श्री नीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र, Shri Nilkanth Aghorastra Stotram

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नीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र का प्रयोग पापों के क्षय, लक्ष्मी की स्थिरता, आरोग्य, ज्वर निवारण, अपमृत्यु से मुक्ति, क्षयरोग, कुष्ठरोग, भुत-प्रेतादि से मुक्ति के लिए किया जाता है। भगवन शिव का यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके स्मरण मात्र से मनुष्यों के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं। इस स्तोत्र से जीवन व शरीर मे आयी हुई नकारात्मकता, अज्ञात रोगभय, तंत्र पीड़ा के कारण आयी हुई निर्बलता दूर होती है। इस स्तोत्र के जप पाठ से कंठ रोग, वाणी दोष सब निवृत्त होते हैं। इसी स्तोत्र के प्रभाव से जन्मकुण्डलीगत विष योग (शनि + चंद्रमा युति) के कारण आई हुई निराशा भी निवृत्त होती है।

जहाँ असमय में गर्भपात हो या जहाँ बालक जन्म लेते ही मर जाता हो तथा जिस घर में विकृत अंग वाले शिशु उत्पन्न होते हों तथा जहाँ समय पूर्ण हाने से पूर्व ही बालक का जन्म होता हो, वहाँ इन सब दोषों के शमन के लिए श्रीनीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र का पाठ और आहुतियां दें।

श्री नीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र

|| स्तोत्र विधान ||
किसी भी दिन इस स्तोत्र का सिर्फ सात बार पाठ करने से सभी कामनाये या मनमे चिन्तित कामनाये सिद्ध हो जाती है |

|| विनियोगः ||

ॐ अस्य श्री भगवान् नीलकण्ठ सदाशिव स्तोत्र मंत्रस्य श्रीब्रह्माऋषिः अनुष्टुपछन्दः श्रीनीलकण्ठ सदाशिवो देवता | ब्रह्मबीजं | पार्वतीशक्तिः | मम समस्त पापक्षयार्थं क्षेमस्थैर्यायुरोग्याभि वृद्ध्यर्थं मोक्षादि चतुर्वर्ग साधनार्थं च श्रीनीलकण्ठ सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः |

|| ऋष्यादिन्यास ||
श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि |
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे |
श्रीनीलकण्ठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि |
ब्रह्म बीजाय नमः लिङ्गे |
पार्वती शक्त्यै नमः नाभौ |
मम समस्त पापक्षयार्थं क्षेमस्थैर्यायुरारोग्याभि वृद्ध्यर्थं मोक्षादि चतुर्वर्ग साधनार्थं च श्रीनीलकण्ठ सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ||

|| मूल स्तोत्रं ||

ॐ नमो नीलकण्ठाय श्वेतशरीराय सर्पालंकारभूषिताय भुजङ्गपरिकराय नागयज्ञोपवीताय अनेकमृत्यु विनाशाय नमः |
युग युगान्त कालप्रलय प्रचण्डाय प्रज्वाल मुखाय नमः | दंष्ट्राकराल घोररूपाय हुम् हुम् फट स्वाहा |
ज्वालमुखाय मन्त्र करालाय प्रचण्डार्क सहस्त्रांशुचण्डाय नमः | कर्पूरमोद परिमलाङ्गाय नमः |
ॐ ईं ईं नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि माणिक्य मुकुट भूषणाय हन हन हन दहन दहनाय |

|| श्रीअघोरास्त्र मूल मंत्रः ||
ॐ ह्रां ॐ ह्रीं ॐ ह्रूं स्फुर अघोररूपाय रथ रथ तंत्र तंत्र चट चट कह कह मद मद
दहन दाहनाय श्रीअघोरास्त्र मूलमन्त्र जरामरण भय हूं हूं फट स्वाहा |
अनन्ताघोर ज्वर मरण भय क्षय कुष्ठ व्याधि विनाशाय शाकिनी डाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय अपस्मार भूत बैताल डाकिनी शाकिनी सर्वग्रह विनाशाय मन्त्रकोटि प्रकटाय पर विद्योच्छेदनाय हूं हूं फट स्वाहा |
आत्ममन्त्र सरंक्षणाय नमः |

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं नमो भूत डामरी ज्वाल वशभूतानां द्वादशभूतानां त्रयोदश षोडश प्रेतानां पञ्चदश डाकिनी शाकिनीनां हन हन | दहन दारनाथ | एकाहिक द्व्याहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पन्चाहिक व्याघ्र पादांत वातादि वात सरिक कफ पित्तक काश श्वास श्लेष्मादिकं दह दह छिन्धि छिन्धि श्रीमहादेव निर्मितं स्तम्भन मोहन वश्याकर्षणोच्चाटन कीलनोद्वेषण इति षट कर्माणि वृत्य हूँ हूँ फट स्वाहा |

वातज्वर मरण भय छिन्न छिन्न नेह नेह भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर तापज्वर बालज्वर कुमारज्वर अमितज्वर दहनज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर रूद्रज्वर मारीज्वर प्रवेशज्वर कामादिविषमज्वर मारीज्वर प्रचण्डघराय प्रमथेश्वर शीघ्रं हूँ हूं फट स्वाहा | ॐ नमो नीलकण्ठाय दक्षज्वर ध्वंसनाय श्रीनीलकण्ठाय नमः |

|| फलश्रुतिः ||
सप्तवारं पठेत्स्तोत्रं मनसा चिन्तितं जपेत |
तत्सर्वं सफलं प्राप्तं शिवलोकं स गच्छति ||

|| इति श्रीनीलकण्ठ अघोरास्त्र सम्पूर्णं ||

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