शुक्र प्रदोष व्रत कथा || Shukra Pradosh Vrat Katha

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इससे पूर्व आपने पढ़ा कि गुरुवार के दिन को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कथा कहते हैं। अब पढेंगे कि- शुक्रवार को आने वाले प्रदोष को शुक्र प्रदोष या भ्रुगुवारा प्रदोष भी कहा जाता है और इस व्रत कथा को शुक्र प्रदोष व्रत कथा कहा जाता है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि हेतु यह प्रदोष किया जाता है। सौभाग्य है तो धन और संपदा स्वत: ही मिल जाती है। इससे जीवन में हर कार्य में सफलता भी मिलती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती कीपूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी प्रकार की बाधाएं और दोष कट जाते हैं।


शुक्र प्रदोष व्रत की कथा

शुक्र प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार, एक नगर में तीन मित्र रहते थे – राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकिन गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।’ धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया। ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो ज़िद पर अड़ा रहा और कन्या के माता पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकूओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे।

वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया जहां उसकी हालत ठीक होती गई यानि शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।

शुक्र प्रदोष व्रत कथा समाप्त ।

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