरण्यबाहवे नमः ।

ॐ प्रवेशिनां गुहापालाय नमः ।

ॐ प्रकृष्टारये नमः ।

ॐ महाहर्शाय नमः ।

ॐ जितकामाय नमः ।

ॐ जितेन्द्रियाय नमः ।

ॐ गान्धाराय नमः ।

ॐ सुवासाय नमः । ७२०।

ॐ तपस्सक्ताय नमः ।

ॐ रतये नमः ।

ॐ नराय नमः ।

ॐ महागीताय नमः ।

ॐ महानृत्याय नमः ।

ॐ अप्सरोगणसेविताय नमः ।

ॐ महाकेतवे नमः ।

ॐ महाधातवे नमः ।

ॐ नैकसानुचराय नमः ।

ॐ चलाय नमः । ७३०।

ॐ आवेदनीयाय नमः ।

ॐ आदेशाय नमः ।

ॐ सर्वगन्धसुखाहवाय नमः ।

ॐ तोरणाय नमः ।

ॐ तारणाय नमः ।

ॐ वाताय नमः ।

ॐ परिधीने नमः ।

ॐ पतिखेचराय नमः ।

ॐ संयोगाय वर्धनाय नमः ।

ॐ वृद्धाय नमः । ७४०।

ॐ अतिवृद्धाय नमः ।

ॐ गुणाधिकाय नमः ।

ॐ नित्यमात्मसहायाय नमः ।

ॐ देवासुरपतये नमः ।

ॐ पतये नमः ।

ॐ युक्ताय नमः ।

ॐ युक्तबाहवे नमः ।

ॐ दिविसुपर्णोदेवाय नमः ।

ॐ आषाढाय नमः ।

ॐ सुषाढाय नमः । ७५०।

ॐ ध्रुवाय नमः ।

ॐ हरिणाय नमः ।

ॐ हराय नमः ।

ॐ आवर्तमानेभ्योवपुषे नमः ।

ॐ वसुश्रेष्ठाय नमः ।

ॐ महापथाय नमः ।

ॐ शिरोहारिणे नमः ।

ॐ सर्वलक्षणलक्षिताय नमः ।

ॐ अक्षाय रथयोगिने नमः ।

ॐ सर्वयोगिने नमः । ७६०।

ॐ महाबलाय नमः ।

ॐ समाम्नायाय नमः ।

ॐ अस्माम्नायाय नमः ।

ॐ तीर्थदेवाय नमः ।

ॐ महारथाय नमः ।

ॐ निर्जीवाय नमः ।

ॐ जीवनाय नमः ।

ॐ मन्त्राय नमः ।

ॐ शुभाक्षाय नमः ।

ॐ बहुकर्कशाय नमः । ७७०।

ॐ रत्नप्रभूताय नमः ।

ॐ रत्नाङ्गाय नमः ।

ॐ महार्णवनिपानविदे नमः ।

ॐ मूलाय नमः ।

ॐ विशालाय नमः ।

ॐ अमृताय नमः ।

ॐ व्यक्ताव्यक्ताय नमः ।

ॐ तपोनिधये नमः ।

ॐ आरोहणाय नमः ।

ॐ अधिरोहाय नमः । ७८०।

ॐ शीलधारिणे नमः ।

ॐ महायशसे नमः ।

ॐ सेनाकल्पाय नमः ।

ॐ महाकल्पाय नमः ।

ॐ योगाय नमः ।

ॐ युगकराय नमः ।

ॐ हरये नमः ।

ॐ युगरूपाय नमः ।

ॐ महारूपाय नमः ।

ॐ महानागहनाय नमः । ७९०।

ॐ वधाय नमः ।

ॐ न्यायनिर्वपणाय नमः ।

ॐ पादाय नमः ।

ॐ पण्डिताय नमः ।

ॐ अचलोपमाय नमः ।

ॐ बहुमालाय नमः ।

ॐ महामालाय नमः ।

ॐ शशिने हरसुलोचनाय नमः ।

ॐ विस्ताराय लवणाय कूपाय नमः ।

ॐ त्रियुगाय नमः । ८००।

ॐ सफलोदयाय नमः ।

ॐ त्रिलोचनाय नमः ।

ॐ विषण्णाङ्गाय नमः ।

ॐ मणिविद्धाय नमः ।

ॐ जटाधराय नमः ।

ॐ बिन्दवे नमः ।

ॐ विसर्गाय नमः ।

ॐ सुमुखाय नमः ।

ॐ शराय नमः ।

ॐ सर्वायुधाय नमः । ८१०।

ॐ सहाय नमः ।

ॐ निवेदनाय नमः ।

ॐ सुखाजाताय नमः ।

ॐ सुगन्धाराय नमः ।

ॐ महाधनुषे नमः ।

ॐ गन्धपालिने भगवते नमः ।

