श्री क्षेत्रपाल चालीसा || Shri Kshetrapal Chalisa

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क्षेत्रपाल क्षेत्र विशेष के एक देवता होते हैं जिनके अधिन उक्त क्षेत्र की आत्माएं रहती हैं। भारत के अधिकतर गांवों में भैरवनाथ, खेड़ापति (हनुमानजी), सतीमाई, कालीमाई, सीतलामाई और क्षेत्रपाल आदि के मंदिर होते हैं। यह सभी ग्राम देवता होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य माने गए हैं। क्षेत्रपाल की प्रसन्नता के लिए क्षेत्रपाल की पूजा,आराधना व क्षेत्रपाल चालीसा का पाठ करें।

श्री क्षेत्रपाल चालीसा

|| दोहा ||

भोलेनाथ को सुमरि मन, धर गणेश को ध्यान ।

श्री क्षेत्रपाल चालीसा पढू , कृपा करहूँ भगवान ।।

क्षेत्रपाल भैरव भजू, श्री काली के लाल ।

मुझ दास पर कृपा करो , मेरे बाबा क्षेत्रपाल ।।

|| चौपाइया ||

जय जय श्री भैरव मतवाला । रहो दास पर सदा दयाला ।।

भैरव भीषण भीम कपाली । क्रोधवंत लोचन में लाली ।।

कर त्रिशूल है कठिन कराला । गल में प्रभु मुंडन की माला ।।

कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला । पीकर मद रहता मतवाला ।।

क्षेत्रपाल भक्तन के संगी । प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी ।।

श्री क्षेत्रपाल है नाम तुम्हारा । चक्रदंड अमरेश पियारा ।।

शेखर चन्द्र कपाल विराजे । स्वान सवारी पै प्रभू राजे ।।

शिव नकुलेश चंड हो स्वामी । बैजनाथ प्रभु नमो नमामी ।।

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने । भैरव काल जगत में जाने ।।

गायत्री कहे निमिष दिगंबर । जगन्नाथ उन्नत आडम्बर ।।

क्षेत्रपाल दशपाणी कहाए । मंजुल उमानंद कहलाये ।।

चक्रनाथ भक्तन हितकारी । कहे त्रयम्बकं सब नर नारी ।।

संहारक सुनन्द सब नामा । करहु भक्त के पूरण कमा ।।

क्षेत्रपाल शमशान के वासी । व्यालपवित हाथ यम फाँसी ।।

कृत्यायु सुन्दर आनंदा । भक्तन जन के काटहु फन्दा ।।

कारण लम्ब आप भय भंजन । नमो नाथ जय जनमन रंजन ।।

हो तुम मेष त्रिलोचन नाथा । भक्त चरण में नावत माथा ।।

तुम असितांग रूद्र के लाला । महाकाल कालो के काला ।।

ताप विमोचन अरिदल नासा । भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा ।।

श्वेत काल अरु लाल शरीरा । मस्तक मुकुट शीश पर चीरा ।।

काली के लाला बलधारी । कहं लगी शोभा कहहु तुम्हारी ।।

शंकर के अवतार कृपाला । रहो चकाचक पी मद प्याला ।।

काशी के कुतवाल कहाओ । क्षेत्रपाल चेटक दिखलाओ ।।

रवि के दिन जन भोग लगावे । धुप दीप नवेद चढ़ावे ।।

दर्शन कर के भक्त सिहावे । तब शुरा की धार पियावे ।।

मठ में सुन्दर लटकत झाबा । सिद्ध काज करो भैरव बाबा ।।

नाथ आप का यश नहीं थोडा । कर में शुभग शुशोभित कोड़ा ।।

कटि घुंघरा सुरीले बाजत । कंचन के सिंघासन राजत ।।

नर नारी सब तुमको ध्यावे । मन वांछित इच्छा फल पावे ।।

भोपा है आप के पुजारी । करे आरती सेवा भारी ।।

बाबा भात आप का गाऊं । बार बार पद शीश नवाऊ ।।

ऐलादी को दुःख निवारयौ । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ।।

जो नर(नारी) मन से ध्यान लगावे ।

दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे ।।

लूले लँगड़े पैर चलावे । नेत्रहीन ज्योति को पावे ।।

नीसंतान संतान को पावे । जात जडूला कर भोग लगावे ।।

कौड़ी नर भी काया पावे । वाय, मिर्गी जड़ से मिटावे ।।

काया के सव रोग मिटावे । धाम डाबरा जो कोई आवे ।।

भूत , जिन्न तो यूही भग जावे । सांकड़ की जब मार लगावे ।।

दृढ़ विशवास कर क्षेत्रपाल के आवे ।मृत प्राणी भी जीवित हो जावे ।।

तुमरो दास जहाँ भी होई । ता पर संकट परे न कोई ।।

तुम बिन अव ना कोई मेरो । संकट हरण हरउ दुःख मेरो ।।

|| दोहा ||

जय जय श्री भैरव मतवाडा, स्वामी संकट टार ।

कृपा दास पर कीजिये शंकर के अवतार ।।

श्री क्षेत्रपाल चालीसा पढे , प्रेम सहित शतवार ।

उस घर सर्वानन्द हो , वैभव बढे अपार ।।

क्षेत्रपाल चालीसा समाप्त।

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