Silk Smitha Autobiography | सिल्क स्मिता का जीवन परिचय : पितृसत्ता पर चोट करने वाली अदाकारा

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दक्षिण भारत की मशहूर अदाकारा रह चुकी सिल्क स्मिता, जिन्होंने अपने किरदारों से अपने दस साल के फ़िल्म करियर को ना केवल कामयाबी की ऊचाइयों पर पहुंचाया बल्कि अपनी बेखौफ़ अदाकारी से लंबे वक़्त से चली आ रही इस पितृसत्तात्मक फ़िल्मी दुनिया को हिला कर रख दिया था । जिस समाज में एक औरत को बस पुरुषों की यौन संबंधी इच्छाओं को पूरा करने वाली एक वस्तु मात्र के रूप में ही देखा जाता है, वहां सिल्क स्मिता का अपने शरीर के प्रति सहजता और स्वामित्व का भाव पेश करती थी। वह खुद में ही फिल्मी जगह के लिए एक बड़ा बदलाव थी जिसने पितृसत्ता पर चोट की। उनके किरदार और अदाकारी के ढंग से फ़िल्म जगत में उनकी छवि एक कामुक तथा सेंसेशनल अदाकारा के रूप में उभरी । हालांकि इससे उनके करियर को नया अयाम तो मिला पर साथ ही उन्हें कदम- कदम पर रुढ़िवादी सोच का सामना भी करना पड़ा। कई बार उन पर ऊंगली भी उठाई गई। यही नहीं बल्कि उनकी अदाकारी और दूसरे गुणों को भी नज़रअंदाज़ कर उनके साथ मात्र एक वस्तु की तरह ही व्यवहार किया गया, उनका अपमान भी किया गया। लेकिन सिल्क स्मिता एक मज़बूत महिला थी, वह डगमगाई नहीं और उन्होंने सभी बंदिशों को तोड़ अपना रास्ता बना ही लिया ।

सिल्क स्मिता यह बात स्वीकार करने में ज़रा भी नहीं सकुचाई कि उन्हें यौन या कामुक वस्तु के रूप में दर्शाया या देखा जाता है तो वह इसे एक उपलब्धि मानेंगी और अपनी इसी पहचान को वह अपना सबसे बड़ा गुण बना लेंगी। सिल्क स्मिता का वास्तविक नाम विजयलक्ष्मी था। उनका जन्म 2 दिसंबर 1960 को आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। आर्थिक तंगी के कारण चौथी कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई रुकवा दी गई। बचपन से सिल्क स्मिता फ़िल्म के पोस्टर देखते- देखते ही बड़ी हुई जिससे उनके मन में हमेशा से ही एक अभिनेत्री बनने की चाहत थी। सिल्क का सावला रंग और आंखें बहुत ही आकर्षक थीं और जैसे- जैसे वह बड़ी होती गई वह और सुंदर हो गई जिससे चिंतित होकर सिल्क स्मिता के माता-पिता ने छोटी उम्र में उनकी शादी करवा दी।

ससुराल में सिल्क स्मिता के साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया जाता था जिससे तंग आकर वह एक दिन अपना घर छोड़कर मद्रास भाग आई और अपनी आंटी के साथ रहना शुरू कर दिया। उन्होंने फ़िल्म उद्योग में छोटे-मोटे रोल करने वाली एक अभिनेत्री के घर पर नौकरानी का काम करना शुरू कर दिया और बाद में उनकी मेकअप आर्टिस्ट बन गई और इस तरह सिल्क स्मिता ने फ़िल्म जगत में अपना कदम रखा। साल 1979 में उनकी पहली फ़िल्म इनाय टेडी (Inaye Thedi) आई जिसके बाद उन्हें फ़िल्में मिलती गई। फिर तमिल में उनकी पहली फ़िल्म वंडीचक्करम (Vandichakkaram) साल 1980 में आई जो हिट रही। इस फ़िल्म में उन्होंने एक शराब बेचने वाली लड़की की भूमिका निभाई थी, जिसके बाद इस फ़िल्म के निर्माता वीनू चक्रवर्ती ने विजयलक्ष्मी को “सिल्क” नाम दिया और फिर उन्हें इसी नाम से जाना जाने लगा ।

सिल्क स्मिता एक महत्त्वाकांक्षी महिला थी। उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता था पर वह किसी भी सवाल का जवाब देने से झिझकती नहीं थी। उनके इसी बेखौफ़ और निडर अंदाज़ के कारण उन्हें घमंड़ी भी कहा गया। ऐसा सोचने वाले बेशक़ रुढ़ीवादी विचारधारा के रहे होंगे, क्योंकि एक स्वतंत्र महिला हमेशा ही पितृसत्तात्मक समाज के लिए एक बड़ी चुनौती होती है, जो कि सिल्क स्मिता थी। उन्हें फ़िल्म हिट करवाने के लिए किसी नायक की ज़रूरत नहीं पडॉती थी। दक्षिण भारत की फिल्मों में उनका बोलबाला कुछ इस कदर था कि लोग फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे नायक की वजह से नहीं बल्कि केवल सिल्क स्मिता के एक गाने की वजह से फ़िल्म देखने जाते थे। समाज हमेशा ही एक स्त्री को पुरुष की सहभागिता में ही देखता है, बिना किसी पुरुष के एक स्त्री का मज़बूत अस्तित्व पितृसत्ता पर चोट करता है। कुछ समय बाद सिल्क स्मिता एक विवाहित डॉक्टर के साथ रहने लगी। उस समय पर किसी भी अभिनेत्री का ऐसा कदम उठाना आम बात नहीं थीं, ये एक चर्चा का विषय था जिसकी वजह से वे काफी समय तक सुर्खियों में भी रही, लेकिन इन सब के बावजूद वे अपने जीवन के निर्णय खुद लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र रही।