ॐ सर्वकर्मणां उत्थानाय नमः ।

ॐ मन्थानाय बहुलवायवे नमः ।

ॐ सकलाय नमः ।

ॐ सर्वलोचनाय नमः । ८२०।

ॐ तलस्तालाय नमः ।

ॐ करस्थालिने नमः ।

ॐ ऊर्ध्वसंहननाय नमः ।

ॐ महते नमः ।

ॐ छत्राय नमः ।

ॐ सुछत्राय नमः ।

ॐ विरव्यातलोकाय नमः ।

ॐ सर्वाश्रयाय क्रमाय नमः ।

ॐ मुण्डाय नमः ।

ॐ विरूपाय नमः । ८३०।

ॐ विकृताय नमः ।

ॐ दण्डिने नमः ।

ॐ कुण्डिने नमः ।

ॐ विकुर्वणाय नमः ।

ॐ हर्यक्षाय नमः ।

ॐ ककुभाय नमः ।

ॐ वज्रिणे नमः ।

ॐ शतजिह्वाय नमः ।

ॐ सहस्रपादे नमः ।

ॐ सहस्रमुर्ध्ने नमः । ८४०।

ॐ देवेन्द्राय सर्वदेवमयाय नमः ।

ॐ गुरवे नमः ।

ॐ सहस्रबाहवे नमः ।

ॐ सर्वाङ्गाय नमः ।

ॐ शरण्याय नमः ।

ॐ सर्वलोककृते नमः ।

ॐ पवित्राय नमः ।

ॐ त्रिककुडे मन्त्राय नमः ।

ॐ कनिष्ठाय नमः ।

ॐ कृष्णपिङ्गलाय नमः । ८५०।

ॐ ब्रह्मदण्डविनिर्मात्रे नमः ।

ॐ शतघ्नीपाश शक्तिमते नमः ।

ॐ पद्मगर्भाय नमः ।

ॐ महागर्भाय नमः ।

ॐ ब्रह्मगर्भाय नमः ।

ॐ जलोद्भवाय नमः ।

ॐ गभस्तये नमः ।

ॐ ब्रह्मकृते नमः ।

ॐ ब्रह्मिणे नमः ।

ॐ ब्रह्मविदे नमः । ८६०।

ॐ ब्राह्मणाय नमः ।

ॐ गतये नमः ।

ॐ अनन्तरूपाय नमः ।

ॐ नैकात्मने नमः ।

ॐ स्वयंभुव तिग्मतेजसे नमः ।

ॐ ऊर्ध्वगात्मने नमः ।

ॐ पशुपतये नमः ।

ॐ वातरंहाय नमः ।

ॐ मनोजवाय नमः ।

ॐ चन्दनिने नमः । ८७०।

ॐ पद्मनालाग्राय नमः ।

ॐ सुरभ्युत्तरणाय नमः ।

ॐ नराय नमः ।

ॐ कर्णिकारमहास्रग्विणे नमः ।

ॐ नीलमौलये नमः ।

ॐ पिनाकधृते नमः ।

ॐ उमापतये नमः ।

ॐ उमाकान्ताय नमः ।

ॐ जाह्नवीभृते नमः ।

ॐ उमाधवाय नमः ।

ॐ वराय वराहाय नमः ।

ॐ वरदाय नमः ।

ॐ वरेण्याय नमः ।

ॐ सुमहास्वनाय नमः ।

ॐ महाप्रसादाय नमः ।

ॐ दमनाय नमः ।

ॐ शत्रुघ्ने नमः ।

ॐ श्वेतपिङ्गलाय नमः ।

ॐ प्रीतात्मने नमः ।

ॐ परमात्मने नमः । ८९०।

ॐ प्रयतात्माने नमः ।

ॐ प्रधानधृते नमः ।

ॐ सर्वपार्श्वमुखाय नमः ।

ॐ त्र्यक्षाय नमः ।

ॐ धर्मसाधारणो वराय नमः ।

ॐ चराचरात्मने नमः ।

ॐ सूक्ष्मात्मने नमः ।

ॐ अमृताय गोवृषेश्वराय नमः ।

ॐ साध्यर्षये नमः ।

ॐ वसुरादित्याय नमः । ९००।

ॐ विवस्वते सवितामृताय नमः ।

ॐ व्यासाय नमः ।

ॐ सर्गाय सुसंक्षेपाय विस्तराय नमः ।

ॐ पर्यायोनराय नमः ।

ॐ ऋतवे नमः ।

ॐ संवत्सराय नमः ।

ॐ मासाय नमः ।

ॐ पक्षाय नमः ।

ॐ सङ्ख्यासमापनाय नमः ।

ॐ कलाभ्यो नमः । ९१०।

ॐ काष्ठाभ्यो नमः ।

ॐ लवेभ्यो नमः ।

ॐ मात्राभ्यो नमः ।

ॐ मुहूर्ताहः क्षपाभ्यो नमः ।

