परशुरामकृत शिव स्तोत्र || Shiv Stotra by Parashuram

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जो भक्तिभाव सहित इस परशुरामकृत शिव स्तोत्र का पाठ करता है, वह सम्पूर्ण पापों से पूर्णतया मुक्त होकर शिवलोक में जाता है।

परशुरामकृत शिव स्तोत्र

परशुराम उवाच–

ईश त्वां स्तोतुमिच्छामि सर्वथा स्तोतुमक्षमम् ।

अक्षराक्षरबीजं च किं वा स्तौमि निरीहकम्।।

परशुराम बोले– ईश! मैं आपकी स्तुति करना चाहता हूँ, परंतु स्तवन करने में सर्वथा असमर्थ हूँ। आप अक्षर और अक्षर के कारण तथा इच्छारहित हैं, तब मैं आपकी क्या स्तुति करूँ?

न योजनां कर्तुमीशो देवेशं स्तौमि मूढधीः।

वेदा न शक्ता यं स्तोतुं कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः।।

मैं मन्दबुद्धि हूँ; मुझमें शब्दों की योजना करने का ज्ञान तो है नहीं और चला हूँ देवेश्वर की स्तुति करने। भला, जिनका स्तवन करने की शक्ति वेदों में नहीं है, उन आपकी स्तुति करके कौन पार पा सकता है?

बुद्धेर्वाङ्मनसोः पारं सारात्सारं परात्परम् ।

ज्ञानबुद्धेरसाध्यं च सिद्धं सिद्धैर्निषेवितम् ।।

यमाकाशमिवाद्यन्तमध्यहीनं तथाव्ययम् ।

विश्वतन्त्रमतन्त्रं च स्वतन्त्रं तन्त्रबीजकम् ।।

ध्यानासाध्यं दुराराध्यमतिसाध्यं कृपानिधिम् ।

त्राहि मां करुणासिन्धो दीनबन्धोऽतिदीनकम् ।।

आप मन, बुद्धि और वाणी के अगोचर, सार से भी साररूप, परात्पर, ज्ञान और बुद्धि से असाध्य, सिद्ध, सिद्धों द्वारा सेवित, आकाश की तरह आदि, मध्य और अन्त से हीन तथा अविनाशी, विश्व पर शासन करने वाले, तन्त्ररहित, स्वतन्त्र, तन्त्र के कारण, ध्यान द्वारा असाध्य, दुराराध्य, साधन करने में अत्यन्त सुगम और दया के सागर हैं। दीनबन्धो! मैं अत्यन्त दीन हूँ। करुणासिन्धो! मेरी रक्षा कीजिये।

अद्य मे सफलं जन्म जीवितं च सुजीवितम् ।

स्वप्नादृष्टं च भक्तानां पश्यामि चक्षुषाधुना।।

आज मेरा जन्म सफल तथा जीवन सुजीवन हो गया; क्योंकि भक्तगण जिन्हें स्वप्न में भी नहीं देख पाते, उन्हीं को इस समय मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ।

शक्रादयः सुरगणाः कलया यस्य सम्भवाः।

चराचराः कलांशेन तं नमामि महेश्वरम् ।।

जिनकी कला से इन्द्र आदि देवगण तथा जिनके कलांश से चराचर प्राणी उत्पन्न हुए हैं, उन महेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

यं भास्करस्वरूपं च शशिरूपं हुताशनम् ।

जलरूपं वायुरूपं तं नमामि महेश्वरम् ।।

जो सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, जल और वायु के रूप में विराजमान हैं, उन महेश्वर को मैं अभिवादन करता हूँ।

स्त्रीरूपं क्लीबरूपं च पौरुषं च बिभर्ति यः।

सर्वाधारं सर्वरूपं तं नमामि महेश्वरम् ।।

जो स्त्रीरूप, नपुंसकरूप और पुरुषरूप धारण करके जगत का विस्तार करते हैं, जो सबके आधार और सर्वरूप हैं, उन महेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

देव्या कठोरतपसा यो लब्धो गिरिकन्यया ।

दुर्लभस्तपसां यो हि तं नमामि महेश्वरम् ।।

हिमालय कन्या देवी पार्वती ने कठोर तपस्या करके जिनको प्राप्त किया है। दीर्घ तपस्या के द्वारा भी जिनका प्राप्त होना दुर्लभ है; उन महेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

सर्वेषां कल्पवृक्षं च वाञ्छाधिकफलप्रदम् ।

आशुतोषं भक्तबन्धुं तं नमामि महेश्वरम् ।।

जो सबके लिये कल्पवृक्षरूप हैं और अभिलाषा से भी अधिक फल प्रदान करते हैं, जो बहुत शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और जो भक्तों के बन्धु हैं; उन महेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।

अनन्तविश्वसृष्टीनां संहर्तारं भयंकरम् ।

क्षणेन लीलामात्रेण तं नमामि महेश्वरम् ।।

जो लीलापूर्वक क्षणभर में अनन्त विश्व-सृष्टियों का संहार करने वाले हैं; उन भयंकर रूपधारी महेश्वर को मेरा प्रणाम है।

यः कालः कालकालश्च कालबीजं च कालजः।

अचः प्रजश्च यः सर्वस्तं नमामि महेश्वरम् ।।

जो कालरूप, काल के काल, काल के कारण और काल से उत्पन्न होने वाले हैं तथा जो अजन्मा एवं बारंबार जन्म धारण करने वाले आदि सब कुछ हैं; उन महेश्वर को मैं मस्तक झुकाता हूँ।

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे तृतीये गणपतिखण्डे नारदनारायणसंवादे परशुरामस्य(परशुरामकृत शिव स्तोत्र) कैलासगमननामैकोनत्रिंशोऽध्यायः ।। २९ ।।

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