सिल्क स्मिता एक महत्त्वाकांक्षी महिला थी। उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता था पर वह किसी भी सवाल का जवाब देने से झिझकती नहीं थी। उनके इसी बेखौफ़ और निडर अंदाज़ के कारण उन्हें घमंड़ी भी कहा गया।

साल 1996 में जब उनकी उम्र सिर्फ 35 वर्ष रही होगी उन्होंने अपने जीवन को खत्म करने का निर्णय ले लिया। वे एक दिन अचानक अपने घर पर पंखे से लटकी पायी गयीं  । उनकी मौत संदिग्ध ही रही पर उनकी आत्महत्या काफी वक़्त तक चर्चा का विषय रही, जिससे कुछ कारण सामने आए, अकेलापन, नशा, कार्यक्षेत्र में फ़िल्म निर्माता और उनका शारीरिक शोषण, साथ ही फ़िल्म जगह में इतने लम्बे वक़्त तक रहने के बावजूद सम्मान ना मिल पाना आदि। उनकी मौत ना केवल समाज की संकीर्ण मानसिकता पर सवाल खड़ा करती है बल्कि फ़िल्म जगत में फैले पितृसत्ता का भी एक क्रूर चेहरा सामने लाती है।

सिल्क स्मिता की कई फिल्मों को B या C ग्रेड के अंदर रखा गया जो कि रुढ़ीवादी विचारधारा का ही उदाहरण था। उन्होंने बड़ी ही सहजता से खुद को परदे पर पूरे आत्मविश्वास के साथ उतारा जो कि उनकी अदाकारी का ही एक हिस्सा थी। उनमें आत्मविश्वास और प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी, वह अपने करियर में 400 से अधिक फ़िल्में कर चुकी थी। वह उस समय की एकलौती ऐसी अभिनेत्री थी जो पूरी फ़िल्म में बस एक गाना करने की फीस 50 हज़ार लेती थी और फ़िल्म निर्माता भी ये भारी भरकम रकम लेके उनके आगे खड़े रहते थे। हर फ़िल्म में सिल्क स्मिता का आइटम सॉन्ग होना जैसे अनिवार्य ही हो गया था, पर फिर भी ये समाज और पितृसत्तात्मक फ़िल्म जगत उनके साथ पक्षपातपूर्ण ही रहा और उनके इस काम की कभी इज़्ज़त नहीं की गई। वह उनसे अंग प्रदर्शन करवाकर भीड़ तो बटोरना चाहता था पर आखिरकार उसे असभ्य ही माना जाता था। वह इतना सब सहकर भी फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना नाम बना पाने में सफल रही, वह भी उस दशक में जब फ़िल्म जगत में पितृसत्ता का ही बोलबाला था, स्त्रियों को मात्र यौन संबंधी वस्तु के रूप में ही देखा जाता था।

यह वह दशक था जब अभिनेत्रियों को उनके जाति और रंग के आधार पर विभाजित कर दिया गया था और उसी के अनुसार उन्हें फ़िल्म में किरदार दिए जाते थे। उच्च वर्ग की महिला को सादगी से रहने वाली नायिका का किरदार दिया जाता और निम्न वर्ग की महिला को चरित्रहीन औरत के रूप में चित्रित किया जाता था क्योंकि सिल्क स्मिता निम्न वर्ग के साथ-साथ दक्षिण भारत होने के कारण गहरे रंग की त्वचा की भी थी, और जिस फ़िल्म जगत में साफ रंग, गोरी चमड़ी वालों की ही वरीयता दी जाती है। चूंकि समाज में गोरे रंग को ही खूबसूरती का प्रतीक मानने की सोच चली आ रही थी जिसके चलते यह भी कारण था कि परदे पर सिल्क स्मिता की छवि को एक वैम्प के रूप में दिखाया जाता था।

साल 2011 में आई “द डर्टी पिक्चर” फ़िल्म सिल्क स्मिता के जीवन के ऊपर ही आधारित थी, जिसमें अभिनेत्री विद्या बालन ने सिल्क स्मिता का किरदार बखूबी अदा किया। इस फ़िल्म में उनका एक डायलॉग है, “फ़िल्म सिर्फ तीन चीज़ों से चलती हैं, एंटरटेनमेंट! एंटरटेनमेंट! एंटरटेनमेंट! और मैं एंटरटेनमेंट हूं।” यह डायलॉग सिल्क स्मिता की निडरता, बेखौफ़ अंदाज़, मानसिक दृढ़ता, आत्मविश्वास और स्वतंत्र मानसिकता को दिखाने में सफल होता है। हालांकि यह फ़िल्म सिल्क स्मिता की कहानी के कई अहम हिस्सों को नज़रअंदाज़ कर देती है। जैसे उनके निम्न जाति वर्ग और गहरे रंग के होने के कारण हुए भेदभाव, जो कि उनके विजयलक्ष्मी से “सिल्क” बनने तक के सफर का सबसे महत्वपूर्ण कारण था। फ़िल्म में ये ना दिखाने का भी मुख्य कारण इस पितृसत्तात्मक फ़िल्म जगत का दोहरापन ही है। सिल्क स्मिता की पूरी कहानी कह पाना असंभव ही है, उनकी हिम्मत और आत्मविश्वास की जितनी तारीफ की जाए कम ही लगती है।

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