श्री सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र, Shree Sidhha Lakshmi Stotram

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स्तोत्र माहात्म्य

जो मनुष्य इस स्तोत्र को सदा पढ़ते है वो सभी आधी-व्याधि उपाधियों से मुक्त हो जाते है

एक माह, दो माह, तीन माह, चार माह, पांच माह, छः माह तीनो संध्यो में यह स्तोत्र पढता है

वो ब्राह्मण यदि रोगी हो,दरिद्र हो तो भी हजारो हजारो जन्मो के पापो से मुक्त हो जाता है |

दरिद्र लक्ष्मी को प्राप्त करता है पुत्र रहित पुत्र को प्राप्त करता है,दरिद्र लक्ष्मी को प्राप्त करता है | अग्नि,चोर,शाकिनी,डाकिनी,भूत, बेताल, सर्प, ब्याघ्र, या झहरीले जानवरो का भय नहीं रहता |

राजा के दरबार में,सभास्थल में, कारागृह यानी जैल में भी वो मनुष्य शत्रुओ पर विजय प्राप्त करता है |

वो मनुष्य यशस्वी बनता है |

सभी मनुष्यो के हित के लिए ही यह स्तोत्र ईश्वर ने बनाया है |

ब्राह्मण के लिए यह वरदान रूपी स्तोत्र है |

अगर कोई ब्राह्मण इसका नित्य निरंतर पाठ करता है तो वो सभी दुःख-शोक-दरिद्रता में से मुक्त हो जाएगा |

लक्ष्मी देवी सभी पापो का हरण करनेवाली है और सभी सिद्धिया देनेवाली है |

विनियोगः

ॐ अस्य श्री सिद्धलक्ष्मीस्तोत्रमन्त्रस्य हिरण्यगर्भऋषिः अनुष्टुप्छन्दः

श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः श्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं मम सर्वक्लेशपीडापरिहारार्थं सर्वदुःखदारिद्र्यनाशनार्थं सर्वकार्यसिध्यर्थं च श्रीसिद्धलक्ष्मीस्तोत्रपाठे विनियोगः |

ऋष्यादिन्यास :

ॐ हिरण्यगर्भ ऋषये नमः शिरसि |

अनुष्टुप्छन्दसे नमो मुखे |

श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वती देवताभ्यो नमो हृदि |

श्रीं बीजाय नमो गुह्ये |

ह्रीं शक्तये नमः पादयोः |

क्लीं कीलकाय नमो नाभौ |

विनियोगाय नमः सर्वाङ्गेषु |

करन्यास

ॐ श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |

ॐ ह्रीं विष्णुतेजसे तर्जनीभ्यां नमः |

ॐ क्लीं अमृतानन्दायै मध्यमाभ्यां नमः |

ॐ श्रीं दैत्यमालिन्यै अनामिकाभ्यां नमः |

ॐ ह्रीं तेजःप्रकाशिन्यै कनिष्ठिकाभ्यां नमः |

ॐ क्लीं ब्राह्म्यै वैष्णव्यै रुद्राण्यै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |

हृदयादि षडङ्गन्यास

ॐ श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै हृदयाय नमः |

ॐ ह्रीं विष्णुतेजसे शिरसे स्वाहा |

ॐ क्लीं अमृतानन्दायै शिखायै वषट नमः |

ॐ श्रीं दैत्यमालिन्यै कवचाय हुम् |

ॐ ह्रीं तेजःप्रकाशिन्यै नेत्रत्रयाय वौषट |

ॐ क्लीं ब्राह्म्यै वैष्णव्यै रुद्राण्यै अस्त्राय फट |

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सिद्धलक्ष्म्यै नमः

तालत्रयं दिग्बंधनं च कुर्यात ||

ध्यानं

ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखीम् |

त्रिनेत्रां खड्ग त्रिशूल पद्मचक्र गदाधराम् ||

पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कार भूषिताम्

तेजःपुञ्जधरीं देवीं ध्यायेद् बालकुमारिकाम् ||

ॐ कारं लक्ष्मीरूपं तु विष्णुं हृदयमव्ययम् |

विष्णुमानन्दमव्यक्तं ह्रींकारं बीजरूपिणीम् || 1 ||

क्लीं अमृतानन्दिनीं भद्रां सदात्यानंददायिनीम्

श्रीं दैत्यशमनीं शक्तिं मालिनीं शत्रुमर्दिनीम् || 2 ||

तेजः प्रकाशिनीं देवीं वरदां शुभकारिणीम् |

ब्राह्मीं च वैष्णवीं रौद्रीं कालिकारूपशोभिनीम् || 3 ||

अकारे लक्ष्मीरुपं तु उकारे विष्णुमव्ययं |

मकारः पुरुषोऽव्यक्तो देवीप्रणव उच्यते || 4 ||

सूर्यकोटि प्रतीकाशं चन्द्रकोटिसमप्रभं |

तन्मध्ये निकरं सूक्ष्मं ब्रह्मरुपं व्यवस्थितम || 5 ||

ॐकारं परमानन्दं सदैव सुखसुंदरीं |

सिद्धलक्ष्मि मोक्षलक्ष्मि आद्यलक्ष्मि नमोऽस्तु ते || 6 ||

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके |

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते |

प्रथमं त्र्यम्बका गौरी द्वितीयं वैष्णवी तथा |

तृतीयं कमला प्रोक्ता चतुर्थं सुंदरी तथा || 7 ||

पञ्चमं विष्णुशक्तिश्च षष्ठं कात्यायनी तथा |

वाराही सप्तमं चैव ह्यष्टमं हरिवल्लभा || 8 ||

नवमी खडिगनी प्रोक्ता दशमं चैव देविका |

एकादशं सिद्धलक्ष्मीर्द्वादशं हंसवाहिनी || 10 ||

एतत्स्तोत्रवरं देव्या ये पठन्ति सदा नराः |

सर्वापद्भयो विमुच्यन्ते नात्र कार्या विचारणा || 11 ||

एकमासं द्विमासं च त्रिमासं माञ्चतुष्टयं |

पञ्चमासं च षण्मासं त्रिकालं यः सदा पठेत || 12 ||

ब्राह्मणः क्लेशितो दुःखी दारिद्र्यामयपीडितः |

जन्मान्तरसहस्त्रोत्थैर्मुच्यते सर्वकिल्बिषैः || 13 ||

दरिद्रो लभते लक्ष्मीमपुत्रः पुत्रवान भवेत् |

धन्यो यशस्वी शत्रुघ्नो वह्निचॉैरभयेषु च || 14 ||

शाकिनी भूतवेताल सर्पव्याघ्र निपातने |

राजद्वारे सभास्थाने कारागृह निबन्धने || 15 ||

ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं प्राणिनां हितकारकं |

स्तुवन्तु ब्राह्मण नित्यं दारिद्र्यं न च बाधते |

सर्वपापहरा लक्ष्मीः सर्वसिद्धिप्रदायिनी || 16 ||

|| इति श्रीब्रह्मपुराणे ईश्वरविष्णु संवान्दे श्रीसिद्धलक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णं ||

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