ॐ क्षणेभ्यो नमः ।

ॐ विश्वक्षेत्राय नमः ।

ॐ प्रजाबीजाय नमः ।

ॐ लिङ्गाय नमः ।

ॐ आद्याय निर्गमाय नमः ।

ॐ सते नमः । ९२०।

ॐ असते नमः ।

ॐ व्यक्ताय नमः ।

ॐ अव्यक्ताय नमः ।

ॐ पित्रे नमः ।

ॐ मात्रे नमः ।

ॐ पितामहाय नमः ।

ॐ स्वर्गद्वाराय नमः ।

ॐ प्रजाद्वाराय नमः ।

ॐ मोक्षद्वाराय नमः ।

ॐ त्रिविष्टपाय नमः । ९३०।

ॐ निर्वाणाय नमः ।

ॐ ह्लादनाय नमः ।

ॐ ब्रह्मलोकाय नमः ।

ॐ परायै गत्यै नमः ।

ॐ देवासुर विनिर्मात्रे नमः ।

ॐ देवासुरपरायणाय नमः ।

ॐ देवासुरगुरवे नमः ।

ॐ देवाय नमः ।

ॐ देवासुर नमस्कृताय नमः ।

ॐ देवासुर महामात्राय नमः । ९४०।

ॐ देवासुर गणाश्रयाय नमः ।

ॐ देवासुरगणाध्यक्षाय नमः ।

ॐ देवासुर गणागृण्यै नमः ।

ॐ देवातिदेवाय नमः ।

ॐ देवर्शये नमः ।

ॐ देवासुरवरप्रदाय नमः ।

ॐ देवासुरेश्वराय नमः ।

ॐ विश्वाय नमः ।

ॐ देवासुरमहेश्वराय नमः ।

ॐ सर्वदेवमयाय नमः । ९५०।

ॐ अचिन्त्याय नमः ।

ॐ देवतात्मने नमः ।

ॐ आत्मसंभवाय नमः ।

ॐ उद्भिदे नमः ।

ॐ त्रिविक्रमाय नमः ।

ॐ वैद्याय नमः ।

ॐ विरजाय नमः ।

ॐ नीरजाय नमः ।

ॐ अमराय नमः ।

ॐ ईड्याय नमः । ९६०।

ॐ हस्तीश्वराय नमः ।

ॐ व्यघ्राय नमः ।

ॐ देवसिंहाय नमः ।

ॐ नरऋषभाय नमः ।

ॐ विबुधाय नमः ।

ॐ अग्रवराय नमः ।

ॐ सूक्ष्माय नमः ।

ॐ सर्वदेवाय नमः ।

ॐ तपोमयाय नमः ।

ॐ सुयुक्ताय नमः । ९७०।

ॐ शिभनाय नमः ।

ॐ वज्रिणे नमः ।

ॐ प्रासानां प्रभवाय नमः ।

ॐ अव्ययाय नमः ।

ॐ गुहाय नमः ।

ॐ कान्ताय नमः ।

ॐ निजाय सर्गाय नमः ।

ॐ पवित्राय नमः ।

ॐ सर्वपावनाय नमः ।

ॐ श्रृङ्गिणे नमः । ९८०।

ॐ श्रृङ्गप्रियाय नमः ।

ॐ बभ्रुवे नमः ।

ॐ राजराजाय नमः ।

ॐ निरामयाय नमः ।

ॐ अभिरामाय नमः ।

ॐ सुरगणाय नमः ।

ॐ विरामाय नमः ।

ॐ सर्वसाधनाय नमः ।

ॐ ललाटाक्षाय नमः ।

ॐ विश्वदेवाय नमः । ९९०।

ॐ हरिणाय नमः ।

ॐ ब्रह्मवर्चसाय नमः ।

ॐ स्थावराणां पतये नमः ।

ॐ नियमेन्द्रियवर्धनाय नमः ।

ॐ सिद्धार्थाय नमः ।

ॐ सिद्धभूतार्थाय नमः।

ॐ अचिन्त्याय नमः ।

ॐ सत्यव्रताय नमः ।

ॐ शुचये नमः ।

ॐ व्रताधिपाय नमः । १०००।

ॐ परस्मै नमः ।

ॐ ब्रह्मणे नमः ।

ॐ भक्तानां परमायै गतये नमः ।

ॐ विमुक्ताय नमः ।

ॐ मुक्ततेजसे नमः ।

ॐ श्रीमते नमः ।

ॐ श्रीवर्धनाय नमः ।

ॐ जगते नमः । १००८।

इति शिवसहस्रनामावलिः समाप्त ॥

शिव सहस्रनाम स्तोत्रम् सम्पूर्ण॥

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