श्री भैरव चालीसा || Shri Bhairav ​​Chalisa

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पुराणों के अनुसार भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। बाबा भैरव को माता वैष्णो देवी का वरदान प्राप्त है। शिव पुराण में भैरव को महादेव का पूर्ण रूप बताया गया है। अत: जीवन के हर संकट से मुक्ति पाना है तो जातक को भैरव चालीसा का यह चमत्कारिक पाठ अवश्‍य पढ़ना चाहिए। काल भैरव चालीसा का पाठ करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। काल भैरव की कृपा से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। काल भैरव के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। काल भैरव की कृपा मात्र से ही इंसान सारी तकलीफों से दूर हो जाता है और वो तेजस्वी बनता है। पाठकों के लाभार्थ यहाँ भैरव का दो चालीसा दिया जा रहा है।

श्री भैरव चालीसा

|| दोहा ||

श्री गणपति गुरु गौरि पद प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करौं श्री शिव भैरवनाथ ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल ॥

|| चौपाई ||

जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ॥

जयति बटुक-भैरव भय हारी । जयति काल-भैरव बलकारी ॥

जयति नाथ-भैरव विख्याता । जयति सर्व-भैरव सुखदाता ॥

भैरव रूप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ॥

भैरव रव सुनि ह्वै भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ॥

शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ॥

जटा जूट शिर चंद्र विराजत । बाला मुकुट बिजायठ साजत ॥

कटि करधनी घूँघरू बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ॥

जीवन दान दास को दीन्ह्यो । कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ॥

वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ॥

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ॥

कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्श सुयश नहिं थोडा ॥

जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत ॥

रूप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुँ लोचन ॥

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोलत ॥

रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ॥

बटुक नाथ हो काल गँभीरा । श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा ॥

करत नीनहूँ रूप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहँ शुभ आशा ॥

रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सु‍आनन ॥

तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहँ दर्शन पावहिं ॥

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमा नन्द जय ॥

भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय । वैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥

महा भीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय ॥

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय ॥

निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥

त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥

रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥

करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ॥

करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ॥

देयँ काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ॥

जनकर निर्मल होय शरीरा । मिटै सकल संकट भव पीरा ॥

श्री भैरव भूतोंके राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ॥

ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपाकरि काज सम्हारयो ॥

सुन्दर दास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥

श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ॥

|| दोहा ||

जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार ।

कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार ॥

श्री भैरव चालीसा समाप्त ॥

बटुक भैरव चालीसा

॥ दोहा ॥

विश्वनाथ को सुमिर मन, धर गणेश का ध्यान।

भैरव चालीसा पढू , कृपा करिए भगवान ॥

बटुकनाथ भैरव भजूं , श्री काली के लाल।

अपने जन पर कृपा कर , काशी के कुतवाल ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय श्री काली के लाला। रहो दास पर सदा दयाला॥

भैरव भीषण भीम कपाली। क्रोध वक्त्र लोचन में लाली॥

कर त्रिशूल है कठिन कराला। गले में प्रभु मुंडन की माला॥

कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला। पीकर मद रहता मतवाला॥

रूद्र बटुक भक्तन के संगी। प्रेमनाथ भूतेश भुजंगी॥

त्रैल तेश है नाम तुम्हारा। चक्रदंड अमरेश पियारा॥

शेखर चन्द्र कपल विराजे। श्वान सवारी पर प्रभू गाजे॥

शिव नकुलेश चंड हो स्वामी। भैरवनाथ प्रभु नमो नमामी॥

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने। भैरव काल जगत ने जाने॥

गायत्री कहे निमिष दिगंबर। जगन्नाथ उन्नत आडम्बर॥

क्षेत्रपाल दस पाणि कहाए। मंजुल उमानंद कहलाये॥

चक्रनाथ भक्तन हितकारी। कहे त्रयम्बक सब नर नारी॥

संहारक सुन्दर सब नामा। करहु भक्त के पूरण कामा॥

नाथ पिशाचन के हो प्यारे। संकट मेटहू सकल हमारे॥

कात्यायु सुन्दर आनंदा। भक्त जनन के काटहु फन्दा॥

कारण लम्ब आप भय भंजन। नमो नाथ जय जन-मन-रंजन॥

हो तुम मेष त्रिलोचन नाथा। भक्त चरण में नावत माथा॥

तुम असितांग रूद्र के लाला। महाकाल कालो के काला॥

ताप मोचन अरिदल नाशा। भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा॥

श्वेत काल अरु लाल शरीरा। मस्तक मुकुट शीश पर चीरा॥

काली के लाला बलधारी। कहं लगी शोभा कहहु तुम्हारी॥

शंकर के अवतार कृपाला। रहो चकाचक पी मद प्याला॥

काशी के कुतवाल कहाओ। बटुकनाथ चेटक दिखलाओ॥

रवि के दिन जन भोग लगावे। धुप दीप नैवेद्य चढ़ावे॥

दर्शन कर के भक्त सिहावे। तब दारू की धर पियावे॥

मठ में सुन्दर लटकत झाबा। सिद्ध कार्य करो भैरव बाबा॥

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा। कर में शुभग शुशोभित कोड़ा॥

कटी घुंघरू सुरीले बाजत। कंचन के सिंघासन राजत॥

नर नारी सब तुमको ध्यावत। मन वांछित इच्छा फल पावत॥

भोपा है आप के पुजारी। करे आरती सेवा भारी॥

भैरव भात आपका गाऊं। बार बार पद शीश नवाऊ॥

आपही वारे छाजन छाये। ऐलादी ने रुदन मचाये॥

बहीन त्यागी भाई कह जावे। तो दिन को मोहि भात पिन्हावे॥

रोये बटुकनाथ करुणाकर। गिरे हिवारे में तुम जाकर॥

दुखित भई ऐलादी बाला। तब हर का सिंघासन हाला॥

समय ब्याह का जिस दिन आया। प्रभु ने तुमको तुरत पठाया॥

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ। तीन दिवस को भैरव जाओ॥

दल पठान संग लेकर आया। ऐलादी को भात पिन्हाया॥

पूरण आस बहिन की किन्ही। सुर्ख चुंदरी सिर धरी दीन्ही॥

भात भरा लौटे गुणग्रामी। नमो भैरव नमामि अंतर्यामी॥

मैं हुन प्रभु बस तुम्हारा चेरा। करू आप की शरण बसेरा॥

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।

कृपा दास पर कीजिये शंकर के अवतार ॥

जो यह चालीसा पढे प्रेम सहित सत बार।

उस घर सर्वानन्द हो वैभव बढे अपार ॥

श्री भैरव बटुक भैरव चालीसा समाप्त ॥

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