Shri Krishna Janmashtami 2023 श्री कृष्ण का मुरली और मोर पंख से क्या संबंध है जाने इसका रहस्य

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी में भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भक्त लोग भगवान के जन्म के दिन उपवास रखते हैं। तरह-तरह की झांकियां सजाई जाती हैं जिनमें भगवान श्री कृष्ण के मनोहर रूप का दर्शन होता है। सिर पर मोर का मुकुट और हाथ में बांसुरी लिए भगवान श्री कृष्ण सदैव अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। हाथ में मुरली और मस्तक पर मुकुट में मोर का पंख क्यों रहता है यह भी जान लेना आवश्यक है।

 श्री कृष्ण जन्माष्टमी कब है

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का शुभारंभ 6 सितंबर 2023 दोपहर 03 बजकर 37 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 7 सितंबर 2023 शाम 04 बजकर 14 मिनट पर होगा। ऐसे में श्री कृष्ण जन्माष्टमी 6 सितंबर 2023, बुधवार के दिन मनाई जाएगी।

6 सितंबर 2023 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। जन्माष्टमी मनाने की तैयारियां जोरों शोरों पर उनके भक्त लोग कर रहे हैं जन्माष्टमी का त्योहार भारत में तो धूमधाम से मनाया ही जाता है इसके साथ ही विदेशों में भी जन्माष्टमी का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण से प्रेम रखने वाले भक्तजनों का यह भी जान लेना आवश्यक है कि भगवान श्री कृष्ण अपने साथ मुरली को और अपने सर पर मुकुट में मोर का पंख क्यों धारण करते थे ,इसका क्या कारण है।

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भगवान श्री कृष्ण के  मुरली धारण करने का अर्थ

भगवान श्री कृष्ण को मुरलीधर के नाम से भी जाना जाता है। मुरली की आवाज बहुत ही सुरीली और मन को मोह लेने  वाली होती है।इससे आज के जीवन में लोगों को यह शिक्षा लेनी चाहिए कि जिस प्रकार मुरली की आवाज सुरीली और मधुर होती है हमें दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए।

 अपनी वाणी को मधुर बनाए रखें, जिससे सौहार्द की भावना का विकास हो।मुरली के अंदर कोई गांठ नहीं होती है हमें अपने दैनिक जीवन में भी किसी के प्रति भेदभाव की गांठ नहीं रखनी चाहिए। मुरली अंदर से खोखली होती है इसीलिए उसकी आवाज इतनी मधुर होती है। मुरली से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि जिस प्रकार मुरली के अंदर कुछ नहीं होता खोखली होती है उसी प्रकार हमें अपने अंदर किसी के प्रति बैर भाव, द्वेष ,ईर्ष्या आदि नहीं रखना चाहिए।

भगवान कृष्ण जब मुरली बजाते थे, तो उसकी मधुर धुन को सुनकर गोपियां मंत्रमुग्ध हो जाती थी ,और उसी मुरली की धुन के माध्यम से वह श्रीकृष्ण के ध्यान में खो जाती थी।

इस संबंध में एक कथा है।

कहते है की मुरली ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी जिनका नाम सरस्वती जी था। ब्रम्हा जी के श्राप के कारण जण होने से पूर्व उन्होंने 1000 वर्ष तक भगवान कृष्ण की प्राप्ति के लिए तपस्या की। तब भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर कृष्णा अवतार में उन्हें अपनी सहचरी बनाने का वरदान दिया। तब उन्होंने ब्रह्मा जी के श्राप को भगवान कृष्ण को बताया कि उन्होंने जड़ होने का श्राप दिया है।

तब भगवान कृष्ण ने कहा तुम्हें चाहे जड़ रूप में ही जन्म मिले लेकिन फिर भी मैं तुम्हें अपना लूंगा ,और तुम्हारे अंदर ऐसी प्राणशक्ति भर दूंगा जो जड़ से चैतन्य बन जाएगी और सभी जड़ों  को चैतन्य बनाने की क्षमता रखेगी।

इसके बाद सरस्वती जी का जन्म मुरली के रूप में हुआ और वह भगवान श्री कृष्ण की प्रिय मुरली बन गई। मुरली की मधुर धुन सभी जड़ और चेतन के मन को चुरा लेती है और भगवान श्री कृष्ण सदा उसे अपने अधरों से लगाए रहते हैं।

 भगवान श्री कृष्ण का मोर पंख से संबंध

भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर मुकुट में हमेशा मोर पंख लगा हुआ रहता है। क्योंकि मोर का पंख ब्रह्मचारी का प्रतीक होता है भगवान कृष्ण को ब्रह्मचारी भी कहा गया है। मोर के पंख में अनेक प्रकार के रंग होते हैं भगवान कृष्ण के जीवन में भी अनेक प्रकार के रंग थे उनका जीवन रंगबिरंगा था।

कहते है कि भगवान कृष्ण के जीवन की कुंडली में कालसर्प दोष था इसीलिए  मोर का पंख अपने मुकुट पर धारण करते थे।

भगवान श्री कृष्ण का दूसरा नाम मोर मुकुट धारी भी है। मोर पंख को धारण करने की एक कथा है

कहते हैं कि एक बार भगवान श्री कृष्ण की मुरली की मधुर धुन सुनकर राधा जी नृत्य करने लगी। उनके साथ एक मोर भी नृत्य करने लगा और मोर के नृत्य करते समय उसका एक पंख टूट कर गिर गया। तब प्रभु ने उसे उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया। जब राधा जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरो के नाचने में उन्हें राधा जी का प्रेम दिखाई देता है।

ब्रम्हचर्य का प्रतीक है मोर पंख

मोर ब्रम्हचर्य का प्रतीक माना जाता है मोर अपने पूरे जीवन एक ही मोरनी के संग रहता है। मोरनी का गर्भधारण मोर के आंसुओं को पी करके होता है। इसलिए इस पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने सर पर धारण करते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है।

भगवान श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। कंस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था ,और उसका अंत करने के लिए भगवान ने माता यशोदा और बासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लिया। जिस समय भगवान का जन्म हुआ उस समय उनके माता-पिता कंस के कारागार में बंदी थे। कंस को भविष्यवाणी के द्वारा यह पता लग चुका था कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का काल होगा। इसलिए कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में बंद कर दिया।

 कृष्ण के जन्म के पहले देवकी के सात पुत्रों को कंस मार चुका था।जिस समय कारागार में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ उस समय कारागार के सभी पहरेदार गहरी नींद में चले गए। ईश्वरी प्रेरणा से महाराज वासुदेव उस घनघोर रात्रि में यमुना नदी को पार करके गोकुल पहुंचकर भगवान श्री कृष्ण को नंद बाबा और माता यशोदा को सौंप दिया । कृष्ण का बचपन गोकुल में नंद बाबा के घर बीता और बड़े होकर कंस का वध किया।

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