शिव स्तोत्र ब्रह्माकृत || Shiv Stotra by Brahma
जो मनुष्य संकट काल में ब्रह्मा जी द्वारा किए गये इस शिव स्तोत्र का पाठ करता है, वह भयभीत हो तो भय से और बँधा हो तो बंधन से मुक्त हो जाता है। राजद्वार पर, श्मशान-भूमि में और महासागर में जहाज टूट जाने पर इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से मनुष्य संकटमुक्त हो जाता है।
शिवस्तोत्रम् ब्रह्माकृतं
शिवस्तोत्रम् ब्रह्माकृतं
ब्रह्मोवाच ।।
प्रसीद दक्षयज्ञघ्न सूर्यं मच्छरणागतम् ।
त्वयैव सृष्टं सृष्टेश्च समारम्भे जगद्गुरो ।। 1 ।।
आशुतोष महाभाग प्रसीद भक्तवत्सल ।
कृपया च कृपासिन्धो रक्ष रक्ष दिवानिशम् ।। 2 ।।
ब्रह्मस्वरूप भगवन्सृष्टिस्थित्यन्तकारण ।
स्वयं रविं च निर्माय स्वयं संहर्तुमिच्छसि ।। 3 ।।
स्वयं ब्रह्मा स्वयं शेषो धर्मः सूर्यो हुताशनः ।
इन्द्रचंद्रादयो देवास्त्वत्तो भीताः परात्पर ।। 4 ।।
ऋषयो मुनयश्चैव त्वां निषेव्य तपोधनाः ।
तपसां फलदाता त्वं तपस्त्वं तपसां फलम् ।। 5 ।।
इत्येवमुक्त्वा ब्रह्मा तं सूर्यमानीय भक्तितः ।
प्रीत्या समर्पयामास शङ्करे दीनवत्सले ।। 6 ।।
शंभुस्तमाशिषं कृत्वा विधिं नत्वा जगद्विधिः ।
प्रसन्नवदनः श्रीमानालयं प्रययौ मुदा ।। 7 ।।
इति धातृकृतं स्तोत्रं संकटे यः पठेन्नरः ।
भयात्प्रमुच्यते भीतो बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।। 8 ।।
राजद्वारे श्मशाने च मग्नपोते महार्णवे ।
स्तोत्रस्मरणमात्रेण मुच्यते नात्र संशयः ।। 9 ।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे ब्रह्माकृतं शिवस्तोत्रम् सम्पूर्ण:।। ४८ ।।
ब्रह्माकृत शिव स्तोत्र भावार्थ सहित
ब्रह्मोवाच ।।
प्रसीद दक्षयज्ञघ्न सूर्यं मच्छरणागतम् ।
त्वयैव सृष्टं सृष्टेश्च समारम्भे जगद्गुरो ।। 1 ।।
ब्रह्मा जी बोले- दक्ष-यज्ञ-विनाशक शिव! सूर्य देव मेरी शरण में आए हैं; अतः आप इन पर कृपा कीजिए। जगद्गुरो! सृष्टि के आरंभ में आपने ही सूर्य की सृष्टि की है।
आशुतोष महाभाग प्रसीद भक्तवत्सल ।
कृपया च कृपासिन्धो रक्ष रक्ष दिवानिशम् ।। 2 ।।
महाभाग आशुतोष! भक्तवत्सल! प्रसन्न होइये। कृपासिन्धो! कृपापूर्वक दिन और रात की रक्षा कीजिए।
ब्रह्मस्वरूप भगवन्सृष्टिस्थित्यन्तकारण ।
स्वयं रविं च निर्माय स्वयं संहर्तुमिच्छसि ।। 3 ।।
ब्रह्मस्वरूप भगवन! आप जगत की सृष्टि, पालन और संहार के कारण हैं। क्या स्वयं ही सूर्य का निर्माण करके स्वयं ही इनका संहार करना चाहते हैं?
स्वयं ब्रह्मा स्वयं शेषो धर्मः सूर्यो हुताशनः ।
इन्द्रचंद्रादयो देवास्त्वत्तो भीताः परात्पर ।। 4 ।।
आप स्वयं ही ब्रह्मा, शेषनाग, धर्म, सूर्य और अग्नि हैं। परात्पर परमेश्वर! चंद्र और इंद्र आदि देवता आपसे भयभीत रहते हैं।
ऋषयो मुनयश्चैव त्वां निषेव्य तपोधनाः ।
तपसां फलदाता त्वं तपस्त्वं तपसां फलम् ।। 5 ।।
ऋषि और मुनि आपकी ही आराधना करके तपस्या के धनी हुई हैं। आप ही तप हैं, आप ही तपस्या के फल हैं और आप ही तपस्याओं के फलदाता हैं।
इत्येवमुक्त्वा ब्रह्मा तं सूर्यमानीय भक्तितः ।
प्रीत्या समर्पयामास शङ्करे दीनवत्सले ।। 6 ।।
ऐसा कहकर ब्रह्मा जी सूर्य को ले आये और भक्ति तथा प्रीति के साथ दीनवत्सल शंकर को उन्हें सौंप दिया।
शंभुस्तमाशिषं कृत्वा विधिं नत्वा जगद्विधिः ।
प्रसन्नवदनः श्रीमानालयं प्रययौ मुदा ।। 7 ।।
भगवान शिव का मुख प्रसन्नता से खिल उठा। उन जगत-विधाता ने सूर्य को आशीर्वाद देकर ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और बड़े हर्ष के साथ अपने धाम को प्रस्थान किया।
इति धातृकृतं स्तोत्रं संकटे यः पठेन्नरः ।
भयात्प्रमुच्यते भीतो बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।। 8 ।।
जो मनुष्य संकट काल में ब्रह्मा जी द्वारा किए गये इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह भयभीत हो तो भय से और बँधा हो तो बंधन से मुक्त हो जाता है।
राजद्वारे श्मशाने च मग्नपोते महार्णवे ।
स्तोत्रस्मरणमात्रेण मुच्यते नात्र संशयः ।। 9 ।।
राजद्वार पर, श्मशान-भूमि में और महासागर में जहाज टूट जाने पर इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से मनुष्य संकटमुक्त हो जाता है; इसमें संशय नहीं है।
इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त महापुराण के श्रीकृष्णजन्मखण्ड से ब्रह्माकृत शिवस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।। ४८ ।।
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